राम अयोध्या सिंह
भारत में किसान आंदोलन के आज नौ महीने पूरे हो गए. भारतीय इतिहास में किसानों का यह आंदोलन अपनी तरह का अकेला ऐसा आंदोलन है, जो भारतीय राजसत्ता और सत्ताधारी वर्ग के नियत, नीतियों, निर्णयों और कार्ययोजनाओं के खिलाफ अहिंसक तरीके से लगातार चलते हुए नौवें महीने में प्रवेश कर गया है. इतने लंबे समय तक विपरीत परिस्थितियों, विपरीत मौसम और मोदी सरकार की अमानवीय व्यवहार, षड्यंत्र और दूरभिसंधि के बीच अबतक चलता रहा है.
एक तरफ सरकार और उसके आका पूंजीपतियों और कारपोरेट घरानों की भारत के किसानों को कृषि भूमि से वंचित कर उन्हें गुलाम बनाने की साज़िश है, तो दूसरी तरफ भारत की अर्थव्यवस्था के मेरुदंड और राष्ट्रीय गौरव के प्रतीक किसान एक-दूसरे के खिलाफ आमने-सामने खड़े हैं. एक तरफ सरकार और पूंजीपति वर्ग किसानों को जमीन से बेदखल करने के लिए कृत-संकल्पित है, वहीं दूसरी तरफ अपनी जिंदगी से भी प्यारी जमीन को हर हाल में बचाने के लिए किसान भी दृढ़प्रतिज्ञ हैं.
सरकार द्वारा दमन के सारे हथकंडे अपनाने, किसानों को बदनाम करने और आंदोलन को दिग्भ्रमित कर उसे पटरी से उतारने की हर संभव प्रयास के बावजूद किसानों ने अपनी मांगों के समर्थन में अपनी चट्टानी एकता का परिचय देते हुए आंदोलन को राष्ट्रीय ही नहीं, वैश्विक महत्त्व का आंदोलन भी बना दिया है.
भारत का यह अकेला ऐसा आंदोलन है जिसने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है. वास्तव में यह आंदोलन भारत की दूसरी आजादी का प्रतीक बनने के साथ ही उस आजादी का मेरुदंड बन गया है.
आज जब मोदी सरकार के हाथों में सारी संवैधानिक शक्तियां केन्द्रित हो गई हैं, संविधान और सारे संवैधानिक संस्थाओं का अपहरण कर लिया गया है और उनकी अस्मिता, प्रतिष्ठा, मर्यादा और भूमिका को तार-तार कर दिया गया है, न्यायपालिका सहित सारी स्वायत्त संस्थाओं को पालतू तोता बना दिया गया है, विरोधी दलों को लकवा मार गया है, और पूरे देश में एक अनजाना आतंक का माहौल बनाया गया है, सरकार के विरोध में सारे आंदोलन और जनसंघर्ष मृतप्राय हो चुके हैं, ऐसे में यह किसान आंदोलन अकेला समुद्र तट के प्रकाश स्तंभ की तरह अपनी जगह अटल और अडिग सीना ताने खड़ा है.
आज जब पूरा देश ही मोदी सरकार के आगे घुटने टेक चुका है, लोगों की जुबान बंद हो चुकी है, लोग अपनी जान की खैर मना रहे हैं और हर पल एक अनजाने खतरे की संभावना तले जी रहे हैं. किसानों का यह आंदोलन और संघर्ष अपने पूरे तेवर, जूनून, ऊर्जा और उत्साह के साथ अपने उद्देश्य प्राप्ति के लिए कमर कस जंगे-मैदान में डटा हुआ है.
किसानों का यह आंदोलन मोदी सरकार की फासीवादी, आतंकवादी, वर्चस्ववादी और दमनकारी काली करतूतों के खिलाफ भारतीय राष्ट्र की अस्मिता का प्रतीक बन हर तरह के झंझावातों के थपेड़े सहता हुआ दमनकारी राजसत्ता के लिए चुनौती बना हुआ है.
मोदी सरकार ने अपने तई आंदोलन को दिग्भ्रमित करने, नेताओं को बहलाने और फुसलाने के लिए झुठ, अफवाह, भयादोहन, निंदा, षड्यंत्र और दूरभिसंधि का सहारा लिया, पर वह किसानों की संकल्प-शक्ति को डिगा नहीं सकी. राष्ट्रीय अस्मिता का अंतिम किला बनकर किसानों का यह आंदोलन दमनकारी राजसत्ता के खिलाफ प्रतिरोध के अंतिम गढ़ के रूप में अविचल निष्ठा के साथ अपनी लड़ाई लड़ रहा है.
भारत और दुनिया के अनेक देशों में लोगों ने एक से बढ़कर एक जनप्रतिरोध को अभिव्यक्त करते जनांदोलनों को देखा है और उनके ऐतिहासिक महत्ता के गवाह भी रहे हैं. पर, भारत का वर्तमान किसान आंदोलन इस रूप में सबसे अलग और अनूठी विशिष्टता वाला आंदोलन है, जो नौ महीने तक भारतीय जनता के जनप्रतिरोध की सबसे सशक्त अभिव्यक्ति बनकर खड़ा है.
किसानों के खिलाफ बना यह ड्रैकूनियन कानून अगर अपने उद्देश्य में सफल हो जाते हैं, तो भारत की बहुसंख्यक मेहनतकश अवाम के साथ-साथ भारत के किसान भी अपनी आजादी खोकर हमेशा के लिए गुलाम बना जाएंगे. अपने साथ-साथ देश की आजादी की रक्षा के लिए कमर कसे किसानों का यह आंदोलन राजसत्ता की संपूर्ण शक्ति को आज चुनौती दे रहा है.
हजारों किसानों के बलिदान के बावजूद भी अपने पद पर अडिग रहना कोई मामूली बात नहीं है. भारत के स्वतंत्रता संग्राम में देश के विभिन्न वर्गों और समुदायों के लोग सम्मिलित होकर विभिन्न भूमिकाओं का निर्वहन कर रहे थे, और आजादी सबकी सामुहिक चेतना और जनशक्ति के प्रतिरोध का परिणाम था.
क्यूबा में फिदेल कास्त्रो और चे ग्वेरा, फिलिस्तीन में यासिर अराफात, दक्षिण अफ्रीका में नेल्सन मंडेला, अमेरिका में मार्टिन लूथर किंग जूनियर की तरह दुनिया में अनेकों ऐतिहासिक आंदोलन और जनप्रतिरोध की लड़ाईयां लड़ी गईं, पर अपनी विशाल सदस्यता, लंबे कालखंड, वचनबद्धता और तीव्रता के मामले में यह सबसे अलग और अनूठा आंदोलन रहा है.
एक मोहनदास करमचंद गांधी के अहिंसक आंदोलन ने पूरे ब्रिटिश साम्राज्य को हिला दिया था, उसी के नक्शे-कदम पर चलते हुए भारत का यह किसान आंदोलन भारतीय सत्ताधारी वर्ग और उसकी प्रतिनिधि मोदी सरकार के गले की हड्डी बन गई है. सरकार से न निगलते बनता है और न ही उगलते.
एक तरफ अपनी संपूर्ण शक्ति के साथ भारत का पूंजीपति वर्ग अपनी जिद पर अड़ा हुआ है, तो दूसरी ओर भारत का किसान भी अपनी सामर्थ्य के अनुसार राष्ट्रीय अस्मिता के साथ ही भारत की बहुसंख्यक मेहनतकश अवाम की आजादी की अक्षुण्णता के लिए प्रतिबद्ध और कटिबद्ध है. भारत के इन वीर-बांकुड़ों को तहेदिल से स्वागत करते हुए अपनी सारी संवेदनाएं भी उन्हें अर्पित करता हूं. अपने किसान भाईयों को लाल सलाम, इंकलाब जिंदाबाद.
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