पं. किशन गोलछा जैन, ज्योतिष, वास्तु और तंत्र-मंत्र-यन्त्र विशेषज्ञ
इस आकृति को 2000 साल पुरानी बताकर दावा किया जा रहा है कि भारत ने 2000 साल पहले ही साईकल का आविष्कार कर लिया था जबकि वास्तव में 1992 में मंदिर की मरम्मत होने के समय कारीगर ने आकृति को पूरा करने के लिये इसे उकेरा था.
सब्सक्राइबर बढ़ाने के चक्कर में इसके ऊपर एक वीडियो भी यू-ट्यूब पे डाली गयी थी. उसके बाद कट्टरवादी मूर्खों में ये वायरल हो गया और सब अपने-अपने हिसाब से मिथक फैलाने लगे. यहां तक कि इस पर बड़े-बड़े लेख तक लिख दिये गये (हो सकता है ये बीजेपी आईटी.सेल का फंडा हो क्योंकि अब इसमें अपनी मनमर्जी के फोटोशॉप एडिशन भी चालू हो गये हैं). फेसबुक, व्हाट्सप्प, टवीटर पर भक्तों की तो छोड़िये कई बड़े-बड़े कट्टर ब्लॉगरों ने भी बिना सोचे-समझे अपनी मनमर्जी के तथ्य जोड़कर इस पर ब्लॉग लिख डाले.
सच बताऊं तो ऐसे मूर्खो की वजह से ही भारत की किरकिरी होती है और विदेशों में भारतीयों की हंसी उड़ाई जाती है. ये पढ़े-लिखे गंवार बिना किसी रिसर्च के कुछ भी लिखते हैं और अपने आपको सबसे ज्यादा खोजी और महान साहित्यकार समझने लगते हैं. भक्तों के साथ ही लाइक के भूखे कट्टरवाद के पोषक लोग भी इसे शेयर करते रहते हैं, जिससे मिथक सत्य का रूप लेने की कोशिश करने लगता है.
असल में मंदिर तो 2000 साल पुराना ही है मगर ये साईकल की आकृति 1992 में मंदिर के नवीकरण के दौरान शिल्पकार द्वारा खम्बे / दीवार पर उकेरी गई थी और बाद में किसी महामूर्ख ने या किसी बहुत ही शातिर ने इसका वीडियो सूट करके इंटरनेट पर डाल दिया, जिसे अब सबूत के तौर पर पेश किया जा रहा है.
इसी तरह के एक वाकये में कुछ समय पहले मिस्र में खुदाई के समय कुछ मूर्तियां मिलीं तो ऐसे ही मूर्खों की फौज ने भारत में शोर मचाना शुरू कर दिया कि खुदाई में ‘मिस्र में हिन्दू मंदिर’ मिला है जबकि अभी खोजकर्ताओं को ही उन मूर्तियों की ठीक जानकारी नहीं है कि वो कब की है और किस सभ्यता से ताल्लुक रखती है.
ठीक इसी तरह के एक और वाकये में कुछ साल पहले बीजेपी आईटी-सेल ने एक गदा (जिसे क्रेन के द्वारा उठाया हुआ था) का चित्र डालकर ये प्रचारित कर रहे थे कि श्रीलंका में खुदाई के दौरान हनुमान जी की गदा मिली है. और उस समय लोगो में इतना भ्रम फैला कि लोगों ने तो उस फोटो का प्रिंटआउट निकलवा कर मन्दिर में भी रख दिया था. और उस समय भी मैंने इस बाबत लोगो को बताया था कि असल में वो भारत के एक स्थान (अब नाम याद नहीं है), पर हनुमान मूर्ति के निर्माण के बाद की थी, जहां हनुमान की विशालकाय मूर्ति में वो गदा क्रेन द्वारा लगायी जा रही थी.
इसिलिये तो मैं हमेशा कहता हूं कि ऐसी किसी मूर्खतापूर्ण पोस्ट या आलेखों को पढ़कर शेयर करने से पहले उसकी अच्छी तरीके जांच-पड़ताल जरूर कर लिया करें.
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