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कृषि उपज और आवश्यक वस्तुओं का ‘सम्पूर्ण राज्य व्यापार’ (ऑल आउट स्टेट ट्रेडिंग) लागू करो

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संयुक्त किसान मोर्चा के तहत गोलबंद देशभर के किसानों ने तीन काले कानूनों, एमएसपी और अन्य मांगों को लेकर 13 महीनों से अथक संघर्ष और सैकडों किसानों की शहादतों के बाद मोदी सरकार को पीछे हटने को बाध्य कर दिया था, लेकिन अब मोदी सरकार अपने वायदों से पीछे हट गई तब एकबार फिर किसानों ने अपने आंदोलन का बिगुल बजा दिया है. एक ओर किसानों के एक समूह ने दिल्ली पर चढ़ाई कर दिया है तो दूसरी ओर संयुक्त किसान मोर्चा के तहत गोलबंद किसानों ने ग्रामीण भारत बंद का आह्वान कर सरकार के नाक में नकेल कस दिया है.

वहीं, मोदी सरकार ने एक ओर एक बार फिर से किसानों को दिल्ली आने से रोकने के लिए सड़कों पर कीलें ठोकने लगी है, गोली और बम फेंकने लगी है. इस कारण सैकड़ों किसान घायल हो गये हैं तो वहीं, एक किसान की शहादत हो गई है. दूसरी ओर मोदी सरकार और उसका पालतू मीडिया किसानों के खिलाफ दुश्प्रचार करने लगी है. ऐसे में उसके दुश्प्रचार के खिलाफ संयुक्त किसान मोर्चा के एक घटक संगठन ‘ऑल इण्डिया किसान खेत मजदूर संगठन’ ने सरकार के झूठे बहानों का तथ्यों के साथ जवाब दिया है, जो इस प्रकार है.

कॉरपोरेट-परस्त तीन काले कृषि कानूनों को रद्द करने के अलावा दिल्ली बार्डरों पर किये गये ऐतिहासिक और वीरतापूर्ण किसान आंदोलन की अन्य महत्वपूर्ण मांगें ये थी कि एमएसपी का कानून बनाया जाये, उत्पादन लागत से डेढ़ गुना दामों पर किसानों से सीधे कृषि उपज की खरीद सुनिश्चित की जाये. आंदोलन के दबाव में, केंद्र में बैठी भाजपा सरकार को तीन काले कृषि कानून रद्द करने पड़े थे और साथ ही उसने किसानों को आश्वासन दिया था कि वह एमएसपी और कृषि उपज की सरकारी खरीद की मांग को पूरा करने के लिए तत्काल कदम उठायेगी.

लेकिन, अभी तक केंद्र की भाजपा सरकार ने इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया है. बल्कि, इस मांग के खिलाफ कुछ झूठे तर्कों को हवा दी जा रही है. इसके पीछे उनका मकसद आम लोगों में भ्रम पैदा करना और उन्हें किसान आंदोलन की मांग के खिलाफ खड़ा करना है. इसलिए, आम लोगों के हितों के पक्ष में उनके तर्कों का पर्दाफाश करना हमारा कर्तव्य बनता है. आइये, देखते हैं कि केंद्र की भाजपा सरकार की दलीलें क्या हैं ? केंद्र की भाजपा सरकार और उसके पालतू अर्थशास्त्री व पत्रकार मुख्य रूप से निम्न दो तर्क दे रहे हैं –

  1. पहला, एमएसपी और सरकारी खरीद का कानून बनाने के लिए बहुत बड़ी रकम की जरूरत है. उनका कहना है कि फिलहाल, सरकार जबरदस्त राजकोषीय संकट में है इसलिये, वर्तमान वित्तीय संकट के चलते इतनी बड़ी राशि खर्च करना संभव नहीं है.
  2. दूसरा, अगर सरकार सभी कृषि उत्पादों को एमएसपी की दर पर खरीदना शुरू कर देती है, तो खाद्यान्न समेत कृषि वस्तुओं की कीमतें बढ़ जाएंगी और इससे आम लोगों को बहुत भारी परेशानी भुगतनी पड़ेगी. इसलिए, उनकी दलील है कि जो कोई भी कृषि उपज पर एमएसपी लागू करने के पक्ष में हैं, वे आम लोगों, आम उपभोक्ताओं अर्थात साधारण श्रमिकों, गरीब शहरवासियों, खेत मजदूरों आदि के हितों के खिलाफ हैं जिनकी क्रय शक्ति बहुत ही कम है.

आवश्यक वस्तुओं की कीमतें आसमान छू रही हैं, यह हम सभी को पता है. अपने जीवन में इसका कड़वा प्रभाव हम भी दिन प्रतिदिन और हर पल अनुभव कर रहे हैं लेकिन ये कीमतें आखिर बढ़ क्यों रही हैं ? औद्योगिक उत्पादों की कीमतों में बढ़ोतरी क्यों होती है ? पेट्रोल-डीजल और रसोई गैस के दाम इतने बेलगाम क्यों बढ़े हैं ? किसान तो अपना आलू या प्याज दो रुपये किलो बेच रहा है लेकिन उपभोक्ता इन्हीं चीजों को 30 से 150 रुपये प्रति किलो के भाव से महंगे दामों पर खरीद रहा है, ऐसा क्यों ? क्या इसका कारण एमएसपी है ?

इसका सीधा सा जवाब है – ‘बिल्कुल नहीं.’ ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि किसान के हाथ से निकल कर सब कुछ व्यापारियों और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हाथों में चला जाता है. हर चीज पर उनका नियंत्रण है. इसके परिणामस्वरूप आवश्यक वस्तुओं के दाम उछल कर आसमान छूने लगते हैं. एमएसपी से इसका कोई लेना-देना नहीं है. दिन के उजाले की तरह साफ जाहिर है कि निहित स्वार्थ से जुड़े हलकों से ही एमएसपी के खिलाफ ऐसे भ्रामक व बेसिरपैर के तर्कों को हवा दी जा रही है.

अब रूपये-पैसों का सवाल

यदि केंद्र सरकार कृषि उपज की खरीद में एमएसपी लागू करती है तो कितने धन की आवश्यकता होगी ? आइए, इसकी जांच-परख करते हैं. फिलहाल, 23 चीजें एमएसपी के दायरे में आती हैं. इन 23 चीजों में 7 अनाज (धान, गेहूं, मक्का, ज्वार, बाजरा, रागी और जौ) शामिल हैं. 5 दालें (चना, अरहर/तूर, मूंग, उड़द और मसूर) हैं. 7 तिलहन (मूंगफली, सोयाबीन, रेपसीड-सरसों, सूरजमुखी, तिल, कुसुम, रामतिल) हैं और 4 नकदी फसलें (गन्ना, कपास, कच्चा जूट, खोपरा/नारियल) शामिल हैं.

यदि इन 23 फसलों के कुल उत्पादन की खरीद की जाये तो इनका एमएसपी मूल्य करीबन 10.78 लाख करोड़ रुपये बनता है. लेकिन तथ्य यह है कि इन सभी चीजों के तमाम उत्पादन का विपणन यानी खरीद-बिक्री नहीं होती है. क्यों ? क्योंकि –

  1. उत्पादक किसान अपनी उपज का एक भाग स्वयं अपने परिवार के लिए उपभोग करता है,
  2. एक भाग का उपयोग वह अगले सीजन में बुवाई के लिए बीज के लिए करता है,
  3. अपने पशुओं को खिलाता है.

यह देखा गया है कि कुल कृषि उपज की बाजार में बिक्री की गई मात्रा इस प्रकार है –

  1. रागी 50 प्रतिशत से कम,
  2. गेहूं 75 प्रतिशत,
  3. धान 80 प्रतिशत,
  4. गन्ना 85 प्रतिशत,
  5. अधिकांश दालें 90 प्रतिशत,
  6. कपास, जूट आदि 95 प्रतिशत

यदि कुल कृषि उपज की औसतन 75 प्रतिशत मात्रा की खरीद हो तो उसकी कीमत मात्र 8 लाख करोड़ रुपये से कुछ ही अधिक बैठती है. यह 23 वस्तुओं की बिक्री योग्य उपज का एमएसपी मूल्य है. इसका मतलब है कि अगर सरकार उन 23 वस्तुओं की तमाम बिक्री योग्य कृषि उपज खरीदती है तो 8 लाख करोड़ रुपये की आवश्यकता होती है.

  • अब सबसे पहले, गन्ने को इस सूची से बाहर कर दें क्योंकि गन्ने के भुगतान की जिम्मेदारी मिल मालिकों पर है. गन्ना बाजार में मिल मालिक, किसानों से इसकी खरीदारी करते हैं इसलिए, कानून के अनुसार, किसानों को भुगतान करना उनकी जिम्मेदारी है.
  • दूसरे, कपास या जूट का एक-एक ग्राम अर्थात पूरी की पूरी मात्रा खरीदना जरूरी नहीं है. सरकार को कपास और जूट का एक बड़ा हिस्सा खरीदना चाहिए ताकि बाजार पर इसका असर पड़ सके. हमने वर्ष 2019-20 में देखा कि सरकार ने 350.50 लाख गांठ में से 87.85 लाख गांठ कपास खरीदी और इससे बाजार में काफी प्रभाव पड़ा और किसानों को खुले बाजार में लाभकारी मूल्य मिला. इसलिए, यदि सरकार कपास और जूट के कुल उत्पादन का कम से कम 40 प्रतिशत खरीदने की घोषणा करती है, तो इससे किसानों को खुले बाजार में भी लाभकारी मूल्य प्राप्त करने में मदद मिलेगी. सरकार की आर्थिक जिम्मेदारी घट जायेगी.
  • तीसरे, सरकार को चाहिए कि लोगों को खाद्यान्न और अन्य आवश्यक कृषि उपज सस्ती दर पर बेची जायें. इस बिक्री से सरकारी खजाने में बड़ी रकम जमा होगी और साथ ही, लोगों को भोजन और आवश्यक वस्तुएं सस्ती दर पर मिलेंगी.

इन सभी बातों को मिलाकर, सरकार को एमएसपी पर मौजूदा खर्च (3.2 लाख करोड़ रुपये) की बजाए सालाना सिर्फ 1 से 1.5 लाख करोड़ रुपये की जिम्मेदारी उठानी होगी. इतनी सी धनराशि केंद्र सरकार के लिए कुछ भी नहीं है क्योंकि हम जानते हैं कि सरकार बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हित-स्वार्थ के लिए लाखों-लाखों करोड़ रुपये खर्च कर रही है तो वह इतनी सी मामूली धनराशि 130 करोड़ किसानों और आम लोगों के हित के लिए क्यों नहीं खर्च कर सकती ? व्यावहारिक रूप से हम दो बातें प्रस्तावित कर रहे हैं –

  1. पहली, सरकार को किसानों से सीधे लाभकारी मूल्य पर खरीद करनी चाहिए, जो कि कृषि उपज की उत्पादन लागत (C2) का कम से कम डेढ़ गुना हो.
  2. दूसरी, सरकार लोगों को खाद्यान्न और अन्य आवश्यक कृषि जिंस सस्ती दर पर बेचनी चाहिएं ताकि गरीब लोग सस्ती कीमत पर इसका लाभ उठा सकें. तब आवश्यक वस्तुओं के मूल्य वृद्धि अर्थात मंहगाई का कोई सवाल ही नहीं होगा. यदि सरकार का रवैया जनहितैषी हो तो वर्तमान पूंजीवादी प्रणाली के भीतर ही ऐसा किया जा सकता है. इस जनहितैषी योजना को अमल में लाने के लिए सरकार को
    भोजन और आवश्यक वस्तुओं के थोक या खुदरा व्यापार में बड़े या छोटे सभी प्रकार के व्यापारियों, पूंजीपतियों और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के प्रवेश करने पर प्रतिबंध लगाना चाहिए. इसके अलावा, सरकार को किसानों की पहुंच के भीतर खरीद केंद्र स्थापित करने चाहिएं और लोगों को खाद्यान्न और आवश्यक वस्तुएं बेचने के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) और अन्य उपायों को मजबूत करना चाहिए. इसे ही हम ‘सम्पूर्ण राज्य व्यापार’ (ऑल आउट स्टेट ट्रेडिंग) कहते हैं. यह एकमात्र सबसे सुरक्षित तरीका है, जिससे किसानों को अपनी तमाम कृषि उपज के लिए एमएसपी उपलब्ध कराई जा सकती है और आम लोगों को खाद्यान्न और अन्य आवश्यक कृषि-वस्तुएं सस्ती दर पर प्रदान कराई जा सकती हैं.

अन्य कोई विकल्प नहीं है इसलिए, वर्तमान में किसान आंदोलन का कार्य ‘सम्पूर्ण राज्य व्यापार लागू करो’ की सशक्त आवाज उठाना है ताकि किसानों और जनसाधारण को शोषण व लूटखसोट से बचाया जा सके.

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ROHIT SHARMA

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