Home गेस्ट ब्लॉग सदियों से सार्वजनिक और वैज्ञानिक शिक्षा से वंचित भारतीय दोगली मानसिकता वाला धरती के अजूबा प्राणी

सदियों से सार्वजनिक और वैज्ञानिक शिक्षा से वंचित भारतीय दोगली मानसिकता वाला धरती के अजूबा प्राणी

8 second read
0
0
135
राम अयोध्या सिंह

संघियों और भाजपाईयों के दिलोदिमाग में सांप्रदायिकता का जहर इस कदर गहरे बैठा है कि वे बिना हिन्दू-मुसलमान किये रह ही नहीं सकते हैं. सांप्रदायिकता उनकी सोच की पहली और अंतिम सीमा है. उनकी बौद्धिकता सांप्रदायिकता से शुरू होकर सांप्रदायिकता पर खत्म भी होता है.

वे किसी भी महत्वपूर्ण पद पर पहुंच जायें, उनकी मानसिकता में कोई भी बदलाव संभव नहीं है. अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के धर्मनिरपेक्ष नागरिक संहिता की पृष्ठभूमि, परिपेक्ष और संदर्भ भी मुस्लिम तुष्टिकरण और सांप्रदायिकता ही है, और कुछ नहीं.

भारतीय मानस झूठी, काल्पनिक, मनगढंत और अतार्किक बातों पर तो आसानी से विश्वास कर लेते हैं, पर तर्क पर आधारित और विज्ञान द्वारा सिद्ध बातों पर विश्वास नहीं करते.

जीवन में सुख के लिए विज्ञान द्वारा उत्पादित हर आधुनिक और आरामदेह हर तरह की भौतिक वस्तुओं की चाह करने वाले दिमागी तौर पर आज भी उन्हीं पौराणिक ग्रंथों, कपोल काल्पनिक कथाओं, रामायण और महाभारत की झूठी कहानियों, अलौकिक सिद्धियों, चमत्कार और ऋषि-मुनियों की तपस्या की झूठी कहानियों को आंख मूंदकर स्वीकार कर लेते हैं.

हर तरह के पापकर्म, दुष्कर्म, भ्रष्टाचार और व्याभिचार में आकंठ डूबे रहते हैं, पर हर पल धर्म और नैतिकता की दुहाई भी देते रहते हैं. सच में, भारतीय दोहरे चाल-चरित्र और दोगली मानसिकता के साथ जीने वाले धरती के अजूबा प्राणी हैं.

भारतीय जनमानस को सदियों से सार्वजनिक और वैज्ञानिक शिक्षा से वंचित रखा गया है. उन्हें बौद्धिक वाद-विवाद और संवाद के लिए कोई अवसर ही नहीं दिया गया है. शिक्षा हमेशा ही ब्राह्मण के अनन्य क्षेत्राधिकार में रहा है.

पढ़ना, लिखना और उसकी व्याख्या करना भी सिर्फ ब्राह्मणों के जिम्मे ही रहता आया है. पढ़ाने के लिए गुरू का कार्य भी सिर्फ ब्राह्मण ही कर सकते थे. सबसे बड़ी बात यह कि ब्राह्मण जो कुछ भी बताये या पढ़ाये उसे आंख मूंदकर मानना अनिवार्य रहा है.

शिष्य को गुरू से प्रश्न करने का कोई अधिकार कभी भी नहीं रहा है, और यह परंपरा आजतक भी चली आ रही है. विद्यार्थी को अपने गुरु से प्रश्न पूछने का अधिकार हमेशा के लिए छीन लेने की परंपरा सिर्फ भारत में ही रही है.

ब्राह्मणों ने अपनी लिखी पुस्तकों को ब्रह्मा द्वारा लिखित बताया, जिस पर किसी भी तरह का संदेह करना पाप और ब्रह्म वाक्य की तौहीन है. इन पुस्तकों को ‘धर्मग्रंथ’ कहा गया और धर्म और ईश्वर से जोड़कर इनका ऐसा महिमामंडन किया गया कि इसे ईश्वर की वाणी भी कहा गया.

इस तरह से ब्राह्मणों ने अपने द्वारा लिखित पुस्तकों को ईश्वरीय साबित किया, जिसका परिणाम यह हुआ कि आमलोग ब्राह्मणों से डरने लगे और उनके द्वारा लिखित पुस्तकों को भी ईश्वरीय मान लिया.

लिखने वाले ब्राह्मण, पढ़ाने वाले ब्राह्मण और उनकी व्याख्या करने और अर्थ बतलाने वाले भी ब्राह्मण, ऐसे में किसकी मजाल होगी कि वह ब्राह्मण की कही बातों पर कोई शंका करे, अविश्वास करे, आलोचना करे, या फिर अपने शंका समाधान के लिए उनसे बहस करे.

स्पष्ट है कि जब बहुसंख्यक मानव समुदाय को पढ़ने, लिखने, शंका और आलोचना करने, लिखे की व्याख्या करने, वाद-विवाद-संवाद करने और यहां तक की आत्मचिंतन से भी वंचित कर दिया गया हो, तो उसका परिणाम वही होना था, जो आजतक भारत में हो रहा है.

भारत बौद्धिक रूप से हमेशा के लिए दरिद्र हो गया. आज भी भारतीय ब्राह्मण द्वारा लिखित कपोल काल्पनिक ग्रंथों पर तो आंख मूंदकर विश्वास करते हैं, पर दूसरों की लिखित पुस्तकों की तार्किक और सच्ची बातों को भी स्वीकार करने में हिचकते हैं.

चुंकि भारतीयों का संपूर्ण जीवन ही किसी न किसी तरह से ब्राह्मणों द्वारा निर्देशित होता रहा है, इसलिए स्वाभाविक है कि जो कुछ भी ब्राह्मण कहें, उसे ही सत्य मान लिया जाये, और दूसरों की सच्ची बातों को भी संदेह की दृष्टि से देखें.

अपनी गलत, झूठी और कपोल काल्पनिक बातों एवं कथाओं का औचित्य सिद्ध करने और उन्हें एकमात्र प्रामाणिक साबित करने के लिए उन्हें ईश्वरीय कहा गया, और उनका अक्षरशः पालन करने के लिए राजसत्ता का सहारा लिया गया. राजसत्ता भी ब्राह्मणों के इशारे पर नाचती रही, और उनके कथनानुसार आमजन पर जुल्म करती रही. इस तरह ब्राह्मणों ने ब्राह्मणवाद, वर्णाश्रम धर्म और मनुवाद को बहुसंख्यक समाज द्वारा अनुपालन के लिए धर्म, ईश्वर और राजसत्ता की शक्ति का सहारा लिया.

नतीजा यह हुआ कि भारतीय हमेशा के लिए बौद्धिक क्षमता के विकास, तार्किकता, वैज्ञानिकता, विवेकशीलता, नवोन्मेष, सत्यान्वेषण तथा वाद-विवाद-संवाद की सतत प्रक्रिया से हमेशा के लिए वंचित रह गये, परिणामस्वरूप भारतीयों ने बौद्धिक जड़ता का शिकार होकर यथास्थितिवाद, दक्षिणपंथ और प्रतिक्रियावाद को ही सर्वश्रेष्ठ विचारधारा के रूप में स्वीकार कर लिया, जिसमें आजतक भी कोई खास बदलाव देखने को नहीं मिलता है.

आम भारतीयों की इसी मानसिकता और बौद्धिक दरिद्रता का नाजायज फायदा आज संघ, भाजपा और मोदी सरकार उठा रहे हैं. विगत दस वर्षों से सरकारी खजाने की लूट से लेकर देश की सारी संपत्ति, संपदा और प्राकृतिक संसाधनों के साथ-साथ ही आवागमन के सभी साधनों, सरकारी लोक-उपक्रमों, कंपनियों और निगमों को भी पूंजीपतियों और कारपोरेट घरानों के हाथों कौड़ियों के मोल बेचा जा रहा है, और हम मुंह खोलने की भी हिम्मत नहीं जुटा रहे हैं.

आज भी धर्म और राष्ट्र का सहारा लेकर आमजन को गुमराह किया जा रहा है, और देश के संसाधनों को लूटा जा रहा है. देश भर में बाबाओं, साधुओं, संतों, पंडों, पुरोहितों, धर्माचार्यों और शंकराचार्यो को जनता को गुमराह करने के लिए अधिकृत कर दिया गया है. मंदिरों का निर्माण, जीर्णोद्धार और पुनरोद्धार का कार्यक्रम युद्धस्तर पर चल रहा है.

दूसरी ओर बहुसंख्यक मेहनतकश अवाम गुलामी, गरीबी, लाचारी, भूखमरी और जलालत की जिंदगी जीने के मजबूर है, और पूंजीपति, कारपोरेट घराने, नौकरशाही तथा उच्च मध्यमवर्ग दोनों हाथों से देश की जनता को लूट रहे हैं, और जनता इन्ही लूटेरों की जयजयकार कर रही है. भारत की यही सबसे बड़ी त्रासदी और विडम्बना है.

Read Also –

 

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]

scan bar code to donate
scan bar code to donate
G-Pay
G-Pay

ROHIT SHARMA

BLOGGER INDIA ‘प्रतिभा एक डायरी’ का उद्देश्य मेहनतकश लोगों की मौजूदा राजनीतिक ताकतों को आत्मसात करना और उनके हितों के लिए प्रतिबद्ध एक नई ताकत पैदा करना है. यह आपकी अपनी आवाज है, इसलिए इसमें प्रकाशित किसी भी आलेख का उपयोग जनहित हेतु किसी भी भाषा, किसी भी रुप में आंशिक या सम्पूर्ण किया जा सकता है. किसी प्रकार की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है.

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

1917 की महान अक्टूबर क्रांति पर : संयासवाद नहीं है मार्क्सवाद

भारत में एक तबका है, जिसका मानना है कि कम्युनिस्टों को दुनिया की किसी चीज की जरूरत नहीं है…