Home कविताएं अन्वेषण

अन्वेषण

3 second read
0
0
156

पड़ी हुई
जमी हुई राख को

धीरे-धीरे कुरेदना
अच्छा लगता है मन को

लगता है मिल रही है
जीवन दृष्टि धीरे-धीरे

राग द्वेष से परे
जिसमे न अहम की तुष्टि है
न ही वर्तमान की अवसरवादिता

जो गिराएगी पाताल तक
उठायेगी आसमान तक

अन्वेषण आदमी का
आदमी से जोड़ने की
तथ्यपरक स्वीकारोक्ति

निश्चित करती है
अन्वेषण की सार्थकता को

प्रजनन, श्वसन
भूख-प्यास, स्त्री-पुरुष
प्रकृति जनित श्रद्धा

विश्वास टूटते नहीं हैं
टूटते हैं भ्रम
बढ़ता है विश्वास

रागात्मकता की लय
विश्वासों से परे होती है
अंतर्दृष्टि में निहित

अंधकूप के जीवन विश्वास
अध-कचरा बाबा ज्ञान
कल्पनाएं कपोल कल्पित
पैदा करती हैं भ्रम
तथ्यों में, विश्वासों में

राग द्वेष में लिप्त
विश्लेषकों की
विश्लेषण करती जीवन दृष्टि
पैदा करती हैं कुरूप जमात

और अन्वेषण
हो जाता है निरर्थक
आम लोगों के लिए !

  • बुद्धिलाल पाल

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]

scan bar code to donate
scan bar code to donate
Pratibha Ek Diary G Pay
Pratibha Ek Diary G Pay
Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
  • शातिर हत्यारे

    हत्यारे हमारे जीवन में बहुत दूर से नहीं आते हैं हमारे आसपास ही होते हैं आत्महत्या के लिए ज…
  • प्रहसन

    प्रहसन देख कर लौटते हुए सभी खुश थे किसी ने राजा में विदूषक देखा था किसी ने विदूषक में हत्य…
  • पार्वती योनि

    ऐसा क्या किया था शिव तुमने ? रची थी कौन-सी लीला ? ? ? जो इतना विख्यात हो गया तुम्हारा लिंग…
Load More In कविताएं

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

चूहा और चूहादानी

एक चूहा एक कसाई के घर में बिल बना कर रहता था. एक दिन चूहे ने देखा कि उस कसाई और उसकी पत्नी…