Home गेस्ट ब्लॉग क्या इसमें कुछ तथ्यात्मक गलतियां है ?

क्या इसमें कुछ तथ्यात्मक गलतियां है ?

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कई लोग जो मोदी का विरोध करते हैं नेहरू को इतना याद करते हैं कि लगता है जैसे मोदी से पहले नेहरू ही प्रधानमंत्री थे. मोदी की तानाशाही के विरोध में कभी इंदिरा गांधी या राजीव गांधी का नाम नहीं लेते हैं. आख़िर क्यों ? उसकी वजह ये है कि नेहरू के बाद भारत के किसी भी प्रधानमंत्री ने लोकतंत्र को मज़बूत करने का काम नहीं किया. बल्कि लोकतंत्र को कमज़ोर ही किया. कॉपी भर जाएगी लिखते लिखते किस तरह इंदिरा और राजीव ने दिन-रात संविधान की उलाहना की और एक बिगड़े हुए शहंशाह की तरह राज किया.

कम लोगों को मालूम है कि Unlawful Activities (Prevention) Act (UAPA) का काला क़ानून इंदिरा गांधी ने प्रधानमंत्री बनने के एक साल के भीतर बना डाला था. इस क़ानून के ज़रिए पहली बार भारत में संगठनों पर प्रतिबंध लगाने का काम शुरू हुआ. पंजाब में आतंकवाद फैलाने का काम इंदिरा गांधी की गंदी राजनीति ने शुरू किया था. इमरजेंसी के बारे में तो ख़ैर जो कहा जाए कम है. सड़क पर उतरी जनता पर इंदिरा ने कितनी बार गोलियां चलवाईं इसका तो हिसाब ही नहीं है.

इंदिरा ने सुप्रीम कोर्ट के जूनियर जज को चीफ़ जस्टिस बना दिया था जिसके चलते सीनियर जजों ने इस्तीफ़ा दे दिया था. कांग्रेस पार्टी के भीतरी लोकतंत्र को भी इंदिरा ने पूरी तरह ख़त्म कर दिया था. पूरी पार्टी इंदिरा की चमची हो गई थी. अहंकारी इतनी थी कि अपनी पार्टी का नाम ही कांग्रेस (इंदिरा) कर दिया था. गुंडे, बदमाशों, अपराधियों को राजनीति में आगे करने का काम ही इंदिरा ने शुरू किया था. और इन गुंडों बदमाशों का लीडर इंदिरा का बेटा संजय गांधी होता था जिसने अपने कैरियर की शुरुआत दिल्ली के कनाटप्लेस में गाड़ियां चोरी करने से की थी.

1987 में राजीव गांधी ने कश्मीर का चुनाव लूट कर वहां उग्रवाद की नींव रखी. राजीव के असम समझौते के चलते उस राज्य में मुसलमानों से नफ़रत बढ़ती चली गई जिसका हश्र आज NRC है. इंदिरा और राजीव दोनों ही सुबह उठते थे और सोचते थे कि आज किस राज्य की सरकार गिराई जाए, किसका मुख्यमंत्री नौकरी से निकाला जाए.

आप सोचते हैं कि मोदी प्रेस के ख़िलाफ़ है ? इंदिरा ने तो इमरजेंसी के दौरान अख़बार के दफ़्तरों में सरकारी बाबू बैठा दिये थे तय करने के लिए कि कौन सी ख़बर छपेगी और कौन सी नहीं. राजीव गांधी ने देश भर में इंडियन एक्सप्रेस समूह के दफ़्तरों पर इनकम-टैक्स के छापे डलवाए क्योंकि वो अख़बार राजीव सरकार के ख़िलाफ़ लिख रहा था. जब तक इंदिरा और राजीव प्रधानमंत्री रहे टाइम्स ऑफ़ इंडिया और इंडिया टुडे जैसे रिसाले उनकी चमचागिरी करते रहे, जैसे आज मोदी की करते हैं.

पंजाब के आतंकवाद के बहाने राजीव ने Terrorist and Disruptive Activities (Prevention) Act (TADA) बना डाला, जो UAPA का भी बाप था. उस शर्मनाक क़ानून के सहारे पंजाब की पुलिस ने वहां के हज़ारों मासूम सिखों को जेल में फेंक दिया था और सैंकड़ों की खुलेआम हत्या की थी. आज सैंतीस साल बाद भी कई सिखों के परिवार वाले उन केसों को अदालतों में लड़ रहे हैं. ये इतना वाहियात क़ानून था कि कुछ सालों बाद इसको ख़त्म करना पड़ा था.

राजीव ने पंजाब में खुला ऑर्डर दिया था कि जिसे चाहो ठोंक दो. पुलिस अधिकारी केपीएस गिल की अगुवाई में हज़ारों निर्दोष ऐसे ही मारे गए. आप सोचते हैं कि मोदी EVM में हेराफेरी करता है ? 1989 में अमेठी में राजीव के ख़ुद के चुनाव में इतनी बूथ कैप्चरिंग हुई थी कि चुनाव आयोग को वहां जगह जगह दोबारा मतदान करवाना पड़ा था. कांग्रेस पार्टी तो हमेशा से बूथ कैप्चरिंग की सरताज हुआ करती थी.

वैसे नेहरू भी दूध के धुले नहीं थे. शेख़ अब्दुल्ला को जेल भेजने वाले नेहरू थे. उनके इस कदम की वजह से कश्मीर में दिल्ली से नाराज़गी की नींव पड़ी थी. Armed Forces Special Powers Act (AFSPA) को नेहरू ने बनाया जो आज भी भारत के माथे पर कलंक है. इस क़ानून की आड़ में भारतीय सेना ने पिछले चौंसठ सालों से उत्तरपूर्व राज्यों में भयानक अत्याचार किया है. सैंकड़ों हत्याएं की हैं, हज़ारों परिवार उजाड़े हैं. आज भी कम से कम चार राज्यों में तीस से अधिक ज़िलों में ये क़ानून लगा हुआ है.

ऐसा नहीं है कि मोदी से पहले भारत स्वर्ग की दिशा में जा रहा था और मोदी ने उसे पाताल की ओर मोड़ दिया. भारत तो दशकों से पाताल की ओर ही भाग रहा है. बस मोदी ने एक की जगह दोनों पैर एक्सिलेटर पर दबा दिये हैं जिससे कि गिरने की स्पीड दोगुनी हो गई है और जिस जगह क्रैश होने जा रहा है वो धरती नंगी आंख से साफ़ दिखाई देने लगी है.

  • अजीत साही

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