किताब जो पढ़ी जानी थी
पढ़ी नहीं गई
किताब पढ़ते
उसे फांसी मिली
किताब का वह पन्ना
अब तक मुड़ा है
पढ़े जाने के इंतजार में
जुर्म कुछ ऐसा नहीं था
जिसकी सजा फांसी थी
खतरनाक वह जुर्म नहीं
खतरनाक वह किताब थी
किताब का डर
गया नहीं
बरकरार है
फांसी की सजा
अब तक बहाल है
सत्ता अदालत वही
पात्रों के रंग बदले
गोरे से भूरे हुए
चाल और चरित्र की
समानता समान है
किताब का डर
वावेल को था
किताब का डर
चर्चिल को था
किताब का डर
भांड कवियों
चाटुकार टीकाकारों को है
किताब का डर
पेंशनभोगी मुखबिरों को है
गद्दारी भत्ता प्राप्त
सत्ता के काले निजाम को है
- राम प्रसाद यादव
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