हिमांशु कुमार
पश्चिम बंगाल में एक महिला डाक्टर के साथ हुए बलात्कार और हत्या के बाद भाजपा पश्चिम बंगाल की तृणमूल सरकार को उखाड़ फैंकने की तैयारी कर रही है. इस घटना को लेकर राष्ट्रपति, सुप्रीम कोर्ट और बंगाल के राज्यपाल तक सक्रिय हो गये हैं क्योंकि भाजपा को इस घटना का राजनैतिक फायदा उठाना है. लेकिन क्या भाजपा सच में बलात्कारों के खिलाफ है ? आइये इसकी जांच करते हैं.
मैं आज ब्रजभूषन शरण सिंह, चिन्मयानन्द, साक्षी महाराज, सेंगर, कठुआ काण्ड, मणिपुर में महिलाओं को नग्न कर घुमाने पर भाजपा की चुप्पी और मिलीभगत पर नहीं लिखूंगा. आज मैं अपनी आपबीती आपके साथ साझा करूंगा.
मैं एक गांधीवादी सामाजिक कार्यकर्ता और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी परिवार से सम्बन्ध रखता हूं. मैंने अपने पिता से सुना कि महात्मा गांधी ने कहा था कि युवाओं को गांवों में जाना चाहिए और वहां रहकर जनता की सेवा करनी चाहिए वरना हमारा लोकतंत्र गुंडों का लोकतंत्र बन जाएगा.
हम लोग 1992 में दिल्ली की अपनी नौकरी छोड़ कर छत्तीसगढ़ के दंतेवाडा जिले के एक गांव में जाकर एक गांधीवादी सेवा आश्रम बना कर आदिवासियों की सेवा करने लगे. 2005 में बड़े पूंजीपतियों की कम्पनियों को आदिवासियों की ज़मीनों को खोदकर मुनाफा कमाने के लिए भाजपा सरकार ने छत्तीसगढ़ में आदिवासियों के साढ़े छह सौ गांवों में आग लगा दी.
भाजपा सरकार ने पांच हज़ार गुंडों को सरकारी बंदूकें दीं और उन्हें विशेष पुलिस अधिकारी (SPO) कहा. इनके साथ पुलिस और अर्ध सैनिक बलों और इन विशेष पुलिस अधिकारीयों ने मिलकर आदिवासियों के हज़ारों घरों को जला दिया. इन सरकारी सिपाहियों ने हजारों आदिवासी महिलाओं के साथ बलात्कार किया और हजारों आदिवासियों की हत्या कर दी.
सुप्रीम कोर्ट ने इस सब के खिलाफ 2011 में फैसला दिया और इसे संविधान विरोधी कहा और आदेश दिया कि इन सभी विशेष पुलिस अधिकारियों से हथियार तुरंत वापिस ले लो.
हम लोग आदिवासियों को खेती का प्रशिक्षण, सामुदायिक स्वास्थ्य, महिला रोज़गार, पर्यावरण संरक्षण तथा बच्चों की पढ़ाई के लिए काम कर रहे थे. हम जिन आदिवासियों की सेवा कर रहे थे, उन्हें ही भाजपा सरकार मार रही थी और बलात्कार करवा रही थी.
मैंने यह सब देखकर चुप ना रहने का फैसला लिया और सर्वोच्च न्यायालय में 522 मामले की सूची जमा की, जिसमें आदिवासियों के घर जलाये जाना, आदिवासी महिलाओं से पुलिस द्वारा बलात्कार करना, उनका अपहरण करना जैसे गम्भीर मामले थे. इन शिकायतों के पक्ष में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की अनेकों रिपोर्टें, मीडिया रिपोर्टें, स्वतंत्र सामाजिक संगठनों की फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्टें मौजूद हैं.
इसके बाद भाजपा सरकार का पहले बुलडोज़र प्रयोग मेरे साथ किया गया. हमारा सोलह एकड़ में फैला गांधीवादी सेवा आश्रम 2009 में भाजपा सरकार ने चार बुलडोज़र लगा कर पूरा मिट्टी में मिला दिया. हमने एक किराए के मकान में अपना काम जारी रखा.
मेरे पास छह आदिवासी लडकियां आयीं. उन्होंने बताया कि उनके साथ विशेष पुलिस अधिकारियों और सलवा जुडूम के नेताओं ने सामूहिक बलात्कार किये हैं. एक लडकी के साथ तो थाने के अंदर ही बलात्कार किया गया था.
मैंने उन लड़कियों की आपबीती पत्र पर लिख कर उनके हस्ताक्षर से पुलिस अधीक्षक को भेजे लेकिन एसपी ने कोई उत्तर नहीं दिया, ना ही कोई जांच करवाई, ना कोई कार्यवाही की. इसके बाद क़ानून के मुताबिक़ इन लड़कियों ने कोर्ट में शिकायत दर्ज़ कराई.
इन लड़कियों को मैंने सरकार और पुलिस से सुरक्षित रखने के लिए अपने किराए वाले घर के सामने टेंट लगा कर अपनी देखरेख में तीन महीने तक रखा. इस बीच सुकमा के जेएमएफ़सी कोर्ट में इस मामले की सुनवाई शुरू हो गई.
सुधा भारद्वाज इन लड़कियों की वकील बनी. लड़कियों के तथा गवाहों के बयान दर्ज हुए और आरोपी सिपाहियों के खिलाफ वारंट जारी हो गये. पुलिस ने अपने जवाब में लिखा कि आरोपी फरार हैं. जबकि वह लोग लगातार पुलिस के साथ मिलकर अपनी ड्यूटी कर रहे थे और तनख्वाह ले रहे थे, नये गांव जला रहे थे. इनमें से एक तो पुलिस अधीक्षक का बाडी गार्ड की ड्यूटी कर रहा था. हिन्दुस्तान टाइम्स ने छापा ‘अब्स्कोंडिंग बट ओन ड्यूटी’ यानी फरार है लेकिन ड्यूटी कर रहा है.
कुछ समय बाद इनमें से एक आरोपी की नक्सलियों के हमले से मौत हो गई. उसकी मुर्ति दोरनापाल में लगाईं गई, जिसका उदघाटन पुलिस अधीक्षक ने किया.
जब बीबीसी के पत्रकार ने पूछा कि यह तो बलात्कार के मामले में आरोपी है, आप इसकी मूर्ति के अनावरण के कार्यक्रम में कैसे शामिल हो सकते हैं ? तो एसपी ने जवाब दिया कि वह लडकी सलवा जुडूम जैसे अच्छे अभियान को बदनाम करना चाहती थी इसलिए हमने उसकी शिकायत पर ध्यान नहीं दिया.
लडकियां धान रोपने के लिए अपने गांव गईं. वहां से उन लड़कियों का पुलिस ने दोबारा अपहरण किया और दोरनापाल थाने में पांच दिन तक अदालत में केस ले जाने की बात कहकर दुबारा सामूहिक बलात्कार किया. मैंने इसकी सूचना फोन पर कलेक्टर एसपी डीजीपी चीफ सेक्रेटरी भारत के गृह सचिव और गृह मंत्री को दी.
इसके एक सप्ताह बाद 2010 में मुझे छत्तीसगढ़ से दस साल के लिए तड़ीपार कर दिया गया. कुछ महीने बाद उन लड़कियों का तीसरी बार अपहरण करके दंतेवाडा ज़िला जज के सामने केस वापिस करवा दिया गया.
मेरे ना रहने के बाद वहां उन लड़कियों की मदद करने वाला कोई नहीं बचा था. कुछ समय बाद जब मेरी शिष्य सोनी सोरी ने आदिवासियों के मानवाधिकार के मुद्दे उठाने की कोशिश की तो पुलिस के एसपी ने उन्हें थाने में ले जाकर उन्हें नग्न किया, उन्हें बिजली के झटके दिए और उनकी योनी और गुदा में पत्थर भर दिए.
सोनी सोरी के भतीजे और आदिवासी पत्रकार लिंगा कोड़ोपी को एसपी के घर ले जाकर मिर्च और सरसों के तेल में डंडा डुबाकर उनके मलद्वार में घुसा दिया, जिससे उनकी आंत फट गई. इसके बाद सोनी सोरी और लिंगा कोड़ोपी को फर्ज़ी नक्सली मामले में फंसा कर जेल में डाल दिया गया.
ढाई साल बाद इन दोनों को सर्वोच्च न्यायालय ने ज़मानत पर रिहा किया. सोनी सोरी के चेहरे पर पुलिस के आईजी ने 2016 में फिर से तेज़ाब डलवा दिया. सोनी सोरी और लिंगा कोड़ोपी सभी मामलों में अदालत से बाइज्ज़त बरी हो गए.
2010 में मैं संयुक्त राष्ट्र संघ गया और वहां इस मामले की फाइल सौंपी. संयुक्त राष्ट्र संघ के मूलनिवासी समिति के उपाध्यक्ष फूलमन चौधरी ने छत्तीसगढ़ का दौरा किया और कहा कि उन्हें आदिवासियों के मानवाधिकारों के हनन की गम्भीर रिपोर्ट प्राप्त हुई हैं. इस पर छत्तीसगढ़ भाजपा के प्रवक्ता सच्चिदानंद उपासने ने कहा कि ऐसे लोगों की माओवादियों से साठगांठ होती है. संयुक्त राष्ट्र संघ के पदाधिकारी को ‘माओवादी’ कहने पर किसी को आश्चर्य नहीं हुआ.
2019 में मैं दोबारा छत्तीसगढ़ गया. मैंने गांव में जाकर आदिवासियों से मिलने की कोशिश की तो पूरा प्रशासन और पुलिस ने वहां के सरपंच को डराया और गांव पर धावा बोल दिया और मुझे सभा नहीं करने दिया गया. मेरे मकान मालिक को डरा कर मेरा सामान किराए के मकान से निकलवा दिया गया.
आज जब भाजपा बंगाल में बलात्कार के मुद्दे पर खुद को महिलाओं का बड़ा हितैषी दिखाना चाह रही है, मुझे यह सब आपबीती याद आ रही है. कोर्ट की कार्यवाही का एक पन्ना संलग्न है.
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