सत्तापोषित पुलिसिया गिरोह के बारे में सत्ता प्रचार तंत्र का उपयोग कर जनमानस के दिमाग में यह बैठाने का चेष्टा करता रहता है कि पुलिसिया गिरोह आम आदमी के हितों की हिफाजत के लिए है, सुरक्षा के लिए है, जबकि सच्चाई यह है कि यह पुलिसिया गिरोह आम आदमी को मारने, लूटने, झपटने, बलात्कार करने के लिए बनाया गया है. और अगर आम आदमी उसके इस कुकर्म का विरोध करते हैं तब इस पुलिसिया गिरोह को इस बात का पूरा छुट रहता है कि वह उस आदमी को लॉक अप में पीटपीटकर मार डाले, उसे गोलियों से भून डाले या उसे वर्षों तक जेलों में सड़ाकर मार डाले.
सत्तापोषित यह पुलिसिया गिरोह का संरक्षक न्यायपालिका आम आदमी को सरेआम यह चेतावनी देती है कि यह पुलिसिया गिरोह आम आदमी के साथ चाहे कुछ भी करे, उसे जुबान खोलने की इजाजत नहीं है. अगर वह जुबान खोलने की हिमाकत करेगा तो उसे 84 वर्ष की उम्र में भी फादर स्टेन स्वामी की भांति जेलों में पानी पीने के लिए सीपर भी नहीं दिया जायेगा और उसे तड़पा तड़पाकर मार डाला जायेगा, भले ही भारत का यही संविधान कहता है कि ’70 वर्ष की उम्र के बाद किसी को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता.’
भारत के इसी संविधान की मनमानी व्याख्या कर अपराधियों, बलात्कारियों का हिमायती यह पुलिसिया गिरोह और उसकी यह न्यायपालिका यह सुनिश्चित करती है कि देश के आम मेहनतकश आदमी को इस देश में वह सब बर्दाश्त करना होगा जो कुछ कॉरपोरेट सत्तापोषित पुलिसिया गिरोह उसके साथ करना चाहती है. वह इसके खिलाफ जुबान तक नहीं हिला सकती, वरना उसके भयंकर अंजाम के लिए तैयार रहना होगा. लेखक, पत्रकार, कवियों, बुद्धजीवियों को तो यह खास हिदायत देती है, वरना 90 प्रतिशत विकलांग होने के बाद भी दिमाग होने के अपराध में यह बेदिमाग पुलिसिया गिरोह और उसकी न्यायपालिका जी. एन. साईंबाबा को सालोंसाल जेलों में सड़ायेगा.
पुलिसिया गिरोह की आम आदमी के खिलाफ हत्या और बलात्कार की अंतहीन रोंगटे खड़े कर देने वाली क्रूरता इस देश की फिजाओं में चीख रही है. इन्हीं में से कुछ क्रूरताओं को जमाकर जब प्रसिद्ध गांधीवादी विचारक पीड़ितों को साथ लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंचे तो बलात्कारियों और हत्यारों के इस समर्थक सुप्रीम कोर्ट ने ‘कोर्ट का बहुमूल्य समय खराब’ करने के नाम पर 5 लाख रुपया का जुर्माना लगा दिया. अंबानियों की पंचैती करने और बलात्कारियों की रक्षा करनेवाले इस टुच्चे सुप्रीम कोर्ट का समय ऐशोआराम करने और गाल बजाने में खराब नहीं होता, पीड़ितों की समस्याओं को सुनने में खराब होने लगता है, पेट में दर्द होने लगता है !
यही कारण है कि जब जनवादी कवि और लेखक विनोद शंकर ने अपनी रचनाओं के माध्यम से आम मेहनतकश आवाम की समस्याओं को उठाने लगे तब इस सत्तापोषित भारे के पुलिसिया गिरोहों को उनकी कविताओं में ‘बन्दुक’ दिखने लगा और वह उस ‘बन्दुक’ को ढूंढने उनके घर पर आ धमका. कवि विनोद शंकर इस पूरी पुलिसिया बन्दुक तलाशी अभियान के बारे में लिखते हुए बताते हैं कि –
‘मैं विनोद शंकर एक कवि और राजनीतिक, सामाजिक कार्यकर्ता हूं. अभी मैं बिहार के कैमूर जिला में जल-जंगल-जमीन की लड़ाई लड़ रहे एक जनसंगठन में काम करता हूं, जिसका नाम ‘कैमूर मुक्ति मोर्चा’ है, जो चालीस साल से कैमूर पठार पर जनता की लड़ाई लड़ रहा है. अभी मै इसका कार्यकारणी सद्स्य हूं. हमारे कैमूर पठार को सरकार बाघ अभ्यारण्य बनना चाहती है, जिसके खिलाफ़ हम लोग तीन साल से आंदोलन कर रहे हैं.
‘हमारी आवाज़ को दबाने और हमें डराने-धमकाने के लिए दिनांक 7/8/2023 को दोपहर 1 बजे कैमूर एसपी के नेतृत्व में 40 पुलिसवालों ने बिना कोई सर्च वारंट के जबरदस्ती मेरे घर में घुस कर तलाशी लिया है. इनके साथ कोई महिला पुलिस भी नहीं थी. उस समय मेरे घर में सिर्फ़ मेरे दोनों छोटे भाई की पत्नियां थी. पुलिस वालो ने मेरे बारे में पूछ-ताछ करने के क्रम में उन्हें भी बहुत गाली दिया है.
‘इसके बाद मेरे पिता जी आ गए तो उन्हें भी पुलिस वालों ने बहुत गाली दिया और उनसे पूछने लगा कि ‘तुम्हारा लड़का क्या करता है ? कहां गया है ? हमें पता चला है वो बंदूक रखा है और माओवादी है. बताओ बंदूक कहां है ?’ ये सब बोलते हुए वे सब घर की तलाशी लेने लगे. घर के समान इधर-उधर फेंकने लगे. जब उन्हे बंदूक नहीं मिला तो मेरे घर से तीन स्मार्टफ़ोन ले गए, जो ओप्पो 57, ओप्पो और इन्फिनीक्स का है.
‘इसके साथ ही एक टार्च और मेरी मां का बक्सा तोडकर 20,000 रुपया तथा मेरे पिता जी का पंजाब नेशनल बैंक का पासबुक, आधार कार्ड और उनका पहचान पत्र के साथ-साथ मेरे बैग से मेरा पर्स ले गए, जिसमें मेरा आधार कार्ड, पहचान पत्र और 5000 रुपया है. ये पैसा मैंने विश्व आदिवासी मनाने के लिए चंदा मांग कर जनता से जुटाया था.
‘एसपी यही नहीं रुका. वह मेरे गांव के दो और घरों में भी छापामारी किया और तीन लोगो को उठा कर ले गया है, जिसमें रामसुरत सिंह और इनके ही दो पुत्र विजय शंकर सिंह और अयोध्या सिंह है. इसके अलावा लक्ष्मी सिंह के घर में छापामारी करके इनके बेटे अर्जुन के घर से बक्सा तोड़ कर 19,000 रुपया के साथ-साथ अर्जुन की पत्नी के सारे गहने भी ले गए, जो इस प्रकार है- चांदी का पैजनि, चांदी का पायल, चांदी का मेंहदी छाला, चांदी का मीना, चांदी का छुमुका, चांदी का छुछिया, चांदी का किलिफ. इसके अलावा वे सोने के कान का टौप, सोने का लौकेट, सोने का अंगूठी ले गए. लक्ष्मी सिंह के छोटे बेटे धर्मेंद्र का लैपटॉप भी वे अपने साथ ले गए.
‘उस समय मैं घर पर नहीं था. 9 अगस्त विश्व आदिवासी दिवस के कार्यक्रम के लिए कैम्पेन करने एक गांव में गया था, नहीं तो मुझे भी एसपी उठा कर ले जाता. पुलिस की ये सब कार्यवाई पूरी तरह गैरकानूनी है. पुलिस की ये हरकत पूरी तरह डकैतों वाली है. दरअसल राज्य और केंद्र की सरकार पुलिस द्वारा हमारे घर में डकैती डलवा कर मुझे, मेरे घर के लोगों और पूरे गांव को डराना चाहती है कि हम अपनी लड़ाई छोड दे.
कैमूर एसपी की ये घिनौनी हरकत हमारे नागरिक अधिकारों के साथ-साथ हमारे मानवाधिकारों पर हमला है. इसलिए हम चाहते हैं कि जो भी न्याय प्रिय लोग हैं, वे हमारे लिए आवाज़ उठाये ताकि कैमूर एसपी की इस घिनौनी हरकत पर बिहार सरकार कोई एक्शन ले सके. और जो पैसा और समान पुलिस हमारे घर से चुरा कर ले गया है, उसे जल्द से जल्द से वापस कर सके. और ये तभी सम्भव है जब देश भर के सभी प्रगतिशील ताकतें, मानवाधिकार संगठन और पत्रकार हमारे लिए आवाज उठाएं क्यूंकि इस समय हमे आपकी साथ की बहुत ही सख्त जरूरत है.
नीचता की पराकाष्ठा पार कर चुकी यह सत्तापोषित पुलिसिया गिरोह, जो सत्ता के इशारे पर आम आदमी और उसके समर्थन में खड़े तमाम कवियों, लेखकों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, पत्रकारों, बुद्धिजीवियों तथा दिमाग रखने वाले लोगों को डराने, मारने, प्रताडित करने, जेलों में डालने, हत्या करने, उनके घरों की महिलाओं के साथ अभद्र व्यवहार करने, सम्पत्ति चोरी करने जैसे कुकर्म कर रहे हैं, तो उन्हें यह याद रखना होगा, जनता सब देख रही है और समझ रही है. जिस दिन वह उठ खड़ी होगी, यमलोक का दर्शन करा देगी.
जब माओवादी इन आतताई भारे के हत्यारों को बमों से उड़ाता है, तब ये बिलखते हुए कहता है – ‘हमें क्यों मारते हैं, हम तो नौकरी करते हैं ‘ तो उन्हें यह समझना चाहिए कि अमर शहीद भगत सिंह देश में आज भी सम्मानित होते हैं लेकिन भगत सिंह को फांसी के फंदों पर लटकाने वाले तुझ जैसे भारे के कारिंदों पर थूका जाता है. कॉरपोरेट घरानों की सत्ता का चाटुकार बनकर बेशक आज कुछ तमगे या संभव है माओवादियों के हाथों मारे भी जाये, लेकिन इतिहास में सदैव थूके जाते रहोगे क्योंकि यह मानव समाज अमर है, कोई व्यक्ति, कोई सत्ता, कोई भारे का कारिंदा नहीं.
- विकास यादव
Read Also –
जनवादी कवि व लेखक विनोद शंकर के घर पुलिसिया दविश से क्या साबित करना चाह रही है नीतीश सरकार ?
बस्तर : आदिवासी महिलाओं के साथ बलात्कार और हत्या करने के लिए सरकार पुलिस फोर्स भेजती है
फादर स्टेन स्वामी : अपने हत्यारों को माफ मत करना
हिमांशु कुमार पर जुर्माना लगाकर आदिवासियों पर पुलिसिया क्रूरता का समर्थक बन गया है सुप्रीम कोर्ट
क्रूर शासकीय हिंसा और बर्बरता पर माओवादियों का सवाल
[ प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]