पं. किशन गोलछा जैन, ज्योतिष, वास्तु और तंत्र-मंत्र-यन्त्र विशेषज्ञ
जग्गी वासुदेव का जन्म 5 सितंबर, 1957 को कर्नाटक राज्य के मैसूर शहर में हुआ था और उसका बाप वासुदेव एक नेत्र चिकित्सक था. जग्गी वासुदेव का बचपन में पढाई की तरफ रुझान नहीं था बल्कि वह जंगलों में भटकता रहता था और सांपों को पकड़ता था (आज भी उसे सांप पकड़ने में महारत हासिल है). 11/12 साल की उम्र से योग का अभ्यास कर रहा है और बाद में जैसे-तैसे करके मैसूर विश्वविधालय से अंग्रजी भाषा में स्नातक की डिग्री हासिल की (कर्नाटक का होने की वजह से कन्नड़ के अलावा भी आसपास के क्षेत्रों की कई भाषायें सहजता से आती है अर्थात 5 भाषाओं (कन्नड़, तमिल, तेलगु, मलयाली, अंग्रेजी) का ज्ञान तो इसे बचपन से ही है (यानि बहुत सी भाषायें जानना कोई बड़ी बात नहीं है).
5.8 फीट की ऊंचाई और 70 किलोग्राम वजन वाले जग्गी वासुदेव की आंंखों का रंग काला और बालों का रंग ग्रे है. भारतीय नागरिकता के साथ हिन्दू धर्म से ताल्लुक रखने वाले जग्गी के पिता का नाम वासुदेव और माता का नाम सुशीला कुमारी है तथा एक भाई और दो बहिनें है, जो शादीशुदा है ! रॉयल इनफील्ड बाइक्स की कई बाइक्स का संग्रह इसके पास है और एक नंबर वाली ढाई सौ करोड़ की संपत्ति है (ये संपत्ति इसके बाप-दादा की विरासत से मिली संपत्ति नहीं बल्कि उन धार्मिक अन्धों द्वारा दी हुई है, जो धर्म के नाम पर धन तो क्या अपनी बहु-बेटियों की इज्जत भी लुटाने को तैयार रहते हैं). बेनामी या दो नंबरी संपत्ति के बारे में कोई अनुमान नहीं है क्योंकि 800 करोड़ तो इसने रैली फॉर रिवर के नाम पर ही इकट्ठा किये थे और कई देशों में इसके फॉउंडेशन के केंद्र भी है. अतः वहां की खाता-बही में इंडिया का कोई कानून लगता नहीं है.
1983 में मैसूर में 25 वर्ष की आयु में ईशा योग केंद्र की स्थापना की और अपने सात सहयोगियों के साथ अपनी पहली योगा क्लास की शुरुआत की (आज इसके पास ढाई लाख स्वयंसेवी (बिना वेतन काम करने वाले) लोग हैं. इससे भारतीय लोगों की मूर्खता का अंदाजा सहज ही हो जाता है). बाद में वह हैदराबाद में भी योगा क्लास का आयोजन करने लगा. तब तक वो पूरी तरह से अपने पॉल्ट्री फार्म पर गुजर-बसर करता था और क्लास के लिये लोगों से पैसे नहीं लेता था क्योंकि उस समय तक उसका उद्देश्य सिर्फ योग सिखाना था. मगर स्पोंसर्स से आने वाले पैसों को देख लालच बढ़ा और ईशा फाउंडेशन की स्थापना हुई (ये एक शुद्ध व्यसायिक संस्था थी, जिसे अब मानव सेवी कहकर धोखा दिया जा रहा है). असल में योग सिखाने की संस्था अलग है, जिसका नाम ईशा योग केंद्र है और वो ईशा फॉउंडेशन के अंतर्गत काम करती है. ईशा योग केंद्र भले ही लोगो को फ्री में योग सिखाती हो, मगर ईशा फॉउंडेशन एक व्यवसायिक संस्था है, जो जड़ी-बूंटियो से लेकर हर वो चीज़ बेचती है, जिसके बदले धन मिलता हो. लेकिन दिखाया ये जाता है कि ये मानवसेवी संस्थान है (ऐसा ही पहले बाबा रामदेव भी करता था).
घने वनों से घिरा नीलगिरि जीवमंडल का एक हिस्सा है, जहांं भरपूर वन्य जीवन है. उसी नीलगिरि पर्वतों की तराई में 150 एकड़ की हरी-भरी भूमि पर स्थित ईशा योग केंद्र का हेडक़्वार्टर है, जहांं पर लोगों की धार्मिक भावनाओं को ठगने के लिये ध्यानलिंग योग मंदिर भी बनाया गया है, जो कि असल में 1999 में जग्गी वासुदेव द्वारा प्रतिष्ठित एक मात्र लिंग है, जिसकी प्रतिष्ठा पूरी हुई है और जो 13 फीट 9 इंच की ऊंंचाई का पारा (Mercury) आधारित लिंग है. और इसके प्रवेश द्वार पर एक सर्व-धर्म स्तंभ भी बनाया हुआ है, जिसमें हिन्दू, इस्लाम, ईसाई, जैन, बौद्ध, सिख, ताओ, पारसी, यहूदी और शिन्तो धर्म के प्रतीक चिन्हों को अंकित किया गया है ताकि सर्व धर्म समन्वय के झूठे सन्देश के साथ सभी लोगों को बराबर रूप से ठगा जा सके और किसी एक विशेष धर्म अनुयायी होने का ठप्पा न लगे.
जग्गी वासुदेव स्वयं को वर्तमान समय का चाणक्य समझता है और वो राजनीतिज्ञों का राजगुरु बनने का सपने भी देख रहा है अर्थात एक राम-रहीम से तो बड़ी मुश्किल से पीछा छूटा था, अब एक और राम-रहीम जग्गी वासुदेव के रूप में आ गया है. इसे केंद्रीय सरकार और मोदी का सीधा सपोर्ट मिला हुआ है. और इसी सपोर्ट का ही नतीजा है कि मोदी की अनुशंसा से इसे संयुक्त राष्ट्र के ECOSOC में विशेष सलाहकार की पदवी मिल चुकी है ! ये पाखंडी सद्गुरु जग्गी वासुदेव, राम-रहीम की तरह ही एक फिल्म (Directed by Scott Carter, Ward M. Powers, and Diane Powers) में अपना डेब्यू भी कर चुका है यानि ये अभिनय में भी माहिर है. और इसके शौक भी किसी अध्यात्म गुरु या योगी वाले नहीं है बल्कि गोल्फ, होप्सकॉच, क्रिकेट, वॉलीबॉल, बिलियर्ड्स, फ्रिसबी और ट्रेकिंग जैसे महंगे शौक हैं, जो इसके सांसारिकता के जाल में जकड़े होने और इसके पाखंडी होने का सबूत है.
जग्गी वासुदेव 8 भाषाओं में 100 से अधिक किताबें लिख चुका है लेकिन मेरा अंदेशा है कि इसने जो भी किताबें लिखी है, उसका वो मूल लेखक नहीं है बल्कि दूसरी जगहों और किताबों से चुराकर इसने वो किताबें लिखी है. और कुछ किताबों में तो आदिवासियों का सैकड़ों साल परम्परागत ज्ञान है, जो इसने उन आदिवासियों को बेवकूफ बनाकर हासिल किया. उन आदिवासियों सबंधी जानकारी आगे लिखूंगा.
असल में ईशा फाउंडेशन को एक मानव सेवी संस्थान के मुखौटे के पीछे छिपाया गया है, जो भारत के सीधे सरकारी सपोर्ट के कारण भारत सहित संयुक्त राज्य अमेरिका, इंग्लैंड, लेबनान, सिंगापुर और ऑस्ट्रेलिया में भी अपनी शाखायें खोल चुका है. राजनीतिक सपोर्ट तो इतना जबरदस्त है कि स्वयं मोदी इसे प्रमोट करते हैं (पहले कभी आशाराम को भी करते थे, अब बेचारा जेल में है. देखते हैं इसका नंबर कब आयेगा ?). इस जग्गी वासुदेव का असली काम ईशा फाउंडेशन के नाम पर आदिवासियों की जमीनें हड़पना है और इसके लिये फाउंडेशन के अंतर्गत योग सिखाने की नौटंकी की जाती है तथा सामाजिक और सामुदायिक विकास योजनाओं की आड़ में गरीब आदिवासियों की जमीनें हथियाई जाती है.
इस जग्गी वासुदेव ने जंगली जडी-बूंटियो और फल-फूल पौधों की उपयोगिता का ज्ञान बेचारी सीधी सरल और अशिक्षित आदिवासी महिलाओं से उनका सैकड़ों साल पुराना परम्परागत ज्ञान बड़ी चालाकी से मुफ्त में सीख लिया और फिर उनकी जमीनें योग आश्रम के नाम पर हथियाकर उनको जंगलों में जाने से भी रोक दिया. जब उन आदिवासी महिलाओं ने जंगल की उपज बटोरने की कोशिश की तो अपनी राजनीतिक शक्ति का इस्तेमाल कर सीधा सरकारी आदेश निकलवा दिया, जिससे वन-विभाग ने भी उन आदिवासी महिलाओं को गैर-कानूनी घुसपैठिया घोषित कर दिया अर्थात ये एकदम स्पष्ट है कि सरकार इस जग्गी वासुदेव को सीधा सपोर्ट कर रही है (रामदेव को भी पहले नेता और सरकार ऐसे ही सपोर्ट किया करते थे).
जिन आदिवासियों ने अपने परम्परागत ज्ञान पर कभी अपना निजी अधिकार नहीं जताया, उस ज्ञान को हासिल कर जग्गी वासुदेव उसका व्यावसायिक इस्तेमाल कर रहा है (रामदेव की तरह ही जड़ी-बूंटियों को बेच रहा है) और इस तरह प्रकृति द्वारा सबके काम आने वाली संपदा और आदिवासियों के परम्परागत ज्ञान पर इसने कब्ज़ा कर मुनाफा कमाने वाली वस्तुओं में परिवर्तित कर लिया और दबा के मुनाफा काट रहा है.
ऐसा ही एक केस तमिलनाडु की एक आदिवासी महिला का भी है, जो काफी चर्चित है और इस जग्गी वासुदेव के सामने अपनी जमीन के लिये कानूनी दावा कर चुकी है. उसके अनुसार मुत्थुस्वामी गौंडर ने 44 एकड़ ज़मीन अपने लिये काम करने वाले 13 आदिवासीयों को भू-दान के रूप में देकर उनके नाम का पट्टा किया था, मगर वे इस पर कभी अपना अधिकार नहीं समझे और इसी 13 आदिवासियों में एक पट्टा उस आदिवासी औरत मुताम्मा के दादा को मिला था, जिसके फटे-पुराने टुकड़े अब भी उसके पास मौजूद है. चूंंकि ये मामला चर्चित हो गया इसलिये ये भुगता जा रहा है. वरना ऐसे लोगों द्वारा इस तरह के मामले अपनी राजनीतिक शक्ति का इस्तेमाल कर ख़त्म कर दिये जाते है !
जग्गी वासुदेव के विरुद्ध ये कोई एक ही मामला नहीं है बल्कि ऐसे सैकड़ों मामले हैं, जिनमें से एक और मामले में वेलिंगिरी हिल ट्राइबल प्रोटेक्शन सोसायटी ने मद्रास उच्च न्यायालय में एक पीआईएल दर्ज की है, जिसमें उन्होंने इक्काराई पोल्वमपट्टी के पानी से भरी धरती (वेटलैंड) पर आश्रम द्वारा बनाई गई अवैध इमारतों का विरोध किया और उसे हटवाने की मांग की (इसी पीआईएल से कुछ दिन पहले नरेंद्र मोदी इसके आश्रम में गये थे और 112 फुट ऊंचे ‘आदि योगी’ शिव की मूर्ति का उद्घाटन किया था. इस खबर ने बड़ी सुर्खियांं बटोरी थी क्योंकि इस मूर्ति के अवैध निर्माण के साथ-साथ आश्रम द्वारा अतिक्रमण का एक और मामला भी बना).
एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश डी. हरिपारंथमन ने तो प्रधानमंत्री मोदी के नाम खुला पत्र भी लिखकर भेजा था, जिसमें उन्होंने कहा कि जब तमिलनाडु सरकार ने भी जग्गी वासुदेव द्वारा अवैध निर्माण और अतिक्रमण को माना हुआ है तो आज तक एक भी मामले में किसी अतिक्रमण को हटाने का आदेश सरकार द्वारा जारी क्यों नहीं हुआ ? उच्च न्यायालय में ईशा फॉउंडेशन के अतिक्रमण वाली चार याचिकायें आज तक लंबित हैं लेकिन यह दुःख की बात है कि यह मामले पिछले तीन सालों में एक इंच भी पहल इन याचिकाओं पर राजनैतिक दबाव के चलते नहीं हुआ है. यह आदियोगी शिवमूर्ति का अवैध निर्माण इस इलाके के जानवरों और पेड़-पौधों पर विपरीत प्रभाव डालेगा और नोय्यल नदी को भी प्रदूषित करेगा. इस नदी का प्रदूषण तमिलनाडु के संपूर्ण पश्चिमी क्षेत्र को बड़े पैमाने पर प्रभावित करेगा.
अतः आप (मोदी) को ईशा फॉउंडेशन के कार्यक्रमों में नहीं जाना चाहिये क्योंकि आप एक संवैधानिक पद पर हैं (यहांं उन्होंने जग्गी वासुदेव के मोदी के संबंधों पर कटाक्ष भी किया था कि मोदी का आगमन एक गलत सन्देश प्रचारित कर रहा है और इस अवैध निर्माण को वैध करार दे रहा है) लेकिन नरेंद्र मोदी पर इसका कोई असर नहीं हुआ और वह उस विशाल अवैध निर्मित मूर्ति के अनावरण के लिये जग्गी वासुदेव के आश्रम पहुंच गये !
(मोदी के आगमन की पूर्व संध्या पर मुताम्मा की झोपड़ी पर दो पुलिस अधिकारी और चार सिपाही पहुंचे और उन्होंने मुताम्मा को झोंपड़ी में ही नजरबंद कर दिया और कहा कि वह तब तक अपनी झोपड़ी के बाहर नहीं निकल सकती, जब तक कि प्रधानमंत्री चले नहीं जायेंगे क्योंकि मुताम्मा एक संस्था (जो उसकी मदद कर रही है) की मदद से मोदी को काले झंडे दिखाने वाली थी लेकिन उसे गैरकानूनी तरीके से पहले ही नजरबंद कर दिया गया. और काले झंडों से बचने के लिये दूसरे दिन मोदी हेलिकॉप्टर से रवाना हो गये लेकिन दूसरी आदिवासी महिलाओंं ने उस संस्था की मदद से काले गुब्बारे आसमान में उड़ा दिये और प्रधानमंत्री के जाने के तुरंत बाद उच्च न्यायालय में याचिका दर्ज करवायी गयी).
एक और अवैध निर्माण की वजह से हाथियों का परंपरागत पथ बंद हो गया, जिससे वे हाथी अब उस इलाके के गांवों से होकर निकल रहे है और गांववालों के जान-माल के लिये ज़बरदस्त खतरा बने हुए है……कई पर्यावरणविदों ने ये तक दावा किया कि ईशा योग केंद्र वन भूमि पर स्थित है और वह पश्चिमी घाट के वेल्लियानिरी हिल्स में स्थित हाथियों के क्षेत्र (elephant corridor) का अतिक्रमण कर रहा है, जिससे हाथियों की पर्यावरणीय क्षति और मौत हो रही है…… यह मामला इस समय राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) की दक्षिण भारत इकाई के सामने विचाराधीन है !
इस जग्गी वासुदेव के खिलाफ तमिलनाडु जिला अदालत में एक याचिका भी दायर हुई थी जिसमें उस पर ईशा योग केंद्र, कोयंबटूर में दो वयस्क महिलाओं को बंदी बनाकर रखने का आरोप भी लगा हुआ है (इसी याचिका के बाद ये विवादों से घिरा था).
उसके बाद अपनी छवि को चमकाने के लिये जग्गी वासुदेव ने उस पी.आर. कम्पनी को हायर किया है, जिसे मोदी और रामदेव भी कर चुके हैं और उसी पी.आर. कम्पनी का ही ये चमत्कार है कि सोशल मीडिया से लेकर हर उस इंटरनेट माध्यम से जग्गी के वीडियो वायरल किये जा रहे हैं. रामदेव और मोदी के बाद अब जग्गी वासुदेव एक तरह से प्रसार-प्रचार के माध्यमों पर छा चुका है. इसके साथ ही वह देश भर में घूम रहा है और अपनी राजनितिक पॉवर बढ़ाने के लिये मुख्यमंत्रियों से मिल रहा है (ऐसा रामदेव भी कर चुका है) और देश भर की नदियों को बचाने की बात कर रहा है (आपको याद हो तो ऐसी ही बातें 2014 के चुनाव से पहले मोदी भी करते थे). जबकि नदियों के बारे में जो सुझाव जग्गी वासुदेव ने दिये, उनमें कई खामियां थी, जिनके बारे में कई प्रख्यात वैज्ञानिकों और पर्यावरण विशेषज्ञों ने बताया और जग्गी के सुझाव को नकारने की अपील सरकार से की. लेकिन प्रधानमंत्री और दूसरे धनाड्य और शक्तिशाली लोगों का समर्थन प्राप्त होने से उन लोगों की बातें दबा दी गयी. एक आंकलन के मुताबिक जग्गी वासुदेव ने इस नदी वाले जुमले को देकर लगभग 800 करोड़ रूपये इकट्ठा किये, जिसे वो बिना डकार मारे हजम कर चुका है !
अपने आपको धर्मिक सद्गुरु के रूप में बताने वाले इस जग्गी वासुदेव ने आध्यात्मिक जागृति के दो साल बाद शादी की और इसकी पत्नी का नाम विजया कुमारी है. मुझे आज तक ये समझ नहीं आया कि ऐसे सभी फ्रॉड धर्मगुरुओं को हमेशा आत्मिक ज्ञान ही क्यों प्राप्त होता है ? जैसे मुहम्मद को हुआ था और ज्ञान प्राप्त होने के बाद भी वे सांसारिक लिप्साओं और मैथुन संबंधों में इतने उलझे हुए क्यों रहते है ? जबकि आध्यात्मिक ज्ञान और आत्मिक ज्ञान में तो ब्रह्मचर्य सर्वप्रथम नियम होता है !
विजया कुमारी से 1984 में प्रेम विवाह के बाद 1990 में राधे नाम की एक लड़की का पिता भी ये जग्गी वासुदेव बना. जग्गी वासुदेव की पत्नी विजया कुमारी बैंक कर्मचारी थी लेकिन इसने उसकी मृत्यु के बाद ऐसी अफवाहें भी फैलाई कि उसने स्वेच्छा से प्राण त्याग दिये (अब ये तो वही जाने कि एक साधारण बैंक कर्मचारी में ऐसी शक्ति कैसे आ गयी कि उसने महा-समाधि ले ली और मुस्कुराते हुए पहले बताकर अपने प्राण त्यागे). जबकि हकीकतन उस पर अपनी पत्नी की हत्या का आरोप है और अक्टूबर, 1997 में अपनी पत्नी की मृत्यु के बाद बैंगलोर पुलिस स्टेशन में उनके खिलाफ एक शिकायत भी दर्ज की गई, जिसमें उस पर अपनी पत्नी पर दहेज के लिये प्रताड़ित करने का आरोप लगा था. जग्गी की बेटी राधे अब नर्तकी है और एक कर्नाटक शास्त्रीय गायक संदीप नारायण से विवाहित है.
जग्गी के बारे में एक और मिथक ये भी है कि उसकी तीन जन्मों के बाद वापसी हुई है. पहले जन्म में एमपी का सपेरा था और दूसरे जन्म में शिव भक्त बना और तीसरे जन्म में जग्गी हुआ है. और उसे ये ज्ञान उसके गुरु पलनी स्वामी ने उसके माथे से अपनी छुआते ही प्राप्त हो गया और उसके गुरु उसके सामने आदियोगी के रूप में उसके सामने आये थे (ऐसी लाखों कहानियांं भारतीय साहित्यों में भरी पड़ी है लेकिन अंध-धार्मिक भारतीय आज भी ऐसी कपोल कहानियों पर विश्वास करते हैं, ये सबसे बड़ी विडंबना है. ऐसी ही मिलती-जुलती कहानी मुहम्मद की भी थी, जिसमें उसे गुफा में ध्यान लगाने से अल्लाह साक्षात् आकर आयत बताता था जबकि ये अब किसी से छुपा हुआ नहीं है कि वो अल्लाह असल में ईरानियों का नुमाइंदा और ईसाई नौफल था) और आत्मज्ञान के प्राप्त होते ही जग्गी वासुदेव सद्गुरु बन गया (कमाल की बात है मैं लगभग 20 सालों से ज्यादा समय से त्राटक कर रहा हूंं और कुण्डलनी पर ऊर्जा केंद्रित कर सकता हूंं, मगर मुझे आज तक ऐसा ज्ञान प्राप्त नहीं हुआ).
असल में ऐसे ठगों के पास काल्पनिक कहानियांं रचने वाला बहुत ही प्रबुद्ध दिमाग होता है, जिसके सहारे ये अपनी पकड़ लोगों के दिमाग में बनाकर उन्हें अपना अंधभक्त बना लेते हैं. और फिर आस्थाओं और भावनाओं की दुकान सजाकर अपना पाखंड चलाते हैं. अब ये आप पर निर्भर करता है कि आप ऐसे पाखंडी बाबाओं के चक्कर में मुर्ख बनकर अपना जीवन बिताना चाहते हैं या समझदार होकर आस्था और धार्मिक भावनाओं से ऊपर उठकर सच से साक्षात्कार करना चाहते हैं !
Read Also –
12 अगस्त : डिस्कवरी चैनल पर जंगलों में हाथी का मल सूंघते मोदी
माजुली द्वीप के अस्तित्व पर मंडराता संकट हमारे लिये एक चेतावनी है
जननायक महिषासुर बनाम देवी दुर्गा
हिमा दास : The Dhing Express
[ प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर पर फॉलो करे.]
Unknown
April 6, 2020 at 8:58 pm
Maine aj tk tere se bada murkh nahi dekha,isiliye tuihe 20 sal se loi gyan hasil nhi hua..
Unknown
April 6, 2020 at 9:04 pm
Lagta h tujhe har mahan logo se jalan hoti h,apne jivan me khud kuch nhi kr saka isliye aise ghatiya blog likh k pet bhar rha h chutiya ..saram kar ya dub mar
Anil kumar
August 9, 2020 at 10:54 am
gyan ese nahi milta h usme apne ap ko bbhi bhu jana padta h or tu to dusro m burai nikall raha h bina gyan k
Rohit Sharma
August 9, 2020 at 4:47 pm
आपको कितना ज्ञान है मान्यवर, वह तो यहां छलक रहा है. अगर आप के पास.कोई सवाल हो तो कहें अन्यथा आप अपने ज्ञान का पिटारा यहां न छलकाएंं.
Vagish kumar
October 25, 2020 at 4:56 pm
आपने जितना लिखा उसमे आदिवासियों की जमीन हड़पने की बात सही है। अफसोस!! इस देश में लोग सिर्फ सोशल मीडिया में उलझे हुए है, जमीनी हकीकत का उन्हें अंदाज़ा नहीं की कितने धर्मगुरुओं ने ना सिर्फ गरीबों की जमीन खाई हैं बल्कि बेटियों की इज्जत के साथ भी खिलवाड़ किया है। ब्योहरी मध्य प्रदेश की एक घटना तो खुद मुझे पता है।
Karmajit Kumar
May 9, 2021 at 7:56 am
Bhut badhiya mere bhai jo apne sahi jankari di mujhe bilkul ye maloom nhi tha main to bhut video Sadhguru ka dekhata tha but jab bhi we unrealistic bat krte jaise apne wife ke bare me ya apne pichale janmo ke bare me ya apne ayasi shaukho ke bare me to mujhe bilkul achha nhi lagta tha
Ager inhe koi sunta hoga to jrur gaur kiya hoga ki ye answer dene ke bajay ghuma firakar jyada logo ko or confused kr dete h
Thanks bhai mujhe inse bachane ke liye
Ye sab kalyug ke danav h jo kewal uper se ram bhes me h or ander se kitne masoomo ke sath darindagi karte h🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏