मुगलों ने मनुस्मृति संविधान को नहीं छुआ, ना कभी उसको मिटाने को सोचा. अंग्रेजों ने भी कभी मनुस्मृति को छूने की कोशिश नहीं की, हां, वे सामाजिक बुराईया जैसे छुआछूत, बाल विवाह, सती प्रथा जैसे अमानवीय कृत्यों पर ध्यान दिया, वह भी जब कोई भारतीय राजाराम मोहन राय जैसे लोग सामने आये. अंग्रेज चले गये. बहुत कुछ लूटकर ले गये तो बहुत कुछ बनाकर दे भी गये. लोकतांत्रिक व्यवस्था व संविधान भी उन्हीं की देन है. लेकिन संविधान में समता, स्वतंत्रता, न्याय और बंधुत्व की बात है, क्या वह आज तक हमारे समाज मे लागू हो सका है ?
हमें कानूनी तौर पर राजनीतिक स्वतंत्रता सतही यानी उपरी तौर पर मिलती हुई दिखाई देती है बाहर से देखने वालों को, लेकिन वास्तविकता इससे कोसों दूर है. हमारे में से कितने हैं जो संविधान को जानते हैं ? एक बड़ा वर्ग आजादी के बाद से ही रहा है जो संविधान को कभी भी मन से स्वीकार नहीं किया. इनको कभी मुगलों या अंगरेजों से परेशानी नहीं रही, क्योंकि मुगल या अंग्रेज कभी भी इनके धार्मिक वर्ण व्यवस्था मे टांग नहीं अड़ाया.
मुगलों से तो ये सत्ता के लिये अपने बहन बेटियों की शादी भी किये और आज भी कर रहे हैं. दुर्भाग्य से वही लोग आज सत्ता में पहुंच गये हैं और पुन: मनुस्मृति के संविधान को लाना चाहते हैं. और हम संविधान के नहीं अपने अपने जाति, धर्म के गिरोहों के मुखिया के गुलाम भर मात्र बनकर रह गये हैं. संविधान से ना हमारे इन जाति धर्म के गिरोहों के मुखिया को बहुत लेना देना है, न हमारे मनुस्मृति आधारित समाज को. हमारे समाज में आज भी सामाजिक, आर्थिक आजादी का वही रूप है, जो सदियों से मनुवादी व्यवस्था में चला आ रहा है.
कुछ मुट्ठी भर लोग अपने व्यवसाय को तो बदल लिये हैं, अर्थ से मजबूत भी हुये हैं लेकिन क्या उनकी जातीय स्थिति बदली ? नहीं. सरकारी नैकरियों मे IAS, IPS, Dr., Engr., professor भी बन गये हैं लेकिन उनकी जातिगत स्थिति वही है जो सदियों से चली आ रही है. हां, एक परिवर्तन जरूर आया है SC, ST या अति पिछड़ा संपन्न होते ही शहरों की कालोनियों में प्लाट लेकर घर बनवाता है, अपना नाम झिल्लू राम से J. R. baudh लिखने लगता है, अपने बच्चों का नाम व टाइटिल बदलकर अंत में ‘नीरज’, ‘अंबुज’ जोड़ देता है. फिर अपने नजदिकियों, रिश्तेदारों से दूरी सबसे पहले बना लेता है.
कोशिश करता है कि सवर्ण सहयोगी उसके घर आये. रिजर्वेशन की जो सुविधा उसे मिली है, वह उसके ही बच्चों को मिले, इसके लिये वह घूस देने में भी पीछे नहीं रहता, चाहे इसके बदले उसके ही समाज के योग्य लोग क्यों न पीछे हो जायें. मेरे कहने का मतलब है कि संविधान में जो सुविधा गांधी नेहरू के पूना पैक्ट के आधार पर मिली हुई है, उसका फायदा कुछ मुट्ठी भर लोग जो पहली कतार में पा गये थे, वही लोग इस सुविधा को अपने परिवारों के लिये रिजर्व कर लिये, बाहरी योग्य को सब मिलकर बाहर कर दिये, और इस प्रकार ये दलित IAS, IPS, dr, engr., professor, सांसद, विधायक रिजर्व कटेगरी के ब्राह्मण बन गये.
और इनका एक ही काम रहा कि जब भी इनको मौका मिलता ये गांधी को गाली देते और कहते कि बाबा साहब को गांधी ने धोखा दिया, ऐसा कहकर नयी पीढ़ी के नौजवानों को गुमराह करते. इनलोगों के नेता कांसीराम हुये, जो दलित तो नहीं ही थे, लेकिन दलितों के बीच में संघ के एजेंट थे. इनको जो भी दिया अब तक नेहरू की कांग्रेस और जगजीवन राम ने दिया लेकिन संघ के एजेंट कांसीराम ने इनको गुमराह करके बीजेपी के समर्थन से मायावती को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाकर सवर्णों के गोंद मे बैठा कर मनुवाद को मजबूत करने में कोई कमी नहीं की. दलितों पिछड़ों का कितना कल्याण हुआ, सबको पता है ? काम निकलने के बाद मायावती को कचरा के घूरे पर बिठा दिया.
आज बाबा साहब का संविधान खतरे में है. सभी संस्थायें जैसे विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका, मीडिया, फौज, चुनाव आयोग इत्यादि सत्ता की गुलाम बन गयी है. राष्ट्रपति रबर का स्टांप बन गये हैं. दस्तखत और मुहर नागपुर में गिरवी रख दिया है. पहले देश गोरे अंग्रेज का गुलाम था, आज देशी काले अंगरेजों का गुलाम बन कर रह गया है. पुलिस, न्यायालय, सत्ता की रखैल बनकर रह गयी है. फैसले संविधान के आधार पर नहीं मनुस्मृति के आधार पर लिखे जा रहे हैं. जज रिटायरमेंट के बाद संसद, राज्यपाल बनने के लिये आतुर हैं.
संसद अपराधी, गुंडे, मवालियों, नचनियां-गवनियों का चारागाह बनकर रह गया है, लोकतंत्र मजाक बनकर रह गया है. वोट जाति धर्म के नाम पर दिया जा रहा है. सेकुलर संविधान का शपथ लेने वाला प्रधानमंत्री धर्म के पाखंड के नाम पर गंगा मे डूबकी लगा रहा है. हिंदू धर्म के उपर खतरा बताया जा रहा है. इसी बहाने 5 हजार बर्ष पुरानी मनुस्मृति की व्यवस्था को लागू करने का प्रयास किया जा रहा है. दलित पिछड़े नेता सत्ता के जूठन के लिये जय श्रीराम का नारा लगा रहे हैं. उसी राम का जो शंबूक का बध किये थे, मंदिर बनाकर महिमामंडन किया जा रहा है. दलित राष्ट्रपति शंबूक के हत्यारे का मंदिर बनाने के लिये 5 लाख का चंदा दे रहे हैं. औरंगजेब को गाली देकर हिंदू धर्म की रक्षा का शपथ लिया जा रहा है.
लोकतंत्र का प्रहसन जारी है….वाट्स अप यूनिवर्सिटी द्वारा नया इतिहास लिखा जा रहा है, हिंदू धर्म को मजबूत करने के लिये कभी अंबेडकर की, कभी लेनिन की, और अब ईसा मसीह की मूर्तियों को तोड़ा जा रहा है. लालकिला का इतिहास बता रहे हैं कि इसे मुगलों ने नहीं पृथ्वीराज चौहान के नाना अनंगपाल ने बनाया है. सवर्ण डाक्टर, इंजिनियर, प्रोफेसर , पी.एच.डी. डिग्रीधारी एक अनपढ़, मूर्ख, मन की बात करने वाला को हर हर महादेव की जगह हर हर मोदी का नारा लगाकर हिंदू धर्म के नाम पर महिमामंडित कर रहे हैं.
गजब का प्रहसन जारी है. हिंदू धर्म कितना मजबूत हुआ हमें नहीं पता लेकिन लंपट अंधभक्त ईसा की मूर्ति तोड़ रहे हैं और विश्व गुरू ईसाइयों से रिश्ता जोड़ रहे हैं. दुनियां में हम किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहे.
- डरबन सिंह
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