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अमेरिका की मंहगाई दिखाकर भारत की मंहगाई को स्थापित नहीं कर सकते

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संसद में प्रश्नकाल के दौरान प्याज की बढ़ती कीमत पर सवाल का चटपटा सा जवाब देते हुए जेएनयू से पढ़ी भारत की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था कि वह प्याज नहीं खाती. यानी, चूंकि वह प्याज नहीं खाती इसलिए उसे प्याज के कीमत के बढ़ने से कोई मतलब नहीं है. अब उसी वित्त मंत्री ने अमेरिका में पहुंच कर अमेरिकी पत्रकार के रुपये की गिरती दशा के प्रश्न पर बड़ा ही रोचक जवाब दिया कि ‘रुपया कमजोर नहीं हुआ, डॉलर मजबूत हुआ है.’

इसके बाद ही गिरता रुपया, चढ़ता डॉलर पर गजब-अजब रिसर्च पेपर प्रस्तुत किया जा रहा है, इसमें से एक यह है कि 82 रुपया में (आज डॉलर का भाव ₹82.28 है) में आप जितना सामान खरीद सकते हैं, क्या आप 1 डॉलर में उतना खरीद सकते हैं ? जवाब नहीं में दिया जा रहा है और इसके प्रमाण में एक दिन के भोजन खरीद से इसकी तुलना की जा रही है कि अमेरिका और भारत में एक वक्त के भोजन का मूल्य क्या होता है.

एक खबर में बताया गया है कि अमेरिका में 1 दिन के खाने की कीमत लगभग 8 से 10 डॉलर के बीच पड़ता है. यानी अगर रुपए में बदले तो लगभग 650 रुपये से 820 रुपये तक पड़ता है. यहां तक कि अमेरिका में एक बर्गर की कीमत 9 डॉलर पड़ता है, जो भारतीय रुपयों में 740 रुपये का होता है. अमेरिका में ज्यादातर लोग रेस्टोरेंट में खाना पसंद करते हैं तो उसके लिए बकायदा एक डाटा प्रस्तुत करते हैं, मसलन –

यानी, एक अमेरिकी अपने भोजन पर एक दिन में 9 डॉलर खर्च करता है, जो भारतीय रुपये में 740 रुपये होता है, जो एक आम भारतीय के हिसाब से बहुत ज्यादा है. अब इस अमेरिकी भोजन की तुलना भारतीय भोजन से करने के लिए एक और तस्वीर का इस्तेमाल किया गया है –

स्त्रोत – https://m.indiamart.com/proddetail/special-veg-thali-20904361988.html

भारतीय भोजन का एक थाली 145 रुपये में आता है, जो लगभग 1.76 डॉलर के करीब आता है, जो अमेरिकी 9 डॉलर की तुलना में बहुत सस्ता है. इन दोनों तस्वीरों का तुलनात्मक अध्ययन कर यह दिखाने की कोशिश की जा रही है कि भारत की तुलना में अमेरिका में मंहगाई बहुत ज्यादा है. यानी, भारत में मंहगाई की बात करने वाले यह नहीं जानते हैं कि अमेरिका कितना मंहगा है, उसके तुलना में भारत में मंहगाई डायन नहीं, डार्लिंग है, जिसका स्वागत किया जाना चाहिए. यही कारण है कि जो मंहगाई की बात करते हैं असल में वह देशद्रोही हैं, जो केन्द्र की मोदी सरकार को बदनाम कर रहे हैं.

यानी, 2014 के पहले डॉलर के मुकाबले रुपये उसी देश का गिरता था, जिसका प्रधानमंत्री गिरा हुआ होता था, 2014 के बाद यह बुनियादी बदलाव आया कि डॉलर के मुकाबले रुपया नहीं गिरता है, डॉलर मजबूत होता है. इसी तरह मंहगाई का भी हाल है. यानी, 2014 से पहले मंहगाई डायन थी, 2014 के बाद मंहगाई डार्लिंग बन गई है.

अमेरिका और भारत में वेतन का अंतर

अब हम मंहगाई और रुपये की गिरते मूल्य से अलग लोगों की आमदनी को देखते हैं. संयुक्त राज्य अमेरिका में अच्छी पोस्ट वाले वर्कर ( America worker salary ) की न्यूनतम सैलरी लगभग प्रतिमाह 500 डॉलर से अधिकतम 4595 डॉलर तक होता है. अर्थात भारतीय मुद्रा (₹82.33/डॉलर) में न्यूनतम वेतन 1,71,997 रुपया से 3,78,328.41 रुपया तक होता है.

  • अमेरिका में एक मजदूर की सैलरी प्रतिमाह 2,089 डॉलर से 4,200 डॉलर होती है, जो भारतीय मुद्रा में लगभग 1,67,016 रुपया से 3,35,821 रुपया होता है लेकिन वह मजदूर को थोडा शिक्षित होना चाहिए.
  • अमेरिका में ड्राइवर की सैलरी प्रतिमाह लगभग $700 से 2000 डॉलर तक होता है. यानी भारतीय रुपयों में 57,634.36 से 1,64,669.6 रुपया तक होता है.
  • अमेरिका में हेल्पर का न्यूनतम सैलरी 500 डॉलर से 5400 डॉलर तक होता है. लेकिन हेल्पर को 1 – 2 वर्ष का अनुभव होना चाहिए और कम से कम 10th या 12th पास होना चाहिए. यह सैलरी भारतीय रुपयों में 41,167.40 से 444607.70 तक होता है.
  • अमेरिका में एक सरकारी स्पेशलिस्ट डॉक्टर की प्रतिमाह सैलरी लगभग 15,285 डॉलर तक होती है. अर्थात भारतीय रुपयों में यह लगभग 12,58,487.41 रूपए होता है.

ये अमेरिका में वहां कामकाजी लोगों की सैलरी है, अब इसी आंकड़ों की तुलना हम विश्व गुरु भारत के कामकाजी लोगों से करते हैं. हलांकि भारत में मजदूरी अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग है, और न्यूनतम राष्ट्रीय मजदूरी की कोई निर्दिष्ट दर नहीं है, जो भी है वह जरूरत के हिसाब से घटता बढ़ता रहता है, और तो और कभी दिया भी नहीं जाता है. अगर किसी ने मजदूरी मांग लिया तो उसकी हत्या तक कर दी जाती है. फिर भी एक आंकड़ा प्रस्तुत करने की कोशिश करते हैं.

भारत में औसत वेतन एक निश्चित आंकड़ा नहीं है और यह स्थान, योग्यता, आवश्यक अनुभव आदि पर निर्भर है, जो पूरे देश में भिन्न हो सकता है. 2022 में हाल के अध्ययनों के अनुसार, भारतीय औसत वेतन लगभग ₹3,87,500 प्रति वर्ष है जो लगभग ₹32,840 प्रति माह है. यह जुलाई 2022 की विनिमय दरों के अनुसार प्रति माह 422.03 अमेरिकी डॉलर के बराबर है.

दैनिक वेतन और मासिक वेतन में अंतर है. भारत में न्यूनतम मजदूरी दर ₹170 प्रति दिन या ₹4,500 प्रति माह है. भारत में, देय न्यूनतम मजदूरी 1948 न्यूनतम मजदूरी अधिनियम द्वारा निर्धारित की जाती है. राज्य मजदूरी दर निर्धारित करते हैं, और इस प्रकार, हमारे देश में एक भी निश्चित राष्ट्रीय मजदूरी दर नहीं है इसलिए राज्य-वार मजदूरी भिन्न होती है.

भारत में 2021 में औसत वेतन ₹29,400 प्रति माह है. इसका मतलब है कि आधे भारतीय भारत में इस औसत कमाई से कम कमाते हैं, जबकि बाकी आधे हर महीने ज्यादा कमाते हैं. भारत का औसत वेतन विनिर्माण, आईटी, ग्राहक सेवा आदि जैसे क्षेत्रों में काफी भिन्न होता है. यह इनमें से प्रत्येक खंड में नौकरी के प्रकार, नौकरी प्रोफ़ाइल, पूर्णकालिक, फ्रीलांसिंग या अंशकालिक आदि के साथ भी भिन्न होता है.

नीचे दी गई तालिका ग्लासडोर के अनुसार औसत प्रति माह वेतन के पेशे से वेतन सूची है –

पेशा भारत में प्रति माह औसत वेतन (₹) अमरीकी डालर में समतुल्य ($)
प्रोग्राम मैनेजर ( भारत में आईटी कर्मचारी वेतन) 1,81,250 2,329.35
प्रोजेक्ट मैनेजर 1,60,000 2,055.91
डाटा साइंटिस्ट ( भारत में आईटी वेतन) 1,28,895 1,656.23
हेल्थकेयर में सलाहकार 79,166 1,017.24
जीवन विज्ञान में सलाहकार 1,16,858 1,501.62
चार्टर्ड एकाउंटेंट 70,000 899.49
मानव संसाधन प्रबंधक 58,168 747.45
डेटा विश्लेषक 66,666 856.65
डेवलपर/इंजीनियर सॉफ्टवेयर 58,333 749.57
कानूनी सलाहकार 39,714 510.32
जावा डेवलपर 41,184 529.22
आंतरिक साजसज्जा विशेषज्ञ 25,538 328.17
रेस्तरां मैनेजर 34,429 442.42
पत्रकार 30,758 395.25
मुनीम 20,500 263.43
यांत्रिकी अभियंता 32,250 414.45
शिक्षक 25,000 321.28
कंटेंट लेखक 23,951 307.78
ग्राफिक डिजाइनर 25,392 326.30
तथ्य दाखिला प्रचालक 15,990 205.48

कमाई और मंहगाई का तुलनात्मक अध्ययन

भारत धार्मिक अंधविश्वासियों का देश है, जहां तथ्य से ज्यादा अफवाहों पर लोग ध्यान देते हैं और उसके अनुसार अपना सोच बदलते और व्यवहार करते हैं. गणेश को दूध पिलाने की बारदात को छोड़ भी दें तो महज अफवाह पर सत्ता तक पलट दी जाती है. मसलन, कैग के द्वारा जारी रिपोर्ट में विनोद राव ने फर्जी तरीके से 2जी स्पैक्ट्रम घोटाला, कोयला घोटाले को पेश किया और दलाल मीडिया ने दिन-रात इस तरह दिखाया मानो बस कांग्रेस को सत्ता से हट जाना चाहिए. कांग्रेस सत्ता से हट गई. अब कैग के किसी ‘विनोद राव’ की औकात नहीं है कि मोदी शासनकाल के दौरान हो रहे घोटाले पर उंगली उठा सके.

कांग्रेस शासनकाल में डॉलर के मुकाबले 56 रुपये वाली गिरावट प्रधानमंत्री की इज्ज़त से तुलना की जाती थी और मीडिया चैनल्स चीख-चीखकर प्याज की तरह छीलका उतार कर दिखाती थी, अब किसी चैनल्स की औकात नहीं है एक भी शब्द बोल देने की, जबान छील दी जायेगी. इसीलिए अब डॉलर की तुलना में रुपये के गिरने का संबंध प्रधानमंत्री की इज्ज़त से नहीं होती है, बल्कि डॉलर की मजबूती से होती है और प्रधानमंत्री की इज्जत को बढ़ाती है.

इसी तरह कांग्रेसी शासनकाल में 400 में मिलने वाला गैस सिलेंडर और 60 रुपये में मिलने वाला पेट्रोल मंहगा लगता था. अमिताभ बच्चन के बोल फूट पड़ते थे, लोग सड़कों पल नंगा होकर ‘डांस’ करते थे परन्तु अब 1200 रुपये का गैस सिलेंडर, 120 रुपये लीटर वाला पेट्रोल लोगों को मंहगा नहीं लगता, अब वह इज्जत बढ़ता है. अमिताभ बच्चन की जबान को लकवा मार जाता है. ओठ सिल जाता है.

आखिर ऐसा क्यों है ? ऐसा इसलिए है कि देश के धार्मिक अंधविश्वासियों के ज्ञान और जानकारी का स्त्रोत चौबीस घंटे चलने वाला टीवी मीडिया, ह्वास्ट्स अप और अखबारों से ज्ञान हासिल करता है. अगर उसके ज्ञान के इस स्त्रोत पर कब्जा जिस तरह के लोग कर लेगा, सारा जनमत उसके समर्थन में खड़ा हो जायेगा. दुर्भाग्य से ‘ज्ञान के इस स्त्रोत’ पर हत्यारे-बलात्कारियों का संघ-भाजपा गिरोह ने कब्जा कर लिया है.

यही कारण है कि अब हत्या, बलात्कार समेत कांग्रेस काल की तमाम समस्याएं उपलब्धि बन गई है, मसलन, हत्यारे और बलात्कारियों का फूल-माला पहनाकर स्वागत किया जाता है, मंहगाई, बेरोजगारी, छंटनी वगैरह उपलब्धि बन गया है. बढ़ती मंहगाई घटता वेतन एक नई उपलब्धि है. इसलिए अमेरिका की मंहगाई दिखाकर भारत की मंहगाई को जस्टिफाई नहीं किया जा सकता. अमेरिका में अगर मंहगाई है तो वेतन भी ज्यादा है.

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