नील लोहित के दर्शन में
नील कंठ का दर्शन नहीं होता
यात्रा पर निकलने से पहले
सगुन की बारिश की फुहारों में
भीगा हुआ मन
तुम्हारे तन तक पहुंचने के बहुत पहले
मर जाता है
नाभि नाल से बिछुड़ने के बाद
आदमी स्वतंत्र है
रोने चीखने के लिए
और मांगने के लिए वह सब कुछ
जो उसका हक़ है
और, जिसे उसे छीन लेने की
पूरी आज़ादी है
नील कंठ नील लोहित बन कर
जब पसर जाता है
छत के उपर
घामड़ मेघ बरस जाते हैं
उमस भरे कमरों में
दीवारों पर उगे फंफूद
बासी डबल रोटी के उपहार हैं
सब्जां, जिन्हें उगाया गया है
उनके बागों में
बहुत जतन से
मेरे जन्मदिन पर
मुझे देने के लिए
नील लोहित का उपहार
नील कंठ अब नहीं दिखते
कट चुकी हैं अमराइयां
अब अफ्रीकी आम का बाज़ार है
जिस्म ढोती नदियों के पानी में
मुक्ति एक अनर्गल प्रलाप है हुज़ूर
नदी, जो कल तक बहा ले जा रही थी आसमान
आज शर्मसार है अपने वजूद पर
दुनिया के मानचित्र पर
यूं तो आज भी
ज़मीन का रंग भूरा है और
जल का रंग नीला है
फिर भी
तीन चौथाई का
एक चौथाई द्वारा
लील लेना भी उतना ही सच है
जितना कि
जीभ में गड़े हुए पैने दांत
ये लव बाइट्स नहीं हैं
कि नाभि के नीचे की उत्तेजना
छेद जाए ब्रह्म तालु को
बरछी की तरह
ये अंतड़ियों का आहार करने वाली
प्रशमित क्षुधा के पैने दांत हैं
अभ्यारह्न में
हम्ल में पलते हुए बच्चे
और, जंगल से जलावन बटोर कर लौटी
उसकी मां की कहानी है
जिसका पति मारा गया है
मुठ्ठी भर चावल की तलाश में
लहलहाते धान खेतों के बीच
उनकी गोलियों से
जिन्हें दंभ था नील लोहित होने का
कल सुबह
कंगाली भोजन का पुख़्ता इंतज़ाम है
डुगडुगी बजा कर बताया गया है सब को
कल सुबह
सांप के बिल से निकलने के पहले
उसकी आंखें ढूंढेंगी
नील कंठ
और सामने होगी
एक पवित्र नदी !
- सुब्रतो चटर्जी
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