मोदी की अहंकारी फासिस्ट सत्ता को दिल्ली की सीमाओं पर 13 महीने तक घेर कर मोदी सरकार को घुटनों के बल झुकने पर मजबूर करने वाले संयुक्त किसान मोर्चा ने मोदी सरकार की वादाखिलाफी पर 16 फरवरी को एक बार फिर सम्पूर्ण औद्योगिक और ग्रामीण भारत बंद का हुंकार भरा है. इस बार किसानों के इस संगठन का साथ देने के लिए केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों के मंच, स्वतंत्र सेक्टोएल फेडरेशन / एसोशिएशन, देश भर के मजदूर, खेत मजदूऐं, ट्रेड यूनियनों, महिला, युवा, छात्र संगठनों तथा सामाजिक आंदोलनों से जुड़े संगहनों ने भी एकजुटता दिखाई है.
इस अपील को जारी करते हुए इन तमाम संगठनों ने देश की आम जनता के नाम एक पत्र जारी करते हुए कहा है कि हमारे देश के सामने उपस्थित ज्वलंत मुद्दों पर विचार करें. मोदी सरकार की नीतियों ने गरीबों के लिए आफत पैदा कर दी है. विकास के नाम पर, वह बड़े कॉर्पोरेटों (विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों सहित), अमीरों व माफिया को भारी मुनाफा कमाने की लगातार छूट दे रही है. खेती की लागत सामग्री – खाद, बीज, कीटनाशक, दवा, डीजल, बिजली, कृषि उपकरण – आदि सभी कुछ मनमाने रेट पर कम्पनियां बेचती हैं, लेकिन किसान का दुर्भाग्य है कि उसकी उपज के निश्चित कीमत की कोई गारंटी नहीं है.
खेती की जमीनें भी सरकार द्वारा किसानों से सस्ती कीमत पर छीनकर कॉर्पोरेटों तथा बिल्डरों को दी जा रही हैं. किसानों पर कर्जदारी बढ़ रही है तथा हर रोज बड़े पैमाने पर वसूली एजेण्ट उनके दरवाजों पर दस्तक दे रहे हैं. किसानों की आमदनी दो गुना करने का मोदी का बहुप्रचारित वादा आपको याद है ? आमदनी दुगुनी होने के बजाए आज उन पर कर्ज दो गुना बढ़ गया है.
देश के सामने सबसे बड़ा संकट कृषि क्षेत्र और ग्रामीण जीवन का संकट है, क्योंकि खेती अलाभकारी होती जा रही है, कृषि आधारित उद्योग कॉरपोरेटों को सौंप दिए गए हैं और ग्रामीण – किसान और खेत मजदूर दोनों – सस्ते प्रवासी मजदुर बनने के लिए मजबूर हैं. ग्रामीण विकास रुक गया है और सभी प्रकार के ‘विकास’ को राष्ट्रीय और बहुराष्ट्रीय कॉरपोरेटों ने कोने में धकेल दिया है. यही कारण है कि इस देश को एक ऐसे मजबूत और देशभक्तिपूर्ण आंदोलन की आवश्यकता है, जो ग्रामीणों की आजीविका के मुद्दों और खेती-किसानी तथा ग्रामीण औद्योगिक उत्पादन के विकास पर केंद्रित हो.
भाजपा ने हर हाथ को काम देने का वादा किया था, लेकिन उसने थोक में सरकारी रोजगार को ठेका कार्यों में बदल दिया. आशा, आंगनबाड़ी, मध्यान्ह भोजन मजदूरों, शिक्षा मित्रों आदि योजनाकर्मियों को केवल 2000 रूपये से 6000 रुपये तक का मानदेय मिलता है. गरीबों के लिए अच्छा रोजगार है ही नहीं. कोरोना काल में सारे धंधे लॉकडाउन कर दिये थे. कोरोना महामारी के समय छोटे नियोक्ता और उत्पादक बहुत बुरी तरह प्रभावित हुए हैं और उनका स्थान कॉर्पोरेटो ने ले लिया है. इस प्रकार, आम आदमी की आजीविका छीन ली गई है.
अब उपभोग के सामान या तो विदेश से आयात होते हैं या फिर अडानी, अंबानी, टाटा, बिड़ला जैसी कॉर्पोरेटो की कंपनियां बना रही हैं, जिनका हमारे देश की अर्थव्यवस्था पर कब्जा हैं. अस्पताल और विश्वविद्यालय भी यही लोग चला रहे हैं. सरकारी स्कूल बंद किये जा रहे हैं. दुकानदार भी इन हमलों की जद में है, क्योंकि अमेजॉन व फ्लिप्कार्ट जैसी कंपनियों ने बड़े पैमाने पर ऑनलाइन डिलीवरी करके उनकी कमर तोड़ दी है. कम्पनियों के बढ़ने को देश का विकास व जीडीपी बढ़ना बताया जा रहा है. आम जनता भूख, बीमारी तथा बेरोजगारी से पीड़ित और परेशान है.
अपनी संकल्प यात्रा’ में प्रधानमंत्री व भाजपा नेता घोषणा कर रहे हैं कि सभी सरकारी योजनाओं का लाभ बिना किसी भेदभाव व भ्रष्टाचार के सबसे गरीब लोगों तक पहुंच रहा है. यह हास्यास्पद है. वास्तविकता यह है कि हर गांव में बड़ी संख्या में गरीबों के नाम राशन कार्ड से, मनरेगा और आवास योजना से कटे हैं. इन सभी योजनाओं में हर कदम पर अफसरों को रिश्वत देनी पड़ती है. महालेखाकार ने इन योजनाओं में गहरे भ्रष्टाचार की रिपोर्ट दी है. 4 साल से राशन पोर्टल बंद है. जमीन का पट्टा नहीं होने से सरकार आवास के लिए आबंटित फंड वापस ले लेती है. पट्टा नहीं होने से सरकारी पैसा वापस चला जाता है. 5 साल मुफ्त राशन का वादा उसी प्रकार का है, जैसे चुहेदानी में रोटी फंसाई जाती है.
एक ओर मोदी गारंटी के रूप में गरीबों को मुफ्त रसोई गैस सिलंडर भी मिलने थे, लेकिन वर्ष 2014 में 410 रूपये में बिकने वाला सिलेंडर आज 1160 रूपये में बिक रहा है. बेचा गया. अब चुनाव के चलते इसके दाम को कुछ घटाया गया है, लेकिन वे मुफ्त सिलेंडर के वादे को भूल गए हैं. प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना में भी कुछ ही लोगों को राहत मिल रही है.
भाजपा सरकार ने बिजली क्षेत्र पर हमला कर जनता से वसूली जाने वाली दरें बढ़ा दी हैं. अधिक दरों के कारण गरीबों को अपना कनेक्शन खोना पड़ रहा है या प्रीपेड मीटर लगाना पड़ रहा है. बिजली उत्पादन घरेलू और विदेशी निजी कंपनियों को सौंपा जा रहा है, भले ही उत्पादन सुविधाएं राष्ट्रीय स्वामित्व में हैं और राष्ट्रीय कोयला संसाधनों पर चलती हैं. जिस तरह रियासतें गरीब किसानों से लगान वसूल कर अंग्रेजों को सौंप देती थीं, उसी तरह भाजपा भी आम जनता से प्रीमियम वसूल कर कॉरपोरेटो को सौंप रही है.
झूठ का आलम यह है कि देश की जीडीपी बढ़ने तथा इसके 5 ट्रिलियन डालर पर पहुंच जाने का ढिंढोरा जोरों पर है लेकिन 9 साल में सरकार का अंदरूनी कर्ज 55 लाख करोड़ रुपये (2014) से बढ़कर 161 लाख करोड़ (2023) हो गया है. 54 लाख करोड़ रुपये (635 बिलियन डालर) का विदेशी कर्ज अलग है. यह सारा पैसा जीएसटी बढ़ाकर गरीबों से टैक्स के रूप में वसूला जा रहा है.
सरकार ने व्यावहारिक रुप से देश की संपत्ति कॉरपोरेटो और अति-अमीरों को सौंप दी है – चाहे वह बड़े राजमार्ग और एक्सप्रेस-वे हों, हवाई अड्डे या स्मार्ट शहर (जो गरीबों को बेदखल करने के बाद बनाए गए हैं) हों या फिर शॉपिंग मॉल, रेलवे स्टेशन, ट्रेन आदि हों. वास्तव में, अमीर ‘राम राज्य’ में रह रहे हैं. वहीं दूसरी ओर देश की मेहनतकश जनता अपनी नारकीय जिंदगी से बचने के लिए संघर्ष कर रही है. क्या यही राम राज्य का वादा है ?
जब संयुक्त किसान मोर्चे ने तीन कृषि कानूनों के खिलाफ अपना ऐतिहासिक वापस लिया था, तो प्रधानमंत्री ने किसानों से कई वादे किये थे. इनमें से कोई भी वादा पूरा नहीं किया गया. पूरे आंदोलन के दौरान किसानों के मंसूबों के बारे में भाजपा-आरएसएस अफवाह और नफरत भरी बातें फैलाई. इस बीच सरकार ने 4 श्रम संहिताओं को भी पारित किया है, जिसके कारण सरकारी कर्मचारियों के बीच भी रोजगार असुरक्षा की भावना फैल गई है. यूनियन बनाने का अधिकार भी कमजोर कर दिया गया है. हाल ही में हिट एंड रन कानून लाया गया है, जो छोटे ड्राईवरों और मालिकों को अनुपातहीन तरीके से दंडित करने का प्रावधान करता है.
लोग विरोध न कर पाएं, इसके लिए पुलिस यथासंभव विरोध प्रदर्शनों की इजाजत नहीं देती. आज विपक्षी नेताओं और मीडिया पर झूठे केसों की भरमार है. सच्चाई पर लगाम लगाने के लिए मुख्यधारा की मीडिया – जो कॉर्पोरेट घरानों के स्वामित्व में है – एकतरफा खबरें छापती हैं. आम जनता के असली मुद्दों और सच को सामने लाने के बजाय ये पत्रकार धर्म के नाम पर नफरत फैला रहे हैं. बड़े कॉर्पोरेट और कॉरपोरेट मीडिया इस देश में सांप्रदायिक सदभाव नहीं चाहते.
इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है कि मनुवादी ताकतें संप्रदाय और जाति के आधार पर नफरत को बढ़ावा दे रही है, ताकि शोषित लोगों का और दमन किया जा सके और सस्ते श्रम के रूप में वे उपलब्ध हों. आज महिलाओं, दलितों, आदिवासियों, अल्पसंख्यकों व हाशिए पर पड़े अन्य समुदायों के आरक्षण के अधिकार पर हमले बढ़ रहे हैं. मोदी सरकार अपने उन लोगों की रक्षा करने के मामले में विशेष रूप से कुख्यात हैं, जो पर महिलाओं से बदसलूकी करने और बलात्कार के आरोपी है.
पिछले साल 24 अगस्त को एसकेएम और सेंट्रल ट्रेड यूनियनों ने ऊपर उल्लेखित ऐसे सभी मुद्दों के खिलाफ एकजुट संघर्ष की नींव रखी थी. 26 से 28 नवंबर 2023 को सभी राज्यों की राजधानियों में महापड़ाव आयोजित किए गए और इस साल 26 जनवरी को देश के लगभग 500 जिलों में विशाल ट्रैक्टर-वाहन रैलियां आयोजित की गईं. आज हमारा संघर्ष पहले से कहीं अधिक मजबूत हो गया है.
आरएसएस के प्रति वफादार लोगों को छोड़कर, संपूर्ण ट्रेड यूनियनों, महिलाओं, युवाओं और छात्र संगठनों, अन्य सामाजिक आंदोलनों और बौद्धिक समूहों ने मजदूर-किसान आंदोलन को मजबूत करने के लिए और भाजपा सरकार को उसकी कॉर्पोरेट-सांप्रदायिक नीतियों के लिए दंंडित करने के लिए हमारे एकजुट जन आंदोलन के साथ हाथ मिला लिया है. हम आपसे 6 फरवरी 2024 के ग्रामीण बंद और राष्ट्रव्यापी औद्योगिक/क्षेत्रीय हड़ताल में शामिल होने की अपील करते हैं. संघर्ष तब तक नहीं रुकेगा, जब तक कि सत्तारूढ़ शासन की जनविरोधी नीतियां परास्त नहीं हो जातीं.
हमारु साझा मांगे हैं –
- सभी किसानों को सभी फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य सकल सी-2 लागत का डेढ़ गुना सुनिश्चित किया जाए. इस रेट पर सरकारी खरीद की कानूनी गारंटी की जाए. सरकारी खरीद में किसानों से 100 रुपये प्रति क्विंटल की रिश्वत और 40 रुपये तौल खर्च की वसूली बंद हो.
- सभी किसानों और मजदूरों को कर्ज मुक्त किया जाए, जिसका भाजपा ने इसका वादा किया था. माइक्रो फाइनेन्स समूह द्वारा दिए जा रहे कर्ज की ब्याज दर, किसान क्रेडिट कार्ड की ब्याज दर के बराबर, 4 फीसदी हो.
- खाद सब्सिडी बहाल हो, बढ़े दाम वापस हों, बीज व कीटनाशक दवाओं के दाम आधे हों. ट्रैक्टर व अन्य खेती की मशीनों व पुजों पर जीएसटी हटाया जाए.
- आवारा पशुओं की समस्या हल की जाए और किसानों के नुकसान की भरपाई की जाए.
- गांव व बाजारों में सभी को 300 यूनिट बिजली मुफ्त दी जाए, कनेक्शन काटना बंद हो, पुराने बिल माफ किये जाएं और प्रीपेड मीटर योजना रद्द की जाए. घाटे की वसूली अमीरों से की जाए.
- वृद्वावस्था व विधवा पेंशन 10,000 रुपये मासिक किया जाए.
- आशा, आंगनवाड़ी, रसोईया, ग्राम सहायक और सभी सरकारी और गैर सरकारी रोजगार और नौकरियों में न्यूनतम मजदूरी 26,000 रुपये प्रतिमाह की जाए. मनरेगा में 200 दिन काम और मजदूरी दर 600 रुपये रोज किया जाए.
- गांव में कृषि संबंधित, खाद्यान्न प्रसंस्करण तथा अन्य उद्योगों का विकास हो, जो कार्पोरेट पूंजी से मुक्त हो.
- लखीमपुर खीरी के अपराधी भाजपा नेता अजय मिश्र ‘टेनी’ पर केस दर्ज कर जेल भेजा जाए.
- सभी के राशन कार्ड में नाम व यूनिट जोड़े जाएं, बंद पोर्टल खोला जाए. सार्वजनिक वितरण प्रणाली बहाल की जाए तथा सभी 6 वस्तुओं का उसमें वितरण किया जाए.
- चार श्रम संहिताएं रद्द कर श्रम कानून बहाल किया जाए.
- सरकारी प्रतिष्ठानों, रेलवे, रक्षा, बिजली समेत, सभी का निजीकरण तथा सरकारी काम में ठेकेदारीकरण बंद किया जाए.
- पुरानी पेंशन स्कीम पुनः बहाल की जाए.
- भूमि अधिग्रहण कानून 203 को सख्ती से अमल किया जाए.
- सरकारी विद्यालयों और विश्वविद्यालयों में शिक्षा में सुधार किया जाए, शिक्षकों के रद्द पद बहाल किये जाएं.
- हिट एण्ड रन मामलों में पारित नये कानून की धारा 106 (1) व (2) रद्द किया जाए.
- आनलाइन मार्केटिंग में बड़ी कम्पनियों पर रोक लगाई जाए, खुदरा व्यापार को बड़ी कम्पनियों के हस्तक्षेप से सुरक्षा व संरक्षण दिया जाए.
- विकास के नाम पर गरीब जनता के घरों व दुकानों को तोड़ना, बेघर करना बंद करो. बुल्डोजर के मनमाने प्रयोग को बंद करो.
- महिलाओं, आदिवासियों, दलितों और अल्पसंख्यकों पर बढ़ रहे अत्याचारों के खिलाफ जनप्रतिरोध विकसित करो.
- जनवादी अधिकारों पर हमले का विरोध करो और भारतीय संघ के जनवादी चरित्र और धर्मनिरपेक्षता की रक्षा करो.
- फिलिस्तीन पर अमेरिका-इस्राइल के हमलों को रोको. फिलिस्तीन में जनसंहार और युद्ध अपराधों के लिए इस्राइल को दंडित करो. इस्राइल में रोजगार के लिए गरीब भारतीयों की भर्ती पर रोक लगाओ.
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