प्रस्तुत आलेख पं. पुण्यदेव शर्मा द्वारा लिखित पुस्तिका ‘यादों का आईना (कश्मीर समस्या और नेहरू जी पर मार्मिक बातें)’ का एक अंश है. पं. पुण्यदेव शर्मा न केवल स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान आन्दोलन में सीधी भागीदारिता निभाई बल्कि आजादी के बाद के वर्षों में भी काफी समय बिहार विधान परिषद के सदस्य के तौर पर भी कार्यरत रहे. वे प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू के काफी निकट भी रहे और काफी वक्त तक जम्मू-कश्मीर की राजनीतिक गतिविधियों में भी शामिल रहे हैं.
पं. शर्मा 1937 ई. से 1952 ई. तक बिहार विधान परिषद् के सदस्य रहे. बाद में 1952 ई. से 1967 ई. तक उनकी पत्नी मनोरमा देवी बिहार विधान सभा की सदस्य बनी. पं. पुण्यदेव शर्मा भी पं. जवाहरलाल नेहरू के भांति ही सपरिवार भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन में शामिल रहे, जिसमें उनकी एक भतीजी सुधा जेल में ही शहीद हो गई थी. पं. शर्मा अपने जीवन के करीब 12 वर्ष तक जेल में बिताये, जहां अथक परिश्रम और यातना के कारण उनके एक आंख की रोशनी सदा के लिए चली गई.
आज जब भाजपाईयों और संघियों द्वारा पं. जवाहर लाल नेहरू के योगदान को झुठलाया जा रहा है और उन्हें गद्दार घोषित करने की कवायद की जा रही है, जम्मू-कश्मीर के सम्बन्ध में नेहरू के बारे में झूठी अफवाहें फैला रहा है, ऐसे में उनके सहयोगी पं. पुण्यदेव शर्मा द्वारा 1967 ई. के करीब लिखी गई पुस्तिका का यह अंश आज उसके झूठ से भरे चेहरे पर कालिख पुतने के लिए पर्याप्त है.
1942 ई. में गांधीजी ने अंग्रेजी राज्य को भारत छोड़ों (Quit India) का नारा दिया था. अंग्रेजों ने भारत को दो टुकड़ों में बांट दिया और देशी राजाओं को स्वतंत्र हो जाने अथवा भारत का पाकिस्तान के साथ रक्षा, वैदेशिक मामला तथा आवागमन विभागों को सौंपकर अपने राज्य की सम्बद्धता (ccession) कर लेने का अधिकार दिया. देशी राजाओं की प्रजा को कोई मताधिकार नहीं दिया, इससे भारत को कई टुकड़ों में बंट जाने की संभावना थी. चूंकि जिन्ना साहब ने बांट दो तब छोड़ों (Devine Kick) कहा था. अंग्रेज लोग भारत में प्रजा में भेद का राज्य करना (Devide & Rule) चाहते थे. सरदार पटेल ने कहा ‘बांटों और राज करो’ के बदले ‘बांटों और छोड़ दो’, हम अभी स्वीकार करें और आगे की समस्याओं को हमें स्वयं सुलझाना चाहिए.
जम्मू-कश्मीर राज्य के तत्कालीन महाराजा हरि सिंह ने एक वर्ष के लिए 1947 में पाकिस्तान के साथ अल्पकालीन सम्बन्ध (Temporary accession) कर दिया. पाकिस्तान के जन्मदाता जिन्ना साहब जम्मू-कश्मीर राज्य में प्रजातंत्र के लिए कोई आग्रही नहीं थे. उनकी यह नीति महाराजा हरि सिंह ने पसन्द थी. उस समय जम्मू-कश्मीर राज्य में प्रजातंत्र के लिए आन्दोलन करने वाले महाराजा की आज्ञा से जेलों में बंद थे. पं. जवाहरलाल नेहरू उस राज्य के प्रजातंत्र के आन्दोलन के समर्थक थे. उसे साम्प्रदायिकता से ऊपर उठाकर राष्ट्रीय उद्देश्य पर खड़ा करना चाहते थे. नेहरूजी की राय से वहां की ‘मुस्लिम काम्फ्रेंस’ का नाम ‘नेशनल काम्फ्रेंस’ कर दिया गया. इस प्रजातंत्र के आन्दोलन के लिए उस राज्य में जाने पर नेहरू जी भी गिरफ्तार कर लिया गया था, पर उन्हें शीघ्र छोड़ दिया गया.
भारत के साथ स्थायी सम्बद्धता (Permanent accession) का निर्णय करने के लिए गांधी जी और भारत के तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड माउण्ट बेटेन 1947 ई. में अलग-अलग महाराजा हरि सिंह से आग्रह करने के लिए उस राज्य में गये. महाराजा ने उन दोनों का स्वागत किया पर इस विषय का निर्णय टालने के लिए कहा कि ‘पेट में बहुत दर्द है अतः शीघ्र शान्तिपूर्वक निर्णय लेने में अभी मैं असमर्थ हूं.’ यह घटना समाचार पत्रों में छप गई. पाकिस्तान के तत्कालीन गवर्नर जेनरल जिन्ना साहब को संदेह हो गया कि महाराजा ने गुप्त रूप से भारत के साथ सम्बद्धता कर लिया होगा.
यदि जिन्ना साहब को महाराजा पर पूरा विश्वास होता तो उनके विरूद्ध वे सैनिक आक्रमण नहीं करते. उस समय जिन्ना साहब धैर्य और विश्वास रखते तो महाराजा हरि सिंह जिस प्रकार अपने राज्य का अल्पकालीन सम्बन्ध पाकिस्तान से कर लिया, उसी प्रकार स्थायी सम्बन्ध भी पाकिस्तान से कर लेते. चूंकि पं. जवाहरलाल नेहरू की अपेक्षा जिन्ना साहब से वे अधिक प्रभावित थे. यदि पाकिस्तान उस समय जम्मू-कश्मीर राज्य पर आक्रमण नहीं करते तो महाराजा हरि सिंह भारत के साथ स्थायी सम्बन्ध नहीं स्थापित करते. यदि चीन 1962 ई. में भारत पर आक्रमण नहीं करता तो 1965 ई. के पाकिस्तान के आक्रमण से भारत अपनी रक्षा करने में समर्थता प्राप्त नहीं करता. बुराईयों से भी भलाई निकल आती है, यदि हम ठोकरें खाकर सीखने को तैयार रहें.
जम्मू-कश्मीर के 4 प्रमुख भाग
यह राज्य क्षेत्रफल में बिहार से करीब डेवढ़ा है, पर जनसंख्या में बिहार के एक जिले ऐसा है. हर प्रमुख भाग में वहां के महाराजा शासन के लिए एक गवर्नर रखते थे. ये चार भाग हैं:
- जम्मू या डोगरा प्रान्त,
- लद्दाख,
- कश्मीर,
- बलुचिस्तान.
चारों प्रान्तों की अलग भाषा, स्वभाव और अलग-अलग राजनैतिक भावनाएं हैं.
जम्मू या डोगरा प्रान्त
यह प्रान्त पंजाब से मिला हुआ है. जम्मू इस राज्य की सर्दियों की राजधानी है. गर्मियों की राजधानी श्रीनगर है. जम्मू शब्द जम्बूलोचन से बना है. राजा जम्बूलोचन ने इस नगर को बसाया था. जम्बूलोचन का अर्थ जामुन की सी आंखें हैं. डोगरा या दोगढ़ा महाभारत में वर्णित द्विगत प्रदेश का अपभ्रंश है. यह अलग से मन्दिरों के नगर के ऐसा दीख पड़ता है. इसके एक डोडा जिला छोड़कर हिन्दुओं की जनसंख्या अधिकांश क्षेत्र में है. इस प्रान्त के हिन्दू-मुस्लिम अपने को डोगरा कहते हैं. डोगरा सैनिक नेपालियों के ऐसा बहादुर होते हैं. यहां आम, केला, संतरा आदि फल तथा गेहूं, चावल आदि पैदा हुआ है. दूध-दही भी खूब मिलता है. भाषा डोंगरी है. महाराजा गुलाब सिंह, महाराजा रणबीर सिंह, महाराजा प्रताप सिंह और महाराजा हरि सिंह चारों महाराज इस राज्य पर अपने जम्मू के किले से एक सौ वर्ष से अधिक समय तक राज्य करते रहे. उनके वंशज महाराजा कर्ण सिंह इस राज्य के गवर्नर 1948 ई. से 1966 ई. तक रहे. इन्हें वहां सदर-ई-सियासत कहा जाता था. इनका ससुराल नेपाल राजघराने में है. ये आज भारत के Civil aviation और Tourism के Cabinet Minister है.
कश्मीर
कश्मीर शब्द कश्यप-मीर से बना है. इसका अर्थ है कश्यप मुनि का तालाब. यहां तालाब (मीर) के कश्यप मुनि तपस्या करते थे, उन्हीं के वंशज यहां रहते थे. यहां के मुसलमान भी अपने को उन्हीं के वंशज मानते हैं. ये मुस्लिम राज्य में मुसलमान बन गये. महाराजा के राज्य में ये सभी हिन्दू बनना चाहते थे, पर हिन्दुओं ने आग्रह करने पर भी हिन्दुओं में नहीं मिलने दिया.
यहां ग्रामीण कश्मीर को कशीर भी कह देते हैं. इस प्रान्त में आज 95 प्रतिशत मुसलमान और 5 प्रतिशत हिन्दू हैं, जो सभी अपने को कश्मीरी पंडित कहते हैं. इस प्रान्त का प्रधान शहर श्रीनगर राज्य की गर्मियों की राजधानी है. यहां ईख, आम, केला, नारियल, नारंगी, कटहल, संतरा आदि नहीं होते हैं. चावल, गेहूं, मूंग आदि अन्न तथा अखरोट, बादाम, सेव, अंगूर आदि दर्जनों प्रकार के फल होते हैं. श्रीनगर से 8 मील पामपुर में केशर खूब होता है. गर्मी-वर्षा ऋतुओं में कश्मीर की शोभा अनुपम हो जाती है. यहां के निवासी सरल स्वभाव के किसान, गुजर और कारीगर होते हैं. डाका-हत्या शायद ही कभी यहां होती है. यहां के लोग फौजी स्वभाव के नहीं हैं. यहां की भाषा कश्मीरी है. यहां के दो प्रधान हिन्दू देवस्थल है, जहां सफाई, तुलसी-दूध लाने और रक्षा के लिए सभी मुस्लिम सेवक हैं, केवल पुजारी हिन्दू हैं.
लद्दाख
यह प्रान्त तिब्बत से सटा हुआ है. लगभग उसी ऊंचाई पर है. मनुष्य के निवास की दृष्टि से तिब्बत-लद्दाख सबसे अधिक 14-15 हजार फीट की ऊंचाई पर बसा है. यह क्षेत्र विस्तृत है, पर आबादी बहुत कम है. लेह इस प्रान्त की राजधानी है. भारत के आधिपत्य में जो आज भाग है, वहां अधिकांश बौद्ध लोग हैं. उनकी भाषा लद्दाखी है. कुशलकबकोला जो वहां के निवासियों के बौद्ध धर्मगुरू हैं, भारत के मित्र और राजनैतिक नेता भी हैं. चीन के सिकियांग प्रान्त जाने का यही मार्ग है. चीन ने तिब्बत से सिकियांग प्रान्त जाने के लिए बिना भारत की आज्ञा लिये यहां सड़क बना लिया है और लद्दाख का कुछ भाग दखल कर लिया और कुछ तो पाकिस्तान ने दखल पहले ही कर ही लिया था. अतः यह प्रान्त भारत को चीन-पाकिस्तान दोनों से रक्षा करने के लिए एक कठिन समस्या के रूप में है. शाल-तुस यहां के सर्वोत्तम होते हैं. अन्न बहुत कम पैदा होता है.
बालटिस्तान
यह पूरा प्रान्त आज पाकिस्तान के दखल में है. यहां के निवासी सभी मुस्लिम और फौजी स्वभाव के हैं. यहां पर जम्मू-कश्मीर लद्दाख में भारत ने चार बार आम चुनाव करा दिया और राज्य विधानसभा और संसद में प्रतिनिधि भेजा गया. यहां बालटिस्तान में कोई प्रजातंत्रीय प्रतिनिधि नहीं चुना गया. यहां की भाषा वालटी है. यह भाग गिलगिट के पास बना है.
‘सम्बद्धता में बाधा की हल’
- प्रथम कठिनाई मार्ग की थी. सभी प्रमुख मार्ग पाकिस्तान होकर कश्मीर जाते थे. पर पाकिस्तान ने हिन्दू बहुमत नगर लाहौर को लेकर गुरूदासपुर पठानकोट को देकर बदल लिया, जिससे एक मार्ग भारत को मिल गया.
- दूसरी कठिनाई वहां के महाराजा हरि सिंह पं. जवाहरलाल नेहरू से उस राज्य में प्रजातंत्र आन्दोलन में सहायता करने के कारण भारत से नाराज थे, पर पाकिस्तान के साथ एक वर्ष के लिए अल्पकालीन सम्बन्ध (Temporary accession) हो चुका था, यद्यपि पाकिस्तान अधिकारी उस राज्य में सेना लेकर रक्षा विदेश-विभाग और आवागमन के देखभाल के लिये नहीं उस समय तक आये थे, तभी पाकिस्तान ने उस पर सैनिक आक्रमण लूटपाट कर हजारों औरतों को ले भागने-मारने, आग लगाने लगे. घबराकर महाराज ने भारत से स्थायी सम्बद्धता कर ली.
- तीसरी कठिनाई राज्य में मुस्लिम बहुमत था – पर पाकिस्तान ने महाराजा हरि सिंह से मित्रता कर ली थी. इससे कश्मीर की जनता का प्रमुख संगठन नेशनल काम्फ्रेंस पाकिस्तान का विरोधी बन गया.
- चौथी कठिनाई सुरक्षा परिषद् के सम्मुख राज्य में मतगणना कराना भारत ने स्वीकार कर लिया था पर नेशनल काम्फ्रेंस के नाराज रहने के कारण पाकिस्तान को मतगणना में विजय पाने में संदेह था, अतः उसने मतदान के लिए सुरक्षा परिषद् कि शर्त जो थी कि पाकिस्तान अपने दखल किए क्षेत्र से अपनी सेना हटा ले, इस शर्त को पाकिस्तान ने नहीं पूरा किया, अतः मतगणना नहीं हुई.
- पांचवीं कठिनाई इंगलैंड-अमेरिका का 1947 ई. से ही पाकिस्तान का पक्ष लेना था. इंगलैंड पाकिस्तान को अपना चेला समझता था, चूंकि उसी ने उसके बनने में सहायता की थी. बाद में पाकिस्तान से दोनों देश (Seato cento) नामक सैनिक समझौते में बंधकर उसे सदा मुफ्त अस्त्र-शस्त्र टैंक जहाज और दूसरी हर प्रकार की सहायता देने लगे. पर रूस सुरक्षा परिषद् में भारत की सहायता करने लगा, जो आज तक चल रहा है.
पर पाकिस्तान ने चीन से घनी दोस्ती कर ली. पाकिस्तान की नीति आरम्भ से यही थी कि जो देश भारत का विरोधी है, उस देश को अपना मित्र समझना. बाद में चीन ने और पाकिस्तान ने भारत पर आक्रमण कर दिया. अतः इंगलैंड, अमेरिका खुलकर पाकिस्तान की सहायता करने में हिचकते हैं. लद्दाख की रक्षा चीन से करने के लिए भारतीय सेना के लिये कश्मीर होकर ही रास्ता है. यदि कश्मीर पाकिस्तान को दे दिया जाये तो चीन से दोस्ती के कारण पाकिस्तान भारतीय सेना को लद्दाख नहीं जाने देगा. इस तर्क को दोनों पश्चिमी देश मानते हैं. अतः वे पूर्व के ऐसा कश्मीर पाकिस्तान को सौंप देने के पक्ष में आज भी नहीं हैं.
कश्मीरी लोगों से वार्तालाप
मैंने एक बार श्रीनगर शहर में दो कश्मीरी मुस्लिम को साफ-सुथरा कपड़ा पहने शौचालयों से मल-मूत्र उठाकर नयी ठेलागाड़ी से खेतों में ले जाते देखा. इस सफाई के साथ इन कार्यों को करते हुए मैंने अन्यत्र नहीं देखा था.
मैंने उससे कहा – ‘आप लोग इस काम को करने में कितनी तनख्वाह पाते हैं ?’
कश्मीरी – ‘हमलोग इस काम के लिए तनख्वाह क्यों लेंगे ? यह मलमूत्र हमलोग अपने खेतों में ले जाते हैं. उससे हजारों रूपयों की सब्जियां पैदा करते हैं बल्कि हमलोग एक मुहल्ले के मल-मूत्र को सलाना डाक बोल कर खरीद करते हैं. इस तरह श्रीनगर म्युनिसिपैलिटी को हर वर्ष लाखों रूपयों की आमदनी होती है. सड़कों की सफाई के लिए उन्हें तनख्वाह लेकर मजदूर रखना होता है.’
मैं बोला – ‘गांवों में मल-मूत्र की सपफाई यहां कैसे होता है ?’
कश्मीरी – ‘हमलोग अपने-अपने खेतों में पैखाना बनाकर रखते हैं, जिसमें मल-मूत्र नष्ट नहीं होंवे और खेतों में खाद बनाकर उससे अधिक उपज हो.’
मैं बोला – ‘भारत के किसी भाग में ऐसा मैंने न देखा. यहां तक जम्मू में भी ऐसा नहीं होता है इसलिए आपके यहां औसत उपज भारत के दूसरे भाग से ज्यादा है. हमें मल-मूत्र का उपयोग करना कश्मीर से सीखना चाहिए.’
मैंने एक मुस्लिम ग्रामीण से कश्मीर के गांवों में घूमते समय पूछा –
‘अगर भारत और पाकिस्तान में रायशुमारी (Plebiscite) हो तो आप किसे अपना वोट देंगे ?’
मुस्लिम ग्रामीण का उत्तर था – ‘मैं अपना वोट पाकिस्तान को दूंगा.’
मैंने पूछा – ‘क्यों ? पाकिस्तान में जाने से सुख-आराम या फायदा है ?’
मुस्लिम ग्रामीण का उत्तर – ‘नहीं, पाकिस्तान यहां बनने से कोई फायदा नहीं है. यहां कन्ट्रोल की सरकारी दूकानों में जो अन्न नहीं उपजते हैं, सब को तीन-चार सेर चावल दिया जाता है. पैदा नहीं होने पर किसानों को भी दिया जाता है. साधरण मजदूर को रोज तीन रूपया, बड़ही-लोहार को सात रूपया रोजाना मिलता है, सब को कुछ रोजी देने की कोशिश है. पर ये बातें पाकिस्तान कश्मीर में नहीं है. करीब 50 हजार मुस्लिम मजदूर पाकिस्तान के मना करने-रोकने पर भी इधर चले आये हैं. भारत रूकावट हटा लें तो उधर के लाखों कश्मीरी इधर आ जायेंगे. इधर से कोई मुस्लिम मजदूर उधर नहीं जाना चाहता है, जबकि उधर जाने के लिए भारत की ओर से कोई रूकावट नहीं है.’
मेरा प्रश्न – ‘तब पाकिस्तान को आप लोग क्यों वोट देना चाहते हैं ?’
मुस्लिम ग्रामीण का उत्तर – ‘यह हमारे मजहब को सवाल है, चाहे उसके चलते हम बर्बाद हो जायें.’
मेरा प्रश्न – ‘पाकिस्तान छिपकर कोशिश और खर्च करता है कि आप भारत का समर्थक कांग्रेस या नेशनल काम्फ्रेंस को वोट नहीं दें. मुस्लिम लीग के उम्मीदवारों को वोट दें, जो पाकिस्तान यहां बनाना चाहते हैं, तो आप पाकिस्तान की बात नहीं मानकर नेशनल काम्फ्रेंस के उम्मीदवार को वोट क्यों दे देते हैं ?’
ग्रामीण का उत्तर – ‘यहां कोई मजहब का सवाल नहीं है. जब भारत में ही रहना है तो जिससे हमारा पफायदा होगा हम उसी को वोट देते हैं और देंगे. नेशनल काम्फ्रेंस के मुस्लिम नेता हमारे लिए महाराजा हरि सिंह के खिलाफत की वजह से जेलों में थे, तब लीगी मुसलमान महाराजा साहब की मदद करते थे.’
कश्मीर के बड़गांव तहसील के अन्दर एक गांव में गया. करीब 50 किसान यहां एक पेड़ के तले इकट्ठे थे.
मेरा प्रश्न – ‘क्या आप लोग मेरी बोली समझते हैं ?’
किसान का उत्तर – ‘हां, सैंकड़ें दस आदमी यहां उर्दू समझते हैं. यहां स्कूलों में उर्दू पढ़ाई होती है और जो मजदूर श्रीनगर काम करने जाते हैं, वे उर्दू समझ लेते हैं.’
मैं बोला – ‘क्या आजकल आपलोगों को कोई तकलीफ है ? क्या खाने के लिए चावल सरकारी दूकान में यहां मिलती है ?’
उनका उत्तर – ‘नहीं, हमलोग किसान हैं. पूरे साल के लिए हमलोग खाली धान पैदा कर लेते हैं. 5 घरों को छोड़कर सभी घरों में सालाना दो महीनों के लिए चावल कम हो जाता है.’
मैं – ‘ऐसा क्यों होता है ?’
किसान का उत्तर – ‘कश्मीर में शराब-ताड़ी बहुत कम चलती है पर बच्चे से बूढ़े तक मुस्लिम-हिन्दू तम्बाकू पीते हैं, नये फैशन में सिगरेट पीने की प्रथा हो गयी है. औरतें बहुत कम ही तम्बाकू या सिगरेट पीती है. किसानों के पास नकद पैसे नहीं होते हैं इसलिए दूकानों में चावल से हमलोग तम्बाकू खरीद कर लाते हैं, इससे वर्ष में दो महीनों के लिए चावल कम हो जाता है.’
मैं – ‘आप तम्बाकू क्यों पीते हैं ?’
किसान का उत्तर – ‘चूंकि कश्मीर ठंढ़ जगह है.’
मेरा प्रश्न – ‘क्या औरतों को ठंढ़क नहीं लगती है जो तम्बाकू नहीं पीती है ?’
किसान सब हंसने लगे.
मैं बोला – ‘भात का मांड आपलोग निकाल देते हैं ? मांड नहीं निकलने से भात में कुछ कम खाने से भी ज्यादा फायदा है. स्वाद में मीठा भी होता है.’
किसान – ‘मैं आपकी दोनों बातें मान लेता हूं – 1. तम्बाकू नहीं पीऊंगा और 2. बिना मांड निकाले भात खाऊंगा. पर ये औरतें भात से मांड निकाल देती हैं, ये छोटे बच्चे भी तम्बाकू नहीं छोड़ते हैं, आप इन्हें समझा दीजिए.’
वह किसान मेरी दोनों बातें औरतें और बच्चों को कश्मीरी भाषा में समझाने लगा.
जम्मू-कश्मीर में जनहित कार्य
- 1948 ई. से 1967 ई. तक चार बार बालिग मताधिकार के आधार पर आम चुनाव देखकर अमेरिका, इंगलैंड के समाचारपत्रों ने भी प्रशंसा की है.
- प्राईमरी से एम.ए. तक निःशुल्क शिक्षा.
- हर वर्ष 8 करोड़ रूपया सहायता ;ैनइेपकलद्ध देकर गैर-किसानों को चार आने सेर चावल देना.
- 22 एकड़ की सीलिंग करके शेष खेत बिना मूल्य लिये किसानों में बांट देना.
- तीन करोड़ रूपये लगाकर जवाहर टनेल नामक सुरंग बनाकर बर्फ गिरने के समय के लिए भी कश्मीर जाने का मार्ग बना देना.
- बिजली और सिंचाई का प्रबन्ध कई जगहों में कर देना.
- मेडिकल, कॉमर्स, इंजीनियरिंग, कृषि कॉलेजों आदि को खोलना. कई नये गृह उद्योग, प्रर्दशनी आदि चालू करना.
- भ्रमण करने वालों के लिए ठहरने के कई सुन्दर भवन बनाना.
कश्मीर की कुछ विचित्रताएं
- लाईसेंस लेकर वैश्या प्रथा राज्य भर में मना है.
- वनस्पति घी, डालडा आदि की बिक्री कानूनन मना है.
- श्रीनगर में नाव-गृह ;भ्वनेम.इवंजद्ध पर लगभग एक लाख आदमी रहते हैं. नाव-गृह कभी तीन मंजिला और बिजली, शौच-गृह से सुशोभित होते हैं, जिन्हें समय पर भिन्न-भिन्न झील और नदियों में ले जाया जा सकता है.
- कभी नावों पर मिट्टी जमाकर कुछ सब्जी आदि लगा देते हैं. जिन खेतों को खेकर चोर कभी चुरा भी ले जाते हैं.
- राज्य के बाहर के निवासी यहां तक कि पं. जवाहर लाल नेहरू भी चाहे तो वहां जमीन नहीं खरीद सकते.
- खीर-भवानी और अमरनाथ आदि देवस्थलों में सफाई, रक्षा, तुलसी-दूध लाने के लिए मुस्लिम सेवक हैं.
विशेष जानकारी के लिए पुस्तकें
- Dangers in Kashmir by oseph Korbell, Chairmman U.N.C.I.P., Rs. 25/-
- पाकिस्तान का कश्मीर पर आक्रमण, लेखक-कृष्णा मेहता, Ex-MP
- मोहब्बत का पैगाम – जगत प्रसिद्ध संत भावे, ग्रामदान नेता.
पं. जवाहर लाल नेहरू
इनके पंचशील के कार्यक्रम ने सारी दुनिया को आकर्षित किया. नेहरू जी के यहां जाने पर वहां की जनता ने कहा –
- वह विश्व में शान्ति के लिए किसी भी व्यक्ति से ज्यादा कार्य करते हैं (He works for peace more than anybody else in the world).
- वह एक निरपराध बच्चे की तरह हंसते हैं (He laughs like an innocent boy).
- वह इतना तेज चलते हैं कि हम उनका पीछा नहीं कर सकते हैं (He wallk so fast that we cannot follow him).
- नेहरू जी के अमेरिका जाने पर वहां की जनता ने कहा, ‘नेहरू जी नहीं कहो, इन्हें श्रीमान् विश्व कहो’ (Dont call him Mr. Nehru, Call him Mr. Universe). चूंकि हर देश की जनता इन्हें प्यार करती है.
- अरब देश में इन्हें शान्ति का पैगम्बर कहा गया जब नेहरू अरब देश में गये.
- जापान के प्रधानमंत्री ने कहा कि जापान की जनता नेहरू जी को देखने के लिये पागल हो जाते हैं.
- 1929 ई. के जनवरी में मैं इलाहाबाद में नेहरू जी से सर्वप्रथम मिला था. उसी समय से उनकी आज्ञा से इलाहाबाद जिले के हंडिया के तहसील में कांग्रेस का कार्य करने लगा. बाद में वहां नमक सत्याग्रह में भाग लेने के लिए मेरे पिताजी, मेरी पत्नी, मेरी बहन, मेरे भाई और चाचा सभी पहुंचे. उस समय हंडिया में नमक-सत्याग्रह का प्रथम डिक्टेटर था. मेरे कार्य, परिश्रम और निःस्वार्थता से जनता में सबका प्यारा मैं बन गया था. उत्तर प्रदेश में हंडिया ही नमक सत्याग्रह आरंभ करने और करबन्दी के लिए चुना गया था.
कार्यकर्त्ताओं को नेहरू जी बहुत प्यार करते थे. मैं कुछ घटनाएं नीचे लिख रहा हूं –
1. इलाहाबाद स्टेशन पर मैं अपनी पत्नी के साथ तीसरे दर्जे के दो टिकट खरीदकर छोटी लाईन से हंडिया जाने को तैयार था. पं. जवाहरलाल नेहरू वहां पर पहुंचे और श्रीमती कमला नेहरू के साथ सेकेण्ड क्लास के दो टिकट खरीद कर सेकेण्ड क्लास में बैठ गये. नेहरू जी मुझे देखकर मेरी पत्नी को कमला नेहरू के साथ सेकेण्ड क्लास में बैठने को कहकर मेरे साथ तीसरे दर्जे में आ बैठे. मैंने नेहरू जी से सेकेण्ड क्लास में बैठने का आग्रह किया, पर वे तीसरे दर्जे में हंडिया तक गये. मैं अपनी पत्नी के साथ हंडिया स्टेशन पर उतर गया, तब नेहरू जी सेकेण्ड क्लास में गये, चूंकि उन्हें आगे जाना था.
2. इलाहाबाद जिले में मुझे कांग्रेस कार्य में अपने परिश्रम से सपफलता तो खूब मिली थी, पर महीनों तक दिन में उपवास करता था. रात में रोटी खाता था. चूंकि किसान लोग वहां प्रायः रोज शरबत पीकर या नाश्ता करके रह जाते थे और रात में रोटी खाते थे. अतः वे मुझे भी दिन में भोजन के लिए कभी निमंत्राण नहीं देते थे. गांवों में कोई दुकान या होटल नहीं था और न मैं पैसा ही रखता था. मेरी यह कठिनाई जब नेहरू जी और कमला नेहरू जी को पता चला तो एक दिन सौ रूपयों का एक नोट मुझे 1929 ई. में मार्च के महीने में वे देने लगे. मैंने उन्हें कहा कि गांव में दुकान नहीं है और एक कटी वस्त्र ही पहनता हूं, न नोट रखने की जगह है. उन्होंने नोट वापस कर लिया. नेहरू जी कार्यकर्त्ताओं की हर कठिनाई को दूर करने का प्रयास करते थे.
3. 1929 ई. बात है. पं. जवाहर लाल नेहरू अपने आनन्द भवन के ऊपर वाले मंजिल पर प्रातःकाल चर्खा चला रहे थे. मैं वहां उसी समय पहुंचा. मुझे कोई चपरासी रोकता नहीं था. कुछ वर्षा हो रही थी. नेहरू जी ने उठकर स्वयं मेरी देह पर की चादर उतार लिया. यद्यपि उनके कई सेवक वहां पर खड़े थे. मेरी चादर को उन्होंने सूखने के लिए फैला दिया और बोले, ‘मेेरे पास बैठे, अभी मैं रूक था. वहां की बातें सुनता हूं. गीली चादर आप ओढ़े रहेंगे तो बीमार हो जायेंगे.’ कार्यकर्त्ताओं पर नेहरू जी का अद्भूत प्यार था.
मैंने नेहरू जी से कहा – ‘पंडित जी, मैं खुली देह, खाली पांव, आप के साथ आकर बैठ जाता हूं. मुझे आप नहीं रोकते हैं. कांग्रेस के कार्यालय में कुरते का बटन क्लर्कों के खुला रहने पर आपने डांटा क्यों ? क्या मैं भी कुरता-जूता पहन लूं ?’
नेहरू जी का उत्तर – ‘आप किसानों के बीच रहकर काम करते हैं. किसान यहां खाली पांव, खुली देह रहते हैं, जिनके बीच उन्हीं के पोशाक में रहना ज्यादा सुविधाजनक होता है.
4. मैं दिल्ली में प्रधानमंत्री भवन ;च्तपउम उपदपजमते भ्वनेमद्ध में तीन दिनों के लिए ठहर गया था. मेरी पत्नी भी साथ थी. मैं 1953 ई. से 1964 ई. तक कश्मीर में ठहरा रहता था. वहां से दिल्ली आने पर वहीं ठहरता था. एक दिन मेरी पत्नी, नेहरू जी से कहती हैं मेरे बारे में, ‘पंडित जी, इन्हें पार्लियामेंट का सदस्य बना दीजिए.’
नेहरू जी – ‘ये तो चाहते नहीं हैं.’
मेरी पत्नी – ‘मैं इन्हें सदस्य बनने पर त्यागपत्र नहीं देने दूंगी.’
नेहरू जी – ‘कुछ लोग ओहदा की तलाश में दौड़ते हैं. ये बिना ओहदा लिए भी सेवा कर सकते हैं, तो अच्छा है.’
मैं बोला – ‘पंडित जी, आपका इतना प्यार और विश्वास मुझे मिला है, इसका मूल्य ये नहीं जानती है, सिर्फ ओहदा का मूल्य ये समझती है.’
नेहरू जी हंसने लगे.
5. मैं अपनी लड़की प्रभा (एम.ए.) के साथ ही प्रधानमंत्री भवन ;च्तपउम डपदपेजमते भ्चनेमद्ध नई दिल्ली में ठहरा था. पं. जवाहरलाल नेहरू से बातें चल रही थी. मेरी लड़की ने नेहरू जी से कहा, ‘पंडित जी, मैं अमेरिका पढ़ने जाना चाहती हूं, कुछ प्रबंध कर दीजिए.’
नेहरू जी – ‘रूपयों का प्रबन्ध तो किसी प्रकार हो जा सकता है, पर मैं राय देता हूं कि तू भारत में रहकर कभी अपने पिता के साथ किसानों की कुछ सेवा करो. विदेश में जाकर पढ़ने के सम्बन्ध में मेरे विचार पहले से बदल गए हैं. तुम पुण्यदेव जी की लड़की तो मेरी में लड़की के समान हो. सुनो कुछ ही दिन पहले की बात है. मैं मद्रास की बात सुना रहा हूं. वहां दो अमेरिकन भाई-बहन पहुंचे. दोनों डॉक्टर थे, ईसाई र्ध्म के प्रचार के लिए भारत आये. अमेरिकन बहन का गांधीजी की भावनाओं का असर हुआ. वह गांवों में दवा का थैला लेकर घूमने लगी. बच्चों को दुलारती, जरूरत पड़ने पर दवा देती थी और जो कुछ गांव में मिलता वह खाकर सो जाती थी. उसने ईसाई धर्म के प्रचार का काम छोड़ दिया. उसका भाई अपनी बहन के व्यवहार से बहुत नाराज हुआ और मुझसे कहा (नेहरू जी) मेरी बहन को भारत से निकाल दीजिए. वह मेरी बात नहीं मानती है.’ (नेहरू जी) उस अमेरिकन की बात पर हंसने लगे.
पं. जवाहरलाल नेहरू की कुछ खूबियां
- वह सार्वजनिक जीवन के आरंभ में कभी-कभी इलाहाबाद जिले में पैदल या एक्का पर गांवों में चले जाते थे और गरीब किसान की झोपड़ियों में रात में सो जाते थे. साधारण भोजन कर लेते थे और खेतों में लोटा लेकर शौच चले जाते थे, यद्यपि इसके अभ्यस्त नहीं थे.
- गांधीजी के आश्रम-भजनावली, गीता, रामायण गांधीजी और बुद्ध की छोटी मूर्तियां अपने बक्से में बंद रखते थे. उन पुस्तकों को प्रायः वे कुछ मिनट पाठ करते और उन मूर्त्तियों पर फूल चढ़ाते थे.
- रोज कुछ देर वे स्वाध्याय करते थे.
- ऑफिस के कार्य को संभालने और पत्र-व्यवहार में नियमितता में वे संसार प्रसिद्ध थे.
- रोज कुछ व्यायाम, शीर्षासन, अश्वारोहन तथा व्याघ्र आदि के बच्चों से खेलना वे पसंद करते थे.
- वे मिताहारी थे. मांसाहार उन्होंने छोड़ दिया था. कभी संगतवश खा लेते थे. जीवन के अंतिम वर्ष में सिगरेट भी करीब छोड़ दिया था. सार्वजनिक जीवन में आने पर मद्यपान पूर्ण रूप से उन्होंने बंद कर दिया था.
- बच्चे उन्हें चाचा कहते थे. विदेश के बच्चों के लिए वे देखने का हाथी की बच्चा और खाने को आम भेजते थे.
- गांधीजी ने नेहरू जी को अपना उत्तराधिकारी बनाया और नेहरू जी ने श्री लाल बहादुर शास्त्री को अपना उत्तराधिकारी चुना.
- विनोबा जी को नेहरू जी दूसरा गांधी, जग का सर्वश्रेष्ठ विचारक मानते थे और विनोबा जी भी नेहरू जी को अत्यन्त प्यार करते थे.
- दिमाग और देह दोनों से नेहरू जी सदा स्वस्थ रहते थे.
श्रीमती कमला नेहरू
पंडित जवाहरलाल नेहरू को समझने के लिए उनकी अर्द्धांगिनी कमला जी को समझना आवश्यक है. कमला जी नेहरू जी के साथ प्रायः इलाहाबाद जिले के गांव में दौरा करने आती थी. 1929 ई. में एक बार उनसे पूछा-भारतीय महिलाओं के आदर्श के बारे में आपको क्या विचार है ?
कमला जी उत्तर-राजनीति में भारत को यूरोप से कई बातें सीखना चाहिए, पर महिलाओं के आदर्श के सम्बन्ध में सीता, सावित्री, पार्वती आदि भारतीय महिलाओं से बढ़कर संसार में कोई दूसरा आदर्श नहीं हो सकता है.
इलाहाबाद जिले के सभी लोग कमला जी को एक आदर्श महिला कहते थे.
पंडित जवाहरलाल नेहरू के उत्तराधिकारी
- सारे संसार में श्री लालबहादुर शास्त्री के ऐसा असंग्रही, गरीब और ईमानदार प्राइम मिनिस्टर कोई नहीं साबित हुआ.
- पाकिस्तान के 1965 ई. में भारत पर आक्रमण करने पर भारत को बचाने के लिए जो उन्होंने कई जगहों पर पाकिस्तान पर आक्रमण की आज्ञा देकर उसे हारा दिया. अतः भारत के हृदय में वे अमर हो गये.
- ताशकन्द में रूस की मध्यस्थता से शास्त्री जी ने पाकिस्तान से समझौता किया और स्वर्ग सिधार गये.
- दिल्ली में गांधी जी का राजघाट, नेहरू जी का शान्तिवन और शास्त्री जी का विजयघाट भारत के इतिहास के आज तीर्थस्थल हैं.
- शास्त्री जी अपने बाद श्रीमती इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री बनाना चाहते थे.
- शास्त्री जी व्यवहार कुशल और सरल स्वभाव के थे.
- शास्त्री जी विदेशी मामले में अच्छे डिप्लोमैट भी थे.
पंडित जवाहरलाल नेहरू की नीचे लिखी पुस्तकें सारे संसार में पढ़ी जाती है-
- Autobiography
- Glimpses of World history
- Discovery of India
- A study of Nehru – By Rafiq Zakaria में उनकी जीवनी लिखी हुई है.
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