विदेश मंत्री जय शंकर का यह ताज़ा बयान कि भारत प्रति व्यक्ति 2000 डॉलर (160000 रू. आय प्रतिवर्ष यानी क़रीब 13333/ रू. प्रति माह यानी 438 रू. रोज) की अर्थव्यवस्था है, भी अर्धसत्य है कि इसमें अडाणी जैसे धनपशुओं, उच्चवर्ग और मध्य वर्ग की घनघोर अनैतिक आमदनी भी शामिल है. मेरा मानना है कि प्रति व्यक्ति गरीब की आमदनी बतानी चाहिये और ग़रीबों की सही तादाद भी.
यह भी कहना सरासर ग़लत है कि तेल की क़ीमतें हमारी कमर तोड़ रही हैं. यह आज से नहीं हमेशा से तोड़ रही हैं और जब नहीं तोड़ रही होतीं हैं जैसे आजकल तो भी भारत सरकार इंधन के दाम तीन चार गुने रखकर जनता की कमर तोड़ती रहती है जो कि हमने पिछले आठ बरसों में देखा है.
सच्चाई यह है कि भारत में 80 करोड़ लोगों के लिये पांच किलो अनाज फ़्री में मिलना भी महत्वपूर्ण है, जिसके लिये वे एक उत्पादक दिन लाइन में लगने और नेताओं का निर्रथक भाषण सुनने को मजबूर होते हैं. मनरेगा में शामिल भूमिहीन, निर्माण कामों में लगे और घरेलू काम करने वाले शहरी मज़दूर, हाथ का रिक्शा चलाने वाले, अशिक्षित देहाती बेरोज़गार, शहर के चौराहों पर काम मांगते दैनिक श्रमिक, निम्नवर्ग आदि सब मिलाकर 100 करोड़ लोगों की प्रति व्यक्ति औसत आमदनी 2000 डॉलर यानी क़रीब डेढ़ लाख रूपया प्रतिवर्ष नहीं हैं तो कितनी है ?
नीति आयोग कहेगा डाटा नहीं है. निर्मला आंटी कुछ भी अनर्गल कह सकती है और सामने बैठे पत्रकारों के सवालों के जवाब में यह बोलने की जुर्रत कर सकती है कि यूपी टाइप बात मत करो. भारत के असली अर्थशास्त्र से अनभिज्ञ विश्वबैंक के आदेशों और खरबपतियों के लिये चलाई जा रही एक बदमाश कुपढ टीम देश चलाने के नाम पर भट्टा बिठाती ही जा रही है.
डॉ. लोहिया ने आज से 58 बरस पहले संसद में प्रधानमंत्री नेहरू से कहा था कि भारत का गरीब साढ़े चार आना (तब यही हिसाब चलता था – एक रूपया में 16 आना) यानी 28 पैसे रोज पर गुज़ारा करता है और प्रधानमंत्री के जीवन पर कुल बीस हज़ार रूपया रोज़ खर्च होता है. नेहरू जी ने प्रतिवाद किया, तीखी बहस हुई और अंतत: योजना आयोग के हिसाब पर माना गया कि साढ़े चार आना नहीं बारह आना (75 पैसे ). लोहिया ने उसे भी झूठ साबित किया कि कैसे साढ़े चार आना सही गणना है.
तबसे समय और आमदनी बदली है, पर महंगाई भी बढ़ी है. आज भी भारत का 80 करोड़ बदहाल कुपोषित अशिक्षित पूरे साल उत्पादक काम नहीं कर पाता है, मिलता ही नहीं है. आज प्रधानमंत्री मोदी की सुरक्षा पर सिर्फ़ एनएसजी का बजट ही 400 करोड़ प्रति वर्ष से ऊपर है जबकि हर रोज़ के दौरे पर एक सभा में राज्यों के पांच हज़ार जवान नियुक्त होते हैं जिनका रोज़ का वेतन ही क़रीब 1200-1500 रूपया औसतन पड़ता है. यानी सब वाहन भत्तों समेत कुल क़रीब 1.8 करोड़ रूपया एक सभा का मात्र राज्य द्वारा सुरक्षा पर.
इसके अतिरिक्त विमान, हेलिकॉप्टर, वातानुकूलित मंच, रेन प्रूफ़ शामियाने, साउंड, कुर्सियों, नई सड़कें, सजावट, इलेक्ट्रॉनिक पर्दों व प्रचार पर क़रीब पांच से सात करोड़ रूपया प्रति माह औसतन. सब मिलाकर एक दिन के दौरे पर कम से कम बीस करोड़ रूपया प्रधानमंत्री पर खर्च होता है, जो इस देश का नागरिक वहन करता है.
बहुत सारे अन्य खर्चे मैं तब बताऊंगा जब कोई इस पर सार्वजनिक बहस करने को तैयार हो. यानी बीस हज़ार की जगह अब बीस करोड़ रूपया का प्रतिदिन न्यूनतम खर्च है प्रधानमंत्री पर और देश का 80 करोड़ मुफ़लिस गरीब प्रतिव्यक्ति 67 रूपया रोज़ पर गुजर करता है. यह हिसाब वहीं पहुंच गया जो जयशंकर ने अभी बताया लेकिन सबकी आमदनी शामिल कर. मेरा हिसाब पक्का और पूरा है और प्रमाणित किया जा सकता है.
भारत सरकार आज उन्हें ग़रीबी रेखा के नीचे मानती है जो 27-33 रूपया रोज़ अपने जीवन पर खर्च करते हैं और यह कुल आबादी 10 करोड़ है. यह तत्काल झूठ न भी माना जाये तो मेरे आंकड़े के अनुसार जैसे ही गरीब 33 रूपया रोज से ऊपर खर्च करता है, उसका आंकड़ा सरकार नहीं रखती और डिलीट कर देती है. यही आबादी 80 करोड़ है.
भारत की यह विषमता तब और गहरी व अन्यायपूर्ण हो जाती है जब इस हिसाब के साथ ऊपर के दस धनपशुओं की प्रतिदिन आमदनी पर गौर करें. जो सार्वजनिक डोमेन है यदि उसी को मान लें तो आज अडाणी की आमदनी प्रति दिन मात्र शेयर बाज़ार के उठने गिरने पर ही औसतन 1600 करोड़ रूपया प्रतिदिन है (2021 का आंकड़ा).
ट्रिलियन-ट्रिलियन की टर्र-टर्र करने वाले ब्रिटेन से आगे निकले की झूठी हवा बनाने वाले यह क्यों नहीं बताते कि आबादी के लिहाज़ से ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था का आकार नहीं बल्कि औसत प्रतिव्यक्ति आमदनी कितनी है ? भारत से बीस गुनी ज़्यादा है, कुपित पात्रा जी !
आपकी न आंखें फटेंगीं और न ही तुम्हारे मन में कोई जुगुप्सा या हलचल होगी. ग़ुलाम मानसिकता के देश से और क्या अपेक्षा हो सकती है ? आज़ादी का अमृत महोत्सव मना लिया अब इतनी आज़ादी काफ़ी है, अगली ग़ुलामी के लिये तैयार हो जाओ !
- राम शंकर सिंह
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