‘सुना राजा ने क्या कहा !?’ – पहला मजदूर बोला.
‘राजा रोज ही कुछ न कुछ कहता रहता है.’ – स्पष्ट था, दूसरा मजदूर राजा की बात को जानने का इच्छुक नहीं था.
‘राजा ने बोला कि वह गाली खाता है !’ – पहले मजदूर ने राजा का खुलासा किया और खी-खी करके हंसने लगा.
‘फिर हम क्या खाते हैं ?’ – दूसरे मजदूर ने पूछा.
दूसरे मजदूर के कहते ही पहले मजदूर को ठेकेदार का चेहरा याद आ गया.
‘तो फिर अपना खाना हमें दे दिया करें ?’ – दूसरा मजदूर बोला.
‘राजा कुछ देता है, वो तो उल्टे लेता है !’ – पहले मजदूर ने रोष में कहा.
‘और क्या कहा ?’ दूसरे मजदूर को राजा की यह बात कुछ अलग लगी.
‘राजा बोला वह रोज झऊआ भर गलियां खाता है, इससे उसको वो मिलता है वो…’
‘वो क्या ?’ – दूसरे मजदूर ने पूछा.
‘कुछ बोला तो था…’ – पहला मजदूर सोचते हुए बोला. उसको वह शब्द याद नहीं रहा या वह समझ नहीं पाया, जो राजा ने बोला था.
‘बेइज्जती ?’ – दूसरे मजदूर ने अपने अनुभव के आधार पर अनुमान लगाया.
‘अरे नहीं रे !’
‘फिर ?’
‘ताकत समझ !’
‘ताकत !’ दूसरे को आश्चर्य हुआ.
‘हां ताकत !’
‘गाली खाने से ताकत मिलती है ?’ – दूसरे मजदूर ने इसकी पुष्टि चाही.
‘हां रे बाबा ! बोला तो यही है.’
‘तब तो दुनिया में सबसे ताकतवर हमीं को होना चाहिए !’
पहला मजदूर मुस्कुराया, मगर दूसरे मजदूर का चेहरा लटक गया.
‘तू अचानक से उदास क्यों हो गया ?’ पहले मजदूर ने पूछा.
‘काश हमें भी गाली खाने से ताकत मिलती !’
‘फिर हमें रोटी के लिए मरना न पड़ता !’ पहले मजदूर का भी चेहरा लटक गया.
थोड़ी देर तक दोनों चुपचाप खड़े रहे.
‘राजा ने मगर ऐसा क्यों बोला ?’ दूसरे मजदूर ने चुप्पी तोड़ी.
‘अरे राजा का क्या है, जहां भीड़ देखी वहां बहक जाता है. फोटू-वोटू खिंच जाती हैं…तालियां-वालियां बज जाती हैं…और क्या… ‘
‘फिर भी !’ – दूसरे मजदूर ने अपनी टेक नहीं छोड़ी.
‘कभी ढोर डांगर को देखा है ?’
‘क्या बात कर रहा है ! देखा है न !’
‘जब उसका पेट भरा होता है, फिर क्या करता है ?’
‘जुगाली !’
‘बस यही..’
‘हरामजादों कब से बैठे हो ? काम तुम्हारा बाप करेगा ?’ ठेकेदार गरजा.
‘समय ज्यादा हो गया क्या ?’ दूसरे मजदूर ने धीरे से पूछा.
‘न रे ! इसको आदत है.’ – पहला मजदूर बोला.
‘वैसे कुछ भी कहो, मजा आ गया !’ दूसरा मजदूर खुशी से बोला.
प्रश्नाकुल होकर पहले मजदूर ने उसे देखा.
‘अभी-अभी मुझे ताकत मिली है !’ दूसरा मजदूर हंसते हुए बोला.
‘तू भी न पूरा बेहया हो गया !’ यह कहकर पहला मजदूर भी हंस पड़ा.
- अनूप मणि त्रिपाठी
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