Home कविताएं कौन उजाड़ता है इन्हें ?

कौन उजाड़ता है इन्हें ?

5 second read
0
0
611

कौन उजाड़ता है इन्हें ?

वो जो भटकते रहे उम्र भर,
बना दिए गए अपने ही देश में शरणार्थी.
जिनकी गर्दन पर रखी है तलवार सैन्यवाद की
वो जो कूद गए मुक्ति संग्राम में,
लड़ पड़े प्रतिरोध की कसम लिए
जिन्हें गुजरना पड़ा अन्तहीन जेल यात्राओं से,
जिनके साथ चलता रहा सिलसिला नज़रबंदी का.

वो जो गिरफ्तार कर लिए गए
क्रांतिकारी साहित्य रखने के जुर्म में
और भेज दिए गए मानवरहित टापू पर.
जो जलावतन हो गए,
जिनके आंगन को बूटों से रौंद दिया गया.
वो जो अपने सीने में मुल्क छुपाए फिरता रहा
दुनिया के इस कोने से उस कोने.
कभी उत्तर, कभी दक्खिन, कभी पूरब, कभी पश्चिम.
वो जो जेलखानें में इंतजार करता रहा फांसी का.
जिनकी चिट्ठियां लौट कर आ गई…
पिछले मौसम में मिलिट्री आई थी…
कुछ बचा नहीं अब वहां.

फिलिस्तीन में एक तीन साल का बच्चा
अरसे से चेकपोस्ट पर खड़ा है…
उसकी मां सौदा लाने गई है,
लौट कर नहीं आई.

मणिपुर में एक लड़की पहरों
इंतजार में रही अपने प्रेमी के
और मैंने उसे शाम में देखा,
उसकी बेजान छाती पर सर रख कर रोते हुए.

कश्मीर में दिखी मुझे एक मां
जिसकी आंखें सदियों से पत्थर है.
बस की सीट पर बैठे हुए मुझे मिला एक रोहिंग्या
जिसकी पुतलियों की मोती में
अपना मुल्क लिक्खा था.
मेरे स्वप्न में आता है एक उइगर
जिसकी पीठ की छाल
चाबुक की मार से पिघली हुई है.

रोज-ब-रोज चलता हूं
लैटिन अमेरिका से लेकर
अफ्रीका के जंगलों में पसरे
मजदूरों की हड़्डियों पर.
मुझे दिखता है
पठार, पहाड़, मरुभूमि में पसरा खून ही खून.

मुझे लगता है,
मेरी आंत बाहर आ रही है,
जब मैं इस देश को लांघता गुजरता हूं
बंगाल से सौराष्ट्र तक.
जब मैं मथता हूं इस भारत भूमि को,
मिलता है वृक्षों पर लटका कंकाल,
जमीन के चार फुट अंदर धंसी
क्षत-विक्षत नग्न स्त्री.

मुझे जंगल में दिखता है एक प्रतिबिम्ब
जिसका सर सदियों से पड़ती लाठी की मार से रक्तिम है.
इस जमीन पर मुझसे टकराते हैं बदहवास लोग
जो कोई कागजात लिए भागे जा रहे हैं.

कौन उजाड़ता है इन्हें,
जड़ों से काट देता है.
लिखता है इनकी मुस्तकबिल में विस्थापन.
अपने लोगों से, कुनबे से अलगाव…

दुनिया के सबसे खतरनाक बॉर्डर का कवि
महमूद दरवेश कहता है-
मैं आया/ तमाम शब्द सीखे/
फिर उन्हें तोड़ डाला/
महज एक शब्द लिखने की खातिर-घर…
किसी लौटिन-अमेरिकन कवि की कविता
टूट-टूट कर चल रही,
मेरे मरने के बाद
मुझे उस मिट्टी में दफनाना
जिसके स्वप्न में ता-उम्र भटकता रहा.

  • रिजवान रहमान

[प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे…]

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
  • शातिर हत्यारे

    हत्यारे हमारे जीवन में बहुत दूर से नहीं आते हैं हमारे आसपास ही होते हैं आत्महत्या के लिए ज…
  • प्रहसन

    प्रहसन देख कर लौटते हुए सभी खुश थे किसी ने राजा में विदूषक देखा था किसी ने विदूषक में हत्य…
  • पार्वती योनि

    ऐसा क्या किया था शिव तुमने ? रची थी कौन-सी लीला ? ? ? जो इतना विख्यात हो गया तुम्हारा लिंग…
Load More In कविताएं

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

शातिर हत्यारे

हत्यारे हमारे जीवन में बहुत दूर से नहीं आते हैं हमारे आसपास ही होते हैं आत्महत्या के लिए ज…