हिमांशु कुमार, प्रसिद्ध गांधीवादी कार्यकर्ता
सामाजिक संगठनों ने केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए नए सिटीजनशिप अमेंडमेंट एक्ट और प्रस्तावित नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन का विरोध करने के लिए एक कार्यक्रम करने की इजाजत प्रशासन से मांगी थी. वह इजाजत प्रशासन द्वारा दे दी गई थी. परंतु ऐन मौके पर उस इजाजत को रद्द कर दिया गया.
तारीख 19 दिसंबर को मैंगलोर शहर में जो वारदातें हुई, उनकी सच्चाई जानने के लिए एक टीम का गठन किया गया. मैं उस टीम का हिस्सा रहा. टीम के अन्य सदस्यों के साथ हमने घटनास्थल का दौरा किया, पीड़ितों से अस्पताल में मिले तथा कुछ पीड़ितों के घर गए और परिवार के सदस्यों से मुलाकात की. हमने कुछ कागजात भी देखें, इन सब के आधार पर जो हमारी शुरुआती समझ है, वह हम यहां साझा कर रहे हैं.
कुछ सामाजिक संगठनों ने केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए नए सिटीजनशिप अमेंडमेंट एक्ट और प्रस्तावित नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन का विरोध करने के लिए एक कार्यक्रम करने की इजाजत प्रशासन से मांगी थी. वह इजाजत प्रशासन द्वारा दे दी गई थी. परंतु ऐन मौके पर उस इजाजत को रद्द कर दिया गया. इस कारण किसी भी प्रदर्शन का आयोजन नहीं हुआ.
19 दिसंबर को दोपहर विरोध करने के लिए कुछ नौजवान डीसी ऑफिस की तरफ आए. पुलिस ने उन पर हमला किया और उन्हें बुरी तरह पीटा. इससे मामला बिगड़ गया. हमारे सामने कुछ वीडियो प्रदर्शित किए गए, जिसमें साफ दिखाई दे रहा है कि पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर पत्थर फेंके, इस के कारण दोनों तरफ से पथराव होने लगा. पुलिस ने आंसू गैस के गोले छोड़े तथा गोली चलाई. पुलिस की चलाई गई गोली से दो व्यक्तियों की मृत्यु हुई तथा 9 अन्य घायल हुए. कुछ पुलिसवालों को भी पत्थर से चोटे आई परंतु उनमें से कोई भी गंभीर रूप से घायल नहीं था, उन्हें अस्पताल से तुरंत प्राथमिक उपचार के बाद छुट्टी दे दी गई थी.
इसके उपरांत पुलिस द्वारा की गई गोलीबारी में घायल हुए व्यक्तियों का इलाज हाइलैंड अस्पताल में चल रहा था. उस दौरान पुलिस कर्मचारियों द्वारा अस्पताल पर हमला किया गया तथा अस्पताल के भीतर आंसू गैस के गोले दागे गए. इसकी वजह से अस्पताल में भर्ती अन्य मरीजों की तबीयत और ज्यादा बिगड़ गई. पुलिस की यह हरकत कानून, परंपरा और इंसानियत के सभी सिद्धांतों के खिलाफ है.
पूरी घटना देखने के बाद पता चलता है कि प्रदर्शनकारियों ने किसी सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान नहीं पहुंचाया. प्रदर्शनकारी मुस्लिम युवकों ने किसी अन्य समुदाय को निशाना नहीं बनाया. यह कोई सांप्रदायिक दंगा नहीं था.
लेकिन पुलिस कर्मचारियों द्वारा मुसलमानों के स्वामित्व वाली दुकानों पर चुन-चुन कर हमला किया गया तथा दुकानदारों को भी पीटा गया, जिससे यह आभास होता है कि पुलिस सांप्रदायिकता की भावना से ग्रस्त होकर कार्य कर रही थी. जिन लोगों को गोली लगी है, वह उनके शरीर के ऊपरी हिस्से पर लगी है. अर्थात पुलिस द्वारा हत्या करने के इरादे से ही गोली मारी गई थी जबकि पुलिस को प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए यदि बहुत आवश्यक हो और गोली चलानी पड़े तो वह प्रदर्शनकारियों के शरीर के निचले हिस्से की तरफ चलानी चाहिए, ऐसा प्रावधान है.
इसके अलावा जिन लोगों को गोली मारी गई है, उनका प्रदर्शन से कोई लेना-देना नहीं था. मारा गया युवक नौशीन एक वेल्डर का काम करता था, जो दुकान से छुट्टी होने के बाद अपने घर की तरफ जा रहा था, उसकी पीठ पर गोली मारी गई. इसी तरह से जलील जो दो बच्चों का पिता है वह अपने घर के सामने यह देखने के लिए आया था कि क्या हो रहा है, उसकी आंख में गोली मारी गई. अन्य जो लोग घायल हुए हैं, वह भी किसी कामकाज से उस इलाके में आए थे.
पुलिस वालों ने पीटते समय एक विकलांग व्यक्ति को भी बुरी तरह पीटा है तथा उसे घायल हालत में ही सड़क पर छोड़ कर चले गए, जिसे 1 घंटे बाद उसके परिवारजनों द्वारा अस्पताल में भर्ती कराया गया. यह घटना मानवता तथा नागरिकों के मानव अधिकारों के विरुद्ध है.
प्राथमिक तौर पर हमारी समझ है कि पुलिस ने राजनैतिक एजेंडे के तहत एक समुदाय विशेष को सबक सिखाने के तौर पर मानवाधिकारों कानूनों तथा स्टैंडर्ड प्रोसीजर्स का उल्लंघन किया है.
हम मांग करते हैं कि इस घटना की जुडिशल इंक्वायरी कराई जाए और पीड़ितों को तुरंत मुआवजा दिया जाए. जो पीड़ित अस्पताल में अपना इलाज करा रहे हैं, उनके इलाज का सारा खर्च शासन वहन करे. दोषी अधिकारियों के विरुद्ध कार्यवाही की जाए. जिन नौजवानों पर फर्जी मुकदमें डाले गए हैं, वे तुरंत वापस लिए जाएं और पुलिस कमिश्नर पी. एस. हर्षा तथा शांताराम कुंदर इन्सपेक्टर को सस्पेंड कर उनके खिलाफ जांच बिठाई जाय.
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