मूले जाट को हिन्दू जाट ने फिर से गले क्या लगाया, दोनों भाई अपनी किसानी की समस्याओं का निपटारा करने लुटियन चले आये और बस 56 इंची सरकार की दिल्ली खतरे में पड़ गयी. साहब लोगों की हवा निकल गयी.
जब मुला जाट, हिन्दू जाट आपस में साम्प्रदायिकता का नंगा खेल खेल रहे थे तो दिल्ली की सत्ता पाने के अभियान पर निकली गुजराती जोड़ी के लिए मुफीद थे. फायदे का सौदा थे. 2014 का प्रचार अभियान ही मेरठ की धरती पर दंगाई संगीत सोम को सम्मानित कर शुरू किया था साहब ने.
अभी कैराना के चुनाव में आचार संहिता के बावजूद 9 किलोमीटर के विकास का मॉडल झिलाने के बावजूद लोगों ने वहां भी गोरखपुर और फूलपुर जैसी पटकी दे, साम्प्रदायिक एकता की मिसाल कायम करते हुए सबक सिखाया था. कैराना से वास्तविक पलायन करा दिया था.
विडम्बना देखिये कि अब जब दोनों भाई एक हो गए तो दक्षिणपंथी सरकार के किसी काम के न रहे.
बल्कि सरकार के लिए इतने खतरनाक हो गए कि विश्व के अजेंडा सेट करने की शेखी मारने वाले चौकीदार की राजधानी खतरे में पड़ गयी. साहब जी डर से थर थर कांपते हुए उन्हें रोकने के लिए लाठी, डंडा, वाटर कैनन, आंसू गैस और दो राज्यों की पुलिस को आक्रमण पर लगाना पड़ा.
अब बस किसान के खिलाफ फौज, मशीनगन और टैंक प्रयोग करना बाकी रह गये हैं.
लब्बोलुआब ये है कि आपस मे धार्मिक नफरत की लड़ाई लड़ता जाट किसान नेता जी के फायदे का सौदा और एकीकृत किसान उनके लिए हौवा !
अब किसान खुद तय करे कि बंटकर नेता जी का खिलौना बनना है या एक होकर नेता जी को अपने हौवा का झटका देना है !!
- फरीदी अल हसन तनवीर
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