Home गेस्ट ब्लॉग कश्मीर तो बस झांकी है …

कश्मीर तो बस झांकी है …

7 second read
1
0
951

कश्मीर तो बस झांकी है ...

संसद में धारा 370 को समाप्त करने का गजट पास हो गया है. इस प्रकार बीजेपी ने अपने घोषित चुनावी वायदे को पूरा करने का साहसिक प्रयत्न किया है, बधाई. भारत कि संविधान सभा में कश्मीर के भारत में विलय को लेकर जो अडचने थीं, उसे धारा 370 के जरिये हल कर, कश्मीर को भारत में मिलाया गया था.

कहानी बहुत टेढ़ी मेढ़ी और जटिल है, जिसे मैं याद भी नहीं कर सकता. लेकिन इतना पता है कि उसे बदलने के लिए कश्मीरी बार-बार संविधान सभा के जरिये ही पास कराने का दावा करते आये हैं. इसके साथ ही दोनों सदनों में दो तिहाई बहुमत से ही इसे पलटा जा सकता है. क्या इसे लेकर कोई संविधान में संशोधन हुआ है ? अगर नहीं हुआ है तो क्या यह notification कोर्ट में टिकेगा ? इस पर क़ानूनी विशेषज्ञों की राय मायने रखती है.

आज कश्मीर के दो टुकड़े कर एक हिस्सा जम्मू-कश्मीर और दूसरा लद्दाख बनाया गया है. इन दो हिस्सों में अब केंद्र शासित शासन चलेगा. कश्मीर वाले हिस्से में चुनाव होंगे और वहाँ मुख्यमंत्री आदि भी होंगे, जैसे दिल्ली और पोंडिचेरी में होते हैं. हाँ, वहाँ दिल्ली और पोंडिचेरी की तरह अब LG केंद्र की ऊँगली हर समय करता रहेगा यानि विशेष अधिकार को छोड़ सामान्य राज्य की शक्तियाँ भी छीन ली गई हैं. अब गणतंत्र यानि फेडेरल ढांचे की जगह केंद्र में जो सरकार होगी, उसके इशारे पर अधिक से अधिक राज्य या केंद्र शासित प्रदेश चलेंगे.

इसका एक दूसरा पहलु भी है, जिस पर लोग अभी गौर नहीं कर रहे हैं. जब आप सीमा रेखा बनाते हैं और अलग-अलग केंद्र शासित राज्य घोषित करते हैं, तो जो हिस्सा हमारे देश से पाकिस्तान ने हडप लिया है, उस पाक अधिक्रत कश्मीर पर आप अपना दावा छोड़ रहे हैं. सूत्रों का मानना है कि यह एक तरह से भारत और पाक के हिस्से में आये कश्मीर का बंटवारे जैसा मामला हो गया.

एक मजेदार तथ्य यह भी है कि जिस संविधान सभा में धारा 370 के जरिये कश्मीर का भारत में विलय सम्भव हुआ, उसकी मुखालफत सिर्फ एक सदस्य ने की थी, और वे अविभाजित कम्युनिस्ट पार्टी के नेता हसरत मोहानी जी थे. इस बिल को बनाने वाले सरदार पटेल या बलिदानी मुखर्जी में से किसी ने भी धारा 370 को संविधान सभा में एक बार भी विरोध नहीं किया था.

हसरत मोहानी का विरोध समझ में आता है, उनके लिए सभी देश, इलाका,और लोग बराबर की मान्यता होगी, वे मुस्लिम भी थे और साथ में कम्युनिस्ट भी. लेकिन बलिदानी मुखर्जी तब मुहं में दही जमा कर क्या कर रहे थे ? शायद उन सभी को डर था कि कश्मीर भारत में शामिल आज न हो. कल बाद में निपट लेंगे.

इन सब बातों से अलग मेरा ध्यान बार-बार कश्मीर पर होने वाले भविष्य में अत्याचार से अधिक इस बात पर है कि हमारा अब क्या होगा ? देश में आर्थिक, सामाजिक स्तर पर हाहाकार मचा है. क्या मजदूर और क्या पूंजीपति ? सभी ने लगभग अब मान लिया है कि देश का जहाज डूब रहा है. कार बाइक ट्रेक्टर की बिक्री से लेकर स्टील सब कुछ. मात्र आईटी इंडस्ट्री ठीक ठाक चल रही है. शेयर बाजार को किसी तरह थामा गया है जिससे इन्वेस्टर पूरी तरह से पलायित न हो जाय, और नीति आयोग और पीएमओ के सारे आंकड़े बदहवासी में घूरे के ढेर पर न फेंक दिए जाएँ.

ऐसे हालात में कश्मीर में धारा 370 को हटाना और भारी फ़ौज-फाटा किसी बॉर्डर पर टेंशन के लिए नहीं, बल्कि कश्मीरियत की जुबान को दबाने के लिए पूरे देश को अमरनाथ यात्रियों से लेकर सभी टूरिस्ट और शेष भारत से पढाई, लिखाई और खेलने वाले खिलाडियों को बाहर करने का औचित्य क्या है ? क्या यह नोटबंदी टाइप कि सर्जिकल स्ट्राइक कश्मीर के बजाय शेष भारत पर नहीं हो गई, जिसमें जो सबसे गरीब था, वह सबसे अधिक खुश था कि इससे काला धन खत्म होगा और हमारी किस्मत बदलेगी, लेकिन अंतर में उन्हीं की फूटी. जितना काला धन था वह सब कमिशन पर सफेद हो गया. सारा पैसा बैंक में आ गया, बैंक को हजारों करोड़ ब्याज देना पड़ा. महिलाओं की बचत लुट कर पतियों की तिजोरी में चली गई. लाखों लोग अपने काम धंधों और रोजगार से हमेशा हमेशा के लिए बर्बाद हो गए.

आज कश्मीर के बहाने क्या हमें आर्थिक मुद्दों पर जो बेहद गंभीरता से सोचना था, सरकार की नीतियों पर गहरे में प्रश्न करने थे, वह झटके में बंद हो गए. हम कश्मीर के लोगों के अधिकार छिन जाने पर अपने जैसे हो जाने पर खुश हों लें. बर्बाद हमें ही होना है आखिर.

क्या हमने आपने कभी शतरंज नहीं खेली ? प्यादे को चारे के रूप में इस्तेमाल कर रानी और राजा को घेर कैसे मात दी जाती है ? या मचान पर बैठा शिकारी नीचे बकरी को मिमियाता रख, असल में शेर के लिए शिकार नहीं बल्कि शेर का शिकार करता है.

सोचो, गंभीरता से सोचने की जरुरत है. यह देश हम सबका है, अलग-अलग वेशभूषा बोली रंग और रूप के बावजूद सभी जन एक हैं. इसे कितनी जल्दी तुमने भुला दिया ? कल तुम्हारी बारी आएगी तो दूसरा अपने घाव पर मरहम के रूप में लेगा. और इस सबमे नुकसान देश का हिंदुस्तान का, हिंदुस्तानियत का ही होगा. कश्मीर तो बस झांकी है … पूरा भारत बाकी है.

– रविन्द्र पटवाल, राजनीतिक मामलों के जानकार

Read Also –

मोदी-शाह ने बारुद के ढ़ेर पर बैठा दिया कश्मीर को
धारा 370 पर संघी विलाप क्यों ?

[ प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर पर फॉलो करे.] 

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

One Comment

  1. Rohit Sharma

    August 5, 2019 at 4:58 pm

    रविन्द्र पटवाल : धन्यवाद. ये दिन में तब लिखा जब बहस जारी थी.
    अब पता चला धारा 370 में भी चालाकी दिखाई गई है.

    पूरी धारा को नहीं बदला गया है.

    कश्मीर को लेकर भक्त और पाकिस्तान दोनों ही ख़ुश हैं.

    दुःखी सिर्फ़ भारत समर्थक कश्मीरी हैं.

    अलगाववादी और आतंकियों को अब अपनी बात पर सभी कश्मीरीयों को अपने पक्ष में रखना बायें हाथ का काम हो गया है.

    Reply

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

कामरेडस जोसेफ (दर्शन पाल) एवं संजीत (अर्जुन प्रसाद सिंह) भाकपा (माओवादी) से बर्खास्त

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने पंजाब और बिहार के अपने कामरेडसद्वय जोसेफ (दर्शन पाल…