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जेवरों और गहनों पर किसी यूनिक ID की जरूरत क्या है ?

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यह न्यू वर्ल्ड ऑर्डर के तहत किया जा रहा है. यह एक टोलेटोरियन स्टेट की शुरुआत है, जिसमें राज्य आपके जीवन के हर पहलू पर कड़ा नियंत्रण रखना चाहता है. यह फ़ासीवाद की शुरुआत है, जहां क्रोनी कैपटलिज्म के हित और राज्य की तमाम व्यवस्था एक उद्देश्य की तरफ बढ़ते हैं और वह है – निजी स्वतंत्रता का अपहरण.

जेवरों और गहनों पर किसी यूनिक ID की जरूरत क्या है ?

गिरीश मालवीय

आखिर हमारे खरीदे गए जेवरों को किसी यूनिक ID की जरूरत क्या है ? बहुत से लोगों को यह बात समझ नहीं आ रही होगी उनके लिए बता देता हूं कि सरकार ने देश भर के तमाम बड़े-छोटे ज्वेलर्स के लिये एक नयी व्यवस्था लागू की है, इसे एचयूआईडी व्यवस्था कहा जा रहा है. एचयूआईडी का अर्थ है हॉलमार्क यूनिक आइडेंटिफिकेशन. ये एक 9 अंक का अल्फान्यूमेरिक कोड है, जो अब से हर ज्वेलरी पर लगाया जाएगा ताकि गहने की एक विशिष्ट पहचान सुनिश्चित की जा सके.

एचयूआईडी सिस्टम में देश के हर ज्वेलर्स / सुनार को दो ग्राम या इससे अधिक भार वाला आभूषण बनाने, बेचने पर हर उत्पाद का विवरण बीआईएस पोर्टल पर देने के साथ उसे किस ग्राहक को बेचा, ये बताना होगा. उत्पाद की फोटो भी साइट पर अपलोड करनी होगी. इसमें सराफा कारोबारी का नाम, पता, हॉलमार्क सेंटर, उसका नंबर, वजन, यूनिक नंबर, गहने की शुद्धता और उसकी बिक्री का भी ब्यौरा दर्ज करना होगा.

जैसे हर व्यक्ति का आधार नम्बर होता है यह कुछ वैसी ही व्यवस्था है. इस नए नौ अंकों की अल्फा न्यूमेरिक विशिष्ट पहचान संख्या (यूआईएन) कोड को क्यूआर कोड रीडर या एक मोबाइल एप्लिकेशन के साथ पढ़ा जा सकता है. इसमें ज्वेलर्स की तो ट्रैकिंग होगी ही साथ ही कस्टमर की भी ट्रैकिंग होगी, जिससे ग्राहक की निजता को भी बड़ा खतरा है.

देश भर के ज्वेलर्स ने इसका विरोध करते हुए 23 अगस्त को एक दिन की हड़ताल की. ज्वेलर्स का कहना है कि हॉलमार्क तो ठीक है. लेकिन एचयूआईडी को वो लोग स्वीकार नहीं करेंगे.

यहां पर आप ध्यान इस बात पर दे कि यह हॉलमार्क नहीं है यह एक उससे इतर व्यवस्था है. हॉलमार्क वाले आभूषणों पर पहले से ही बीआईएस लोगो, हॉलमार्क जारी करने वाला लैब कोड, गहना की शुद्धता, हॉल मार्किंग का वर्ष और जौहरी विवरण होता है. उससे किसी को भी प्रॉब्लम नहीं है क्योंकि हॉलमार्क एक तरह की गारंटी है. इसके तहत हर गोल्ड ज्वैलरी पर भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) अपने मार्क के द्वारा शुद्धता की गारंटी देता है. यदि गहनों पर हॉलमार्क है तो इसका मतलब है कि उसकी शुद्धता प्रमाणित है. इससे ज्वेलर्स को बिल्कुल इनकार नहीं है. उन्हें हर ज्वेलरी की यूनिक आइडेंटिटी से प्रॉब्लम है.

यह ज्वेलर्स को क्लर्क बनाने की कवायद है. दुकान में अगर एक ज्वेलरी पर एचयूआईडी नहीं मिला तो रजिस्ट्रेशन या लाइसेंस रद्द करने, बीआईएस एक्‍ट, 2016 के सेक्‍शन 29 के तहत एक साल तक की जेल या 1 लाख रुपये से अधिक का जुर्माना भरना पड़ सकता है. तलाशी और जब्ती के ऐसे कड़े नियम से गोल्ड इंडस्ट्री में इंस्पेक्टर राज आ जाएगा. वर्तमान में देश के 256 जिलों में ही हॉलमार्क सेंटर हैं जबकि यूआईडी डालने के लिए हर जिले में 10 हॉलमार्क सेंटर की जरूरत होगी.

यानी ज्वेलर्स के भी अच्छे दिन आ रहे है. यही वर्ग सबसे आगे रहकर इस शोषणकारी मोदी सरकार को खुलकर समर्थन देता आया है इसलिए इनसे रत्ती भर की सहानुभूति कम से कम मुझे तो नहीं है. इस नियम के लागू होने के बाद छोटा-मोटा ज्वेलर्स तो साफ ही हो जाएगा और बाजार पर बड़े ब्रांड का कब्जा हो जाएगा.

मुझे सिर्फ एक बात समझ नहीं आ रही है कि आखिर वे कौन से व्यक्ति है या ऐसे कौन से संगठन है जिन्होंने इस नियम को लागू करने की मांग की थी ? साफ है ज्वेलर्स ने तो यह मांग की नहीं होगी, न किसी उपभोक्ता संगठन ने ऐसी कोई मांग सरकार के सामने रखी होगी ? अब यदि मैं कहूं कि यह न्यू वर्ल्ड ऑर्डर के तहत किया जा रहा है तो बहुत से लोगों को इसमे भी कांस्पिरेसी थ्योरी नजर आने लगेगी.

इस देश में सोने को एक संपत्ति के रूप में जाना जाता है, जैसे जमीन जायदाद है वैसे ही सोना भी है. सरकार जल्द ही हर जमीन/मकान/दुकान/फ्लैट आदि के लिए भी एक सेंट्रलाइज्ड यूनिक आइडेंटिटी की व्यवस्था लागू कर रही है, जिसे वह आधार से जोड़ेगी और सोने की छोटे से छोटी ज्वेलरी को एक यूनिक आइडेंटिटी देकर इस व्यवस्था की नींव डाली जा रही है.

यह एक टोलेटोरियन स्टेट की शुरुआत है, जिसमें राज्य आपके जीवन के हर पहलू पर कड़ा नियंत्रण रखना चाहता है. यह फ़ासीवाद की शुरुआत है, जहां क्रोनी कैपटलिज्म के हित और राज्य की तमाम व्यवस्था एक उद्देश्य की तरफ बढ़ते हैं और वह है – निजी स्वतंत्रता का अपहरण.

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ROHIT SHARMA

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