Home कविताएं किसान

किसान

2 second read
0
0
299

किसान

तुम किसानों को सड़कों पे ले आए हो
अब ये सैलाब हैं
और तिनकों से रूकते नहीं

ये जो सड़कों पर हैं
खुदकुशी का चलन छोड़ कर आए हैं
बेड़ियां पाओं की तोड़ कर आए हैं
सोंधी खुशबू की सबने कसम खाई है
और खेतों से वादा किया है के अब
जीत होगी तभी लौट कर जाएंगे

अब जो आ ही गए हैं तो यह भी सुन लो
झूठे वादों से ये टलने वाले नहीं
तुम से पहले भी जाबिर कई आए हैं
तुम से पहले भी शातिर कई आए हैं
तुम से पहले भी ताजिर कई आए हैं
तुम से पहले भी रहजन कई आए हैं
जिन की कोशिश रही
सारे खेतों के कंगन
सारे खेतों का कुंदन, बिना दाम के
अपने आकाओं के नाम गिरवी रखें
उनकी किस्मत में भी हार ही हार थी
और तुम्हारा मुकद्दर भी बस हार है

तुम जो गद्दी पर बैठे, खुदा बन गए
तुमने सोचा के तुम आज भगवान हो
तुम को किसने दिया था ये हक
खून से, सब की किस्मत लिखो, और लिखते रहो

गर जमीं पर खुदा है, कहीं भी कोई
तो वो दहकान है
है वही देवता, वो ही भगवान है
और वही देवता
अपने खेतों के मंदिर की दहलीज को छोड़ कर
आज सड़कों पे है
सर-ब-कफ, अपने हाथों के परचम लिए
सारी तहजीब-ए-इंसान का वारिस है जो
आज सड़कों पे है

हाकिमों जान लो, तानाशाहों सुनो
अपनी किस्मत लिखेगा वो सड़कों पे अब
काले कानून का जो कफन लाए हो
धज्जियां उस की बिखरी हैं चारों तरफ
इन्हीं टुकड़ों को रंग का धनक रंग में
आने वाले जमाने का इतिहास भी
शाहराहों पे ही अब लिखा जाएगा
तुम किसानों को सड़कों पे ले आए हो
अब ये सैलाब हैं
और सैलाब तिनकों से रूकते नहीं

  • गौहर रजा
    हमारे प्रिय मशहूर शायर व वैज्ञानिक की ताजा नज्म.

[प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे…]

ROHIT SHARMA

BLOGGER INDIA ‘प्रतिभा एक डायरी’ का उद्देश्य मेहनतकश लोगों की मौजूदा राजनीतिक ताकतों को आत्मसात करना और उनके हितों के लिए प्रतिबद्ध एक नई ताकत पैदा करना है. यह आपकी अपनी आवाज है, इसलिए इसमें प्रकाशित किसी भी आलेख का उपयोग जनहित हेतु किसी भी भाषा, किसी भी रुप में आंशिक या सम्पूर्ण किया जा सकता है. किसी प्रकार की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है.

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
  • गुरुत्वाकर्षण के विरुद्ध

    कई दिनों से लगातार हो रही बारिश के कारण ये शहर अब अपने पिंजरे में दुबके हुए किसी जानवर सा …
  • मेरे अंगों की नीलामी

    अब मैं अपनी शरीर के अंगों को बेच रही हूं एक एक कर. मेरी पसलियां तीन रुपयों में. मेरे प्रवा…
  • मेरा देश जल रहा…

    घर-आंगन में आग लग रही सुलग रहे वन-उपवन, दर दीवारें चटख रही हैं जलते छप्पर-छाजन. तन जलता है…
Load More In कविताएं

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

कामरेडस जोसेफ (दर्शन पाल) एवं संजीत (अर्जुन प्रसाद सिंह) भाकपा (माओवादी) से बर्खास्त

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने पंजाब और बिहार के अपने कामरेडसद्वय जोसेफ (दर्शन पाल…