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उद्योगपतियों के इस सरकार से कोई उम्मीद न रखे

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उद्योगपतियों के इस सरकार से कोई उम्मीद न रखे

गिरीश मालवीय

‘इस सरकार से किसान कोई उम्मीद ना हीं करें तो ठीक है. किसान को अब सत्ता परिवर्तन की ही लड़ाई लडऩी होगी. किसान नौ महीने से देश की राजधानी को घेरे बैठे हैं लेकिन केंद्र सरकार ने आज तक शहीद हुए किसानों के बारे में भी कोई शोक संदेश नहीं भेजा. यह सरकार कुछ कदम उठायेगी ऐसी उम्मीद नहीं दिखती.’

‘हमें अपनी पगड़ी के साथ फसल और नस्ल भी बचानी है वर्ना आने वाली पीढिय़ां हमें माफ नहीं करेंगी. इसके लिए फिर से यह आजादी की लड़ाई छिड़ चुकी है. तीनों कृषि बिल पूरी तरह से देश को विदेशी हाथों में सौंपने की तैयारी है. पहले एक ईस्ट इंडिया कम्पनी भारत में आई थी. उसने देश को गुलाम बना लिया था और अब तो ईस्ट, वेस्ट, नॉर्थ व साउथ सभी दिशाओं से अनगिनत कम्पनियां देश को निगलने के लिये अपना जाल फैला चुकी हैं.’ – राकेश टिकैत द्वारा जारी सन्देश.

संकट में खेती किसानी

मोदी सरकार ने खाद-बीज के बाज़ार को अमेज़न जैसी बड़ी ई-कॉमर्स कंपनियों के लिए खोल दिया है. दो दिन पहले अमेजॉन के किसान स्टोर पर ‘Amazon India’ ने खाद, बीज, कृषि उपकरण जैसे खेती-किसानी से जुड़े करीब 8 हजार उत्पादों की ऑनलाइन बिक्री शुरू की, इसका शुभारंभ खुद कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने किया है. लाखों करोड़ का एग्री बिजनेस चंद सालों में इन बहुराष्ट्रीय कंपनियों की मुट्ठी में होगा.

राकेश टिकैत बिल्कुल ठीक कह रहे हैं कि तीनों कृषि बिल पूरी तरह से देश को विदेशी हाथों में सौंपने की तैयारी है. पहले एक ईस्ट इंडिया कम्पनी भारत में आई थी, उसने देश को गुलाम बना लिया था और अब तो ईस्ट, वेस्ट, नॉर्थ व साउथ सभी दिशाओं से अनगिनत कम्पनियां देश को निगलने के लिये अपना जाल फैला चुकी हैं.’

कृषि क्षेत्र में डिजिटल क्रांति शुरू हो गई है. एग्री बिजनेस में काम कर रही ये कंपनियां खेती के सभी पहलुओं पर डेटा एकत्र करने के लिए दुनिया भर के खेतों पर डिजिटल ऐप की मदद से मिट्टी का स्वास्थ्य, मौसम, फसल पैटर्न , कृषि उत्पाद की जानकारी इकट्ठा कर रही है. इसमें दुनिया के तमाम महत्वपूर्ण बीज और पशुधन और कृषि ज्ञान की वह आनुवंशिक जानकारी शामिल है, जिसे स्वदेशी किसानों ने हजारों सालों में सीखा है.

यह सारा डेटा इन एग्री बिजनेस करने वाली कंपनियों के स्वामित्व और नियंत्रण में जा रहा और यह आर्टिफिशियल इंटलीजेंस के एल्गोरिदम के माध्यम से चलता है, इसी को इकठ्ठा कर के प्रोसेस कर किसानों को ‘नुस्खे’ के साथ वापस बेचा जाता है कि कैसे खेती करें और कौन से कॉर्पोरेट उत्पाद खरीदें ?

बिल गेट्स का बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन (बीएमजीएफ) इस पूरे खेल का एक प्रमुख खिलाड़ी है. पूरी दुनिया मे बिल गेट्स ने कॉरपोरेट्स को लाभान्वित करने के लिए कृषि की दिशा को प्रभावित किया है, अब उसकी नजर दक्षिण एशिया विशेषकर भारत पर है. आपको मैं बार-बार याद दिलाता हूं कि नवम्बर 2019 में बिल गेट्स भारत आए और उन्होंने ऐसे कार्यक्रमों में हिस्सा लिया था, जो कृषि से संबंधी डेटा इकट्ठा करने को लेकर आयोजित किये गए थे.

बिल गेट्स की विश्व के नेताओं तक नियमित पहुंच है और वह व्यक्तिगत रूप से सैकड़ों विश्वविद्यालयों, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों, गैर सरकारी संगठनों और मीडिया आउटलेट्स को व्यक्तिगत रूप से नियंत्रित कर रहे हैं. बिल गेट्स कृषि और फार्मास्युटिकल कॉर्पोरेशन कंपनियों में भारी निवेश कर रहे हैं, बीएमजीएफ का बीज और रासायनिक दिग्गज मोनसेंटो के साथ घनिष्ठ संबंध सर्वविदित है, इसके अलावा बीएमजीएफ कई अन्य बहुराष्ट्रीय एग्री बिजनेस कारपोरेशन के साथ पार्टनरशिप कर है.

अफ्रीका में उन्होंने बड़े पैमाने पर कृषि को कंट्रोल कर लिया है. अफ़्रीका में उनके द्वारा किये इस प्रयोग पर दुनिया भर के सैकड़ों नागरिक समाज समूहों सहित कई आलोचकों का कहना है कि फाउंडेशन की कृषि विकास की नीतियां अफ्रीका में छोटे किसानों और समुदायों की बहुराष्ट्रीय निगमों के वादों को पूरा करने और लाभान्वित करने में विफल हुई हैं.

दिक्कत यहां पूंजीवाद से नही है बिल गेट्स जैसे लोग एकाधिकारवादी लोग से है, और यही समस्या है. यह वैश्विक कृषि व्यवसाय के लाभ के लिए स्वदेशी कृषि को, उससे जुड़ी पूरी व्यवस्था को उखाड़ फेंकना चाहते हैं.

500 ट्रेन बंद लेकिन बुलेट चलेगी

500 ट्रेन बन्द कर रहे है तो बुलेट ट्रेन चलाने की भी क्या जरूरत है ? रेलवे कहती है कि हम विभिन्न रूट पर चलने वाली 500 ट्रेन बन्द करने पर विचार कर रहे हैं क्योंकि उन रूट पर चलने वाली ट्रेनों में टिकट दूसरी ट्रेनों की तुलना में टिकट 30-40 प्रतिशत तक कम बिकते हैं, यानी यात्री कम है.

ठीक है चलिए उनका यह तर्क भी मान लिया जाए तो फिर आप मुम्बई अहमदाबाद लाइन पर बुलेट ट्रेन चलाने के विचार को भी छोड़ दीजिए क्योंकि इस रुट की ट्रेनों में भी 40 फीसदी सीटें खाली रहती हैं.

दरअसल यह जानकारी एक आरटीआई आवेदन के जरिए सामने आई थी. 2017 में मुंबई के कार्यकर्ता अनिल गलगली को मिले आरटीआई के जवाब में पश्चिम रेलवे ने कहा था कि ‘इस क्षेत्र की ट्रेनों में 40 फीसदी सीटें खाली रहती हैं, और इससे पश्चिम रेलवे को भारी नुकसान हो रहा है. इस रुट पर पिछले तीन महीनों में 30 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है, यानी हर महीने रेलवे को 10 करोड़ रुपए का नुकसान हो रहा है.’

आरटीआई में भारतीय रेलवे ने यह भी स्वीकार किया था कि इस क्षेत्र में उसकी कोई नई ट्रेन चलाने की योजना नहीं है, क्योंकि यह पहले ही घाटे में है.

मुम्बई अहमदाबाद रूट पर हवाई सुविधा की बात की जाए तो साप्ताहिक रूप से इस रूट पर 135 फ़्लाइट उपलब्ध रहती है, जिसका किराया 3300 के लगभग है. लगभग महीने भर पूर्व टिकट बुक कराने पर यह किराया और भी कम लगभग ( 1500/-) हो जाता है.

हवाई यात्रा में लगने वाला समय भी मात्र 1 घण्टा 10 मिनट है. इसकी तुलना में बुलेट ट्रेन यदि अपने निर्धारित स्टॉपेज पर रुकती है तो उसका समय किसी भी परिस्थिति में 3 घण्टे से कम नहीं होगा.

बुलेट ट्रेन का प्रतिव्यक्ति किराया भी 3000 के आसपास ही होगा यानी शुरुआत में कुछ दिन तो भीड़ होगी लेकिन बाद में कोई मूर्ख ही होगा जो बुलेट ट्रेन में बैठकर मुंबई-अहमदाबाद जाएगा.

साफ दिख रहा है कि आप यदि देश भर में 500 ट्रेन सिर्फ कम यात्री मिलने की वजह से बन्द की जा रही है तो इसी आधार पर बुलेट ट्रेन बिल्कुल फेल योजना है, तो फिर देश के हजारों करोड़ रुपये बहुमूल्य श्रम और समय क्यों बर्बाद किया जा रहा है ? इस बात का नरेंद्र मोदी जवाब दे !

जेट एयरवेज की उड़ान संकट में

दीवालिया अदालतों की समाधान योजना पूरी तरह से चंद पूंजीपतियों के पक्ष में झुकी हुई नजर आ रही है. कल तक जेट एयरवेज की उड़ान के नए मालिकों द्वारा उड़ान भरने के दावे किए जा रहे थे लेकिन आज खबर आई है कि पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) ने नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्राइब्यूनल (NCLAT) से जेट एयरवेज के लिए समाधान योजना को रद्द करने की मांग की है और पीएनबी की याचिका स्वीकार भी कर ली गई है.

पीएनबी से पहले जेट एयरवेज के केबिन क्रू और ग्राउंड स्टाफ कर्मचारियों के समूहों ने भी समाधान योजना पर रोक लगाने की मांग की थी. उसका कारण यह था कि उनमें से प्रत्येक को सिर्फ 23 हजार-23 हजार रुपये ही दिये जा रहे थे जबकि उनकी ढाई लाख से लेकर 85 लाख की रकम जेट पर बकाया थी, लेकिन उनकी मांग नहीं मानी गयी.

इसी साल जून महीने में राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) ने जेट एयरवेज के लिए जालान-कलरॉक गठजोड़ की दिवाला समाधान योजना को मंजूरी दी थी.
दरअसल आप वीडियोकॉन का उदाहरण ले लीजिए या जेट एयरवेज का दोनों ही जगहों पर आप पाएंगे कि एनसीएलटी ने ऐसे रिजोल्यूशन प्रोसेस को स्वीकार किया है जिसमें ऋणदाताओं को भी बेहद घाटा हुआ है और कर्मचारियों को भी. शेयर धारक तो सबसे पहले मराया है.

जेट में एनसीएलटी में पंजाब नेशनल बैंक ने समाधान योजना में भारी अनियमितता का आरोप लगाया है. पीएनबी का कहना है कि इस प्रक्रिया में मनमाने तरीके से गिरवी रखे शेयर के वैल्यू को घटा दिया गया, जो पूरी तरह अवैध है.

इस योजना में कर्जदाता बैंक अपने कर्ज का केवल 5% ही रिकवर कर पाए हैं. जेट एयरवेज के नए मालिक बैंकों को 7,810 करोड़ रुपये के कर्ज के एवज में केवल 380 करोड़ रुपये देंगे. इस रेजोल्यूशन प्लान के मुताबिक, लेंडर्स को 6 महीने के अंदर 190 करोड़ रुपये अपफ्रंट कैश के रूप में मिलेंगे, बाकी रकम उन्हें जीरो कूपन बॉन्ड के जरिये मिलेगा.

यानी बैंक को वास्तव में लगभग नही के बराबर रकम मिल रही है, यही हाल वीडियोकॉन के रिजोल्यूशन प्रोसेस का भी हुआ है. इसका मतलब साफ है कि एनसीएलटी यानी दीवालिया अदालत कोरोना काल के बाद जो भी डिसीजन ले रही है, इसमें सिर्फ और सिर्फ बड़े उद्योगपतियों को ही फायदा हो रहा है.

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