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क्या कोरोना महामारी एक आपदा है ?

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क्या कोरोना महामारी एक आपदा है ?

गुरुचरण सिंह

आपदा का मतलब होता है ऐसी कुदरती या आदमी की गलती या उसके जानबूझकर कुछ करने की वजह से होने वाली कोई गंभीर दुर्घटना, जिसे उससे प्रभावित समुदाय तुरंत रोक नहीं पाता या हल नहीं ढूंढ पाता. भूकंप, चक्रवात, सूखा, बाढ़ आदि ऐसी ही आपदाएं हैं, जिनसे जान और माल की भारी तबाही होती है. जाहिर है आकस्मिकता इसका जरूरी हिस्सा है !

लेकिन क्या वाकई कोरोना महामारी की कोई खबर थी ही नहीं दुनिया को ? क्या तंत्र और सारे वैज्ञानिक फेल हो गए थे, जो समय पर अपनी सरकार को चेता नहीं पाए ? अगर उन्होंने अपनी ड्यूटी निभाई और सबको खतरे से आगाह किया था तो फिर तमाम जिम्मेदारी तो राजनीतिक नेतृत्व की ही बनती है, जिसने चेतावनी के बावजूद इस पर कोई ध्यान नहीं दिया ! ऐसी स्थिति में आकस्मिकता की दुहाई देना और उसके चलते जिंदगी के अस्त-व्यस्त हो जाने की दलील देना इतना सतही है कि किसी भी कसौटी पर खरा नहीं उतरता.

भापजा के ट्विटर हैंडल पर विश्वास करें तो भारत जनवरी में ही इस महामारी के प्रकोप से वाकिफ हो गया था. फिर भी वह अहमदाबाद में देश के सबसे बड़े स्टेडियम मोटेरा में रिकॉर्ड भीड़ जुटा कर ट्रंप की मेज़बानी करता रहा, मध्य प्रदेश में सरकार गिराने-बनाने में ही लगा रहा. 19 मार्च को सरकार की नींद तब खुली जब कोरोना अपना जाल बिछा चुका था. तब पीएम नेतृत्व का बीड़ा उठाते हैं, लेकिन कोई रोड़मैप सामने रखने की बजाए इस ‘राष्ट्रीय आपदा’ से लड़ने की पूरी की पूरी जिम्मेदारी जनता पर थोप दी जाती है, लॉकडाउन के जरिए.

फरवरी के अंत में अमरीकी आपदा प्रबंधन का प्रमुख राष्ट्रपति ट्रंप से तत्काल बातचीत का समय मांगता है ! लेकिन वह ठहरा व्यापारी आदमी. पता नहीं उसे कौन-सा ‘अमरीका फर्स्ट’ करना था, लिहाज़ा वह उसे समय नहीं देता और भारत की मेहमाननवाज़ी का लुफ्त उठाने के लिए भारत की उड़ान पकड़ लेता है !

आज वही ट्रंप टीवी पर अमेरिका में हो रही रोजाना हजारों मौतों का ब्यौरा देता है, भारत को मलेरिया की दवा भेजने के लिए धमकी देता है, ‘चीन’ का साथ देने के लिए WHO को अमरीकी योगदान बंद कर देता है. दरअसल दुनिया में सबसे ज्यादा जान-माल का नुकसान तो अमरीका का ही हुआ है. साफ कहें तो 9/11 की तरह उसने हाथ खड़े कर दिए हैं, फिर भी उसे शर्मिंदगी रत्ती भर नहीं होती और इसकी तमाम जिम्मेदारी का ठीकरा चीन के सिर पर फोड़ दिया जाता है. पूरा पूंजीवादी मीडिया चीन को ‘इस जैविक हथियार’ के लिए विलेन बनाना शुरू कर देता है. इराक के मामले में वह पहले भी ऐसा कर चुका है, जिसका परिणाम दुनिया के सामने है.

यूरोप में ब्रिटेन के पीएम बोरिस जॉनसन से पत्रकार जब कोरोना पर सवाल पूछते हैं तो वह लापरवाही से कंधे उचका देता है और कहता है कि यह ‘कोई खास बड़ी समस्या’ नहीं है. इतना ही नहीं मज़ाक उड़ाता हुआ कह देता है कि ‘मैं तो अभी एक कोरोना पॉजिटिव से हाथ मिला कर आ रहा हूंं.’ विडंबना देखिए वही आदमी कोरोना का शिकार भी हो जाता है !

इटली के डॉक्टरों ने एक बड़ी संख्या में वहां रहते चीन के लोगों से ‘फिजिकल डिस्टेंस’ बना कर रखने की सलाह दी थी लेकिन न तो इटली की सरकार के कान खड़े हुए और न ही नागरिकों ने इसे गंभीरता से लिया. इसकी बजाए चीनियों से गले मिलने का बाकायदा अभियान चलाया गया, नतीजा भयानक तबाही !

वैज्ञानिकों ने भीड़-भाड़ वाली जगहों पर कोरोना संक्रमण फैलने की चेतावनी दी तो धार्मिक ईरानी सरकार ने इनका मजाक उड़ाया. हालांकि सफाई की आदत के चलते उसने इस महामारी पर जल्दी ही काबू पा लिया लेकिन अमरीका से पहले उसका और इटली का ही सबसे ज्यादा जान और माल का नुकसान हुआ था.

भापजा के ट्विटर हैंडल पर विश्वास करें तो भारत जनवरी से ही इस महामारी के प्रकोप से वाकिफ था फिर भी अहमदाबाद में सबसे बड़े स्टेडियम मोटेरा में रिकॉर्ड भीड़ जुटा कर ट्रंप की मेज़बानी करता रहा है. मध्य प्रदेश में सरकार गिराने-बनाने में ही लगा रहा. उस पर भी तुर्रा यह कि इससे प्रभावित होने वाले लोगों के बारे तनिक भी विचार नहीं किया जाता और इसे भी ताली थाली और मोमबत्तियों का त्योहार बना दिया जाता है !

चीन में, जहां से इस त्रासदी की शुरुआत हुई, सरकार ने, पता नहीं किस उद्देश्य से, संक्रमण फैलने की खबरों को पहले दबाने की कोशिश की और जिस डॉक्टर ने इस जानकारी को साझा किया, उसे दंडित किया लेकिन इसके बाद इस पर काबू पाने की जो सामूहिक इच्छा शक्ति दिखाई है, उसके लिए सलाम करने का मन होता है.

स्पष्ट है कि इस महामारी ने बैठे बिठाए ही नहीं दबोच लिया दुनिया को, वैज्ञानिकों ने बहुत पहले से बता दिया था इसके बारे में, WHO ने सभी देशों को चेतावनी भी दी थी. फिर भी इसे आपदा कहना अपनी लापरवाही पर पर्दा डालना है.

धीरज, धर्म, मित्र, अरु नारी, आपद काल परिखिए चारी !!
अर्थात संकट को समय ही आपके धैर्य, धर्म / राजधर्म, मित्र और पत्नी की परीक्षा होती है. फिलहाल इस चर्चा को धर्म / राजधर्म तक ही सीमित रखना चाहता हूं.

दुनिया भर के तंत्र और विशेषज्ञ तो इस कसौटी पर खरे ही उतरे हैं जब समय रहते लोगों को और सरकारों को खतरे की चेतावनी दे दी लेकिन राजधर्म, राजनीतिक नेतृत्व बुरी तरह फेल हुआ है. पूरी तरह एक्सपोज हो चुका है भारत समेत दुनिया का राजनीतिक नेतृत्व. साबित हो चुका है कि अपने छोटे-छोटे स्वार्थों के चलते हमने बहुत ही कमजर्फ़, अदूरदर्शी और स्वार्थी राजनेताओं के हाथों में अपनी तकदीर सौंप दी है. राष्ट्रीय संकट की इस घड़ी में भी ये लोग बस अपना एजेंडा चला रहे हैं, एक दूसरे की पीठ खुजा रहे हैं. जनता जाए भाड़ में.

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