टीभी और न्यूज़ पेपर में कोरना जांच के बड़े-बड़े दावे. अस्पताल में मरीज की देखभाल के भी दावे. देख सुन कर बहुत अच्छा लगा था. भरोसा भी हुआ था अपनी सरकार पर, अपने स्वास्थ्य विभाग पर.
डॉक्टर ने कोरोनावायरस टेस्ट करवाने के लिए लिख दिया था. अब जांच हो ही जाएगी. मैं उत्साहित होकर जांच केंद्र पहुंच गया.
बड़ा-सा लोहे का गेट जो अंदर से बंद है. गेट की दूसरी तरफ प्राइवेट गार्ड कुर्सी पर बैठा हुआ है. कई बार आवाज लगाने पर भी उसने मेरी तरफ ध्यान नहीं दिया, तब जोर-जोर से गेट बजाने लगा.
वह तेज कदमों से गेट की तरफ आया और हवा में डंडा लहराते हुए आंखें तरेर कर कहा – ‘क्या बात है ?’
‘जांच करवाना है भैया.’
गार्ड की उम्र हमारे नाती की उम्र की होगी लेकिन फिर भी मैंने उसे ‘भैया’ कहा. सर के सफेद बाल देखकर उसे भी मेरी उम्र का अंदाजा हो गया होगा. सोचा था, गार्ड पिघल जाएगा. लेकिन …
‘बारह बजे से होगा.’
‘अभी दस बज रहे हैं. दो घंटा कहां खड़ा रहूं ?’ कमजोरी, सर दर्द, कंठ भी सूख रहा था.
‘भैया, सीनियर सिटीजन हूं. पहले जांच करवा दीजिए. बहुत कष्ट है.’
‘जांच करने वाले बारह बजे आते हैं.’
यह कैसी व्यवस्था ? बारह बजे सभी कर्मी आएगा ?आउटडोर में डाक्टर नौ बजे से ही काम कर रहे हैं. फिर जांच करने वाला टेकनेशियन बारह बजे क्यों आता है ? कौन जवाब देता ? गार्ड जा चुका था.
ग्यारह बजते-बजते और भी कई लोग जांच कराने आ गये हैं. अब हमारी आवाज बुलंद होगी. सभी की समस्या एक जैसी थी. कई महिलाएं, बच्चे और दो बुजुर्ग महिला ! कुछ लोग गेट के बाहर इधर उधर बैठ गए हैं. मेरी भी इच्छा हो रही थी. एक घंटा से अधिक देर तक एक ही स्थान पर खड़ा नहीं रह पाता. पैर तड़तड़ा रहा है. लगता है गिर जाउंगा.
प्रेस वाले आकर वीडियो बनाने लगे हैं. लगा हमारी पीडा की सुनवाई अब होने वाली है. प्रेस और मीडिया से सभी डरते जो हैं.
मैंने भी अपनी व्यथा कथा सुनाई और वे वीडियो रिकॉर्डिंग करते रहे. लेकिन यह क्या ? जांच सेंटर वालों पर उनलोंगों ने ध्यान नहीं दिया ? शायद उन्हें चटपटा मसाला ही चाहिए था खबर बनाने के लिए सिर्फ.
मुझे घोर निराशा हुई. लचर व्यवस्था पर क्रोध आ रहा है. छूछा क्रोध. खड़ा-खड़ा कुढ़ता रहा.
बारह बजे सभी मरीज गेट पर जमा होकर हल्ला करने लगे हैं. मैं भी उसका हिस्सा बन गया हूं.
अंदर से एक व्यक्ति गेट के पास आकर खड़ा हो गए हैं. वह सभी का प्रिसक्रिपशन देख रहा है.
‘सभी को कोरोनावायरस टेस्ट लिख दिया है डाक्टर. अजीब बात है !’
वह डालकर की राय से सहमत नहीं लग रहा हैै.
‘एक दिन में पांच ही टेस्ट होगा. वह भी उसका ही होगा जिस पर प्रभारी आदेश देंगे.’
अब हम लोगों का करता होगा ? एक और बाड़ा ? जब डालकर लिख दिया है जांच तब ? एक श्री बाधा !
‘हम लोगों का टेस्ट कब होगा ? हमलोगो का टेस्ट कब करेंगे.’
‘रजिस्ट्रेशन कराना होगा पहले, उसके बाद.’
नैराश्य मन में आशा की एक ज्योति जली. गेट के बाहर हम सब खड़े हो गए हैं. हमारे बीच एक मीटर का फासला है. बारी-बारी से सभी अपना अपना डाक्टरी चिट्ठा गार्ड को दे रहे हैं. सात दिन बाद मेरा टेस्ट होगा.
मैं अचंभित हूं. विश्वास नहीं हो रहा है – सात दिन बाद टेस्ट !
इस बीच मुझे कुछ भी हो सकता है. अगर मैं कोरोना पेशेंट निकल गया, तो घर वालों को भी खतरा होगा.
जांच में इतनी देरी ?
सरकार के दावे का सच नंगे रुप में मेरे सामने खड़ा है. मैं कुढ़ता हुआ घर वापस लौट रहा हूं. इसके सिवाय कोई चारा नहीं.
- उमाकांत भारती / 25.7.20
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