Home कविताएं कैसे क्षमा कर कर दूं एकलव्य ?

कैसे क्षमा कर कर दूं एकलव्य ?

1 second read
0
0
1,055
कैसे क्षमा कर कर दूं एकलव्य ?

तुम पर दया नहीं आती
क्रोध उपजता है एकलव्य

तुम पहचान नहीं पाये
कि जिसे तुम गुरु मानकर पूजते रहे
वह शिष्यहन्ता है, गुरु नहीं

गुर तो उसने तुम्हें दिये नहीं
जो भी गुर तुमने सीखे, स्वयं सीखे
और जो भी सीखे, उसने छीन लिये
तो फिर गुरुदक्षिणा काहे की ?

यह सवाल उठा तो होगा तुम्हारे मन में
फिर मुंंह क्यों नहीं खोले ?

तुम्हारी यह चुप्पी
मेरी छाती में शूल की तरह चुभती है एकलव्य

तुम पर करुणा नहीं उपजती
खीज आती है
कि जहांं तुम्हें प्रतिरोध करना था
वहांं तुमने घुटने टेक दिये
कि जहांं तुम्हें आवाज़ उठानी थी
वहांं मुंंह सिल लिये

तुम यह नहीं देख पाये
कि सत्ता के नमक के बोझ तले दबा व्यक्ति
भाड़े का टट्टू तो हो सकता है, गुरु नहीं

भाड़े के टट्टू को
गुरु समझने की भूल कर बैठे एकलव्य
यह भूल तुम्हारी श्रद्धा पर भारी पड़ गयी

तुम पर सहानुभूति नहीं उतरती
तुम्हारी भावुकता पर आक्रोश घेर लेता है

तुम्हारा कटा अंंगूठा मेरी आंंखों के सामने
उछल-उछल कर मुझे मुंंह चिढ़ाता है
और मैं आत्मग्लानि से भर जाता हूंं
कि जहांं तुम्हें विद्रोह का बिगुल फूंंकना था
कि जहांं तुम्हें उठा लेने थे तीर-धनुष
कि जहांं तुम्हें अधर्म को ललकारना था
वहांं अपनी बलि चढ़ा बैठे
और नाश कर बैठे अपना सर्वस्व

काश तुम लड़ते युद्ध उस शिष्यहन्ता से
यही न होता कि मारे जाते
अंंगूठा कटवाकर जिस तरह मारे गये
उचित होता कि अनाचार के विरुद्ध लड़कर मारे जाते
वह मृत्यु इस मृत्यु से श्रेयस्कर होती

मैं तुम्हें कैसे क्षमा कर दूंं एकलव्य ?
तुम्हें क्षमा करना अनर्थ और अत्याचार के विरुद्ध
हर लड़ाई को सिरे से ख़ारिज कर देना है
तुम्हें क्षमा करना छल और बेईमानी के
पक्ष में खड़ा हो जाना है
तुम्हें क्षमा करना
हर आततायी के समर्थन में
अपनी मुहर लगा देना है

  • कुंदन सिद्धार्थ

[प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे…]

ROHIT SHARMA

BLOGGER INDIA ‘प्रतिभा एक डायरी’ का उद्देश्य मेहनतकश लोगों की मौजूदा राजनीतिक ताकतों को आत्मसात करना और उनके हितों के लिए प्रतिबद्ध एक नई ताकत पैदा करना है. यह आपकी अपनी आवाज है, इसलिए इसमें प्रकाशित किसी भी आलेख का उपयोग जनहित हेतु किसी भी भाषा, किसी भी रुप में आंशिक या सम्पूर्ण किया जा सकता है. किसी प्रकार की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है.

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
  • गुरुत्वाकर्षण के विरुद्ध

    कई दिनों से लगातार हो रही बारिश के कारण ये शहर अब अपने पिंजरे में दुबके हुए किसी जानवर सा …
  • मेरे अंगों की नीलामी

    अब मैं अपनी शरीर के अंगों को बेच रही हूं एक एक कर. मेरी पसलियां तीन रुपयों में. मेरे प्रवा…
  • मेरा देश जल रहा…

    घर-आंगन में आग लग रही सुलग रहे वन-उपवन, दर दीवारें चटख रही हैं जलते छप्पर-छाजन. तन जलता है…
Load More In कविताएं

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

कामरेडस जोसेफ (दर्शन पाल) एवं संजीत (अर्जुन प्रसाद सिंह) भाकपा (माओवादी) से बर्खास्त

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने पंजाब और बिहार के अपने कामरेडसद्वय जोसेफ (दर्शन पाल…