श्याम मीरा सिंह
कल्याण सिंह को उनके समर्थक इस तरह याद कर रहे हैं :
- हिंदू हृदय सम्राट
- राम मंदिर के लिए अपनी गद्दी त्यागने वाले
- बाबरी मस्जिद ढहाने वाले
संविधान कहता है – राज्य किसी भी धर्म के साथ भेदभाव नहीं करेगा. ऊपर की चीजों से पता चलता है कि उन्होंने संविधान और देश के मूल्यों से ग़द्दारी की. कल्याण सिंह बाबरी विध्वंस के गुनहगार थे, ये गुनाह उन्होंने खुद क़बूल किया. मुझे अफ़सोस है कि इस देश की अदालतें इतनी कमजोर रही कि उन्हें जीते जी इसकी सजा नहीं मिली. वे अपने अंतिम समय में राज्यपाल को मिलने वाले ‘राजभवन’ में रहे जबकि वे एक अपराधी को मिलने वाली ‘जेल’ में रहना डिज़र्व करते थे.
कल्याण सिंह नहीं रहे, उनके परिवार के साथ मेरी संवेदनाएं हैं. भगवान से प्रार्थना है कि कुछ बड़प्पन दिखाए और उनके किए के लिए उन्हें माफ़ कर दे. उनकी राजनीति ने हज़ारों निर्दोष हिंदू-मुसलमानों को दंगों में धकेला, परिणामतः तीस साल बाद आज भी भारत जैसा गरीब मुल्क अस्पताल, स्वास्थ्य, शिक्षा से भटककर ‘मंदिर’ नफ़रत और सांप्रदायिकता में उलझा हुआ है.
भगवान राम पर मेरी पूरी श्रद्धा है. उनके नाम पर दंगे करने वाली, उनके नारे लगाकर हत्या करने वाली भीड़ और उसके नेताओं को वे माफ़ कर देंगे. हालांकि आपत्ति भी उन्हें ही होनी चाहिए. जो गुण भगवान राम के हमें बताए गए, उनके नाम पर राजनीति करने वालों ने उन सब गुणों की धज्जियां उड़ाईं.
मुझे मालूम है ये वक्त उनके परिवार के लिए मुश्किल वक्त है, लेकिन मुझे ये भी मालूम है कि ये बताया जाए कि सांप्रदायिक राजनीति की पगडंडियों पर चढ़कर आप मुख्यमंत्री बन सकते हैं मगर सदा के लिए नहीं जी सकते. एक न एक दिन आप इस दुनिया से विदा लेते ही हैं. अंततः यही गिना जाएगा कि आपके होने से कितनों को मुस्कुराने का मौक़ा दिया. आपके होने से कितनों ने अपने आंसू पोंछे.
दोनों ही मसलों पर कल्याण सिंह की राजनीति ने निराश किया. न केवल निराश किया बल्कि उनकी राजनीति ने लाखों लोगों को मरने के लिए छोड़ दिया. किसी विश्वविद्यालय, सड़क, अस्पताल का नाम, कल्याण सिंह को याद करने पर ज़ेहन में नहीं आते, आते हैं तो एक मंदिर, एक मस्जिद. एक दूसरे के खून के लिए प्यासी भीड़. इसके सिवाय उनका कोई योगदान ज़ेहन में नहीं आता.
इसलिए ज़रूरी है कि इस बात के स्मरण के साथ उन्हें श्रद्धांजलि दी जाए कि उनके किए ने लाखों मासूमों की जिंदगियों को बर्बाद कर दिया. हज़ारों हिंदू और लाखों मुसलमानों की जिंदगियां उनकी राजनीति के चलते तबाह हुईं. तमाम शिकायतों, प्रश्नों, जिज्ञासाओं को कुछ वक्त के लिए स्थगित करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करना चाहता हूं. उनके अच्छे के लिए दुआ करता हूं. हमें नहीं सिखाया गया कि जाते हुए इंसान के लिए हमेशा नाराज़गी रखें. उन्हें और अधिक उम्र मिलती तो शायद अपने किए पर वे दोबारा से विचार करते.
कल्याण सिंह 10 बार MLA रहे, 2 बार CM, फिर MP बने. 2 बार राज्यपाल रहे. जवानी से लेकर बुढ़ापे तक जनता के पैसे पर ऐश की. बेटा राजवीर सिंह, MLA बने, स्वास्थ्य मंत्री बने, 2 बार से MP हैं. कल्याण सिंह के पोते संदीप सिंह भी विधायक बने, अब प्रदेश में मंत्री हैं. बाबा, बेटा, पोते तीनों जनता के पैसे पर मौज लिए.
कल्याण सिंह की राजनीति को ता-उम्र दंगे भड़काने की राजनीति के रूप में याद किया जाता रहा. यही योगदान उनके बेटे राजवीर ने इस समाज के लिए दिया. मैं एटा में ETV भारत के लिए एक महीने रिपोर्टर रहा था, आम जनता कासगंज दंगे में कल्याण सिंह के बेटे राजवीर सिंह की भूमिका खुले में स्वीकारती थी जबकि दंगों के बाद जेल में गए हिंदुओं के परिवारों को उनकी कोई मदद नहीं मिली.
कल्याण सिंह ने ता-उम्र सत्ता का आनंद लिया. उनके बेटे, पोते से लेकर उनके रिश्तेदार भी खुलकर सत्ता का आनंद ले रहे हैं, दिल्ली की सबसे महंगी और संवेदनशील जगह पर उनके बेटे का सांसद आवास है. उनके पोते को लखनऊ में बड़ा-सा सरकारी आवास मिला हुआ है लेकिन उनकी राजनीति से आपके बच्चों को क्या मिला ?
कल्याण सिंह को याद करने पर कोई स्कूल, अस्पताल, हाईवे, रिसर्च सेंटर याद नहीं आता. उन्हें याद करने पर सिर्फ़ एक घटना याद आती है जिसने इस देश को दो हिस्सों में बांट दिया. जिसने ऐसा सांप्रदायिक बीज बोया कि एक हिस्सा हाशिए पर चला गया और दूसरा हिस्सा धर्मांध हो गया. आज सारे मुद्दे भूलकर भारत की संसद को दंगाइयों, सांप्रदायिक नेताओं से भरा जा रहा है. इसकी क़ीमत कल्याण सिंह नहीं, आपके बच्चे चुकाएंगे.
लोग कह रहे हैं कल्याण सिंह के लिए आज के दिन तो ऐसा न लिखते. जबकि खुद कल्याण सिंह सांप्रदायिक राजनीति को ही अपनी उपलब्धि बताया करते थे. उनके जाने के बाद उनकी ही उपलब्धि को बताना कोई अपराध नहीं है. जो मैंने कहा उसे वे मंच पर कहते थे. जब उन्होंने करवाए ही दंगे हैं तो उसे लव स्टोरी कैसे लिख दें ?
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