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बीजापुर में आदिवासियों के शांतिपूर्ण आन्दोलन पर पुलिसिया हमला पर मानवाधिकार कार्यकर्ता सोनी सोरी से साक्षात्कार

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बीजापुर में आदिवासियों के शांतिपूर्ण आन्दोलन पर पुलिसिया हमला पर मानवाधिकार कार्यकर्ता सोनी सोरी से साक्षात्कार
बीजापुर में आदिवासियों के शांतिपूर्ण आन्दोलन पर पुलिसिया हमला पर मानवाधिकार कार्यकर्ता सोनी सोरी से साक्षात्कार

मानवाधिकार कार्यकर्ता सोनी सोरी छत्तीसगढ़ में लम्बे समय से आदिवासियों के बीच उनके मानवाधिकारों और जल, जंगल, जमीन के अधिकारों को लेकर काम कर रही है हालांकि इसके लिए उनको व्यक्तिगत रूप से काफी बड़ी कीमत चुकानी पड़ी.

उनका आदिवासियों के पक्ष में बोलना किसी को भी रास नहीं आया, न राज्य सरकार और न ही केंद्र सरकार को. केंद्र की UPA-II और राज्य में बीजेपी सरकार के दौरान उनको गिरफ्तार किया गया, जहां पहले पुलिस कस्टडी में उनको शारीरिक रूप से बुरी तरह से टॉर्चर किया गया और बाद में जेल में भी मानसिक टॉर्चर का सामना करना पड़ा.

जेल से आने के बाद भी लगातार उन पर हमले जारी रहे. सोनी सोरी पर केमिकल अटैक भी करवाया गया और हाल ही में उनके घर की बिजली काट दी गयी. हाल ही में छत्तीसगढ़ के बीजापुर में हुई घटना और छत्तीसगढ़ में आदिवासियों के जल, जंगल, जमीन के चल रहे आंदोलन पर उनसे साक्षात्कार.

सवाल – एक बार आप बीजापुर जिले के बुर्जी गांव की घटना को सिलसिलेवार तरीके से बता सकती हैं कि पूरा मामला क्या है ?

सोनी सोरी – 2021 से वहां की सारी आदिवासी जनता एक जगह इकठ्ठा होकर अहिंसक तरीके से धरना दे रही थी, जिसकी सूचना प्रशासन को पहले से ही दे दी गयी थी.

वहां की जनता की मांग थी कि आदिवासियों को नक्सल के नाम पर जेलों में डाल दिया जाता है या उनका एनकाउंटर कर दिया जाता है, CRPF का कैंप बना दिया जाता है या PESA एक्ट के तहत आदिवासियों को जो अधिकार है कि उनके एरिया में प्रशासन द्वारा कुछ भी कार्य करने से पहले ग्राम पंचायत की अनुमति ली जाएगी, जो नहीं ली जाती है. हमारे पेड़ों को काटा जा रहा है, जंगलों को नष्ट किया जा रहा है, कुछ भी करने से पहले हमको पूछते तक नहीं है तो इन्हीं सब मांगों को लेकर लगभग डेढ़ साल से धरने पर बैठे थे.

15 दिसबर को रात में 1 बजे एक नरसंहार की तरह एक घटना वहां घट जाती है. 15, 20 गाड़ियों, जिसमें मिट्टी खोदने और झाड़ियों को काटने वाली मशीन थी, के साथ लगभग 1000 फोर्स के जवान धरना स्थल की तरफ बढ़ने लगे.

अब इतनी गाड़ियां आएंगी तो स्वाभाविक है कि पता तो चलेगा ही. जैसे धरना स्थल पर पता लगा वहां मौजूद सारे आदिवासी उस रुट पर इकठ्ठा हो गए जहां से फोर्स गुजरने वाली थी. उस समय लगभग आदिवासियों की संख्या 2000 के आसपास होगी. आदिवासी जनता बस फोर्स से बात करना चाहती थी कि इतनी गाड़ियों को लेकर आप कहां जा रहे हैं, ये सब सामान हमें दिख रहा है कि आप धरनास्थल के आगे कैंप बनाने जा रहें लेकिन पहले हमसे बात करो.

बस यही बातचीत के लिए वो लोग खड़े थे. ऐसा नहीं था कि वो फोर्स पर अटैक करना चाह रहे थे या पथराव करना चाह रहे थे बस जनता उनसे बात करना चाहती थी. लेकिन पुलिस ने कुछ सुना नहीं और धक्का मुक्की चालू कर दी, जिसमें बताते हैं कि एक बूढी माता जी को चोट लग गयी और इसके बाद लाठी चार्ज शुरू कर दिया. पुलिस तो पूरी तैयारी के साथ गयी थी. पुलिस ने अंधाधुंध लाठी चार्ज किया. जहां बच्चों, महिलाओं सबको बुरी तरह से पीटा, जिसमें लगभग 200 लोग बुरी तरह से घायल हुए. किसी के पैर में किसी के हाथों में चोटे आयी, किसी का सर फूटा मतलब बुरी तरह से आदिवासियों को पीटा गया और धरना स्थल को तहस नहस कर दिया.

और थोड़ी दूर आगे जाके पुलिस ने अपना कैंप लगा दिया. ये रात की घटना है. पुलिस दोबारा सुबह धरनास्थल पर पहुंची. बोला की धरने से हट जाओ वरना दोबारा बहुत मारेंगे लेकिन जनता वहां से नहीं हटी. मूलवासी बचाओं मंच जो इस धरने का नेतृत्व कर रहा था, वो लोग बार-बार पुलिस से कह रहें थे कि आप लोग हमसे बात करो, सीधा हमें मार क्यों रहे हो ?

ये क्षेत्र PESA कानून के तहत आता है. ग्राम सभा के अंतर्गत आता है. आप ऐसा कैसे कर सकते हैं ? आप बात तो कीजिये. फिर मूलवासी बचाओ मंच की टीम को पुलिस ने बुला लिया लेकिन जैसे ही वो टीम वहां पहुंची उनको इतना मारा, इतना मारा कि मार-मार के अधमरा कर दिया और जनता को धरना स्थल से खदेड़ दिया. मुझे इस घटना का 17 दिसबर को पता चला. मैंने 18 दिसबर को जाने की कोशिश की लेकिन मुझे रोका गया. मुझे बार-बार सुरक्षा बल के हवाले से रोका गया जबकि मैंने 17 दिसम्बर को ही प्रशासन को यानी कि 24 घंटे पहले ही पुलिस को इन्फॉर्म कर दिया था. फिर 19 को बोला, फिर 23 तारीख को लेकिन हर बार सुरक्षा के नाम पर मुझे जाने से रोका गया.

फिर मैं 24 तारीख को खुद ही बुर्जी धरना स्थल के लिए निकल पड़ी. लेकिन रास्ते में भी तीन, चार बार मुझे रोका गया. मैंने बोला कि मुझे SP और कलेक्टर से मिलने जाना है लेकिन मै न तो SP से मिली और न ही कलेक्टर से, मैं एक पगडंडी के रास्ते होते हुए सीधा पब्लिक के पास पहुंची. मैं जैसे ही वहां पहुंची जनता एक दम मेरे पास इकठ्ठा हो गयी और मुझे दिखाने लगी कि देखो दीदी हमें कितना मारा. वहां किसी के हाथ में फ्रैक्चर था, किसी के पीठ में बुरी तरह चोटे थी, किसी के सर में.

कमाल की बात देखिये, कुछ समय लोगों से मिलने के बाद मैं वही खाना खाने बैठी थी कि अचानक हड़कंप मचना शुरू हुआ, जनता उधर से भाग के आने लगी. कोई बोला कि पुलिस आ रही है. मैंने बोला आने दो आएगी तो क्या करेगी. मैं खाना छोड़ भीड़ के आगे पहुंच गयी, और बोला आ गए मारने. उनके पास उस समय रॉड, डंडा, बन्दूक सब था. मैंने बोला चलो सबसे पहले मुझे मारों कितना तुम रॉड चला सकते हो, डंडा चला सकते हो, पहले मुझ पर अटैक करों, ऐसा बोल कर मैं पुलिस के सामने खड़ी हो गयी, और बाकी की सारी जनता मेरे पीछे.

मेरे ऐसा बोलते ही पुलिस पीछे हो गयी. इसके बाद मैने तुरंत SP को फ़ोन किया और बोला सर आज फिर वही सब करने वाले हो, हम तो जेल जाने को तैयार है, जान देने को तैयार है, अपने जल, जंगल, जमीन को बचाने के लिए जो कुछ भी करना पड़े उसके लिए तैयार हैं. आपको जितनी सजा देनी है आप दीजिये. इतने में जनता भी बोली कि आपको जो करना है आप कीजिये, रोज रोज मरने से अच्छा है कि आप एक साथ ही गोली से उड़ा दीजिये.

फिर मैंने SP को बोला कि जब तक फोर्स यहां से निकल नहीं जाती मैं यहां से नहीं निकलूंगी. SP बोला नहीं मैडम ऐसा कुछ भी नहीं है. वो लोग तो ऐसे ही अपनी ड्यूटी करने गए होंगे मैं सबको निकलवाता हूं. और शाम को 5 बजे तक पुलिस वहां से निकल गयी और उसके बाद मैं वहां से आयी. लेकिन आज भी मैं सुन रही हूं कि पुलिस अभी भी धरना स्थल तक जनता को पहुंचने नहीं दे रही है. आज भी जाने से रोका जा रहा है लेकिन पब्लिक भी घर जाने को तैयार नहीं है. वो टुकड़ों टुकड़ों में कोई पहाड़ों के नीचे तो कोई झरने के नीचे ऐसे ही अलग अलग जगह इकठ्ठा हैं. इसलिए हम कह रहें हैं सबको धरना स्थल पर इकठ्ठा होने दिया जाये और सरकार उन आदिवासियों से बात करे और ऐसे ही समाधान निकलेगा.

सवाल – जिन गांव वालों को पीटा गया क्या वो लोग किसी भी तरह की नक्सल गतिविधि में शामिल थे ?

सोनी सोरी – नहीं, वो लोग किसी भी गतिविधि में शामिल नहीं थे. और वो ही बात तो हम कह रहें हैं कि अगर कोई शामिल है तो हम जैसे मानवधिकार कार्यकर्ता, बुद्धिजीवी लोगों को प्रशासन बुलाये, हमको बताये कि ये लोग नक्सल गतिविधि में शामिल हैं. ये लोग नक्सल हैं, कुछ नाम दे, कुछ बताये, कुछ वारंट दे, धारा बता दे तो हम धरना स्थल पर लोगों से पूछेंगे कि तुम लोग क्या काम कर रहे थे. तुम पर पुलिस का ये आरोप है, लेकिन पुलिस कुछ तो बताये. आदिवासी भी इंसान है, वो लड़ना जानता है.

सवाल – क्या इस मामले में किसी को गिरफ्तार भी किया गया है ?

सोनी सोरी – न अभी कुछ नहीं हुआ है, कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है.

सवाल – अब आप लोग इस घटना को लेकर आगे क्या सोच रहे हैं ? आगे इस मामले को कैसे उठायंगे ?

सोनी सोरी– हम ये कोशिश कर रहें हैं कि पहले तो धरना स्थल में सब लोगों को इकठ्ठा होने दिया जाये. पहले लोग एक जगह इकठ्ठा हो, फिर सरकार आये उनसे बात करे. ये पूरी लड़ाई हम कानूनी और शान्तिपूर्वक तरीके से ही लड़ेंगे. हमें कोई हिंसा नहीं करनी है. हम सरकार को कुछ समय देंगे, अगर उसमें भी सरकार नहीं मानी तो बुर्जी से सब लोग इकठ्ठा होकर रायपुर तक पैदल मार्च किया जायेगा. ‘बस्तर बचाओ, आदिवासी बचाओं’ इन सवालों को लेकर हम पद यात्रा करेंगे. जब राहुल जी भारत को जोड़ने के लिए पैदल मार्च कर सकते हैं तो क्या हम बस्तर के आदिवासी बचाने के लिए पैदल मार्च नहीं कर सकते ?

सवाल – क्या पुलिस अब भी वहां के गावं वालों को परेशान कर रही है ?

सोनी सोरी– बहुत ! मेरे पास तो रोजाना 10 फ़ोन आते हैं कि दीदी आ जाओ, दीदी आ जाओ. पुलिस बहुत परेशान कर रही है.

सवाल – आपको क्या लगता है कि आदिवासियों की इस लड़ाई को देश क्यों नहीं समझ पा रहा ?

सोनी सोरी– भारत देश में आदिवासियों को कोई स्थान मिला ही नहीं है. आदिवासियों को इंसान ही नहीं माना जाता है. जब देश में साल भर से ज्यादा किसान आंदोलन चल सकता है, शाहीन बाग का धरना चल सकता है तो आदिवासी क्यों धरना नहीं दे सकते ? आदिवासी विकास के विरोधी नहीं है लेकिन उनके पेड़ को काटके कैसा विकास ! आदिवासियों को जानवरों के समान समझा जाता है, लेकिन आज जानवरों की जिंदगी फिर भी बेहतर है. वो कम से कम आजादी से घूम तो सकते हैं लेकिन आदिवासियों को चैन से रहने नहीं दिया जा रहा है, क्योंकि उनको पता है कि अगर आदिवासी रहेगा तो पूंजीपतियों, जिंदल, अडानी जैसे लोगों के बड़े-बड़े जो प्रोजेक्ट हैं, उनको यहां के प्राकृतिक संसाधन नहीं दे सकते. क्योंकि आदिवासी देने नहीं देंगे. क्योंकि आदिवासी मानते हैं कि प्रकृति का दोहन करना विनाश हैं विकास नहीं. आज भले ही देश आदिवासियों की बात को नहीं सुन रहा हैं लेकिन एक दिन ऐसा आएगा जब कोई भी आदिवासी नहीं बचेगा, तब देश को पता लगेगा कि आदिवासी इस देश के लिए कितने महत्वपूर्ण थे.

सवाल– आप कई सालों से आदिवासियों के साथ हो रहे आत्याचारों के खिलाफ आवाज उठा रही हैं, इसके लिए आपको व्यक्तिगत जीवन में क्या कीमत चुकानी पड़ी, क्या आप बताना चाहेंगी ? और क्या आपको लगता है कि आगे आपको किसी बड़े षड्यंत्र में फंसाया जा सकता है ?

सोनी सोरी– बहुत कुछ। मेरे पिता तो साधारण किसान थे लेकिन मुझे शिक्षा दिलवाई, पढ़ाया लिखाया और इस काबिल बनाया कि मैं शिक्षिका बन सकी, मेरी नौकरी लग गयी. मुझे इस बात की खुशी थी कि मैं एक आदिवासी होकर आदिवासी इलाकों में ही शिक्षिका बनके आयी, इससे मैं अपने समुदाय का और भला कर सकती थी. मेरी पोस्टिंग नक्सल प्रभावित इलाके में हुई, जिसमें मेरा क्या कसूर था ! लेकिन मुझे फर्जी मुकदमों में फंसा कर जेल में डाल दिया गया, जिससे मेरा कोई लेना देना नहीं था. मुझ पर नक्सल समर्थक के, उनके साथ अटैक करने के आरोप लगे. मुझसे एक बार भी नहीं पूछा गया कि मैं एक शिक्षिका हूं, मैंने जज मेडम से भी बोला था कि मेडम मैं एक शिक्षिका हूँ मैं कैसे किसी नक्सल गतिविधि में शामिल हो सकती हूँ, जज ने पूछा तो पुलिस ने बोला कि ये एक साल से फरार थी, तो मैंने फिर से पूछा अगर मैं एक साल से फरार थी तो एक साल मुझे सरकार की तरफ से वेतन क्यों मिलता रहा ? मेरी पासबुक चेक कर लीजिये, तो क्या सरकार ने माओवादियों को समर्थन करने के लिए मुझे वेतन दिया ? मैं बैंक भी जाती थी मीटिंग में भी जाती थी. लेकिन यहां तो सब झूठ है. जो पुलिस ने कह दिया और जज ने मान लिया. जज कौन से हमारे हितैषी हैं ? मुझे जेल भेज दिया गया. लेकिन जेल जाने से पहले पुलिस कस्डटी में जो मेरे साथ अत्याचार किया गया जैसे कि मेरे गुप्तांगों में पत्थर डालना, करंट के झटके देना, निवस्त्र करना और जो हाल किये वो मेरे लिए सबसे भयानक था. मैने जिंदगी में सोचा नहीं था कि कानून ऐसा भी होता है. मैंने किताबों में पढ़ा था कि कानून अंधा होता है लेकिन इंसाफ दिलाता है. लेकिन कानून ऐसा भी होता है और वर्दी वाले ऐसा करते है मुझे नहीं पता था. जो हरकत मेरे साथ की, वो तो मैं कभी भी भुला नहीं सकती. अगर जेल ही करना था तो ऐसे डाल सकते थे, ये कोर्ट तय करता कि मैंने कुछ गलत किया है या नहीं ? अगर कुछ गलत किया होता तो कोर्ट सजा देता.

फिर जेल में भी इतना मानसिक रूप से प्रताड़ित किया ‘कभी सोनी सोरी पागल हो गयी’ उसके नाम पर डॉक्टरों की टीम आती थी, मुझे पागल खाने ले जाने तक का ये लोग प्लान बनाये लेकिन वो नहीं हो सका. मुझे टॉयलेट तक का पानी पिलाया गया. मुझे दवाई दी जाती थी जिससे मैं तीन, चार घंटे बेहोश ही रहती. जब होश में आती फिर से दवाई दे दी जाती. इतनी यातनाये झेली. मैं खुद हैरान हूं कि मेरा शरीर इतना झेला कैसे ? मेरे इन्फेक्शन हो गया था क्योंकि मेरे गुप्तागों में पत्थर डाले गए थे. तो आप सोच सकते हो कि एक महिला को पुरुष वर्ग ने कैसी कैसी यातनायें दी.

हां लेकिन लड़ना मैंने जेल जाने के बाद ही सीखा. उससे पहले मैं इतनी निडर नहीं थी, मैं सीधी-साधी महिला थी. एक ब्लॉक अधिकारी से बात करने पर भी मुझे डर लगता था. जेल से बाहर आने के बाद भी मुझ पर केमिकल अटैक करवाया गया. उसके बाद एक्सीडेंट करवाने की कोशिश की गयी. मौत ही मौत है मेरे जीवन में. मैं अब तक जिन्दा कैसे हूं मैं खुद नहीं जानती. अब ये शरीर ऐसा बन गया है कि मुझे अब किसी बात का डर नहीं. न जेल जाने का डर, न बोलने का.

सवाल– एक तरफ सरकार कहती है कि नक्सली हथियार छोड़कर शांतिपूर्वक वार्ता में आये तो वही दूसरी तरफ बुर्जी जैसी घटनाएं भी हो रही हैं तो क्या सरकार किसी समाधान के लिए गंभीर भी है या नहीं ?

सोनी सोरी– देखो पहली बात तो ये राज्य और केंद्र सरकार दोनों से पूछना चाहती हूं कि आप कब तक नक्सलियों के नाम पर आदिवासियों को मारते रहोगे ? सरकार बात तो करना चाहती ही नहीं है. वो ढोंग करती है. अगर सरकार सच में नक्सल समस्या को ख़त्म करना चाहती है तो वो उसमें कामयाब हो सकते हैं. अगर सरकार सच में गंभीर है तो हम लोग नक्सलियों से भी बात करेंगे.

इन सब में नुकसान किस का हो रहा है ? आदिवासियों को मार कौन रहा है ? घर किस का जल रहा है ? एनकाउंटर किस का हो रहा है ? आदिवासियों का. बलात्कार किस का हो रहा है ? आदिवासी महिलाओं का. राज्य की कांग्रेस और केंद्र सरकार एक बार आदिवासियों से अपील तो करे, उनके विचार तो जान ले. आप आदिवासियों से ही बात नहीं करना चाहते हैं और बड़ी बड़ी बातें बोलते हैं कि हम नक्सल से बात करेंगे !

ये हम कब से सुन रहे हैं लेकिन इसकी पहल तो सरकार को ही करनी पड़ेगी. सरकारें सिर्फ ढोंग कर रही है. उल्टा फोर्स, CRPF के कैंप बढ़ाये जा रहें हैं, सेना बढ़ाई जा रही है. अब तो ऐसा हो गया है कि जितना बस्तर में आदिवासी नहीं है, उससे ज्यादा तो पुलिस फोर्स आ गयी है. अगर सरकार और आदिवासियों में वार्ता हो जाये तो हम माओवादियों से भी बात करेंगे कि इतना नुकसान हो रहा है, आदिवासी मारे जा रहें हैं, आप लोग कहते हैं कि आप आदिवासियों के हको के लिए लड़ते हैं तो आप भी हथियार छोड़िये. लेकिन ये पहल तो सरकार को ही करनी पड़ेगी.

सवाल– आपने राज्य में दोनों ही दलों यानी कि भाजपा और कांग्रेस की सरकारों को देखा है. क्या आपको दोनों में आदिवासियों को लेकर नीतियों या रवैये में कुछ बुनियादी अंतर दिखता है ?

सोनी सोरी– एक जैसा ही है. पहले राज्य में भाजपा की सरकार थी और केंद्र में कांग्रेस की, तब यहां पर सलवा जुडूम चला. आज यहां राज्य में कांग्रेस है और केंद्र में भाजपा है लेकिन फोर्स आ रही है. केंद्र सेना भेज रहा है, तो क्या अंतर है ! अगर यहां कांग्रेस सरकार आने के बाद यहां सेना नहीं आती तो हमें सही में लगता कि केंद्र सरकार को यहां की सरकार ने कैंप लगाने से रोका है लेकिन ऐसा नहीं है. सब मिलीभगत है सब मिल जुल कर तय होता है.

  • साक्षात्कारकर्ता: मानस भूषण 
    (विकल्प से साभार)

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