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किसान आंदोलन : जल-जंगल-जमीन बचाने के लिए मोर्चे से मौत तक

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किसान आंदोलन : जल-जंगल-जमीन बचाने के लिए मोर्चे से मौत तक

हिमांशु कुमार, सामाजिक कार्यकर्त्ताहिमांशु कुमार, गांधीवादी विचारक

किसान आंदोलन में शामिल साथियों से बातचीत के बाद का हाल यह है कि टिकरी बॉर्डर सिंघु बॉर्डर और गाजीपुर बॉर्डर पर कई किलोमीटर तक अभी भी ट्रैक्टर ट्राली या और अस्थाई झोपड़े पूरी शान के साथ जमे हुए हैं. हजारों किसान अभी भी मोर्चे पर मौजूद हैं. हरियाणा और पंजाब में अभी भी किसानों की सभाएं चल रही है. मोदी सरकार ने किसानों की मौत का इंतजाम कर दिया है इसलिए किसान इस मौत के फंदे को तोड़ने के लिए पूरी ताकत से लड़ रहे हैं.

सरकार ने किसानों के आंदोलन स्थल के बाहर जो कंक्रीट की दीवारें और कीलें सड़क पर लगा दी थी, वह अभी भी बरकरार है दिखावे के लिए सरकार ने कुछ जगह थोड़ी सी कीलें निकालने का वीडियो वायरल करवाया था लेकिन ज्यादातर जगह पर अभी भी नुकीली कीलें सड़क पर लगी हुई है. हरियाणा और पंजाब की तरफ से आने वाले ऑक्सीजन के ट्रकों को जाने का रास्ता देने के लिए किसानों ने अपनी तरफ के सारे बैरिकेट्स हटा दिए हैं लेकिन बदमाश मोदी सरकार ने एक भी बैरीकेड नहीं हटाया है, जिसकी वजह से ऑक्सीजन के ट्रकों को लंबा रास्ता तय करना पड़ता है जिससे बहुत देरी होती है और मरीजों को ऑक्सीजन देर से मिल पाती है.

खैर मोदी तो एक आतंकवादी और अपराधी सोच का व्यक्ति है लेकिन बाकी के पुलिस अधिकारी, प्रशासनिक अधिकारी और न्यायालय के जजों को क्या मोदी की यह बदमाशी दिखाई नहीं देती ? वह भी कोई भी कार्यवाही नहीं कर रहे हैं जिससे जनता की जान बचाई जा सके. यह बहुत बड़ा अपराध है जिसके लिए इतिहास इन लोगों को हमेशा अपराधी के रूप में याद रखेगा.

4 दिन पहले छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में आदिवासी किसान एक आंदोलन कर रहे थे. पुलिस ने आदिवासियों पर फायरिंग की जिसमें 3 आदिवासी किसान मारे गए हैं. पुलिस के आईजी का बयान है कि मारे गए लोग माओवादी हैं.
मतलब हमारी पुलिस इतनी तेज निशानेबाज है कि 5000 लोगों की भीड़ में अगर तीन माओवादी हो तो वह सिर्फ उन्हीं को मार सकती है ! गांव वालों का कहना है कि मारे गए लोग घर परिवार वाले हैं और उनका माओवाद से कोई लेना देना नहीं है. छत्तीसगढ़ पुलिस द्वारा इस तरह की बहुत सारी घटनाएं पहले भी की गई है.

पिछले साल मैंने जाकर थाने में आदिवासियों के साथ एक एफआईआर कराने के लिये उपवास भी किया था. उस मामले में सीआरपीएफ ने सारकेगुड़ा में 17 निर्दोष आदिवासियों को गोली से भून दिया था, जिसमें 9 छोटे बच्चे थे. उस मामले में भी पुलिस ने कहा था कि मारे गए लोग माओवादी हैं लेकिन जब जांच आयोग की रिपोर्ट आई तो उसने घोषित किया कि मारे गए लोग निर्दोष आदिवासी थे. जांच आयोग की रिपोर्ट आने के बाद भी आज तक किसी के खिलाफ कोई एफआईआर तक दर्ज नहीं हुई है.

आपने अभी दिल्ली की सीमा पर किसानों का आंदोलन देखा. क्या आप जानते हैं किसान किस कारण डरे हुए हैं और आंदोलन करने के लिए विवश हुए हैं ? किसानों को डर है उनकी जमीन छीन ली जाएगी. और मैं आपको बताता हूं किसानों का डर बिल्कुल सच्चा है. बड़े-बड़े पूंजीपतियों की नजर जमीनों पर ही है. आदिवासी इलाकों में सीआरपीएफ की मदद से जमीन छीन रहे हैं. देश के बाकी हिस्सों में सरकार की मदद से कानून बनाकर जालसाजी से जमीनें हड़पने का इरादा है.

आदिवासी इलाकों में आदिवासी किसान को सीआरपीएफ और पुलिस गोली से उड़ा कर जमीन पर कब्जा कर रही है. मैं आपको चेतावनी देता हूं कि कुछ सालों के बाद हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजस्थान में भी गांव-गांव में सीआरपीएफ तैनात की जाएगी. आज जिस तरह आदिवासियों को गोली से उड़ा कर पूंजीपतियों के लिए जमीनों पर कब्जा किया जा रहा है, आपके यहां भी वही खून की होली खेली जाएगी.

बहुत से लोग सवाल उठाएंगे कि छत्तीसगढ़ में तो कांग्रेस है अब हालत क्यों नहीं बदल रही ? सवाल पार्टी का नहीं है सवाल अर्थनीति का है. भारत की सभी पार्टियों ने पूंजीवादी अर्थव्यवस्था को अपनाया हुआ है इसलिए सभी पार्टियां इन पूंजीपतियों के सामने एक जैसी हरकत करती हैं. अदालतें इन पूंजीपतियों के सामने बिछी हुई है. पुलिस दुम हिला रही है, राजनेता बिक चुके हैं, जनता को मारा जा रहा है. हम यह सब लंबे समय से देख रहे हैं. अपने ऊपर भोगा है, सच बोलने की कीमत चुकाई है. हमारे साथी जिन्होंने इसके खिलाफ आवाज उठाई जेलों में पड़े हैं. हमारा भी नंबर लगा हुआ है. हम सब धीरे-धीरे करके बर्बाद किए जाएंगे, आदिवासी दलित मुसलमान गरीब मजदूर.

सोनी सोरी 2 दिन से आदिवासियों से मिलने जाना चाहती है लेकिन पुलिस जाने नहीं दे रही. हमारे देश का लोकतंत्र एक दिन इस अवस्था में पहुंच जाएगा हम ने कल्पना भी नहीं की थी कि हमारी जनता को घेरकर गोलियों से भून दिया जाएगा और हम अपनी जनता से मिल भी नहीं पाएंगे. उसके आंसू भी नहीं पोंछ पाएंगे. मेरे दिल में क्रोध है, दु:ख है, बेबसी भी है. हमने आदिवासियों के लिए कोई रास्ता नहीं छोड़ा है, ना अदालत उनके लिए है, न सरकार उनके लिए है, ना पुलिस उनकी है, ना मीडिया उनकी है, आखिर आदिवासी खुद का जीवन कैसे बचाएं ?

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