गिरीश मालवीय
एक बात समझ लीजिए कि यह जो नई नवेली इंडिपेंडेंट फैक्ट चैकर साईट आई हैं, यह पूरी तरह से सही जानकारी देगी, यह सोचना बिलकुल गलत है. पिछले दिनों एसी तथाकथित इंडिपेंडेंट फैक्ट चैकर साईट फैकली पर एक लेख में मेरी एक पोस्ट को भ्रामक बता कर झूठा बताया गया और साथ ही इसी लेख में एक अन्य व्यक्ति की दूसरी पोस्ट जो ट्वीट के रुप में थी, जिसमें यह कहा गया था कि भारत जल्द ही श्रीलंका बनने की राह पर है, उसे भी झूठ कह दिया गया. इस फैक्ट चैकर साईट को Facebook शायद मान्यता दे रखी है इसलिए मेरे कई मित्रों को यह नोटिस दिए गए कि ‘वे शेयर की गई पोस्ट हटा ले.’
पहली पोस्ट में दावा किया गया था कि भारत का कर्ज और जीडीपी अनुपात के आंकड़े श्रीलंका के जैसे ही हैं और श्रीलंका जैसा आर्थिक संकट भारत का इंतजार कर रहा है. इस पोस्ट में बताया गया था कि 2020 में भारत का कर्ज और जीडीपी अनुपात 89 प्रतिशत तक पहुंच गया है जबकि श्रीलंका का कर्ज जीडीपी अनुपात 101 प्रतिशत था. भारत साल दर साल के हिसाब से श्रीलंका से 10 प्रतिशत पीछे चल रहा है, यह बिल्कुल सत्य आंकड़ा है. आप चाहें स्टेट बैंक की इको रैप की रिपोर्ट पढ़ लीजिए, चाहे मोतीलाल ओसवाल से आंकड़े उठा लीजिए या बिजनेस स्टैंडर्ड के टी एस नैनन का जनवरी 2022 के अंत में बजट से पहले का लेख पढ़ लीजिए, सभी यही फैक्ट बता रहे हैं कि भारत में सरकारी कर्ज जीडीपी के 90 फीसदी के बराबर पहुंचने जा रहा है.
लेकिन तथाकथित फैक्ट चैकर कह रहा हैं India’s total debt as a percentage of GDP is not in line with that of Sri Lanka. वो ऐसा क्यों कह रहा है ये भी समझिए. वो कहता है कि जीडीपी आंकड़ों के प्रतिशत के रूप में भारत का कुल राष्ट्रीय ऋण उतना अधिक नहीं है जितना कि पोस्ट में दावा किया गया है. 2016-17 से 2020-21 तक सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में भारत का समग्र राष्ट्रीय ऋण लगभग 50% रहा है. हालांकि राष्ट्र की ऋण स्थिति पद में किए गए दावे की तुलना में काफी कम है, यदि हम सभी राज्यों के ऋण को शामिल करते हैं, तो ऋण की स्थिति दावे के अनुरूप है इसलिए पोस्ट में किया गया दावा भ्रामक है.
अरे भाई कैसी बात कर रहे हो ? यानि कौन सा अर्थशास्त्री यह बताता है कि केंद्र सरकार द्वारा लिया गया लोन अलग है और राज्य सरकार का अलग. एक देश के तौर पर तो तमाम सरकारों को चाहें वह केन्द्र सरकार हो या राज्य सरकार, दिया गया लोन तो देश के ऊपर लोन के खाते में ही जोड़ा जायेगा न ! लेकिन तथाकथित फैक्ट चैकर इसे सही नहीं मानता.
अब आते मेरी पोस्ट पर. फैक्ट चैकर लिखता है कि पोस्ट में दावा किया गया है कि भारत की आजादी के बाद पहले 67 वर्षों में 55 लाख करोड़ रुपये जबकि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने रुपये का ऋण लिया सिर्फ 8 साल में 73 लाख करोड़. अब वह तथ्य बतलाता है कि यह सच है कि 31 मार्च 2014 तक भारत सरकार की कुल बकाया देनदारियां रु. 55.87 लाख करोड़ थी हालांकि, यह 67 वर्षों में लिए गए ऋणों की कुल राशि नहीं है, बल्कि उस तिथि तक बकाया राशि है.
31 मार्च 2022 तक, भारत सरकार की कुल बकाया देनदारियों का अनुमान रु. 135.87 लाख करोड़ है, यह भी ठीक है. यानी, कान को आप अलग तरह से घुमा कर पकड़ रहे हैं. ठीक है ऐसे पकड़ लीजिए. 31 मार्च 2014 तक भारत सरकार की कुल बकाया देनदारियां रु. 55.87 लाख करोड़ थी और मार्च 2022 तक, भारत सरकार की कुल बकाया देनदारियों का अनुमान रु. 135.87 लाख करोड़ है. यानी, सात सालों में आपकी देनदारी में सीधे 73 लाख करोड़ का इजाफा हुआ है, तो इतना पैसा गया कहां ? ये तो बता दीजिए जबकि पिछले 8 सालों में 26 लाख़ करोड तो आपको डीजल पेट्रोल के उत्पाद शुल्क से ही मिले हैं.
लेख के अंत में फिर से फैक्ट चैकर बेवकूफी भरा दावा करता है कि भारत सरकार का ‘ऋण से जीडीपी अनुपात’ जो 2013-14 के अंत तक 52.16 था, 2021-22 के अंत तक भी इसी सीमा में रहने की उम्मीद है. मतलब फैक्ट चेकिंग के नाम पर कुछ भी लेख छापे जा रहे हैं और उसके आधार पर फेसबुक लोगों को पोस्ट हटाने को कह रहा है.
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