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अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस : ऐतिहासिक जीत का जश्न

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अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस

आज से करीब 132 वर्ष पहले 1886 में अमेरिका के शिकागो शहर के मजदूरों ने इंसान की तरह जीने के हक के लिए एक जंग छेड़ी थी. उनका नारा था – ‘आठ घण्टे काम, आठ घण्टे आराम, आठ घण्टे मनोरंजन.’ उस वक्त अमेरिका में एक विशाल मजदूर वर्ग पैदा हुआ था, जिन्होंने अमेरिका के शहरों को खड़ा किया, रेल पटरियों का जाल बिछाया, नदियों को बांधा, गगनचुम्बी इमारतों को बनाया और पूजीपतियों के लिए दुनिया भर के ऐशो-आराम खड़े किये. उस समय अमेरिका सहित पूरी दुनिया में मजदूरों को 12 से 18 घण्टे तक खटाया जाता था. बच्चों और महिलाओं को भी 18 घण्टों तक काम करने को मजबूर किया जाता था. अधिकांश युवा मजदूर अपने जीवन के 40 साल भी नहीं देख पाते थे. अगर मजदूरों द्वारा इसके खिलाफ कभी कोई आवाज उठाया जाता तो निजी गुण्डों, पुलिस और सेना से हमले करवाये जाते थे. उनके जीवन और मृत्यु में वैसे भी कोई फर्क नहीं था इसलिए उन्होंने लड़ने का फैसला किया.

1877 से 1886 तक अमेरिका भर में मजदूरों ने अपने आपको आठ घण्टे के कार्यदिवस के लिए एकजुट और संगठित करना शुरू किया. 1886 में पूरे अमेरिका में मजदूरों ने आठ घण्टा समितियाँ बनायीं. शिकागो में मजदूरों का आन्दोलन सबसे अधिक ताकतवर था. वहांँ के मजदूरों के संगठनों ने तय किया कि 1 मई के दिन सभी मजदूर सड़कों पर उतरेंगे और आठ घण्टे का कार्यदिवस के नारे को बुलन्द करेंगे. 1 मई के दिन शिकागो शहर में लाखों की संख्या में सभी पेशों के मजदूर सड़कों पर एकजुट होकर उतरे और आम हड़ताल में शामिल हो गये. मजदूरों की इस एकजुटता से डरकर पूंजीपतियों ने एक साजिश के तहत अपने भाड़े के टट्टुओं से मजदूरों के एक जनसभा पर हमला करवाकर छह मजदूरों की हत्या कर दी.

अगले दिन शिकागो के ‘हे मार्केट’ में मजदूरों ने जब इस हत्याकाण्ड के विरोध में प्रदर्शन किया तो पुलिस ने उन पर हमला कर दिया. इसी दौरान पूंजीपतियों ने बम फिंकवा दिया जिसमें कुछ मजदूर और पुलिस वाले मारे गये. इस बम काण्ड का आरोप चार मजदूर नेताओं – ऑगस्ट स्पाइस, एजेल्स, फिशर और पार्संस पर डाल दिया गया. कुछ दिन बाद इस झूठे आरोप में ही मजदूरों के उन चार महान नेता को फांसी दे दी गयी जबकि मुकदमे में उनके खिलाफ कोई सुबूत नहीं मिला था. इन महान मजदूर नेताओं का बलिदान व्यर्थ नहीं गया.

शिकागो के मजदूरों के महान संघर्ष को तो मालिकों ने उस दिन कुचल दिया, लेकिन जो चिंगारी शिकागो के मजदूरों ने लगाई थी उसकी आग दुनिया भर में फैल गयी. आठ घण्टे काम की मांग पूरी दुनिया के मजदूरों की मांग बन गयी. तब जाकर दुनिया भर के पूंजीपतियों की सरकारों को कानूनी तौर पर आठ घण्टे का कार्यदिवस मानने पर मजबूर होना पड़ा. मजदूरों का आन्दोलन यहीं पर नहीं रूका बल्कि इससे प्रेरित होकर विश्व भर के बड़े हिस्से में पिछली सदी में मजदूरों-किसानों ने इंकलाब के जरिये सामंतों, पूंजीपतियों, साम्राज्यवादियों की सत्ता को उखाड़ कर अपनी राज्यसत्ता स्थापित की. उन्होंने ऐसी व्यवस्था का निर्माण किया जिसमें कारखानों, खदानों व जमीनों के वे सामुहिक मालिक बने. मजदूर जो कि दुनिया की हर चीज का निर्माण करते हैं, उन्होंने धरती पर ही स्वर्ग बनाकर दिखा दिया.

ऐतिहासिक विडम्बना है कि गद्दारों, भितरघातियों व अपनी भी कुछ गलतियों के कारण 1956 में सोवियत संघ व 1976 में चीन में पूंजीवादी पथगामियों द्वारा सत्ता पर कब्जा तथा मजदूर वर्ग की सत्ताओं के स्थान पर वहां पूंजीवादी पुनर्स्थापना के बाद दुनिया में कोई मजदूर राज या समाजवादी सत्ता नहीं बची. ऐतिहासिक विपर्यय के इस दौर में साम्राज्यवादी, पूंजीवादी एवं सामंतवादी ताकतों ने एक तरफ पूरी दुनिया के स्तर पर मजदूरों, किसानों एवं अन्य शोषित-पीडि़त वर्गों पर नृशंस हमले शुरू कर दिए और खासकर मजदूरों के शोषण-उत्पीड़न को चरम पर पहुंचा दिया. साम्राज्यवादी दलालों और पूंजीपतियों के भाड़े के बुद्धिजीवियों ने मार्क्स, ऐंगल्स, लेनिन, स्टालिन, माओ जैसे महान कम्युनिस्ट क्रातिकारी नेताओं पर कीचड़ उछालना शुरू कर दिया. आज ‘समाजवाद का अंत हो गया’ के नारे के साथ पूंजीवादी व्यवस्था की अमरता की घोषणाएं की जाने लगीं लेकिन पूंजीवाद के आंतरिक अंतरविरोधों के चलते मरणासन्न पूंजीवाद की प्राणांतक बीमारियों के बार-बार प्रकट होने और ताजातरीन 2007-08 से जारी वैश्विक आर्थिक संकट के चलते उनकी खुशियां काफूर हो गईं.

पूंजीवाद की अजेयता व अमरता का उनका भ्रम टूटने लगा और एक बार फिर आज ‘कम्युनिज्म का भूत’ उन्हें सताने लगा है. आज पूंजीवादी देशों, जैसे अमेरिका, फ्रांस, इंग्लैड, इटली, आस्ट्रेलिया में मजदूरों व आम जनता उन सरकारों के मजदूर विरोधी व जन विरोधी नीतियों के खिलाफ कई बड़े-बड़े हड़तालें व जन प्रदर्शन के माध्यम से उन सरकारों के सामने चुनौती पेश कर रहा है. अरब देशों में तेल के लूट के बहाने दो साम्राज्यवादी खेमा तीसरे विश्वयुद्ध का हुंकार भर रहा है और जल्दी ही इनके साम्राज्य ध्वस्त होने वाले हैं बशर्त्तें कि उन देशों में लोकतांत्रिक व क्रांतिकारी शक्तियां यदि इन परिस्थितियों का फायदा उठाकर पूंजीवाद व साम्राज्यवाद को दफनाने की भूमिका में खड़े हो जायें.

आज मई दिवस के अवसर पर हमें याद करना होगा कि जिन शहीदों ने उस लड़ाई में अपनी बलिदानें दी वह कोई मजदूरी बढ़ाने की लड़ाई नहीं थी बल्कि हमें सम्मानपूर्वक जीने का अधिकार दिलाने के लिए पूरी दुनिया भर के मजदूरों के सामने एक दृष्टांत स्थापित किया है. आज तक पूरी दुनिया में मजदूरों और जनवादी व क्रांतिकारी ताकतों द्वारा मई दिवस की परम्परा को याद करने के लिए प्रति वर्ष इसका आयोजन होता है. यह अंतर्राष्ट्रीय भाईचारा का प्रतीक है और यह हमें अपने अधिकार हासिल करने के लिए तथा हर बलिदानों के लिए भी प्रेरित करता है.

आज हमारा देश भयानक आर्थिक संकट से गुजर रहा है. देश भर के मजदूर-किसान, छात्र-नौजवान, अन्य मेहनतकश जनता बढ़ती मंहगाई व साम्राज्यवाद व बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के लुट-खसौट, सरकारी भ्रष्टाचार से बुरी तरह से त्रस्त हैं. आज देश की जनता गरीबी, भुखमरी, कुपोषण, बीमारी, बेरोजगारी का शिकार है और किसानों के आत्महत्याओं का सिलसिला बदस्तुर जारी है. आदिवासियों, दलितों, छोटे व्यापारियों/उद्यमियों, मजदूरों, कारीगरों की तबाही का भी चरम पर है. शिक्षा के बाजारीकरण व अत्यधिक महंगी होने के कारण आम परिवारों के बच्चे को अच्छी शिक्षा नसीब नहीं हो पा रही है. करोड़ों लोगों को अपने ही देश में रहने के लिए घर नहीं है जो फूटपाथ और झुग्गी बस्तियों में सर छुपा कर जी रहे हैं. लाखों लोगों को शहरीकरण और सुन्दरता के नाम पर व्यापक पैमाने पर उजाड़ा जा रहा है.

दूसरी तरफ बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को बड़ी तादाद में सस्ते दामों पर भारत के कोने-कोने में जमीन देकर बसाया जा रहा है. बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ सबसे कम मानबवल के तकनीक के साथ भारत में धड़ल्ले से आ रही है, साथ ही यहाँ के सभी तरह के प्राकृतिक संसाधनों, खनिज, जल, जंगल व जमीन तक अपने-अपने कब्जे में लेकर आदिवासियों, किसानों को बड़े पैमाने पर उजाड़ा जा रहा है. ‘आजाद’ भारत कहे जाने वाले देश की जनता गुलामी में ही जीवन बिताने को अभिशप्त है. आज करोड़ों छात्र-नौजवान शिक्षा व रोजगार से वंचित है. करोड़ों डिग्रीधारी नौजवान भी रोजगार पाने की दौड़ में इधर-उधर भटक रहें हैं. शासकवर्ग द्वारा प्रतिदिन अपने प्रचार माध्यमों से नौजवानों को झूठे सपने दिखाये जा रहे हैं.

इतना ही नहीं वे अपने प्रचार माध्यमों से नौजवानों को टेलीविजन चैनलों, अश्लील फिल्मों द्वारा लम्पट व भ्रष्ट बनाने में भी लगे हुए हैं ताकि उनके शोषण के विभिन्न स्वरूपों को वे समझ न सकें, जिससे उनके दमनकारी लूट व दलाली के शोषण-शासन व्ययस्था बरकरार रहे. कांग्रेस नीत यू.पी.ए. सरकार की तरह भाजपा नीत एन.डी.ए. की सरकार भी और निर्मम तरीके से मजदूरों, किसानों, दलितों, महिलाओं, आदिवासियों, अल्पसंख्यकों, राष्ट्रीयताओं, छात्रें व अन्य जनवादी आन्दोलनों को नृशंसतापूर्वक दमन कर रही है. चाहे जो भी पार्टी की सरकारें सत्ता में हो वह जल-जंगल-जमीन, खनिज, सभ्यता-संस्कृति सबकुछ साम्राज्यवादी देशों और हमारे देश के दलाल पूंजीपतियों व सामंतों के हित में व उनके मुनाफे के लिए दांव पर लगा दिया है.

आज केन्द्र की सत्ता में आसीन भाजपा सरकार आर.एस.एस. की मदद से अन्धराष्ट्रवाद का नारा देकर व ‘हिन्दुत्व’ रक्षा के नाम पर घोर फासिस्ट तरीके अपना कर पूरे देश को तबाह करने में तुली हुई हैं. खुलेआम इनके नुमाइंदे अल्पसंख्यकों व दलितों पर एक सोची-समझी साजिश के तहत कहर बरपा रहा है. इतना ही नहीं मोदी राज में ‘क्रोनी’ (याराना) पूंजीवाद के बड़े पैमाने पर बढ़ावा दिया जा रहा है और विदेशी पूंजी के लूट-खसोट को और अधिक बढ़ाने के लिए देश की अर्थव्यवस्था के सारे दरवाजे खोल दिये गए हैं. दूसरी तरफ आज भगवा गुंडों द्वारा एक के बाद एक बलात्कार का कीर्तिमान स्थापित किया जा रहा है और इसके विरोध में जनता के खड़े होने पर अपने भगवा गुंडों के सहारे यहां तक तिरंगा लेकर बलात्कारियों को ‘देशप्रेेमी’ तक साबित करने पर तुले हुए हैं.

आज पूरे देश के सामने फासीवाद एक भयंकर विकराल रूप में स्थापित हो रहा है और आम जनता के जनवादी अधिकारों को निर्ममतापूर्वक कुचला जा रहा है. आज बिहार, झारखंड, ओडि़शा, आन्ध प्रदेश, तेलंगना, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, तमिलनाडू व केरल सहित अन्य कई राज्यों में ‘कम्युनिस्ट माओवादी’ दमन के नाम पर आज आदिवासी, दलित, बुद्धिजीवी, पत्रकार सहित हजारों आम जनता को केस मुकदमा में फंसाकर जेल के शिंकजे में डाला जा रहा है.

इसी तरह देश की सभी समस्याओं की जड़ मुस्लिम अल्पसंख्यक है, यह बताकर आम जनता के बीच एक विभाजन रेखा खींचने का काम किया जा रहा है. इनका फासीवादी दमन यहां नहीं रूकती है बल्कि अब तो पूरे देश में दलितों के अधिकार तक को छीनने की पुरजोर साजिश रचा जा रहा है. इनके ‘अच्छे दिन’ लाने का वादा, काला धन वापस लाने का वादा, नोट बंदी के सहारे काला धन पर रोक लगाने का वादा, प्रति वर्ष दो करोड़ बेरोजगारों को नौकरी देने का वादा, हर खेत को पानी देने का वादा, बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ’ सबके सब र्फुर हो गया. पूर्व से लम्बे संघर्ष के माध्यम से मजदूरों के हित में अर्जित अधिकारों को भी छीनने पर यह सरकार आमादा है. मजदूर अधिकारों के लिए संघर्षरत कुई यूनियों को बेवजह प्रतिबंधित कर दी गई है और कुछ को प्रतिबंधित करने की साजिश चल रही है. गुड़गांव के आन्दोलनकारी मारूती मजदूर नेताओं को भी साजिश के तहत फंसाकर जेल के शिकंजे में डाल देने पर देश भर में तीखा विरोध जारी है. आज देश के विभिन्न भागों में मजदूरों द्वारा पूर्व से स्थापित प्रमुख मजदूर संगठनों के दायरे से बाहर आकर नये क्रांतिकारी सोच के साथ जुझारू आन्दोलन भी खड़ा किया जा रहा है.

आज हमारे देश के ग्रामीण मजदूर, असंगठित मजदूर, दैनिक मजदूरी पर काम करने वाले कामगार सरकारी व निजी क्षेत्र के करोड़ों कामगार एक तरफ बढ़ती महंगाई दूसरी ओर सरकार के कॉरपोरेट परस्त नीतियों के कारण घोर आर्थिक विषमता का शिकार हैं तथा जिल्लतभरी जिन्दगी जीने पर मजबूर हैं. आप भली-भांति अवगत होंगे कि इस राज्य में भी ठेका-संविदा-मानदेय, आउटसोर्सिंग एजेंसी के मातहत मानव बल के रूप में विभिन्न सरकारी विभागों, बिजली बोर्ड, नगर निगम व नगर परिषद सहित विभिन्न परियोजनाओं में कार्यरत कामगारों तथा आंगनबाड़ी सेविका, सहायिका, रसोईया, स्वास्थ्य विभाग में अधीन काम करने वाले आशा कार्यकर्त्ता सहित अन्य सभी तरह के कर्मी, टोला सेवक, मनरेगा मजदूर, कृषि मजदूर, सफाई कर्मी, निजी सिक्युरिटी एजेंसी, होटलों सहित सभी तरह के फैक्ट्री, दुकानों, गैराजों व अन्य प्रतिष्ठानों में काम करने वाले कामगार, बिल्डिंग, रोड, पुल-पुलिया में काम करने वाले, पत्थर खदानों सहित सभी तरह के निजी क्षेत्रें के अधीन काम करने वाले कामगारों को न्यूनतम मजदूरी से वंचित रखकर न्यूनतम मजदूरी कानून, 1948 का घोर उल्लंघन किया जा रहा है, जबकि आंगनबाड़ी व स्वास्थ्य केन्द्र में काम करने वाले आशा, ममता इस तरह के कामगारों को प्रतिदिन आठ घंटे या उससे भी अधिक समय तक काम लिया जाता है तो उन्हें न्यूनतम मजदूरी का हक क्यों नहीं ? इस राज्य में लाखों कामगारों को एक तरफ न्यूनतम मजदूरी नहीं दी जा रही है तो दूसरी तरफ पी.एफ., ई.एस.आई. आदि से भी वंचित रखा गया है.

मई दिवस के अवसर पर हमें मजदूर वर्ग की क्रांतिकारी विरासत को बार-बार याद करना होगा. मजदूर वर्ग को अपने लाल झंडे को उपर उठाते हुए देश के शासक वर्ग के हर साजिश का अपनी वर्गीय एकजुटता के बल पर जवाब देना होगा. मजदूरों के श्रम अधिकारों पर हो रहे हमलों को अपने जुझारू संघर्ष के बल पर नाकाम करना होगा. महान मई दिवस के संग्राम से प्रेरणा लेकर, मई दिवस के अमर शहीदों के बलिदानों और उपलब्धियों को सहेजकर सामंतवाद, पूंजीवाद एवं साम्राज्यवाद के ताबूत में आखिरी कील ठोंकने की चुनौती और दायित्व हम मजदूर वर्ग एवं अन्य मेहनतकश जनता के समक्ष आ खड़ी हुई है.

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2 Comments

  1. Hridya Nath

    May 1, 2018 at 4:27 pm

    सटीक यथार्थवादी तर्कसंगत प्रस्तुतीकरण। मई दिवस के शहीदों को लाल सलाम।

    Reply

  2. Sakal Thakur

    May 1, 2018 at 4:28 pm

    ऐतिहासिक म ई दिवस जिन्दाबाद दुनिया के मजदूरों एक हो कर लो दूनिया मुट्ठी मे क्योंकि खोने के लिए कुछ भी नहीं जीतने के लिए पूरी दुनिया

    Reply

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