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खजाना

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खजाना
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बाबा ने रिमजू के घर चप्पे चप्पे का मौका मुआयना किया. दीवारें कुरेद-कुरेद कर सूंघी, मिटटी को उठाकर उसे हथैली पे मसल कर कई बार जांची परखी, बरामदे में खड़े पेड़ को ऊपर से लगाकर नीचे तक सरसरी निगाह से देखा. अच्छी तरह से निरीक्षण कर लेने के बाद कोठरी में डंडी गाड़ दी. रिमजू ने पूछा – ‘क्या मामला है बाबा ?’

बाबा कुछ देर खामोश रहे फिर बोले – ‘तुम अकूत धन संपदा के मालिक हो लेकिन वो धन तुम्हारे हाथों में नहीं है.’ रिमजू की आंखों में ख़ुशी तैरने लगी. बोला – ‘बाबा उपाय बताइये, धन हाथों में कैसे आएगा ?’

बाबा ने कहा – ‘तुम्हारे घर में जिन्न का साया है, और वो जिन्न उस खज़ाने की रक्षा कर रहा है, जो यहां दफन है.’

रिमजू की हसरतें हिलोरे मारने लगी बोला – ‘जनाबे आली, आप ही मेरे केवटहार हो, इस जिन्न रूपी माया से मेरा पीछा छुड़वाइये और धन माया के दर्शन कराइए.’

रिमजू की सुंदर-सी पत्नी झटपट अंदर भागी, एक गुड़ रोटी पर घी उण्डेलकर ले आई और बाबा का मुंह मीठा किया.

बाबा ने रिमजू की पत्नी के हाथों गुड़ रोटी का निवाला खाया और बोले – ‘अवश्य ! धन के दर्शन अवश्य होंगे.’

इसके पश्चात बाबा और उनके चेलों ने आलीशान दावत उड़ाई, फिर रिमजू से कहा कि – ’14 दिन की तंत्र मंत्र प्रक्रिया करनी होगी, जिसका तकरीबन 70 हज़ार खर्च होगा, उसके पश्चात जिन्न बात करने आएगा.’ रिमजू झट से तैयार हो गया. 50 हज़ार का बण्डल जो जमा कर रखा था, बाबा को दे दिया. बाबा चलते बने.

रिमजू और उसकी पत्नी को दिन रात सोते जागते खाते पीते केवल धन ही धन याद आता. मन ही मन ख्वाहिशों के हज़ारों महल बना लिए थे. शौचालय में, देवालय में हर जगह रिमजू अपने आने वाले धन से लबालब भविष्य की कल्पना करता रहता था. काम धंधा मेहनत मजदूरी सब छोड़ दिया क्योंकि जल्द ही करोड़पति बनने वाला था तो कौन सिर फोड़े टके भर की मज़दूरियों से…!

14वें दिन बाबा आए. 10 फीट गहरा खड्डा खोदा गया, एक कुत्ते की हड्डियों के अतिरिक्त कुछ ना निकला. रिमजू और उसकी पत्नी का मुंह लटक गया.

बाबा ने रिमजू से कहा कि – ‘जिन्न इतनी आसानी से नहीं मानने वाला, उसने कलश की जगह हड्डियां रख दी. 14 दिन का एक और अनुष्ठान करना पड़ेगा. मायूस मत हो ! सफलता मिलेगी ! रिमजू के पास अब फूटी कौड़ी नहीं बची थी. फिर भी जैसे तैसे कहीं से जुगाड़ कर 70 हज़ार का कर्ज लिया औऱ अनुष्ठान करवाया.

बाबा 7 दिन बाद आये, बोले कि – ‘बताने वाली बात तो नहीं है लेकिन तुमने 28 दिन का अनुष्ठान करवाया है इसलिए मुझपर वाजिब है कि जो भी बात हो तुम्हें अवगत कराऊं… जिन्न बहुत शरारती है, वो ऐसे ही थोड़े से भोग में कलश देने को राजी नहीं हो रहा.’

रिमजू ने उत्सुकता से पूछा – ‘तो क्या ! कैसे देगा वो कलश ?’

बाबा हिचकिचाते हुए बोले – ‘वो वो…!’

रिमजू ने बेसब्र होकर कहा – ‘बोलिये बाबा क्या चाहिए उसे, किसी की बलि ?’

बाबा बोले – ‘बलि नहीं, वो तुम्हारी पत्नी को चाहता है एक रात के लिए.’

रिमजू खामोश हो गया ! चारो तरफ सन्नाटा छा गया महफ़िल उसी समय भंग हो गयी, ख़्वाब चकनाचूर होते नज़र आने लगे. वही गरीबी वाली अभावग्रस्त ज़िन्दगी नजर आने लगी. बाबा अपनी बात कहकर चुपचाप चल दिये.

रिमजू ने अपनी पत्नी को पूरी बात बताई. दोनों ने सलाह मशविरा करके जिन्न की ख्वाहिश पूरी करने का निश्चय कर लिया – ‘आखिर जिन्न ही तो है, कौन-सा इंसान है.’

लालच में लोगों ने अनगिनत औलादों की बलि चढ़ा दी है तो ये चीज़ ही क्या ! अमावस की रात बाबा के जिस्म में जिन्नात के साये ने प्रवेश किया और ख्वाहिश पूरी हो गयी.

जिन्न शरारती था, सबकुछ भोगकर कलश की जगह कोयले रख गया. बाबा ने क्रोधित होकर उसे हमेशा के लिए भस्म कर दिया.

  • अज्ञात

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