गिरीश मालवीय
बिल गेट्स का भारतीय कृषि में इतनी रुचि लेना वाक़ई आश्चर्यजनक है. कोरोना की शुरुआत से ठीक पहले जब नवम्बर, 2019 में भारत आए थे तो केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी और बिल गेट्स ने दिल्ली ‘भारतीय पोषण कृषि कोष’ को लॉन्च किया था. इसका उद्देश्य भी कमाल का था. इस कोष की स्थापना का उद्देश्य कृषि और पोषाहार में तालमेल को बढ़ावा देना है, ताकि कुपोषण की समस्या से निपटा जा सके. बताया गया कि भारत के 50 फीसदी बच्चे कुपोषण के शिकार हैं, इसे दूर करने के लिए केंद्र सरकार ‘बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन’ के साथ मिलकर काम करने जा रही है.
आपको शायद याद हो 90 के दशक में अफ्रीकी कुपोषित बच्चों की तस्वीरें चमकदार ग्लॉसी पेज वाली मैगजीन में छपा करती थी. यह कुपोषण का फंडा वही से शुरू हुआ है 1998 में. संयुक्त राष्ट्र के एक सम्मेलन में अफ्रीकी वैज्ञानिकों ने मोनसेंटो के प्रचारक जीई अभियान पर कड़ी आपत्ति जताई, जिसमें अफ्रीकी बच्चों को भूखे रहने की तस्वीरों का इस्तेमाल किया गया था, जिसका शीर्षक था ‘लेट द हार्वेस्ट स्टार्ट.’ वैज्ञानिकों, जिन्होंने गरीबी और भूख से प्रभावित कई राष्ट्रों का प्रतिनिधित्व किया, ने कहा कि ‘जीन प्रौद्योगिकियां स्थापित विविधता, स्थानीय ज्ञान और स्थायी कृषि प्रणालियों को नष्ट करके खुद को खिलाने के लिए राष्ट्र की क्षमताओं को कमजोर कर देंगी.’ और बाद में यही हुआ.
दअरसल पश्चिमी दुनिया के सामने भूख से बिलखते अफ़्रीकी बच्चों की तस्वीरें इसलिए सामने लायी गयी ताकि मोनसेंटो अपनी जीएम फसलों को लिए नयी कृषि भूमि की तलाश को जायज ठहरा सके.
आप जानते हैं बेहद विवादास्पद रही मोनसेंटो में आज बड़ी संख्या में शेयर बिल गेट्स के पास में है और मोनसेंटो ही वह सबसे बड़ी कम्पनी है जो दुनिया में जीएम बीज बनाती है. दुनिया में केवल छह कंपनियां जीएम बीज के उत्पादन को नियंत्रित करती हैं, जिनमें मोनसेंटो और बायर दो सबसे बड़ी कंपनियां है, जो 2017 में अब एक हो गयी है. इस सौदे के साथ ही ‘बायर’ दुनिया की सबसे बड़ी एग्रोकेमिकल कंपनी बन चुकी है.
बिल गेट्स पहले से ही मोनसेंटो में निवेश कर रहे हैं. यह कंपनी, जो एक केमिकल कंपनी के रूप में 1901 में स्थापित की गई थी, अब कृषि के क्षेत्र में उच्च प्रौद्योगिकियों में काम रही है. आजकल मुख्य उत्पाद आनुवंशिक रूप से संशोधित जीएम बीज है, इसमें मक्का, सोयाबीन हैं और कपास प्रमुख है. आपने बीटी कॉटन और बीटी बैंगन का नाम जरूर सुना होगा.
जीएम वह तकनीक है जिसमें जंतुओं एवं पादपों (पौधे, जानवर, सुक्ष्मजीवियों) के डीएनए को अप्राकृतिक तरीके से बदला जाता है. इस तकनीक से बनाए गए बीज से उपजी फसलों को जब कीड़े खाने का प्रयास करते हैं, तो वे तुरंत मर जाते हैं (विशेष रूप से उनका पेट कट जाता है), क्योंकि पौधे में एक अदृश्य निर्मित कीटनाशक ढाल होती है. लेकिन इससे मनुष्यों को भी नुकसान पहुंचता है और जैव विविधता भी नष्ट होती है.
भारत में मोनसेंटो एमएमबी यानी भारत की महिको व अमेरिकी मोनसेंटो का संयुक्त उद्यम है. एमएमबी घरेलू बाजार में सीधे भी बीज बेचती है. घरेलू कंपनियों को मिलाकर उसके बीजों की बाजार में हिस्सेदारी 90 फीसद है. महिको के साथ साझेदारी में मोनसेंटो ने साल 2002 में भारत में बीटी कॉटन को लांच किया था.
अगर आप ध्यान से देखे तो अमेरिकन कारपोरेशन भारत की कृषि के हर पक्ष पर कब्जा जमाने में लगे हुए हैं, चाहे वह सप्लाई चेन हो, बीज हो, उर्वरक हो या कीटनाशक हो, चाहे ट्रैक्टर हो या फसलों के भंडारण की व्यवस्था हो. अमेरिकी कारपोरेट अमेजन, वालमार्ट और मोनसेंटो और बायर का गठजोड़ अब इस पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं कि कृषि को अपने नियंत्रण में कैसे लाया जाए.
मोनसेंटो के साथ रासायनिक तथा फ़ार्मा का दिग्गज बायर विलय के बाद दोनों एक साथ मिलकर बीज, कृषि-रसायन और उर्वरक बाजारों को नियंत्रित करना चाह रहे हैं और बिल गेट्स इस अमेरिकी कार्टेल का चेहरा बनकर काम कर रहे हैं.
अफसोस की बात यह है कि कोरोना काल के दौर में मोदी सरकार तेजी से उनका रास्ता साफ कर रही है, लेकिन कोई चर्चा नहीं है. अभी जीएम फसलों के रूप में सिर्फ बीटी कॉटन को अनुमति है लेकिन जल्द ही खाद्यान्न संकट के नाम पर जीएम बीजों को अनुमति मिल जाएगी.
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