अगर मैं कभी गायब हो जाऊं अचानक से,
कभी निकल जाऊं घर छोड़ के बिना बताए, तो
मेरे भाई मुझे मत ढूंढना,
मुझे मत ढूंढना,
सरकारी कर्मचारी या किसी अधिकारी के लिबासों में
मुझे वहां भी मत ढूंढना,
जहां रहते हों इंसान को इंसान न समझने वाले
मुट्ठी भर अमीर घराने के लोग !
मेरे भाई मुझे वहां मत ढूंढना…
मुझे मत ढूंढना जाति, धर्म,
नस्ल के नाम पर लड़ने-लड़ाने वाले
और धर्म के ठेकेदारों में
मुझे मत ढूंढना बड़ी-बड़ी बिल्डिंगों,
बड़े भवनों और पक्के मकानों में
क्योंकि मैं मिलूंगा…
झुग्गी-झोपड़ी और कच्चे मकानों में
जिसकी बारिश होने पर टपकने लगती हों छतें
मैं मिलूंगा भूख, प्यास से चीखते चिल्लाते और
अपनी पेट भरने के लिए
कचड़े में रोटी ढूंढते हुए बच्चे, बूढ़े और
नौजवानों में,
मैं हमेशा मिलूंगा बलात्कार से चीखती चिल्लाती
बहनों की आवाजों में
अन्त में कहना चाहता हूं मेरे भाई
अगर ढूंढना ही होगा तुम्हें तो
मुझे हमेशा ढूंढना गरीबों, मजदूरों,
छात्रों, नौजवानों और
शोषण, दमन के खिलाफ उठती आवाजों और
इतिहास के किताबों में ..!
- अमरजीत कुमार
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