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राजा का ऐलान था…

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राजा का ऐलान था...
राजा का ऐलान था…

राजा का ऐलान था
हमें राष्ट्र को शक्तिशाली बनाना है.
इसलिए हर एक को,
हर एक पर नज़र रखनी होगी
और सब पर राजा की नज़र होगी.
आज से सभी नागरिक संदेहास्पद माने जाएंगे.

राजा ने राष्ट्र को संबोधित किया-
‘राष्ट्र को महान बनाने के लिए
जागना बहुत ज़रूरी है,
इसलिए फिलहाल नींद पर
पाबंदी लगाई जाती है.’

संदेह राष्ट्र को कमज़ोर बनाता है
इसलिए दर्शन और कविता पर
पाबंदी लगा दी गयी

संदेह तो इतिहास से भी पैदा होता है
लेकिन राष्ट्र को शक्तिशाली बनाने के लिए
इतिहास ज़रूरी है.

राजा ने सर झटका !
कहीं यह संदेह उसे कमज़ोर न बना दे ?

उसने आदेश दिया कि संदेह को
इतिहास से बाहर निकाल दिया जाय.
और इस तरह एक शक्तिशाली राष्ट्र का निर्माण हो गया;

लेकिन,
नींद पर पाबंदी के कारण सपने सिकुड़़ने लगे.

दर्शन बिना मानव-गुरुत्वाकर्षण के यहां वहां भटकने लगा.
कविता मानवीय गर्माहट के लिए तरसने लगी.
संदेह बेचैन होने लगा…

शक्तिशाली राष्ट्र में इनका प्रवेश अब ज़रूरी बन गया.
इसके लिए संकरे व गुप्त रास्ते की खोज की गयी.
लेकिन सवाल यह था कि
सबसे पहले कौन प्रवेश करेगा इस शक्तिशाली राष्ट्र में ?

काफी माथापच्ची के बाद तय हुआ-
पहले स्वप्न, फिर कविता,
उसके बाद दर्शन और फिर संदेह.

अब इस शक्तिशाली राष्ट्र में
राजा की इजाज़त के बिना
स्वप्न, कविता, दर्शन और संदेह
अपना गुप्त डेरा डाल चुके थे.

स्वप्न ने लाल हो चुकी आंखों पर हमला बोला
कविता ने प्रवचनों को निशाना बनाया.
दर्शन ने धर्म सभाओं को उलट दिया.
और संदेह ने गली नुक्कड़ों पर जमकर उत्पात मचाया.

राजा बेचैन था
उसका शक्तिशाली राष्ट्र कमज़ोर हो रहा था
उसके वैज्ञानिक अभी तक
उस बम का अविष्कार नहीं कर पाए थे
जिससे वह स्वप्न, कविता,
दर्शन व संदेह को नेस्तनाबूद कर दे.

राजा के सैनिक जिस भी व्यक्ति को पकड़ते
स्वप्न, कविता, दर्शन और संदेह उछलकर
दूसरे इंसान में प्रवेश कर जाते.

राजा घबराया और डरा हुआ था
अब उसका राष्ट्र ही नहीं,
वह खुद इतना कमज़ोर हो चुका था
कि उसे अपने ही अस्तित्व पर संदेह होने लगा था
उसकी आंखों के सामने उसका
शक्तिशाली राष्ट्र धराशायी हो रहा था.

और घबराया राजा
अब किसी संकरे और गुप्त रास्ते की तलाश में था…

  • मनीष आजाद

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