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इतिहास के सबक : अभी भी वक्त है – दुनिया के मजदूरों एक हों

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इतिहास के सबक : अभी भी वक्त है - दुनिया के मजदूरों एक हों

Manmeet

मनमीत, स्वतंत्र पत्रकार

फासीवादी सरकार वहां कायम होती है, जहां समाज जाहिल होता है. एक जाहिल समाज हर काल में तानाशाह सरकार के लिए उपजाऊ भूमि तैयार करता है.

मैं उसी दिन समझ गया था कि बुरे दिन आने वाले हैंं, जिस दिन मेरा साथी विश्वविद्यालयों में 200 मीटर का झंडा और मुख्य गेट के बाहर टैंक खड़े किए जाने पर ताली बजा रहा था, आज वो बेरोजगार हो चुका है. खैर, आप कोई सी भी इतिहास की किताब पकड़ लें, या किसी भी इतिहासकार के पास पालथी मार कर बैठ जाएं, वो बतायेगा कि जिस देश में धर्म के नाम पर सत्ता हासिल की जाती है, वहांं जीडीपी क्या, अमन चैन भी मुक्कमल नहीं रहता. लेकिन, ये बात इसलिए किसी के दिमाग में नहीं बैठी, क्योंकि फिर राम मंदिर कैसे बनता ? तीन हजार फीट की मूर्ति कैसे बनती ?

सत्ता में आने के बाद नाजी हिटलर ने सबसे पहले क्या किया ? बॉन विश्वविद्यालय के बाहर टैंक ही तो सजाये थे. फासी मुसोलिनी ने क्या किया ? विएना विश्वविद्यालय में 33 छात्रों का कत्लेआम कराया था और फासीवादी झंडा 250 मीटर खड़ा करवाया था. ऐसा हर तानाशाह करता है. क्यों ? क्योंकि वो धर्म और जातियों के नाम पर सत्ता में तो आ जाते हैं, लेकिन, एक बार आने के बाद फिर देश कैसे चलायें ? क्योंकि उसके लिए तो दिमाग चाहिए न !

और ये भी सच है कि फासीवादी सरकार वहां कायम होती है, जहां समाज जाहिल होता है. एक जाहिल समाज हर काल में तानाशाह सरकार के लिए उपजाऊ भूमि तैयार करता है. ये मैं नहीं कह रहा, इतिहास के सबक कह रहे हैं.

सब कुछ बिकने के कागार पर है. एयर इंडिया, रेलवे, एलआईसी, बीएसनल, हिंदुस्तान पेट्रोलियम. सब कुछ. जीडीपी वेंटिलेटर पर है. रोजगार के आंकड़े मुंंह टेढ़ा किये दम तोड़ चुके हैं. लेकिन, जनता टीवी पर सुशांत राजपूत की मौत के एक्सक्लूसिव डिबेट में आनंदित है. वो भव्य राम मंदिर में भजन की तैयारियों में उत्साहित है. जनता इसलिये खुश है, क्योंकि आज उसके पड़ोसी की नौकरी गयी है. भारत की जनता थाली बजाना चाहती है. कहीं नहीं है, कहीं भी नहीं, लहू का सुराग.

मेरे आसपास बहुत से साथियों की इस बीच नौकरी चली गयी. एक गहरी उदासी छाई है. जो बच गए हैं, उनकी आंखों में डर महसूस किया जा सकता है. एक की अभी कुछ समय पहले ही शादी हुई थी, एक का बच्चा हुआ था. दोनों अब सदमे में है. सबकी अपनी कहानी है.

अभी कुछ दिनों पहले देहरादून से प्रतापनगर जा रहा था. रास्ते में भलडियाना गांव पड़ता है. इस गांव के बाजार में एक छोटा ढाबा है, जिसमें मछली-भात काफी स्वादिष्ट बनता है. अक्सर यहां पर रुकता हूंं. इस बार जिस युवा ने यहां पर मुझे माछा-भात खिलाया वो कुछ दु:खी लगा तो मैंने पूछा.

मैंने पूछा कि ‘यहां पर जो दादा जी खाना खिलाते थे, वो कहांं हैं ?’ उस युवा ने बताया कि ‘वो बीमार हैं.’ मैंने पूछा कि ‘और आपकी तारीफ ?’ उसने बताया ‘मैं वो सेफ हूं, जिसने कभी कज़ाकिस्तान में पीएम नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को खाना खिलाया था.’ उसने मुझे फ़ोटो भी दिखाई. आगे बोला, ‘मैंने दुनिया के कई नामचीन हस्तियों को खाना खिलाया है.’

ये सुनकर मैं दंग. तो यहां कैसे पहुंच गए ? मैंने पूछा. तो बोले, ‘लॉकडाउन से पहले घर आया था. अब जिस कंपनी में कज़ाकिस्तान में था, वो ही बंद है. उन्होंने लौटने के लिए मना किया है. फिर वैसे भी हवाई सफर तो बन्द है ही.’

अंधेरा बहुत गहरा है. एक दूसरे का हाथ मजबूती से पकड़ने का वक्त है. सुशांत सिंह राजपूत और रिया चक्रवती का किस्सा भरे पेट, कमर के पीछे दो तकिया लगा कर ही सुन रहे हो न. अभी भी वक्त है – दुनिया के मजदूरों एक हों.

लीजिये एक कविता पढ़िए. ये कविता मार्टिन निमोलर ने तब लिखी थी, जब जर्मनी में हिटलर का भौकाल था –

पहले वो आए कम्युनिस्टों के लिए
मै खामोश रहा, क्योंकि मैं कम्यूनिस्ट नहीं था
फिर वो ट्रेड युनियन वालों के लिए आए
मै खामोश रहा, क्योंकि मैं ट्रेड युनियन में नहीं था
फिर वो यहूदिओं के लिए आए
मै खामोश रहा, क्योंकि मैं यहूदी नहीं था
फिर वो मेरे लिए आए
अब बोलने के लिए कोई नहीं बचा था.

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