हेमन्त कुमार झा, एसोसिएट प्रोफेसर, पाटलीपुत्र विश्वविद्यालय, पटना
आजकल बड़ी चर्चा है कि आरएसएस भाजपा से नाराज है. हालांकि इस नाराजगी का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण करना होगा कि यह एक संगठन के भीतर आनुषंगिक संगठनों की लड़ाई है या यह व्यक्तियों का परस्पर का द्वंद्व है.
जो आरएसएस को जानते हैं, वे जानते हैं कि भाजपा क्या है और आरएसएस से उसका क्या संबंध है. दरअसल, भाजपा और आरएसएस एक ही सिक्के के दो पहलू हैं. आप इसे ऐसे भी कह सकते हैं कि यह एक ही शरीर के दो अंग हैं. आप चाहें तो यह भी कह सकते हैं कि एक शरीर है तो दूसरा उसकी चेतना है.
भाजपा, पूर्व जन्म में जनसंघ, और आरएसएस कभी दो नहीं हो सकते. हो ही नहीं सकते. यह इतना स्थापित तथ्य है कि इस पर बहस की कोई भी गुंजाइश नहीं है. तो, सवाल उठेगा कि तब आजकल हम खबरों में क्या पढ़ सुन और देख रहे हैं ? माननीय नड्डा जी ने चुनाव के पहले क्या और क्यों कहा और चुनाव के बाद माननीय भागवत जी ने क्या कहा, इसे एक बड़े संगठन में व्यक्तियों के, हित समूहों के आपसी द्वंद्व के रूप में ही देखना होगा. एक दूसरे नजरिए से देखें तो सेफ्टी वाल्व के रूप में भी देख सकते हैं.
अब ऐसा है कि चार सौ पार करते करते भाजपा ढाई सौ पार भी नहीं जा सकी और मोदी एंड कंपनी की राजनीतिक विफलता यहां आकर एक्सपोज हो गई. अब बाहर के लोग जितना कांव कांव करेंगे और उससे जनता जितनी प्रभावित होगी, वह आरएसएस के दूरगामी हितों के भी प्रतिकूल होगा. तो, भीतर से ही कांव कांव शुरू कर दो और जनता के बीच यह संदेश पसार दो कि भाई लोगों, हम तो नाराज हैं और इस पराजय के लिए उस अहंकार को जिम्मेदार मानते हैं जो मोदी एंड शाह में आ गया था. यानी, चित भी मेरी और पट भी मेरी.
मणिपुर इतने महीनों से जल रहा है लेकिन अब जब मोदी नामक ऊंट लोकतंत्र नामक पहाड़ के नीचे आया है तो आरएसएस के बड़े लोगों को मणिपुर के पीड़ित याद आते हैं. अब जब, महाराष्ट्र में शिंदे और अजित पवार की चुनावी उपयोगिता सवालों के घेरे में आ गई तो उनसे हुए राजनीतिक मोलभाव पर भी आरएसएस सवाल कर रहा है.
दरअसल, नवउदारवादी शक्तियां बड़ी ही होशियार होती हैं. वे आपस में ही प्रतिपक्ष बन जाती हैं और खूब शोरगुल मचाती हैं और इस प्रक्रिया में वास्तविक प्रतिपक्ष को, उसके सवालों को नेपथ्य में धकेल देती हैं. लोगबाग समझते हैं कि देखो, मोदी के अहंकार को कोस रहे हैं फलां जी, भाजपा को सुधरने की नसीहत दे रहे हैं, अजित पवार जैसे भ्रष्टाचार के आरोपियों और शिंदे जैसे अवसरवादियों से पींगे बढ़ाने पर भी ‘सर जी’ बेहद नाराज हैं.
और हां, भाजपा के वाशिंग मशीन बनने पर भी नाराजगी जताई है उन्होंने. लो जी, जो सवाल दूसरे लोग उठाते, वे घर में ही उठने लगे तो जनता का ध्यान घर के आपसी विवाद पर ही अधिक जाने लगा. परिचर्चा करने वाले पत्रकार बंधुओं को भी मसालों की नई छौंक मिली. यह सवाल अपनी जगह रह गया कि भ्रष्टाचार के आरोपियों को खुद में शामिल कर उन्हें एजेंसियों से राहत दिलवा देना, बहुधा क्लीन चिट दिलवा देना इस देश की न्याय व्यवस्था और जनता से कितना क्रूर मजाक है !
पक्ष और प्रतिपक्ष में क्या तलाशना, घर में ही नायक, प्रतिनायक, खलनायक आदि की पहचान कर लो और माफ कर दो उस घर को. कौन नहीं जानता कि आरएसएस, जो कभी सांस्कृतिक सवालों को लेकर आगे बढ़ा था, समय के साथ कॉरपोरेट नेशनलिज्म का पहरुआ बन गया ?
वही कारपोरेट नेशनलिज्म, जो अंततः कुछ खास अतिशक्तिशाली वित्तीय शक्तियों के हित पोषण में समर्पित हो जाता है, यहां आकर कई तरह के द्वंद्व शुरू होते हैं. वित्तीय शक्तियों के भी आपसी द्वंद्व होते हैं, सत्ता में उनके पैरोकारों की अपनी लॉबी आदि होती है. हितों और स्वार्थों के बीच जब घर्षण होते हैं तो लॉबियां भी भीतर ही भीतर टकराती हैं.
फेस सेविंग मोड आरएसएस और भाजपा के बीच इस तथाकथित विवाद का एक पहलू है, जहां वास्तविक प्रतिपक्ष को विरोध का क्रेडिट न लेने देने की हताश सी कोशिश है और दूसरा पहलू हितों की, शक्तियों के आपसी घर्षण को सामने लाता है.
जे. पी. नड्डा ने चुनाव के पहले जो कहा वह भी इसी मनोविज्ञान से प्रेरित है जिसका स्पष्ट लब्बोलुबाब यही था कि मोदी शाह की जोड़ी सक्षम है, हर चुनौती को झेलने के लिए. तब किसी की बोली नहीं फूटी. जब चुनौतियों के सामने यह जोड़ी कुछ निस्तेज नजर आने लगी तो एकबारगी कई स्वर फूटने लगे.
राजनीति बड़ी ही उलझी हुई चीज है. वह भी तब, जब यह कॉर्पोरेट शक्तियों की दासी बन जाए और उन शक्तियों के भी आपसी हित भीतर ही भीतर टकराने लग जाएं. बाकी, आरएसएस और भाजपा के अंतर्संबंधों पर यह फिल्मी गीत अक्षरशः लागू होता है, ‘सौ साल पहले मुझे तुमसे प्यार था, आज भी है और कल भी रहेगा.’ इस प्यार को ढेरों सलाम !
Read Also –
अरुंधति रॉय पर यूएपीए : हार से बौखलाया आरएसएस-भाजपा पूरी ताकत से जनवादी लेखकों-पत्रकारों पर टुट पड़ा है
RSS पर जब भी खतरा मंडराता है, लेफ्ट-लिबरल और सोशिलिस्ट उसे बचाने आ जाते हैं
18वीं लोकसभा चुनाव के नतीजों से उभरे संकेत
आरएसएस – देश का सबसे बड़ा आतंकवादी संगठन
[ प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]