काश, मेरे शब्द होते
रोटी, कपड़ा और मकान
मैं बांट देता इन्हें
खाने, पहनने और रहने के लिए
काश, मेरे शब्द होते
हंसिया, हथौड़ा और बंदूक
मैं काटता, पीटता
और बना लेता
उस दुष्ट की छाती का निशाना
काश, मेरे शब्द होते
मेरे आज के स्वप्न का
आने वाला कल की सच्चाई
मैं रख देता सहेज
भाई-बंद की सोयी पलकों पर
तारों की तरह फैला देता
मन के अंधेरे आकाश में
काश, मेरे शब्द होते
हवा, पानी और गर्मी
मैं गरमा देता उनका ठंडा शरीर
सैलाइन की तरह उतर जाता
समस्त नाड़ी तंत्रिका में
जगा देता हवा के झोकों से
मृत सांस की धड़कन
काश, मेरे शब्द होते
उनकी आवाज
मैं चीखता, चिल्लाता
जंगल में चली
कुल्हाड़ी के विरुद्ध
काश, मेरे शब्द होते
प्यार
मैं घोल देता
शहर की सबसे बड़ी ऊंचस्थ
पानी की टंकी में
और पहुंचा देता
घर घर के नलों तक
कि जिसे पीना है पीले छक कर
कि जिसे नहाना है
नहा ले आपादमस्तक
- राम प्रसाद यादव
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