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बुलडोज़र वाली संघी कार्रवाई का जन्मदाता है इज़राइल

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अपने देश में कुछ महीनों से तेज़ हुई बुलडोज़र वाली कार्रवाई किसके दिमाग़ की उपज है ? ऐसी कार्रवाई का जन्मदाता है इज़राइल. 1945 में ‘इम्युनिटी डिफेंस रेगुलेशंस’ पास कर उसे इज़राइली संविधान के अनुच्छेद 119 का हिस्सा बना लिया गया. इसके अनुसार, ‘कोई भी शख्स तोड़-फोड़, हिंसा करता हुआ पाया जाए, अथवा उसके हिंसक कार्रवाई में शामिल होने का शक भर हो, उसके मकान को ढहा देने का अधिकार शासन को है.’ मगर, बुलडोज़र बाक़ी दुनिया बर्दाश्त नहीं करेगी.

बुलडोज़र वाली संघी कार्रवाई का जन्मदाता है इज़राइल
बुलडोज़र वाली संघी कार्रवाई का जन्मदाता है इज़राइल
पुष्परंजन, EU एशिया न्यूज़ नेटवर्क के दिल्ली स्थित संपादक, वरिष्ठ पत्रकार एवं विदेश मामलों के जानकार

हमने इन्हें राजनीतिक रूप से शून्य और मृतप्रायः मान लिया था. फिर अचानक एक चेहरा देखा बुलडोजर के सामने. निडर, निर्भीक. ऐसी भंगिमा, जैसे महिषासुरमर्दिनी किसी दमनकारी दानव के आगे खड़ी हो. जहांगीरपुरी की वह तस्वीर इतनी वायरल हुई कि दुनिया के कोने-कोने में समकालीन राजसत्ता के सितम की दास्ताँ ज़ेरे बहस हो गई. सितम नहीं होता, तो देश के सुप्रीम कोर्ट को दखल देने की ज़रूरत नहीं पड़ती.

रामनवमी का जुलूस पुलिस सुरक्षा में निकले. पथराव, फायरिंग, हाकी स्टिक से लेकर तलवारें तक भाँजी जाएँ, और दूसरे दिन पता चलता है कि उस शोभा यात्रा को शासन की ओर से अनुमति ही नहीं थी. दिल्ली पुलिस फिर सुरक्षा क्यों दे रही थी उस शोभा यात्रा को ? गृह मंत्रालय में वो कौन लोग हैं, जो बड़े अफसरों व वर्दीधारियों को निलंबन से बचा रहे हैं ?

पहले इंदौर, भोपाल, उज्जैन, खरगोन में बुलडोजर की कार्रवाई, फिर दिल्ली में उसकी प्रशासनिक पुनरावृत्ति. अर्थात, जिस इलाके़े में पथराव हो, गुंडा तत्व कोई कांड करे, उस इलाक़े को अतिक्रमण हटाने के नाम पर बुलडोजर से रौंद दो. इस देश में एक नये क़िस्म का क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम दरपेश है, जो सात लोक कल्याण मार्ग की सहमति से आयद हुआ है.

सत्ताधारी इन बातों के आदी हो चुके हैं कि अधिक से अधिक सोशल मीडिया पर लोग मज़म्मत करेंगे. राहुल गांधी कड़ी निंदा करेंगे, कांग्रेस, सपा व टीएमसी फैक्ट फाइंडिंग टीम भेजेगी. ये सब हुआ भी. असदुद्दीन ओवैसी ने तुर्कमान गेट से जहांगीरपुरी की तुलना कर यह बताना चाहा कि हम मुद्दा घुमा देने में माहिर हैं. मुसलमानों को लगना चाहिए कि कोई उनकी ओर से बोला तो. मगर, किसी ने कल्पना नहीं की थी कि इन बयानबाज़ियों के बरक्स वृंदा करात जैसी जीवट महिला अकेली बुलडोजर के आगे यकायक खड़ी हो जाएगी.

जेएनयू के दिनों में जब भी हम स्ट्रीट थिएटर में हिस्सा लेते, शैलेन्द्र का एक गीत ज़रूर गाते थे- ‘तू ज़िंदा है, तू ज़िन्दगी की जीत में यक़ीन कर/अगर कहीं है स्वर्ग तो, उतार ला ज़मीन पर.’ दशकों बाद आज उस गीत की याद इसलिए आ रही है, क्योंकि हमने इस देश की राजनीति में वामपंथ को लगभग मृत सा मान लिया था. वामपंथी सोच को केरल में थोड़ी-बहुत साँस लेते देखना भी बहुतों को बर्दाश्त नहीं. जहांगीरपुरी में प्रतिरोघ के बाद क्या वामपंथी राजनीति के फ़िर से प्रस्फुटित होने की संभावना बनने लगी है ? इस सवाल को मैं यहीं छोड़े जा रहा हूं.

सवाल प्रतिपक्ष के उन नेताओं से भी है, जो ट्विटर-फेसबुक को ही प्रतिरोध का माध्यम मान बैठे हैं, जिन्होंने सड़क पर उतरना लगभग छोड़ दिया है. जो जहांगीरपुरी में जांच टीम का हिस्सा बनना चाहते हैं, मगर जो सौ के लगभग परिवार उजाड़ दिये गये, उनके आबोदाना-आशियाना के उपाय नहीं ढूंढ रहे. अरे, आपके सरकार विरोधी बयानों का फोटो फ्रेम बनाकर रखें क्या ? जो उजड़ चुके, उनके लिए कुछ पैसे का इंतज़ाम करो, ताकि वो दो जून रोटी खा सकें.

ऐसा नहीं है कि जो कुछ भारत में हो रहा है, उससे ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन अनभिज्ञ हों. इसे संयोग भी न मानें कि गुरूवार को गुजरात के पंचमहल स्थित जेसीबी फैक्ट्री में एक बुलडोजर पर चढ़कर बोरिस जॉनसन फोटोऑप करा रहे थे. पश्चिम की जेबीसी व बुलडोजर निर्माता कंपनियाँ तेज़ी से भारतीय बाज़ार में पसरी हैं.

इनमें ब्रिटिश कंपनी जेसीबी का भारतीय अधोसंरचना के क्षेत्र में दबदबा है. जेबीसी व बुलडोजर आज की तारीख़ में न सिर्फ़ निर्माण के काम आ रही हैं, विध्वंस के रूप में इन मशीनी दैत्यों की पहचान भारत में बनने लगी है. विध्वंसकारी सत्ता भी व्यापार का अवसर देती है, अहमदाबाद एयरपोर्ट पर उतरे बोरिस जॉनसन ने अच्छे से महसूस किया होगा.

यूपी चुनाव के बाद सत्ता पक्ष ने मान लिया है विपक्ष के मनोबल को तोड़ने और त्वरित कार्रवाई के लिए बुलडोजर का अधिकाधिक इस्तेमाल किया जा सकता है. बुलडोज़र से दहशत, दबदबा का सृजन होता है, इस मनोविज्ञान को ‘बाबा बुलडोजर नाथ‘ ने पकड़ लिया है.

यूपी चुनाव के दौरान सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर वो इसी नाम से प्रसिद्ध हुए थे. लेकिन क्या यह नाकारात्मक नहीं है ? होता, तो मानवाधिकार के लिए लड़नेवाले बोरिस जॉनसन कैमरे के सामने बुलडोज़र पर फांदकर चढ़ने से परहेज़ करते क्योंकि यह सब देखकर भारतीय सत्तापक्ष प्रसन्न होता है. कूटनीति में मार्केटिंग के इस प्रछन्न हिस्से का प्रवेश हो चुका है.

कोई पूछ सकता है कि पत्थरबाज़ी या दंगा-फसाद के अभियुक्तों के मकान तुरंत-फुरंत ढहा देने का प्रावधान भारतीय दंड संहिता में है क्या ? सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय बेंच के जस्टिस एल.एन. राव व बी.आर. गवई ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से यही प्रश्न किया था. उत्तरी दिल्ली नगर निगम की ओर से उपस्थित सॉलिसिटर जनरल से पूछा गया कि यदि जहांगीरपुरी में फुटपाथ व सड़क का अतिक्रमण हो रखा था, तो उसे ख़ाली कराने के वास्ते क्या कोई नोटिस पहले से जारी की गई थी ?

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के पास इस प्रश्न का जवाब नहीं था. मगर कोर्ट को सॉलिसिटर जनरल ने दूसरी दलील दी. उन्होंने मध्यप्रदेश के खरगोन में रामनवमी के दिन हिंसा के बाद पुलिस कार्रवाई का उदाहरण दिया. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के अनुसार, ‘खरगोन में मध्यप्रदेश शासन ने 88 हिन्दुओं और 26 मुसलमानों के घर बुलडोजर से ढहा दिये थे. मगर, जहांगीरपुरी में बुलडोज़र से मकान गिरा देने की कार्रवाई को कम्युनलाइज़ किया जा रहा है. सवाल कुछ और जवाब उससे बिल्कुल अलग.

राजनीति में बुलडोज़र को जब बढ़ाये रखना है, तो संभव है आने वाले दिनों में हमें-आपको भारतीय दंड संहिता में बदलाव दिखे. यह सवाल प्रतिपक्ष संसद में पूछ सकता है कि दंगा-फसाद वाले इलाका़े में सरकार ने 2014 के बाद कितने घरों को बुलडोज़र से ढहा दिये ? इन आंकड़ों से ही तय हो जाएगा कि डबल इंजन की सरकार जहां-जहां है, वहां अबतक आईपीसी का कितना पालन, और दुरूपयोग किया गया है.

मध्यप्रदेश के बडवानी और खरगोन में 11 अप्रैल को रामनवमी के जुलूस निकालने को लेकर हुए बवाल में दो बसों को आग लगा दी गई, जमकर पथराव हुए. तब प्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने कहा था कि जिस-जिस घर से पत्थर आये, उन घरों को पत्थर के ढेर में बदल दिया जाएगा. अगले दिन अक्षरशः वैसा ही हुआ.

सवाल यह है कि अपने देश में कुछ महीनों से तेज़ हुई बुलडोज़र वाली कार्रवाई किसके दिमाग़ की उपज है? ऐसी कार्रवाई का जन्मदाता है इज़राइल. 1945 में ‘इम्युनिटी डिफेंस रेगुलेशंस‘ पास कर उसे इज़राइली संविधान के अनुच्छेद 119 का हिस्सा बना लिया गया. इसके अनुसार, ‘कोई भी शख्स तोड़-फोड़, हिंसा करता हुआ पाया जाए, अथवा उसके हिंसक कार्रवाई में शामिल होने का शक भर हो, उसके मकान को ढहा देने का अधिकार शासन को है.’

इससे अलग, इज़राइली सेना को यह अधिकार संविधान ने दे रखा है कि ज़रूरत पड़ने पर वह किसी भी बिल्डिंग को धराशायी कर सकती है. इज़राइल में ‘प्लानिंग एंड बिल्डिंग लॉ-1965‘ भी आयद है, जो इज़राइली शासन को यह अधिकार देता है कि कोई व्यक्ति बिना अनुमति निर्माण करता है, उसे स्थानीय पालिका या शहर के मेयर के आदेश से ढहाया जा सकता है. बिना अनुमति ऐसे निर्माण दो वर्षों के लिए जब्त किये जा सकते हैं. इज़राइल ने फिलस्तीनियों के विरूद्ध गाज़ा पट्टी, रमाला, वेस्ट बैंक के सीमाई इलाक़ों और जेरूसलम में इस का़नून का मनमाने ढंग से दुरूपयोग किया है, यह सर्वविदित है.

अप्रैल 2017 में नेतन्याहू सरकार ने ‘कमिनित्ज़ लॉ’ जैसे कुख्यात का़नून को इज़राइली संसद ‘क्नेसेट’ में पास कराया था. जुलाई 2019 में भी पूर्वी जेरूसलम में फिलस्तीनी आबादी को हटाने के वास्ते संविधान संशोधन 116 पास कराया गया. सरकार का आकलन था कि इज़राइल में बसी अरब मूल की आबादी के 50 हज़ार से अधिक घर बिना अनुमति वाले हैं, जिन पर ‘कमिनित्ज़ लॉ’ अमल कर त्वरित कार्रवाई करनी है. कमिनित्ज़ क़ानून का सबसे कठोर पहलू यह है कि जिसका भी घर शासन ढहाएगा, प्रभावित को बतौर एक लाख डॉलर का ज़ुर्माना भी भरना होगा.

इज़राइल का एक मरूस्थलीय इलाका़ है निकाब, जहां ‘अरब बेदों’ मूल के लोग अधिक बसे हुए हैं. खि़रबत-अल वतन, अल बक़ाया, अल ग़रीबी, रस अल-जरबा, ओम बेदों जैसे 45 गांवों में दो लाख 40 हज़ार आबादी की साँसें ‘कमिनित्ज़ लॉ’ की वजह से अँटकी हुई हैं. इनमें से 76 हज़ार फिलस्तीनी बेदों हैं, बाक़ी इज़राइली. 2019 में केवल निकाब के 2 हज़ार 241 मकानों को इज़राइली शासन ने ढहा दिया था.

2020 में पूर्वी जेरूसलम के 170 मकानों को मलबे में बदल दिया गया, जिससे 400 फिलस्तीनी परिवार बेधर हो गये. पूर्वी जेरूसलम के 50 हज़ार मकानों के बाशिंदे, हर समय उजाड़े जाने की आशंका में जी रहे हैं. ये वो सामान्य शहरी लोग हैं, जिनका हिंसा से कोई लेना देना नहीं. मगर, शासन को जब अतिक्रमण हटाओ अभियान छेड़ना होता है, जाने कहाँ से पत्थरबाज़ी शुरू हो जाती है.

इज़राइली शासन की मनमर्ज़ी कार्रवाई दशकों से अमेरिकी संरक्षण में चलती रही, मगर एक समय ऐसा आया, जब जो बाइडेन स्वयं इज़राइल के के विरूद्ध बोल बैठे. ज़्यादा नहीं, नौ महीने पहले की बात है. 27 अगस्त 2021 को वाशिंगटन में पहली बार प्रधानमंत्री नेफ्ताली बेनेट, जो बाइडेन से मिले. उभयपक्षीय औपचारिकताओं के बाद बाइडेन ने एक अमेरिकी अतिवादी मुतासिर शालाबी का मुद्दा उठा दिया.

शालाबी ने यहूदा गुलेटा नामक एक इजराइली बालक की हत्या 23 जून 2021 को की थी. जवाबी कार्रवाई में वेस्ट बैंक के तुरमुस आइया के पास मुतासिर शालाबी के घर को इज़राइली सैनिकों ने बुलडोज़र से ढहा दिया. दूतावास के रोकने के बावज़ूद एक अमेरिकी नागरिक के घर को इज़राइली सैनिकों ने घूल में मिला दिया था, जो बाइडेन इस हिमाकत को लेकर तपे हुए थे. यह घटना कुछ अजीब सी है. दुनिया चाहे उजड़ जाए, जो बाइडेन को फ़िक्र नहीं, कोई अमेरिकी नागरिक नहीं उजड़ना चाहिए !

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