‘जब बच्चे घर से बाहर निकलने में डरें’ हर्षमंदर का लेख ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ दिनांक 4 मई, 2019 के अंक में प्रकाशित ‘When children walk with fear‘ का हिन्दी अनुवाद है. हर्ष मंदर, चर्चित मानवाधिकार कार्यकर्ता एवं भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी हैं. हम हिन्दी के अपने पाठकों के लिए विभिन्न भाषाओं में प्रकाशित महत्वपूर्ण आलेखों का अनुवाद प्रकाशित करते हैं, ताकि गोदी मीडिया खासकर हिन्दी मीडिया के द्वारा फैलाये जा रहे अंधकार के बीच रोशनी की मशाल जलाये रखा जा सके. प्रस्तुत आलेख का हिन्दी अनुवाद किया है वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक विनय ओसवाल ने.
पांच साल में, बीजेपी ने लगातार मुसलमानों को हाशिए पर लाने की कोशिश की है.
वर्ष 1947 में एक सांप्रदायिक दंगे में अपने पति को खोने के बाद अनीस किदवई गांंधीजी के पास गई और कहा कि ‘वह दंगा की पीड़ाओं को झेलने के बावजूद भी जो लोग भारत छोड़ कर नहींं गए मैं उनके बीच चलाये जा रहे आपके राहत कार्यों में हाथ बटाना चाहती हूंं.’
गांधी जी ने बड़े दुःख के साथ कहा कि ‘चारों ओर घृणा की आग जल रही है. वह भी तब तक दिल्ली नहीं छोड़ सकते जब तक माहौल मुसलमान के हर बच्चे के लिए सड़कों पर निर्भय होकर निकलने लायक न बन जाय.’ गांधी के लिए देश के माहौल के सामान्य होने की जांच का यही मापदण्ड था कि हर मुसलमान बच्चा यहांं सड़कों पर निर्भय होकर घूम सके. हर्ष मंदर इसी आधार पर 2019 मेें देश केे अंदर बने माहौल की जांच करते हैं.
भाजपा के चुनाव अभियान से यह स्पष्ट तौर पर जाहिर होता है कि उसने अपने ही देश के खास नागरिकों के समूह को दुश्मन मान उसके विरुद्ध युद्धोन्माद जैसा माहौल बना दिया है. चूंकि भारत का संविधान देश के सभी नागरिकों को समान नागरिक अधिकार देता है, इसलिए यह माहौल संविधान की भावनाओं का भी अपमान और उसके प्रति भी एक युद्ध है. यह स्वतंत्रता संग्राम के चरित्र के खिलाफ और भारत की सभ्यता की विरासत के बेहतरीन मूल्यों, इसकी बहुलता, विविधता के समायोजन की प्रकृति के खिलाफ भी एक युद्ध ही है.
भारत में रह रहे मुसलमानों को भारतीय राजनीति में अप्रसांगिक बनाने के लिए वर्ष 2014 के चुनावों से ही भाजपा ने मुसलमानों और मुसलमान प्रत्याशियों के खिलाफ विशेषाधिकार प्राप्त जातियों, वंचित हिंदू जातियों और भारत के पूर्वोत्तर में ईसाईयों को इस आधार पर संगठित करने की पुरजोर कोशिश की कि मुसलमान उनका दुश्मन हैं.
इस राजनैतिक हथकण्डे से भाजपा विरोधी पार्टियों को हिन्दू मतदाताओं के छिटक जाने का भय सताने लगा और मुसलमानों की चिंता से जुड़े मुद्दों को उठाने से अपने हाथ खींचने पर मजबूर कर दिया.
केरल में ईसाई और मुसलमान अल्पसंख्यक बाहुल्य सीट जिस पर हिंदुओं के वोट 48 प्रतिशत ही है, से भी राहुल गांधी के चुनाव लड़ने पर यह दुष्प्रचार किया जा रहा है कि इस सीट से उन्होंने यह सोच कर चुनाव लड़ने का फैसला किया है कि सिर्फ मुसलमान और ईसाइयों से वोट मांग कर वे चुनाव जीत सकते हैं. इसे इशारे ही इशारे में राहुल गांधी द्वारा हिंदुओं का और राष्ट्र का अपमान बता प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, राहुल गांधी पर तंज कस रहे हैं.
राहुल गांधी के इस निर्णय को किस बिना पर गैर-कानूनी ठहराया जा सकता है ? जब तक की कानूनन अल्पसंख्यकों के वोट के वजन को अन्य के मुकाबले हल्का न ठहरा दिया जाय.
अमित शाह ने वर्तमान में असम तक सीमित नागरिक रजिस्टर का दायरा बढ़ाने की बात उठाकर इसी बात को और ज्यादा स्पष्ट कर दिया है. असम में ही अकेले 40 लाख लोगों की नागरिकता पर प्रश्न चिन्ह लग गया है. विश्व में इतनी बड़ी संख्या में कहीं भी लोगों के सामने किसी भी देश का नागरिक न होने की समस्या खड़ी नहीं है.
अमित शाह की यह मुहिम विदेशी हिंदुओं, सिखों और बौद्धों आदि को भारतीय नागरिक मानने का भी वादा करती है. वह पीढ़ियों से वहां बसे मुसलमानों और ईसाइयों को ‘घुसपैठिया’ और ‘दीमक’ बताते हैं. यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इनको ‘हरा वायरस’ बताते हुए इस मुहिम का तापमान बढाते हुए ‘बजरंग बली’ को ‘अली’ के खिलाफ खड़ा कर देते हैं.
पीएम मोदी के नेतृत्व में देश में अभद्र और लांछन वाली भाषा का इस्तेमाल तेजी से बढ़ा है. एनडीटीवी ने सर्वेक्षणों और अध्ययन के आधार पर यह पाया कि यूपीए के पांच साल के शासन की तुलना में मोदी सरकार के कार्यकाल में अभद्र भाषा के इस्तेमाल में तेजी से बढ़ोतरी हुई है और नफरत फैलाने वाले भाषणों का 88 प्रतिशत भाजपा नेताओं द्वारा दिया गया है.
इस अवधि में बिना मुकदमों के घृणात्मक माहौल बनाकर मार डालने की घटनाओं में मुसलमानों और दलितों को सर्वाधिक निशाना बनाया गया. इंडियास्पेंड ने पाया कि वर्ष 2010 से 2017 की अवधि के बीच में पीएम मोदी के सत्ता में आने के बाद 97 फीसदी गाय से जुड़ी हिंसा हुई और 86 फीसदी हिंसात्मक हमले मुसलमानों पर हुए हैं.
घृणात्मक हमलों के शिकार परिवारों का पुरसाहाल लेने के सफर के दौरान कारवां-ऐ- मोहब्बत ने पाया कि वे अलग-थलग और डरे हुए हैं, राज्य के प्रशासन से उन्हें कोई मदद नही मिलती, उल्टा उन्हें ही आपराधिक मामलों की कार्यवाहियों में फंसा दिया जाता है. हमला कर जिंदा मार डालने वाले अपराधियों को सिर्फ संरक्षण ही नहीं, उन्हें नायक बता उनकी वीरता का गुणगान किया जाता है.
एक केन्द्रीय मंत्री ने लॉन्चिंग के आरोपी का माल्यार्पण कर सम्मानित किया और एक अन्य मंत्री ने जेल में मरे लॉन्चिंग के एक आरोपी के शव पर तिरंगा ओढ़ाया.
ऐसा लगता है कि भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली को लंबे समय से एक सांप्रदायिक पूर्वाग्रह ने जकड़ लिया है.
इस प्रणाली का मोदी काल में तेजी से क्षरण हुआ है. मायाबेन कोडनानी पहली महिला राजनेता है जो वर्ष 2002 में गुजरात में हुए नरसंहार में हिंसा भड़काने और हिंसात्मक भीड़ का नेतृत्व करने की दोषी पाया गईं और उनकी जमानत मोदी के सत्ता में लौटने बाद, तुरंत हो गयी तथा सभी मामलों में बरी भी कर दिया गया.
अमित शाह जो आज भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष है और कई वरिष्ठ पुलिस अधिकारी जिनको सरकारी पदों पर रहते हुए हत्या जैसे संगीन अपराधों में लिप्त और दोषी पाया गया था, सभी को आज पूरी तरह दोष मुक्त कर दिया गया है. यही नहीं भयाक्रांत करने के अपराधी संघ परिवार के दोषियों को एक-एक करके सभी को इस आधार पर बरी कर दिया कि अभियोजन ने उनके खिलाफ साक्ष्यों को न्यायालय में प्रस्तुत ही नहीं किया.
श्रृंखलाबद्ध आतंकी हमलों के षड्यंत्र की मुख्य साजिशकर्ता और दोषी (जिन्हें अभी न्यायालय ने दोष मुक्त नहीं किया है) प्रज्ञा ठाकुर को भोपाल संसदीय क्षेत्र से चुनाव मैदान में उतारना मुसलमानों के खिलाफ छेड़े गए इस युद्ध का स्पष्ट संकेत है.
गुरुग्राम में क्रिकेट खेल रहे एक मुस्लिम बच्चे पर हमला किया जाता है, उसी समय एक भीड़ उसके घर पर हमला करती है, खिड़कियों को तोड़ती है और घर में सभी की पिटाई करती है. अपने परिवार के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज कराने के बाद, उन्हें गुरुग्राम में रहने और काम करने की अनुमति इसी शर्त पर देने की बात कही गई कि वे थाने में जाकर आत्मसमर्पण करें और संकल्प लें कि वे हमलावरों के खिलाफ मामले को आगे नहीं बढ़ाएंगे.
मुझे लगता है कि गांधीजी की लालसा एक ऐसे भारत के निर्माण की थी, जिसमें एक मुस्लिम बच्चा भी बिना किसी डर के चल सकता है, क्या हम गांधीजी की कल्पना से उलट भारत का निर्माण करना चाहते हैं ?
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नीतू कुमारी
May 7, 2019 at 12:42 pm
फासिज़्म इसी तरह आता है •