विष्णु नागर
मान लीजिए देश के सौभाग्य से नरेन्दर मोदी प्रधानमंत्री न हुए होते तो भारत बहुत से अनुभवों से वंचित रह जाता. हमें कैसे विश्वास होता कि कोई प्रधानमंत्री होकर भी प्रति दिन, प्रति मिनट धड़ल्ले से बिना शरमाये, डरे, झूठ बोल सकता है. इतना ही नहीं, झूठ की पोल खुलने से वह परेशान नहीं होता, क्षमा नहीं मांगता बल्कि अगला झूठ वह और अधिक ताकत से बोलता है. जरा सोचिए मई, 2014 से पहले ऐसे प्रधानमंत्री की कल्पना भी कोई कर सकता था ?
हे मोदी जी, आपने प्रधानमंत्री पद की इस नई क्षमता से भारत के जन-जन का परिचय करवाया, इसके लिए देश आपका सदैव आभारी रहेगा. आपके इस पद पर पहुंचने पर हीं हमें यह अमूल्य ज्ञान प्राप्त हो सका है वरना हमारा यह जीवन अकारथ चला जाता. दूसरा जन्म मिलता नहीं और मिलता तो मोदी जी नहीं मिलते और मोदी जी मान लो, मिल भी जाते तो ये वाले मोदी जी नहीं मिलते क्योंकि ओरिजनल में जो बात होती है, वह कार्बनकापी में नहीं होती.
इस ‘महान प्रतिभा’ को यहां तक पहुंचाने के लिए मैं लालकृष्ण आडवाणी जी का विशेष रूप से आभार प्रकट करना नहीं भूलूंगा, जिनकी असीम कृपा से मोदी जी जैसे ‘रत्न’ हमें मिल सके हैं. इस ‘प्रतिभा’ ने आडवाणी जी को भाजपा के मार्गदर्शक मंडल का सदस्य बनाकर उनका उचित सम्मान किया है. उनका सारा ऋण चुका दिया है. उनका ऐसा निर्दाेष सम्मान मोदी जी न करते तो आखिर इस देश.में कौन करता ? और उनकी तत्परता देखिए कि उन्होंने अपना यह दायित्व प्रधानमंत्री बनते ही निभा दिया.
आजकल अपने गुरु, अपने संरक्षक का कौन ऐसा सम्मान करता है ? इधर देखा किसी को ? उम्मीद है कि भविष्य में भी किसी को नहीं देख पाएंगे. मोदी है तो ही मुमकिन है.
मोदी जी, आपके कारण ही हम सबको अज्ञान का इतना प्रकाश मिल सका है कि आंखें चौंधिया गई हैं. आपके यहां अज्ञान के ज्ञानीजन इतने अधिक हैं कि आकाश के तारे शायद गिने जा सकते हैं, अज्ञान के मोदी ब्रांड इन ज्ञानीजनों को गिनना मुमकिन नहीं. आप उनके सूर्य हैं, योगी जी उनके शुक्ल पक्ष के चांद और शाह जी कृष्ण पक्ष का अंधकार.
ज्ञान का प्रकाश फैलाने का आकांक्षी कोई प्रधानमंत्री इतनी जल्दी ज्ञान का प्रकाश न फैला पाता, जितनी जल्दी आपने अज्ञान का अंधकार फैला कर दुनिया को दिखा दिया है. यही नहीं आपने यह भी दिखा दिया है कि एक मूढ़ शासक चाहे तो तथाकथित पढ़े-लिखों को भी इतना जाहिल बनाकर दिखा सकता है, जितने जाहिल वे कतई नहीं होते, जिन्हें जाहिल माना जाता है. आपने दिखा दिया कि शीर्ष पर बैठा एक जाहिल कितनी तेजी से जाहिली का अखिल भारतीय स्तर पर उत्पादन करवा सकता है बल्कि वह इन जाहिलों को अपने जाहिली पर गर्व करना भी सिखा सकता है.
आप प्रधानमंत्री न बने होते तो कहां यह सब देखने को कहां मिल पाता ! कौन यह बताता कि लोकतंत्र को भी राजतंत्र में बदला जा सकता है, जहां एक नीरो लाखों लोगों की लाशों के बीच अन्न उत्सव मना सकता है और विज्ञापन देकर कहता है कि इसके लिए मुझे धन्यवाद दो और बड़े-बड़े टीवी चैनलों के एंकर इस पर ताली बजाते हैं. वह वोटर को यह एहसास करा सकता है कि वह दाता है और बाकी सब भिखारी हैं.
वह हमारे ही पैसे से अनाज और वैक्सीन खरीद कर हमें ही मुफ्त में देने के अहसान तले दबा सकता है. वह हमारे पैसों से शानदार हवाई जहाज और कार आदि खरीद सकता है, अपने लिए नया बंगला भी बना सकता है और जनता को कोरोना से मरने के लिए छोड़ सकता है. आपने दिखा दिया कि नीरो राजतंत्र में ही नहीं, वोटतंत्र में भी पैदा होता है, जो मौत के तांडव के बीच अपना महल तामीर करवाता हैं. जिस धन को लोगों को मौत के मुंह से निकालने के लिए खर्च करना चाहिए था, उसे उन इमारतों पर लुटा सकता है, जिसके शिलापट्ट पर उसका नाम दर्ज होगा.
आपने दिखा दिया कि विकास महज फर्जी आंकड़ों का खेल है, जो प्रधानमंत्री की इच्छा और कल्पना से पैदा किए जा सकते हैं, उसके लिए किसी दस्तावेज का होना जरूरी नहीं. आपने दिखा दिया कि संविधान और कानून को बदले बिना एक बड़े देश को हिन्दू राष्ट्र बनाया जा सकता है, जहां अल्पसंख्यक समुदाय दूसरे दर्जे के नागरिक होंगे, उन्हें जब चाहे, जहां चाहे, निशाना बनाया जा सकता है. उनके खिलाफ गोली मारने के नारे लगानेवाला मंत्री पदोन्नति दी जा सकती है और जो सांप्रदायिक सौहार्द के पक्षधर हैं, उन्हें सांप्रदायिक घोषित कर जेलों में सड़ाया जा सकता है.
आपने दिखा दिया कि अच्छे भले विश्वविद्यालयों को कैसे बर्बाद किया जाता है और विरोध करनेवाले छात्रों को लाठी और डंडों से कैसे पीटा जाता है. उन पर गोली तक चलवाई जा सकती है. आपने दिखा दिया कि विरोधियों को शत्रु मानना ही सच्चा राजधर्म है. और मोदी जी, आपने यह भी दिखा दिया कि नाथूराम गोडसे ही आज का असली नायक है. गांधी पूजनीय हैं, नायक गोडसे है.
आप 56 का और वह 112 इंच का सीना ताने भारत भू पर विचरण कर.रहा है और गांधी जी, जो जीवित रहते कभी मौत से नहीं डरे थे, आज गोडसे के डर से छुपे-छुपे घूम रहे है मगर वे बचेंगे नहीं. इतने गोडसे हैं यहां कि जहां वह छिपने जाएं हो सकता है, वह गोडसे का घर हो.
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