किसान एवं आम आदमी विरोधी तीन कृषि कानूनों की बिना शर्त वापसी और एमएसपी पर कानून बनाने की मांग को लेकर पिछले पांच महीनों से लगातार चल रहे किसान आंदोलनकारियों को बदनाम करने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह से लेकर तमाम संघी एक ओर जहां दुश्प्रचार में जुटा हुआ है, वहीं ऑपरेशन क्लीन नामक सैन्य अभियान चला कर किसान आंदोलनकारियों पर हमला का योजना बना रहा है.
किसान आंदोलनकारी सरकारी और संघियों के तमाम दुश्प्रचार और आतंक का जमकर मुकाबला करते हुए एक पर एक मिसाल पैदा कर रहे हैं. इसी में एक शानदार मिसाल है कोरोना महामारी के नाम पर लॉकडाऊन के कारण भाग रहे प्रवासी मजदूरों के पलायन पर उन मजदूरों के आश्रय हेतु अपनी ओर से व्यवस्था करने का आश्वासन और आमंत्रण. जो काम भारत सरकार को करना चाहिए वह कार्य किसान आंदोलनकारी कर रहे हैं. तो ऐसे में सवाल उठता है कि अपनी जिम्मेदारियों से भाग रहे नरेन्द्र मोदी की संघी सरकार को सत्ता में रहने का औचित्य ही क्या है ? क्यों नहीं इसे उखाड़ फेंककर एक नई अस्थायी सरकार की स्थापना की जाये ?
लोगों को ठगने, झूठ बोलने, भ्रामक दुश्प्रचार करने, आम जनों पर पुलिसिया हमलाकर लोगों को आतंकित करने वाली गैर जिम्मेदार मोदी सरकार और उसके गिरोहों के झूठ का भंडाफोड़ करते हुए किसान आंदोलनकारियों के संयुक्त मोर्चा ने दैनिक प्रेस नोट जारी किया है. इस प्रेस नोट को जारी करते हुए डॉ. दर्शन पाल कहते हैं, कि भाजपा आईटी सेल द्वारा लगातार प्रचार किया जा रहा है कि किसानों के धरने कोरोना से लड़ाई में बाधा डाल रहे हैं. यह झूठ फैलाया जा रहा है कि किसानों ने ऑक्सीजन से भरे ट्रक और अन्य जरूरी सामान के वाहन दिल्ली की सीमाओं पर रोके हुए हैं. किसानों पर यह भी आरोप लगाया जा रहा है वे कोरोना फैला रहे हैं.
सयुंक्त किसान मोर्चा इन तमाम प्रयासों की निंदा व विरोध करता है. किसानों की कभी मंशा नहीं रही है कि वे सड़कों पर सोए, अपने घरों व ज़मीन से दूर रहे. सरकार ने अमानवीय ढंग से इन कानूनों को किसानों पर थोपा है. किसान कुछ नया नहीं मांग रहे हैं, वे सिर्फ उसको बचाने की लड़ाई रहे हैं, जो उनके पास है. इस अस्तित्व की लड़ाई में वे कोरोना से भी लड़ रहे है और सरकार से भी.
लगातार हड़ताल, भारत बंद, रेल जाम करने के बाद भी जब सरकार ने किसानों की बात नहीं सुनी तो किसानों ने मजबूरी में दिल्ली का रुख किया. 26 नंवबर को किसान दिल्ली के अंदर आकर शांतिपूर्ण धरना करना चाहते थे परंतु किसानों को वहां तक पहुंचने नहीं दिया गया. 26 जनवरी की सरकार द्वारा सुनियोजित हिंसा के बाद दिल्ली की सीमाओं पर बड़े-बड़े बैरिकेड, कीलें, पत्थर लगा दिए गए, पैदल जाने तक का रास्ता नहीं छोड़ा. हालांकि आसपास के लोगों ने किसानों का समर्थन किया व वैकल्पिक रास्ते खोले.
किसानों ने पहले दिन से ही जरूरी सेवाओं के लिए रास्ते खोले हुए हैं. सरकार द्वारा लगाए गए भारी बैरिकेड सबसे बड़े अवरोध है. हम सरकार से अपील करते हैं कि दिल्ली की तालाबन्दी तोड़ी जाए ताकि किसी को कोई समस्या न हो. कोरोना के खिलाफ लड़ाई में सरकार अपनी जिम्मेदारी से भाग रही है पर मानवीय आधार पर किसान देश के आम नागरिक के साथ हैं.
सयुंक्त किसान मोर्चे के आह्वान पर किसानों मजदूरों के बड़े जत्थे दिल्ली की तरफ आना शुरू हो गए हैं. किसान फसल की कटाई के तुरंत बाद सिंघु, टिकरी, गाज़ीपुर, शाहजहांपुर मोर्चो को संभालने वापस आ रहे हैं. अगर सरकार को किसानों की सेहत की इतनी ही चिंता है तो तुरन्त तीन कानून रद्द करें व MSP पर कानून बनाएं.
देश भर से प्रवासी मजदूरों के लंबी यात्राएं की खबरें आ रही है. दरअसल यह खतरा उन नवउदारवादी नीतियों का परिणाम है जिसका एक बड़ा भाग यह तीन कृषि कानून है. खुले बाजार व निजीकरण की नीतियों का ही परिणाम है कि आज हज़ारों लाखों की संख्या में मजदूर शहरों में सस्ती मजदूरी के लिए भटक रहे हैं. सरकार खेती सेक्टर को मजबूत करने की बजाय खेती संकट पैदा करके शहरों में सस्ते मजदूर पैदा करना चाहती है, पर अब किसान मजदूर इन नीतियों के खिलाफ हर हालत में डटकर लड़ेंगे.
गाज़ीपुर मोर्चे के किसान संगठनों व कार्यकर्ताओं ने खाने के पैकेट बना दिल्ली के बस अड्डो व स्टेशनों पर बांटने शुरू कर दिये हैं. आनंद विहार बस अड्डे पर प्रवासी मजदूरों को खाने के पैकेट वितरित किये गए.
भीड़ बढ़ाना मकसद नहीं, किसानों की प्रवासी मजदूरों से हमदर्दी है आमंत्रण का कारण.
संयुक्ता किसान मोर्चा के नेताओं ने आज शाम (22अप्रैल) हरियाणा प्रशासन के अधिकारियों के साथ एक विस्तृत बैठक की. इस बैठक में यह निर्णय लिया गया कि ऑक्सीजन, एम्बुलेंस व अन्य जरूरी सेवाओं के लिए GT करनाल रोड़ का एक हिस्सा खोला जाएगा, जिस पर दिल्ली पुलिस ने कठोर बैरिकेड लगाए हुए है. किसान कोरोना के खिलाफ जंग में हरसंभव मदद करेंगे.
सोनीपत के SP, CMO समेत अन्य वरिष्ठ अधिकारियों की उपस्थिति में हुई इस बैठक में सिंघु बॉर्डर से संयुक्त किसान मोर्चा के नेता शामिल हुए. जल्द ही मुख्य सड़क का एक हिस्सा इमरजेंसी सेवाओं के लिए खोल दिया जाएगा. सयुंक्त किसान मोर्चा व सभी संघर्षशील किसान इस बात के लिए प्रतिबद्ध है कि उनके कारण किसी आम नागरिक को कोई समस्या न हो व कोरोना के खिलाफ जल्दी ही जंग जीती जाए.
जहां भाजपा और केंद्र सरकार ने प्रदर्शनकारी किसानों पर दिल्ली शहर में ऑक्सीजन की आपूर्ति में बाधा डालने का आरोप लगाया है, वहीं यह देखा गया है कि पुलिस ऑक्सीजन की आपूर्ति करने वाले ट्रकों को कम से कम और सही मार्ग की ओर इशारा करने की बजाय किसानों के धरना स्थलों की ओर गलत तरीके से रोक रही है. जैसा कि पहले से ही कहा गया है, सरकार द्वारा ही सड़कों पर बैरिकेडिंग की गई है और खुले रास्ते को रोका गया है। किसान संख्या में ज्यादा ज़रूर है परंतु वे दूर दूर बैठे हैं व जरूरी सेवाओं के लिए रास्ता खुला है. सभी विरोध स्थलों पर, किसानों ने पहले से ही आपातकालीन सेवाओं की आवाजाही के लिए रास्ते खुले रखे हुए हैं.
किसान बड़ी संख्या में विरोध स्थलों पर वापस आने की तैयारी कर रहे हैं. 23 अप्रैल (कल), सरकार के ऑपरेशन क्लीन का मुकाबला करने के लिए ऑपरेशन शक्ति के हिस्से के रूप में, ट्रैक्टर ट्रॉलियों में प्रदर्शनकारियों का एक बड़ा काफिला सिंघू बॉर्डर के लिए हरियाणा के सोनीपत जिले के बरवासनी से रवाना होगा. ये किसान किसान मजदूर संघर्ष समिति से जुड़े हैं. इस काफिले में कई महिला किसान भी होंगी.
प्रवासी मज़दूरों के पलायन पर SKM का धरना स्थलों पर आमंत्रण जारी है. किसी को भी इस गलतफहमी में न रहने दें कि यह दिल्ली बॉर्डर पर प्रदर्शनकारियों की संख्या को बढ़ावा देना है. गेहूं की कटाई के लिए गए किसान हजारों की तादाद में उत्साहपूर्वक वापस आ रहे हैं. प्रवासी मजदूरों की अपनी एजेंसी है जिसे सरकार हमेशा बदनाम करती है. हम उनके दुःख दर्द को समझते हुए उन्हें धरनास्थलों पर आमंत्रित कर रहे हैं ताकि उन्हें इस संकट की घड़ी में यात्रा व खाने-रहने की समस्या न हो. प्रवासी कामगारों को निमंत्रण इसलिए है क्योंकि देश के अन्नदाता के रूप में किसान, इन श्रमिकों के संकट को समझते हैं.
किसान इन श्रमिकों को यह बताना चाहते हैं कि हम सबका भविष्य असंवेदनशील सरकार की नीतियों के कारण अब व्यर्थ होने जा रहा है, और उन्हें गांवों में वापस रोजगार मिलने की संभावना नहीं है. यहां, विरोध स्थलों पर, किसान अस्थायी रूप से प्रवासी श्रमिकों की देखभाल करना चाहते हैं. किसानों द्वारा आश्रय और भोजन प्रदान करने में खुशी होगी. यहां जरूरी नियमो का पालन किया जा रहा है इसलिए संक्रमण का कोई डर नहीं है. एक बार सामान्य स्थिति का एक हिस्सा बहाल हो जाने के बाद, प्रवासी श्रमिक अपने रोजगार स्थलों पर वापस जा सकते हैं, और इससे अनावश्यक यात्रा लागत पर बचत कर सकते हैं. संयोग से, श्रमिकों के साथ किसानों की एकता को मजबूत किया जाएगा.
कल जिनेवा प्रेस क्लब के माध्यम से आयोजित एक प्रेस कांफ्रेंस में, संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं ने बताया कि वर्तमान गतिरोध का एकमात्र समाधान भारत सरकार के लिए औपचारिक बातचीत को फिर से शुरू करने और 3 केंद्रीय कानूनों को निरस्त करने और एमएसपी पर कानून लाने में है. भारतीय कृषि के भविष्य में सुधार लाने के संबंध में कोई अन्य विचार-विमर्श और इसके बाद हो सकता है.
नेताओं ने कहा कि भारत सरकार ने किसानों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र घोषणा का उल्लंघन किया है, जिसके लिए भारत एक हस्ताक्षरकर्ता है. मीडिया इंटरैक्शन में बोलते हुए, एक स्विस सांसद, निकोलस वाल्डर ने चल रहे शांतिपूर्ण संघर्ष के लिए अपनी प्रशंसा व्यक्त की और बताया कि अगर एग्री बिजनेस कॉरपोरेट के नेतृत्व में इस तरह का समाधान किया जाएगा तो किसानों के लिए कभी कोई समाधान नहीं हो सकता है. उन्होंने कहा कि भारतीय किसान सिर्फ भारतीयों को ही नहीं प्रेरणादायक है, बल्कि दुनिया भर के किसानों के भविष्य के बारे में प्रेरणास्रोत है.
पंजाब में, गेहूं की खरीद प्रक्रिया को सुचारू रूप से जारी रखने के लिए, किसानों को बारदाने (पैकेट) के लिए विरोध प्रदर्शन करना पड़ रहा है. बरनाला जैसी जगहों पर किसानों को इसके लिए विरोध में धरना देना पड़ा.
हरियाणा सरकार किसानों के खिलाफ अपनी अन्यायपूर्ण लड़ाई जारी रखे हुए है – आज, पुलिस की एक बड़ी तैनाती किसानों को असौन्दा टोल प्लाजा पर बेदखल करना चाहती थी. हालांकि, किसानों ने पुलिस के साथ गतिरोध के बाद टोल प्लाजा पर कब्जा कर लिया.
भाजपा नेताओं को विभिन्न स्थानों पर किसानों के संघर्ष का सामना करना पड़ रहा है. आज पटियाला में भाजपा पंजाब के नेता हरजीत सिंह ग्रेवाल को किसानों ने घेरा. किसानों द्वारा भाजपा की बैठक के खिलाफ शांतिपूर्वक विरोध प्रदर्शन करने के लिए इकट्ठा होने के बाद भाजपा नेताओं को पुलिस द्वारा बाहर निकालना पड़ा.
कनाडा में, भारतीय किसानों के संघर्ष का समर्थन जारी है. वैंकूवर नगर परिषद ने प्रदर्शनकारी भारतीय किसानों के साथ एकजुटता में एक प्रस्ताव पारित किया था, और वैंकूवर के मेयर ने कनाडा सरकार से भारत सरकार से ‘ कनाडा का भारत के किसानों के लिए समर्थन’ के संबंध में संपर्क करने की अपील की.
Read Also –
ऑपरेशन क्लीन : क्या मोदी सरकार अपने और अपने मालिक के खात्मे का जोखिम उठाने के लिए तैयार है ?
किसान आंदोलन खत्म करने के लिए कोरोना का झूठ फैलाया जा रहा है
अपनी नस्लों को गुलामी की बेड़ियों से बचाने का एक मात्र उपाय है – किसान आंदोलन की जीत
किसान आंदोलन ने कारपोरेट संपोषित सत्ता को पहली बार सशक्त और गंभीर चुनौती दी है
[प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे…]