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जम्मू कश्मीर का विभाजन ग़ैर क़ानूनी – चीन

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जम्मू कश्मीर का विभाजन ग़ैर क़ानूनी - चीन

Suboroto Chaterjeeसुब्रतो चटर्जी

जम्मू काश्मीर में धारा 370 और अनुच्छेद 35ए को गैर कानूनी ढंग से हमारी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद वाली मोदी सरकार के द्वारा जबरन हटाये जाने पर चीन की अधिकारिक प्रतिक्रिया 2019 में ही आ गई थी. चीन ने स्पष्ट शब्दों में कह दिया था कि जम्मू कश्मीर और लद्दाख का विभाजन उसे स्वीकार्य नहीं है.

यहां पर गौर करने की बात यह है कि चीन की चिंता कश्मीर की जनता के मानवाधिकारों के उल्लंघन से ज्यादा लद्दाख के विभाजित क्षेत्रों में ज्यादा है. दरअसल चीन और पाकिस्तान के बीच ओबीओआर (वन बाॅर्डर वन रोड) योजना के तहत काराकोलम होते हुए चीन और पाकिस्तान को जोड़ने वाली सड़क और अन्य सामरिक दृष्टि से लद्दाख एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है.

2019 के बीच चीन के द्वारा की गई सामरिक शक्ति का लद्दाख बाॅर्डर पर प्रदर्शन उसी अधिकारिक प्रतिक्रिया का क्रियान्वयन मात्र है. हालिया चीन और भारत के विदेश मंत्रालय स्तर की बैठक में चीन का इसी बात को दुहराना उसकी राष्ट्रनीति का रेखांकित करती है.

फारूख अब्दुला के बयान को दो कोनों से देखने की जरूरत है. एक यह कि चीन की भारत की कश्मीर नीति के असंतुष्ट होने का राजनीतिक फायदा उठाने की कबायद. दूसरा, जम्मू-कश्मीर और भारत के विलय की शर्तों के उल्लंघन पर हुई उनकी नाराजगी.

इन अन्तराष्ट्रीय एवं अपने ही देश के विशेषाधिकार क्षेत्रों के बीच की सच्चाईयों को अगर थोथे राष्ट्रवाद के नजरिये से न देखकर शुद्ध राजनीतिक दुष्टि से देखा जाये तो बातें स्पष्ट हो जाती है. हर विरोधी स्वर को देश विरोधी करार देना न तो देश हित में है और न ही जनता के हित में. इसके उलट अन्तराष्ट्रीय स्तर पर हमारी फजीहत होने की संभावना ऐसा करने से बढ़ जाती है.

मोदी सरकार ने अपनी मूर्खता में कश्मीर का मसला जो अब तक द्विपक्षीय था, अब त्रिपक्षीय बना लिया है. यहां से इस मामले को सही मायने में अन्तराष्ट्रीय बनने से अब कोई नहीं रोक सकता. अमरीकी विदेश मंत्री माइक पम्पियो का यह बयान की चीन ने भारत की सीमा पर 60 हजार फौजें लगा रखी है, और यह उनकी चिंता का विषय है, क्या कश्मीर मामले को परोक्ष रूप से अन्तराष्ट्रीय मामला बनाने की कोशिश के रूप में नहीं देख जाना चाहिए ? वह भी तब जब चीन संयुक्त राष्ट्र का वीटो पाॅवर से सुसज्जित स्थायी सदस्य है.

चीन ने आज खुल कर जम्मू कश्मीर के विभाजन को ग़ैर क़ानूनी बताते हुए कहा है कि लद्दाख का केंद्र शासित राज्य बनना उसे मंज़ूर नहीं है, और भारत चीन हालिया विवाद का कारण भी यही है.

आप इसे थोथे राष्ट्रवाद के नज़रिये से देखते हुए चीन का हमारे अंदरूनी मामले में दखल कह सकते हैं, लेकिन सच यही है कि धारा 370 के अनुच्छेद 35ए का उल्लंघन ग़ैर क़ानूनी ही नहीं ग़ैर सांविधानिक भी है.

बहुसंख्यकवाद की फ़ासिस्ट राजनीति के क्रिमिनल पैरोकारों ने एक सीमा रेखा लांघी है, जिसका भारी ख़ामियाज़ा भारत को आने वाले दिनों में भुगतना होगा.

रोहिंग्या मुसलमानों पर अत्याचार से लेकर बोट मेन की दुर्दशा पर आंंसू बहाने वाले दोगले बुद्धिजीवी चीन के इस सच बयानी का स्वागत कैसे करेंगे, देखना बाक़ी है.

वैसे, सरकार के इस निर्णय के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगी हुई है, जिसपर अर्नब जैसे अंबानी अदानी के स्वार्थों की रक्षा के लिए सुनवाई करने से फ़ुर्सत मिले तो शायद की जाए. फ़िलहाल, लोयागति पाने के डर से या राज्यसभा की सीट की लालच में मी-लॉर्ड एक ग़ज़ल सुनने में व्यस्त हैं; कभी फ़ुर्सत में कर लेंगे हिसाब आहिस्ता आहिस्ता !

ग्लोबल विलेज की अवधारणा के साथ-साथ आंतरिक मामले का नैरेटिव फ़िट नहीं बैठता. हमारे हुक्मरान अव्वल दर्जे के मूर्ख और क्रिमिनल लोगों के संगठित गिरोह जैसे फ़ैसले ले रहे हैं.

आर्थिक फ़ैसले हो या अंतरराष्ट्रीय संबंध हों, शिक्षा, स्वास्थ्य या कृषि नीति हो, हर फ़ैसले के पीछे बस दो औद्योगिक घरानों का स्वार्थ पूरा करने की निर्लज्ज कुत्ता दौड़ दिखती है. ऐसे में, एक भूखा नंगा कंगाल 80% आबादी वाले देश से चीन तो क्या, नेपाल या भूटान भी नहीं डरता.

हम आत्महत्या की मन:स्थिति में पहुंंच गए हैं. आत्मश्लाघा, आत्ममुग्धता के इस भयावह दौर में हर विकृति पूजनीय हो गई है और हर क्रिमिनल श्रद्धेय. स्वैच्छिक ग़ुलामों के मुल्क को हमेशा किसी विदेशी शासक की ज़रूरत नहीं होती.

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