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पेपर लीक मामले की पड़ताल : बाजार में खड़ा प्रतियोगिता परीक्षा और उसका रिजल्ट

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पेपर लीक मामले की पड़ताल : बाजार में खड़ा प्रतियोगिता परीक्षा और उसका रिजल्ट
पेपर लीक मामले की पड़ताल : बाजार में खड़ा प्रतियोगिता परीक्षा और उसका रिजल्ट

लोकसभा में जैसे-तैसे सरकार बनाने वाली नरेन्द्र मोदी सरकार के इशारों पर ही तकरीबन हर प्रतियोगिता परीक्षाओं में सेंधमारी कर कमजोर तबके से आने वाले मेधावी बच्चों को किनारे लगा रही है. यह अनायास नहीं है वर्तमान में लोकसभा स्पीकर, जो पिछले कार्यकाल में भी स्पीकर ही थे की ‘मॉडल’ बेटी प्रथम प्रयास में ही आईएएस बन गई. और अब जब विपक्षी नेता राहुल गांधी ने लोकसभा में अभी के नीट पेपर लीक का मामला ज्योंहि उठाया उनका माईक ही बंद कर दिया.

इतना ही नहीं, राज्य सभा में भी कांग्रेस अध्यक्ष मलिकार्जुन खड़गे ने भी ज्योंही नीट पेपर लीक का मामला उठाया, उनका भी माईक बंद कर दिया. मोदी सरकार का यह रवैय्या दिन की तरह साफ दिखाता है कि अब तक तकरीबन 80 पेपर लीक मामले में मोदी सरकार की संलिप्तता है और वह देश के चंद लोगों को ही इन महत्वपूर्ण प्रतियोगिता परीक्षा में सफल होने दे रही है. यह सब हो रहा है कमजोर पृष्ठभूमि के मेधावी छात्रों को साइड करने के सोची समझी साजिश के तहत.

रविन्द्र पटवाल बताते हैं, …तो इस प्रकार आज 18वीं लोकसभा का शुभारंभ सदन की कार्यवाही को कल तक के लिए स्थगित कर हुआ. यह सरकार चल नहीं रही, किसी तरह चलाई जा रही है. दस वर्षों के सांड की तरह इसने सारा खेत चर लिया, आज जब हिसाब-किताब पूछने के लिए देश की जनता ने खंडित जनादेश दिया है, तो सदन को दायें-बायें बहकाकर धक्का देने और लोकतंत्र का प्रहसन किया जा रहा है.

विपक्ष के नेता राहुल गांधी का कहना था कि राष्ट्रपति के अभिभाषण पर नीट परीक्षा में हुए महाघोटाले पर सदन चर्चा करे. यह सवाल विपक्ष से अधिक भाजपा को वोट देने वाले शहरी मध्यवर्गीय तबके के लिए जीवन-मरण का प्रश्न बन चुका है. जब खलासी से लेकर डॉक्टर बनने की परीक्षा, सबमें इतने बड़े पैमाने पर धांधली होगी तो कोई कैसे इस देश में अपने बच्चों के भविष्य पर कालिख पुतने की इजाजत दे सकता है ?

आपकी अगली पीढ़ी का कोई भविष्य ही न हो, चोरों ने हवाई अड्डे, सीमेंट प्लांट, टेलिकॉम ही नहीं आदिवासियों तक को नहीं छोड़ा. लद्दाख वाले तक हफ्तों धरना प्रदर्शन करते रहे. लक्षद्वीप और अंडमान तक में लूट के लिए कथित विकास की वैसी ही गंगा बहाना चाहते हैं, जैसा हम अब बनारस और अयोध्या में थोड़ी सी बारिश के बाद देख रहे हैं. भ्रष्टाचार की गंगोत्री नहीं, यहां जिधर हाथ डालोगे आपका हाथ गंदगी से सन जायेगा. बस मुहं से जय श्री राम वो भी धमकाने वाले स्वर में अभी भी निकलेगा. ये कौन सा नया भारत बना दिया है भाइयों बहनों और मित्रों बोलकर ?

अब तो विपक्ष गरीब के मनरेगा, सेना के अग्निवीर, या यूपी के सिपाही की भर्ती वाले एग्जाम की धांधली पर कुछ बोल भी नहीं रहा. वह तो उन मध्यवर्गीय एवं इलीट लोगों के भविष्य के मुद्दे पर गंभीरता से चर्चा की मांग कर रहा है, जिसमें देश को सही इलाज और चीरा लगाने वाले डॉक्टर मिल सकें, जैसा 2014 से पहले देश को उपलब्ध थे.

इसी नीट के मुद्दे को दबाने के लिए पीएम मोदी ने पहले आपातकाल की बात उठाई, जिसे विपक्ष की मदद से सर्वसम्मति से लोकसभा अध्यक्ष बने ओम बिरला साहब ने सिर्फ दोहराकर अपनी भूमिका को साफ़-साफ़ जगजाहिर कर दिया कि मैं वाकई में क्या हूं. इसके बाद हद तो तब हो गई जब राष्ट्रपति महोदया को भी वही फर्रा पकड़ा दिया गया. ये बताता है कि हमारा लोकतंत्र पिछले दस वर्षों में किस हद तक ऊपर/नीचे जा चुका है (कुछ लोगों को अभी भी ऊपर ही जाता लग सकता है, को ध्यान में रखते हुए.)

चुनाव खत्म होते ही अमूल ने दूध के दाम बढ़ा दिए थे. आज रिलायंस के जिओ ने भी मोबाइल टैरिफ बढ़ा दिए हैं, 16 से 22%. अभी खबर है कि एयरटेल ने भी बढ़ा दिए. वोडा/आईडिया तो वैसे भी इनका मारा है, वो क्यों पीछे रहेगा. सरकार को विपक्ष थोडा सांस लेने दे तो पेट्रोल, डीजल और गैस सिलिंडर के दाम पर भी पुनर्विचार करने से नहीं चूकेगी सरकार.

एनएचएआई पहले ही 44,000 करोड़ रूपये के राष्ट्रीय राजमार्ग को निजी हाथों में बेचने की तैयारी कर चुकी है. मतलब पहले टैक्स पेयर्स के पैसे से किसानों से जमीन लेकर सड़क बनाई, ताकि बाद में अपने चहेतों को सड़क बेच दो. सभी देश में ससुरे वाहन के बिना तो अब चल नहीं सकते. इनकी जेब में पैसे कैसे ? इन्हें लूट लो.

हालांकि गडकरी साहब ने हाल ही में टोल टैक्स वसूलने वालों को नसीहत दी है कि टूटी फूटी सड़क पर टोल न वसूला जाये. गोया, गडकरी साहब कोई धर्माचार्य हों, और वे उपदेश देने के लिए पैदा हुए हैं. अरे यही साहब इस विभाग का मंत्रालय संभालते हैं. बयान देने की जगह पर एक पेन से हुक्मनामें पर दस्तखत मारते और टोल टैक्स बंद हो जाता.

मतलब कि इस देश की जनता (खासकर खुद को पढ़ा लिखा समझने वाले) निहायत ही मूर्ख हैं, उनके भेजे का इस्तेमाल न करना, हमारे इन नेताओं और ठीक से हिंदी भी न बोल पाने वाले अमिश देवगनों के लिए अभी भी काफी फायदेमंद साबित हो रहा है. वहीं पटना के पाटलीपुत्र विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर हेमन्त कुमार झा ने इस मामले की यूं पड़ताल की है.

प्रतियोगिता परीक्षाओं के क्वेश्चन आउट होकर बिकना हमारे बाजार का हिस्सा बन चुका है. वही बाजार, जिसे हम अर्थशास्त्र और समाजशास्त्र की भाषा में ‘बाजारवादी व्यवस्था का सिरमौर’ कहते हैं. बाजार खरीदार बनाता है और खरीदार भी अक्सर नए बाजार को खड़ा करते हैं.

फिल्मों में देखते हैं कि जिलों में हाकिमों की पोस्टिंग बिकती है, अखबारों में पढ़ते हैं कि विश्वविद्यालयों में कुलपतियों, कुलसचिवों के पद बिकने के आरोप लग रहे हैं, टीवी में देखते हैं कि एमपी और एमएलए कभी खुदरा तो कभी थोक के भाव में बिक जाया करते हैं, सुनते आए हैं कि मालदार थानों में दारोगा जी की पोस्टिंग की बोलियां लगती हैं, मनचाहा शहर और कॉलेज में पोस्टिंग पाने के लिए प्रोफेसर साहेबानों को अक्सर मोटा माल डाउन करना पड़ता है तो फिर परीक्षाओं के पहले उसके क्वेश्चन पेपर्स क्यों न बिकें ?

जब दुनिया बाजार बनने लगती है तो ऐसा क्या है जिसकी बोलियां न लगें ? बाजार की अपनी कोई नैतिकता नहीं होती. उसे नियमों और कानूनों से नियंत्रित किया जाता है. लेकिन, जब रेगुलेटर्स ही बिकने के लिए तैयार हों तो नियम और कानून गया भाड़ में.

उदारीकरण के बाद इस देश के एक वर्ग के पास खूब पैसा आया है. अब, उसके बेटे डॉक्टर या प्रोफेसर या इंजीनियर से कम क्यों बनें ? बचपन से बाप के वैध-अवैध पैसों के बल पर फर्राटे से एसयूवी उड़ाते दोस्तो के साथ पिज्जा खाने जाने की आदत है. तो, उसे भी कमाई वाली नौकरी चाहिए.

हर पैसे वाले का बेटा मेधावी ही हो जरूरी नहीं. चाहे जितना कोटा या कोटी में कोचिंग करवा लो, नीट या जेईई कठिन एक्जाम हैं, नेट में अच्छा स्कोर लाना कठिन है. सीटें सीमित हैं, अभ्यर्थी अपरम्पार हैं. लेकिन पैसा भी एक चीज है जो बहुत कुछ खरीद सकता है. किसी भी कीमत पर अपनी संतान के लिए करियर खरीद लेने की उत्कंठा पाले लोगों का एक अलग, नव धनाढ्य वर्ग डेवलप हुआ है. वैसे भी, इस देश में अब रीति नीति भी यही बनती जा रही है कि अच्छे संस्थानों में और अच्छे कोर्सों में पैसे वालों के ही बेटे पढ़ सकें.

अब, शॉर्ट कट का तकाजा है कि क्वेश्चन पेपर ही आउट करवा लिया जाए. आवश्यकता आविष्कार की जननी है. लो जी, इसका भी मार्केट तैयार हो गया. एक से एक टैलेंटेड लोग लग गए क्वेश्चन आउट कर बेचने के धंधे में. पता नहीं, ये हुनर सीखी कहां से ! कोई प्रिंटिंग प्रेस से ही क्वेश्चन उड़ा ले रहा है, कोई रास्ते में हथौड़ा मार कर सील तोड़ ले रहा है. लाखों, करोड़ों के वारे न्यारे हो रहे हैं, जोड़ कर देखो तो अरबों का बाजार है यह.

दुनिया जब बाजार बन जाती है तो हर शै का अपना बाजार सजता है. क्वेश्चन पेपर्स का भी अपना मार्केट है. सिपाही बहाली के सवालों का इतना रेट, दारोगा बहाली का इतना, मास्टर बहाली का ये रेट, इंजीनियर डॉक्टर का रेट इतना. फिर, रेट इस पर भी निर्भर करता है कि कहीं किसी सेफ जगह में किसी रिसार्ट में या होटल में मटन चिकन पनीर की प्लेटें सामने सजवा कर एक एक क्वेश्चन का आंसर भी रटवा दिया जाएं. फिर, एयरकंडीशंड गाड़ियों में अहले सुबह एक्जाम सेंटर तक पहुंचा देने का जिम्मा भी. बोले तो कंप्लीट पैकेज.

आजकल बाजार में कंप्लीट पैकेज का जमाना है. तो, पैसे वालों को अधिक आराम है. पैसा ही तो लगना है. वह तो देश को लूट कर, सरकार को लूट कर, पब्लिक को लूट कर है ही इतना कि कुछ भी खरीद लें.

अब, जब बाजार सजते हैं तो कुछ सीमित आमदनी वाले मिडिल क्लास के होशियार लोग भी लपकते हैं उधर. जमीनें बेच कर, गहने गिरवी रख कर, लोन ले कर इस अंधेरे बाजार में पैसे लगा डालते हैं. किसी को अपने बेटे को दारोगा बनवाना है, किसी को सिपाही, क्लर्क तो किसी को मास्टर. डॉक्टर, प्रोफेसर, इंजीनियर बन गया तो क्या कहने ! पिछले साल यूपी में खबरें आई थी कि प्रोफेसर बनवाने का बाजार 35-40 लाख तक चला गया था, वह भी तब जब अपने मेरिट से बीए, एमए, नेट, पीएचडी किए रहो.

सिपाही, क्लर्क, मास्टर, दारोगा, डॉक्टर आदि बनने की परीक्षा का क्वेश्चन आउट हुआ तो क्या हुआ, गिरोहों के गैंग लीडर्स ने तो शेखियां बघारी हैं कि वे यूपीएससी के क्वेश्चन पेपर्स पर भी डाका डाल लेते हैं, बस, माल डाउन करने वाला मिलना चाहिए.

अगर जिम्मेदार लोग कुलपति, प्रिंसिपल, जिलों के साहेबान, थानों के दारोगा आदि की पोस्टिंग बेचते हैं और तब भी सैल्यूट पाते हैं तो क्लर्क, मास्टर या डॉक्टरी की परीक्षाओं का क्वेश्चन अपनी मेहनत और मेधा के बल पर आउट करवा कर बेचने वालों को फांसी दे दोगे ? यह कहां का न्याय है ? नहीं, बाजार ऐसे नहीं चलता.

पिछले दिनों बीपीएससी की टीचर बहाली में क्वेश्चन आउट करवाने वाले बड़े रैकेट का खुलासा हुआ. कितने पकड़ाए. आजकल नीट के गैंगस्टर्स का जलवा अखबारों के सिर चढ़ कर बोल रहा है. खबर नवीसों की मासूमियत देखिए, लिखते हैं, ‘नालंदा जिले के बाप बेटा इस के मास्टर माइंड थे, दानापुर का कोई जूनियर इंजीनियर नीट मामले का मास्टर माइंड निकला आदि आदि.’ जाहिर है, पुलिस की जांच समितियां इन पकाऊ खबरों की स्रोत होती होंगी. इस मासूमियत पर क्यों न फिदा होने को दिल करे ?

बीपीएससी जैसी संस्था का क्वेश्चन पेपर प्रिंटिंग प्रेस से ही उड़वा लेने की हैसियत किसी गांव के बिगड़ैल बाप बेटे की होगी ? नीट जैसी परीक्षा का क्वेश्चन अगर आउट हुआ है तो इसका मास्टर माइंड कोई जूनियर इंजीनियर जैसा अदना होगा ? बाजारों के बड़े बड़े खिलाड़ी बड़ी ही सफाई से बचते हैं, बचाए जाते हैं, जांच समितियों के द्वारा, मीडिया के द्वारा, ताकि वे अगली बार अगले गुर्गों के सहारे अपने अगले खेल कर सकें.

पैसे की हवस के सामने संसार की हर हवस बौनी है. बाजार को पैसा चाहिए, पैसा कमाने के लिए हुनर चाहिए. चाहे वह ठगी का हुनर हो, चोरी का हुनर हो, डकैती का हुनर हो, फर्जीवाड़े का हुनर हो या कोई सकारात्मक हुनर हो.

वैसे ही, हमारे नीति नियामकों ने निर्धनों के बच्चों का डॉक्टरी में प्रवेश वर्जित कर दिया है. अब इक्के दुक्के भी एडमिशन शायद ही ले पाते हैं. रिजर्वेशन कोटे वाली सीटों के लिए खरीदार कम हैं क्या ? उनके पास भी वैध अवैध पैसों का भंडार है. दादा ने रिजर्वेशन लिया, पोस्ट हासिल किया, जम कर कमाई की, फिर बेटा जी आए, आरक्षित कोटि का लाभ लिया, अकूत कमाया, अब पोता या पड़पोता जी की बारी है. कौन सी पोस्ट है जो पहुंच से दूर है ? जो बिकेगा वह ले लेंगे. बाजार होता ही है इसीलिए.

बाजार बनती दुनिया में पोस्टिंग बिकती है, सेलेक्ट होना बिकता है, एक्जाम सेंटर बिकता है, क्वेश्चन पेपर बिकता है, बहुत कुछ बिकता है. जब खरीदने वाले झोली भर कर मुंह बाए खड़े हैं तो बेचने वाला तो धरती फोड़ के निकल कर आ जाएगा. बाजार का यही नियम है.

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ROHIT SHARMA

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