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ठगों का देश भारत : ठग अडानी के खिलाफ अमेरिकी कोर्ट सख्त, दुनिया भर में भारत की किरकिरी

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ठगों का देश भारत : ठग अडानी के खिलाफ अमेरिकी कोर्ट सख्त, दुनिया भर में भारत की किरकिरी
ठगों का देश भारत : ठग अडानी के खिलाफ अमेरिकी कोर्ट सख्त, दुनिया भर में भारत की किरकिरी
सौमित्र राय

भारत में विकास के साथ गटर होना बहुत जरूरी है. आपको अपने पैदा किए कचरे की सड़ांध बराबर आनी चाहिए, वरना लोगों को खाली-सा लगेगा. गटर होगा तो वहां से निकलने वाली जहरीली गैस से चाय बनेगी. यह मेरा नहीं, नरेंद्र मोदी का उपाय है और हम सभी ने इसे ही आदर्श व्यवस्था मान लिया है.

अब अदानी के बहाने इस पूरी व्यवस्था पर जब चोट पड़ी है, मोदी के आदर्श विकास के मुरीद भविष्य की कल्पनाएं कर खुद को अक्लमंद जज मानने लगे हैं – अदानी का कुछ नहीं होगा. भारत, अमेरिकी समान पर एक्साइज घटा देगा… वगैरह.

दरअसल, ये एक हारे हुए समाज के नपुंसक लोग हैं. इन्होंने मौजूदा अनैतिक व्यवस्था को आदर्श मानकर खुद के धंधों, दलाली और घूसखोरी को सेट कर लिया है. भ्रष्टाचार अमेरिका में भी है. ट्रंप चाहते हैं कि मित्र एलन मस्क अनैतिक व्यवस्था को दुरुस्त करें. अमेरिकी जनता उम्मीद में है. भारत के नालायक गटर की बदबू से खुश हैं.

अक्सर, मैंने ऐसे नालायकों को स्थानीय स्तर पर अदानी की तरह फांदेबाजी करते पाया है. विकास की भूख और गटर की बदबू दोनों इनके साथ चलती है. जैसे अदानी चाहता है कि चीनी वेंडर्स को ज्यादा वीजा मिले. अपने सोलर प्रोजेक्ट के लिए वह सस्ते चीनी उपकरण खरीदकर पैसा बचाता है और उसी से व्यवस्था को घूस खिलाता है.

इन लोगों के लिए ये ही एक आदर्श व्यवस्था है, जिसमें ये कमा–खा सकते हैं. ये खतरनाक देशद्रोही दूसरों को नपुंसक बनाने की पूरी कोशिश करते हैं. ये मैनेज करने वाले लोग हैं. छोटे अदानी. खुद पर मुसीबत आने पर ये कोर्ट, पुलिस, प्रशासन और राजनीति तक को मैनेज करना जानते हैं.

इनमें आपको ढेरों मुसलमान मिलेंगे. मैनेज कर चलने वाले. बीच के. न इधर के, न उधर के. इनको गुमान है कि सभी मैनेज करते हैं. सबको मैनेज करना ही चाहिए. बदलाव की लड़ाई में नाकाम भारत की 20% जनता बिक चुकी है. भारत को ठगों का देश बनाने में इनका बड़ा योगदान है. मोदी की तरह ये भी दिमागी रूप से चौथी फेल हैं.

दलालों के इस स्वर्ग में एक वक्त जल्दी ऐसा आयेगा, जब इन्हें अपनी बेटियों, बहू, बहन और मां तक की दलाली करनी होगी. मैनेज तो वे तब भी कर लेंगे. दलाल शब्द अब नैतिक है, चाहे चमड़ी की हो या दमड़ी की.

अपने धंधे और फायदे के लिए जिन संघियों ने लिबरल का मुखौटा ओढ़ रखा है (पसमांदा मुस्लिम भी शामिल), और जो यह समझ रहे हैं कि नरेंद्र मोदी अदानी लाला को बचा लेगा, उनसे बड़ा मूर्ख और कोई नहीं. अमेरिका का सिक्योरिटी एंड एक्सचेंज कमीशन (एसईसी) अपने निवेशकों को धोखाधड़ी से बचाने वाली संस्था है.

भारत की सेबी में माधवी पुरी बुच जैसी अदानी की दलाल काबिज है. अब जबकि एसईसी ने अदानी पर केस चलाया है और अमेरिकी कोर्ट ने गिरफ्तारी का वारंट जारी किया है, दुनिया के किसी भी देश में अदानी के लिए बाजार से पैसा उठाना आसान नहीं है.

नरेंद्र मोदी अपने घर में अदानी लाला को भले बचा ले या उसे भारत से भगा दे, लेकिन अमेरिका नहीं छोड़ेगा. अमेरिकी न्याय विभाग इंटरपोल से रेड कॉर्नर नोटिस जारी करवा सकता है. अदानी लाला भगोड़ा ठहराया जा सकता है, लेकिन लाला न बैंक, न बाजार से एक फूटी कौड़ी तक निकाल पाएगा. भारत के बैंक ढहने वाले हैं. इंतजार कीजिए. सबकी बारी आएगी.

अदानी लाला के डूबते शेयर्स को छोड़िए. ये तो हिंडेनबर्ग की रिपोर्ट के बाद भी डूबे थे. असल मामला तो अलग है. अदानी सेठ का 70% पैसा विदेशी निवेशकों का है. अब अमेरिकी कोर्ट से गिरफ्तारी वारंट जारी होने के बाद लेनदारों की लाइन लग सकती है.

अमेरिका का GQG फंड अदानी की कंपनियों में 25 हजार करोड़ लगाने वाला था. अब अदानी लाला के साथ GQG के शेयर्स भी लुढ़क गए हैं. इससे विदेशी निवेशकों में डर बैठ गया है.

अब पैसे के लिए अदानी लाला चीन और रूस का रुख कर सकता है. लेकिन महामानव मोदी ने रूस और चीन के साथ जो गंदा गेम खेला है, उससे घूसखोरी का दाग धोना बहुत मुश्किल होगा. यहां तक कि दुबई में भी अदानी के भाई विनोद का रहना और कारोबार करना मुश्किल होने वाला है. आगे श्रीलंका, केन्या और ऑस्ट्रेलिया भी अदानी के खिलाफ कार्रवाई की मांग कर सकते हैं.

याद रखें कि यह हिंडेनबर्ग जैसे शॉर्ट सेलर की नहीं, अमेरिकी कोर्ट की आपराधिक कार्रवाई है. मोदी और बीजेपी आईटी सेल के लिए इसे सुलझाना आसान नहीं होगा. अमेरिकी अदालत से गिरफ्तारी वारंट निकलने के बाद अदानी सेठ ने 600 मिलियन डॉलर के प्रस्तावित बॉन्ड को रद्द कर दिया है. यानी अदानी ही चोर है. जगत सेठ बुरा फंसा है.

गौतम अदानी लाला ने 2020 से 2024 के बीच अफसरों को 250 मिलियन डॉलर की घूस दी. अदानी सेठ ने इस लेन–देन का हिसाब डायरी, एक्सेल शीट और पीपीटी के रूप में रखा है. अब ये सारे दस्तावेज एफबीआई के पास हैं. लाले का बचना अब नामुमकिन है.

अदानी लाला के खिलाफ गिरफ्तारी का वारंट जारी. अब अमेरिका की जेल में चक्की पीसेगा जगत सेठ. और नौकर नॉन बायोलॉजिकल महामानव सुबह–शाम टिफिन लेकर जाएगा. अर्श से फर्श तक पहुंचने में बस एक रात की ही बात होती है. खासकर, अगर आपने चोरी की हो.

जी20 में ऊंची–ऊंची फेंककर आए महामानव का मुंह एक ही रात में काला हो गया है. उसके मालिक गौतम अदानी को अमेरिकी अभियोजकों ने चोर ठहराया है. मार्च 2023 में एफबीआई ने गौतम अदानी के भतीजे सागर अदानी के घर पर रेड डाली थी. वहां कुछ उपकरण भी बरामद हुए थे.

अदानी लाला ने होशियारी दिखाते हुए निवेशकों से इस जांच को छिपाया. उधर, अपना महामानव अदानी के लिए विदेश में घूमकर दलाली करता रहा. अब, अमेरिका के सेबी ने यह विज्ञप्ति जारी की है.

आरोप है कि लाला ने अदानी ग्रीन और अज्यूर पावर के लिए अमेरिकी निवेशकों से 175 मिलियन डॉलर (2200 करोड़) वसूले. यह पैसा अमेरिकी अफसरों को प्रोजेक्ट पाने के लिए घूस देने के काम आ रहा था. आरोप पत्र में सागर अदानी का भी नाम है और अदानी के 7 अफसरों का भी.

यही गुजरात मॉडल की घूसखोरी बीते 10 साल के मोदी राज में स्थापित प्रक्रिया बन गई है. अदानी इसी के आधार पर अर्श तक पहुंचा है. यह काला धन बीजेपी के लिए सरकार बनाने और गिराने के काम आता है.

जी20 में भूख, गरीबी और अपने 5 किलो अनाज योजना की तारीफ कर आया महामानव भारत में घूसखोरी और कालेधन पर अब चुप है. उसके ही घर में पार्टी के आला नेता वोट खरीदते नकदी के साथ रंगे हाथ पकड़े गए हैं. ये भी अदानी का ही गुजरात मॉडल है.

भारत की न्यायपालिका के पास इस घोटाले को देखने–सुनने के लिए वक्त नहीं है. सेबी जैसी अर्धन्यायिक संस्था की मुखिया माधवी पुरी बुच अदानी लाला की नौकर हैं. अदानी लाला सबके मालिक हैं. इसे नरेंद्र मोदी ‘एक हैं तो सेफ हैं’ बताता है. असल में, ये एक ही अनेक है, रावण की तरह.

कल जब संसद में केन्या के राष्ट्रपति विलियम रूटो अदानी के साथ किए गए 2.5 बिलियन डॉलर के समझौते को रद्द करने का ऐलान कर रहे थे, लाला गौतम अदानी केन्या में ही था. ऐलान के तुरंत बाद अदानी को दी गई तमाम वीवीआईपी सुविधाएं और सुरक्षा हटा ली गई.

एक दलाल, एक घूसखोर चोर के साथ क्या सलूक होना चाहिए, यह बात सैकड़ों साल तक अंग्रेजों के गुलाम रहे केन्या के लोग जानते हैं, हम नहीं. केन्या को 1963 में अंग्रेजों से आजादी मिली, लेकिन वहां का समाज भ्रष्टाचार के दीमक को नापसंद करता है.

केन्या के लोग हमसे ज्यादा शिक्षित और देशभक्त हैं. रंग और नस्लीय श्रेष्ठता का गुमान पाले भारतीय समाज चोर–डाकुओं को देश की कमान सौंपता है. हमारा समाज यह सोचता है कि पैसे से हर चीज खरीदने वाला ही बड़ा आदमी है. इस जूता चाट सोच ने हमें तबाह कर दिया है.

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