इराक में 39 भारतीय मजदूरों की आईएसआईएस द्वारा की गई निर्ममतापूर्वक हत्या के एकमात्र चश्मदीद गवाह के बयान पर भारत की मोदी सरकार को यकीन नहीं हुआ. यह कोई पहला मामला नहीं है जब भारत की मोदी सरकार अपने ही नागरिकों और संस्थाओं पर यकीन नहीं की है. इससे पहले भी पठानकोट एयरबेस पर हुए आतंकी हमलों की जांच भारतीय जांच एजेंसियों से कराने के बजाय आतंकी हमलों के सहभागी पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई से जांच कराई थी. यह घटनाएं भारतीय नागरिक और भारतीय संस्थाओं पर मोदी सरकार की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े करती है.
दुनिया का शायद ही कोई देश होगा जहां की सरकार अपने नागरिकों और अपनी संस्थाओं के बजाय विदेशी नागरिकों और उसकी संस्थाओं पर ज्यादा यकीन करती हो. मौजूदा मामले में इराक के मोसुल शहर पर आईएसआईएस के कब्जे के बाद जून 2014 में 39 भारतीय मजदूरों को बंधक बनाने की खबर आई थी. इस बीच हरजीत सिंह आईएसआईएस के चंगुल से निकल भागने में सफल रहे थे. भारत आकर हरजीत मसीह ने दावा किया था कि “सभी 39 भारतीय मजदूरों की गोली मारकर हत्या कर दी गई है.”
जिन 39 भारतीयों को आईएसआईएस के आतंकियों ने जून 2014 में अपहृत किया था, उनमें 22 लोग पंजाब के अमृतसर, गुरदासपुर, होशियारपुर, कपूरथला और जालंधर से थे. केंद्रीय मंत्री जनरल वीके सिंह इन 39 भारतीयों की तलाश में मोसुल गए थे.
मंगलवार को विदेश मंत्री ने पूरे घटनाक्रम की जानकारी दी और कहा कि “इन सभी भारतीयों को आईएसआईएस ने ही मारा है.” सुषमा स्वराज के बयान के बाद कई परिवारवालों का कहना है कि “सरकार की ओर से उन्हें लगातार कहा जा रहा था कि वह जिंदा हैं.” पंजाब के जालंधर के देविंदर सिंह की पत्नी ने कहा कि “उनके पति 2011 में इराक गए थे, 15 जून 2014 को आखिरी बार उन्होंने अपने पति से बात की थी. हमें सरकार की ओर से कहा गया था कि वे जिंदा हैं.” विदेश मंत्रालय पिछले साल संसद में जोर देकर कहा था कि “वे जीवित हैं” लेकिन अब कहा जा रहा है कि “उनकी मौत हो गई.” परिवार जनों को इस प्रकार लंबे समय तक धोखे में रखना, एक अमानवीय अपराध से कम नहीं है.
जबकि इराक में 39 भारतीय मजदूरों के साथ अगवा किए जाने के बाद जून 2014 में आईएसआईएस के चंगुल से भागने में कामयाब रहने वाले पंजाब के काला अफगाना गांव निवासी हरजीत मसीह पिछले तीन वर्षों से कहते आ रहे हैं कि आईएसआईएस के आतंकवादियों ने सभी 39 भारतीयों की हत्या कर दी है, पर भारत सरकार ने कभी भी भरोसा नहीं जताया.
मसीह उन 40 भारतीय कामगारों में शामिल थे जिन्हें आतंकवादी संगठन आईएसआईएस ने अगवा किया था. मसीह ने कहा कि “उन्हें मेरी आंखों के सामने मार दिया गया और मैं इतने वर्षों से यह कहता रहा हूं. मुझे हैरानी होती है कि मैंने जो कहा था सरकार ने उसे माना क्यों नहीं ?”
घटना की जानकारी देते हुए मसीह ने कहा कि “भारतीय लोग वर्ष 2014 में इराक में एक फैक्ट्री में काम कर रहे थे. हमें आतंकवादियों ने अगवा कर लिया और कुछ दिनों तक बंधक बनाकर रखा. एक दिन उन्हें घुटने के बल बिठाया गया और आतंकवादियों ने उन पर गोलियां चला दी. मैं खुशकिस्मत था कि बच गया हालांकि एक गोली मेरी जांघ पर लगी और मैं बेहोश हो गया. वह घायल अवस्था में आईएस के आतंकवादियों को किसी तरह चकमा देकर भारत लौटने में सफल रहा.”
इराक में 39 भारतीय मजदूरों की आईएसआईएस द्वारा की गई निर्मम हत्या और पूरे तीन साल तक मामले को जांच के नाम पर उलझाए रखना भारत सरकार के विदेश नीति की घोर विफलता और संवेदनहीनता ही नहीं बल्कि भ्रष्टाचार को भी दर्शाता है, जिसकी घोर आलोचना की जानी चाहिए.
ऐसे वक्त में हम सभी भारतीय मजदूरों के परिवार जनों के प्रति संवेदना प्रकट करते हैं.