
भारत के न्यायाधीश बलात्कार या बलात्कार की कोशिश के मामलों पर विभिन्न प्रकार के बयान देते हैं, जो आमतौर पर कानूनी व्याख्या, सामाजिक संवेदनशीलता और सार्वजनिक भावनाओं के इर्द-गिर्द घूमते हैं. इन बयानों में कभी-कभी विवाद भी उत्पन्न होता है, जिसके चलते इनकी व्यापक चर्चा होती है.
हाल ही में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक मामले में फैसला सुनाया, जिसमें कहा गया कि एक नाबालिग लड़की के स्तनों को छूना, उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ना और उसे खींचने की कोशिश करना बलात्कार या बलात्कार की कोशिश नहीं माना जा सकता. इस बयान की तीखी आलोचना हुई.
सर्वोच्च न्यायालय ने इसे ‘असंवेदनशील और अमानवीय’ करार देते हुए इस फैसले पर रोक लगा दी और केंद्र सरकार व उत्तर प्रदेश सरकार से जवाब मांगा. इससे पता चलता है कि कुछ न्यायाधीशों के बयान कानूनी परिभाषाओं पर आधारित होते हैं, लेकिन सामाजिक प्रभाव को नजरअंदाज कर सकते है.
न्यायाधीश अक्सर बलात्कार या उसकी कोशिश की परिभाषा को कानूनी नजरिए से देखते हैं. उदाहरण के लिए, बॉम्बे उच्च न्यायालय की एक महिला न्यायाधीश ने एक मामले में कहा था कि बिना त्वचा के संपर्क के छूना ‘पॉक्सो अधिनियम’ के तहत यौन उत्पीड़न नहीं माना जा सकता. यह बयान भी विवादास्पद रहा, क्योंकि कई लोगों ने इसे पीड़ितों के प्रति असंवेदनशील माना.
दूसरी ओर, छत्तीसगढ़ की आदिवासी महिलाओं के साथ पुलिस के द्वारा बलात्कार और हत्या के खिलाफ जब एक गांधीवादी कार्यकर्ता हिमांशु कुमार ने सुप्रीम कोर्ट में रिट दायर किया तो सुप्रीम कोर्ट के जजों ने उल्टे उन्हें ही झूठा करार देते हुए पांच लाख रुपए का जुर्माना लगा दिया. इससे क्षुब्ध हिमांशु कुमार ने जुर्माना देने से साफ़ इंकार कर दिया.
पिछले साल डॉ. सलमान अरसद ने अपने सोशल मीडिया पेज पर लिखा था, जो आज और भी ज़्यादा सही है. उन्होंने लिखा था- झारखण्ड के दुमका जिले में एक विदेशी महिला के साथ 7 लोगों ने बलात्कार किया, ये 20 से 30 साल के उम्र के लोग हैं. इस केस पर बात करूं उससे पहले मेरे ज़ेहन में ये सवाल आ रहा है कि क्या भारत एक बलात्कारी देश है ? साफ़ कर दूं कि ये सवाल है इलज़ाम नहीं, लेकिन एक भारतीय होने के नाते मुझे इस बात पर बहुत अफ़सोस है कि हमारे देश में प्रतिदिन बलात्कार के 90 केस दर्ज़ होते हैं.
यानि करीब हर 18 मिनट में इस देश का कोई पुरुष कहीं किसी एक महिला से बलात्कार करता है. ये आंकड़ा भी 2022 का है, इस बीच ये और बढ़ गया होगा. ये वो आंकड़ा है जो रिपोर्ट हो रहा है, जबकि मान अपमान के डर से बहुत से लोग केस दर्ज ही नहीं करवाते. यानि अगर सारे ही केस दर्ज होने लगें तो प्रतिदिन बलात्कार का आंकड़ा 90 नहीं बल्कि सैकड़ों में होगा.
कभी कभी किसी ऐसी महिला के साथ बलात्कार हो जाता है जिसकी वजह से मीडिया, प्रशासन और सियासत सबकी नींद खुल जाती है और इन आंकड़ों पर चर्चा होने लगती है, वरना लगता है कि अब हमारा समाज बलात्कार को इग्नोर करने की कोशिश कर रहा है.
फर्नांडा नाम की इस 28 वर्षीय महिला का ताल्लुक स्पेन से है, कहीं कहीं इसे ब्राजीलियन बताया जा रहा है, हो सकता है कि दोनों ही देशों से इनका ताल्लुक हो. ये महिला अपने पति के साथ मोटरसाइकिल पर दुनिया भर में घूमती है और अपने यात्रा अनुभव सोशल मीडिया में शेयर करती है. सोशल मीडिया में इनके लाखों फालोवर्स हैं.
ये दुमका इलाके से गुज़रते हुए अपने टेंट में आराम कर थे, तभी 7 लोगों ने चाकू की नोक पर महिला के साथ बलात्कार किया. फ़िलहाल 4 आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया है, बाकि की तलाश की जा रही है. इस जोड़ी की प्रशासन द्वारा हर ज़रूरी मदद की गयी है, जिसमें इलाज, आराम और आर्थिक सहयोग आदि शामिल है.
अब सोचना ये है कि क्या बलात्कार सिर्फ़ एक व्यक्ति की वजह से कारित होने वाला अपराध है या इसका कोई सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक बैकग्राउंड भी हैं.
हम सब जानते हैं कि हमारे देश में शूद्र जाति की महिलाओं के साथ सदियों से बलात्कार होता आ रहा है, आजाद भारत में इसे रोकने के लिए प्रभावी उपाय किये गये हैं लेकिन इस प्रवृत्ति को पूरी तरह रोका नहीं जा सका है. भंवरी देवी बलात्कार केस में कोर्ट की भूमिका की पड़ताल करें तो सामाज की सामंती मानसिकता की परत दर परत समझना आसन होगा.
आदिवासी इलाकों में हमारे देश के वो नौजवान जो अर्धसैनिक बलों में कार्यरत हैं, महिलाओं के साथ बलात्कार करते हैं. यहां भी प्रशासन और न्यायतंत्र की भूमिका की पड़ताल करें तो आपको हैरानी और निराशा दोनों होगी. सोचिये के अर्धसैनिक बलों का एक जवान एक महिला की योनि में पत्थर भरने की हिम्मत कैसे कर पाता है और प्रशासन कैसे इसके प्रति सॉफ्ट बना रहता है ? ये सब हमारे देश में हो रहा है और अभी तक इसे रोकने के लिए हम कुछ विशेष नहीं कर पाए हैं.
मणिपुर की घटनाओं को आप भूले नहीं होंगे. यहां अनगिनत महिलाओं के साथ बलात्कार हुआ, उनको नंगा घुमाया गया, उनके वीडियो बनाये गये, लेकिन तमाम अपराधियों को आज तक भी सजा नहीं दिया जा सका है. आसिफा बलात्कार के मामले में न्याय को बाधित करने की हर मुमकिन कोशिश हुई और बलात्कारियों के पक्ष में तिरंगा यात्रा तक निकाला गया है.
गुजरात में जब सरकार ने बलात्कार के सज़ायाफ्ता मुजरिमों को रिहा किया तो महिलाओं ने उनकी आरती उतारी, समाज और सियासत ने उनका सम्मान किया है. कश्मीर और पूर्वोत्तर के राज्यों में सैनिकों द्वारा स्थानीय महिलाओं के बलात्कार की ख़बरें आती ही रहती हैं.
हमारे देश में सियासी दलों के साइबर योद्धा हैं, जिन्हें हम उनका आई टी सेल कहते हैं. इनका एक मात्र काम है, अपनी पार्टी के जनाधार को बढ़ाना और पार्टी के विरोधियों को अपमानित करना. आप अगर इनसे बात करें और इनकी समर्थक पार्टी से अलग राय रख दें, तो ये सीधे गाली देते हैं. ये गाली अक्सर जाति और धर्म के आधार पर दी जाती हैं. इनके कारण अक्सर शरीफ लोग या तो लिखने बोलने से बचते हैं या इन्हें इग्नोर करने के रास्ते तलाशते हैं.
आई टी सेल के लोगों की भाषा का अगर विश्लेषण करें तो आपको ये मानना पड़ेगा कि अगर इन्हें अवसर मिल जाये तो ये अपने विरोधी खेमे के लोगों से किसी भी स्तर की दरिंदगी कर सकते हैं. बलात्कार इनमें से एक होगा.
सोचिये, हमारे देश में बहुत से सैनिक, बहुत से राजनेता, छोटे बड़े अपराधी, बहुत से लोग जो प्रशासन में बैठे हैं, इस तरह के अपराध को अंजाम दे रहे हैं. जातीय या मज़हबी दंगा हो या आदिवासी इलाकों में सरकारी कारवाही, महिलाओं का शरीर जंग का मैदान बना दिया जाता है.
जब बलात्कार की घटना इतने बड़े पैमाने पर हो रही हो तो धर्म, संस्कृति, नैतिकता और कानून सब के पड़ताल की ज़रूरत है क्यूंकि कोई पुरुष पैदाइसी बलात्कारी नहीं होता. एक व्यक्ति इसी समाज में एक व्यक्तित्व में रूपांतरित होता है. अब एक व्यक्ति को व्यक्तित्व बनाने में समाज की हर शय अगर भूमिका निभाती है तो एक व्यक्ति के अपराधी बनने में भी समाज के हर शय की परीक्षा भी होनी चाहिए.
ऊपर कुछ प्रतिनिधि घटनाओं का उल्लेख सिर्फ़ इसलिए किया है कि हम जान पायें कि बलात्कार कुछ पुरुषों के मानसिक विकृति का परिणाम भर नहीं है बल्कि हमारे पूरे सामाजिक ताने बाने में इस अपराध को पैदा करने के तत्व मौजूद हैं. बिना व्यापक सामाजिक आपरेशन के इससे मुक्त होना संभव नहीं है.
फर्नान्दा जैसे कुछ लोग जब इस अपराध के लपेटे में आ जाते हैं तो कुछ समय के लिए हमारा प्रशासन जाग जाता है क्यूंकि ऐसे मामलों का सम्बन्ध देश की प्रतिष्ठा से तो है ही, टूरिज्म इंडस्ट्री से भी है, लेकिन जब देश की बेटियां ऐसे अपराधों की चपेट में आती हैं तो उन्हें न्याय पाने के लिए पल पल मरना पड़ता है. उसके बाद भी उन्हें पूर्ण न्याय कभी नही मिलता.
यहां बात सिर्फ़ बलात्कार की गयी है, पर सच तो ये है कि हमारा पूरा सामाजिक तानाबाना ही जनद्रोही हो चुका है. भारत के सन्दर्भ में बात करें तो अमीरपरस्त सियासत अपराधों का सियासी मकासिद के लिए इस्तेमाल करती है, ये भी कि वर्तमान राजनीतिक ढांचे में इस समाज को बेहतर बनाने का कोई रास्ता नहीं है, इससे इतर सोचना ही आज की सबसे बड़ी ज़रूरत है.
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