
भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) अपने संघर्ष के 55 सालों में मेहनतकश जनता के सपनों के भारत का निर्माण करने की कठिन लड़ाई में लाखों कॉमरेड्स और समर्थक जनता ने अपनी जान की कुर्बानी दी है. ये सभी लोग भारत के मेहनतकश जनता के सबसे बहादुर और बहुमूल्य बेटे थे. इसी कड़ी में आज हम एक ऐसे नेता का यहां जिक्र कर रहे हैं, जिनके जिन्दगी की संघर्षों ने मेहनतकश जनता के जीत की राहों में एक से बढ़कर एक मिसालें पैदा की. आइये, हम ऐसे ही जनता के जांबाज बेटे का परिचय अपने पाठकों से कराते हैं.
भारत की उत्पीड़ित जनता के प्यारे नेता व भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) की केंद्रीय कमेटी के पोलित ब्यूरो सदस्य कामरेड अक्किराजू हरगोपाल की (श्रीनिवास, रामकृष्णा, साकेत, मधु) 14 अक्टूबर, 2021 को किडनी फेल होने के चलते शहादत हुई. उनके निधन से भारत के क्रांतिकारी आंदोलन को एक बड़ा धक्का लगा. उनके अस्तमय ने क्रांतिकारी शिविर को शोक में डुबा दिया. उन्हें हम विनम्र श्रद्धांजली अर्पित करते हैं. उनके परिजनों के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त करता है. उनके दर्शाएं आदर्शाें को ऊंचा उठाता है.
राज्यलक्ष्मी और सच्चिदानंदाराव दंपति की चार संतान में से कामरेड हरगोपाल दूसरे बेटे थे. गुंटूर जिले का गुत्तिकोंडा उनके पूर्वजों का गांव था. गुत्तिकोंडा एक ऐतिहासिक गांव है जिसमें भाकपा (माओवादी) के संस्थापक नेताद्वय में से एक कामरेड चारू मजुमदार ने 1969 में आंध्रप्रदेश के क्रांतिकारियों के साथ गुप्त रूप से बैठक की. उस गुत्तिकोंडा गांव में ही 19 अप्रैल, 1958 को कामरेड हरगोपाल का जन्म हुआ था. उनकी एक बड़ी बहन हैं और एक बडे़ भाई और एक छोटे भाई हैं. सदानंदेश्वर राव शिक्षक थे. उनकी नौकरी की वजह से उनका परिवार गुंटूर जिला, पलनाडू क्षेत्र के तुमृकोटा में बस गया था. जनवादी व प्रगतिशील विचारधारा से लैस सदानंदेश्वर राव का प्रभाव बचपन में ही कामरेड हरगोपाल पर पड़ा था.
तुमृकोटा में हाइस्कूल की पढ़ाई हासिल करने के बाद माचर्ला शहर के एस.के.बी.आर. कॉलेज से उन्होंने स्नातक की पढ़ाई की. 70 दशक में आंध्रप्रदेश में नक्सलबाड़ी राजनीति का प्रभाव जोरों पर था. 1977 में रैडिकल छात्र संगठन के क्रियाकलाप सक्रिय हो गए. पहले से ही प्रगतिशील विचारधारा से प्रभावित हरगोपाल स्वाभाविक रूप से ही क्रांतिकारी क्रियाकलापों के प्रति आकर्षित हो गए. 1977 में उन्होंने ‘चलो गांवों की ओर’ अभियान में शामिल हुए. 1978 में गुंटूर में आयोजित रैडिकल युवजन संगठन की प्रथम महासभा में शामिल होकर वॉलनटिअर के रूप में उन्होंने अपनी सेवाएं दी थीं.
1980 से उनका परिवार हैदराबाद में बस गया. वहां एक निजी स्कूल में अपने पिता के साथ शिक्षक बन कर वे बच्चों को गणित पढ़ाते थे. साथ ही ओपन यूनिवर्सिटी में राजनीतिक शास्त्र में एम.ए. करने लगे थे. कुछ वक्त के लिए उन्होंने एक निजी दफ्तर में नौकरी की. उस वक्त कामरेड हरगोपाल ने किडनी समस्या का सामना किया. कुछ वक्त के बाद उनका ऑपरेशन हुआ. उसके बाद क्रांतिकारी आंदोलन के आह्वान के मुताबिक 1982 में वे पेशेवर क्रांतिकारी बन गए. तब से लेकर आखिरी सांस तक वे क्रांति के रास्ते पर अडिग रह कर आगे चलते रहे. उस क्रम में वे पार्टी के सर्वोन्नत ढांचा (केन्द्रीय कमेटी) के पोलित ब्यूरो सदस्य बन गए.
1982 से 1986 तक सेंट्रल ऑर्गनाइजर के रूप में गुंटूर जिला, दाचेपल्ली क्षेत्र के गामालपाडू गांव को केंद्र बना कर उन्होंने काम किया. उस गांव में गोपाल के नाम पर शिक्षक के कवर में उन्होंने अपने क्रियाकलाप जारी किए. उस क्षेत्र में ‘गोपाल गुरूजी’ नाम से वे लोकप्रिय हो गए. उस गांव की दलित बस्ती (क्रिष्टियन पालेम) उनके गतिविधियों का केंद्र बन गयी. वे दिन में बच्चों को और रात में बड़ों को पढ़ाते थे. क्रांतिकारी पाठ पढ़ाते हुए उन्होंने जनता में क्रांतिकारी विचारधारा जगा दी. गांवों में दलितों की जिंदगी देख कर वे विचलित होते थे. अपनी क्रांतिकारी जिंदगी में उन्होंने शुरूआत से लेकर आखिरी तक दलित समस्या यानी जातिमुक्ति पर विशेष ध्यान दिया.
दाचेपल्ली क्षेत्र में दलित जनता पर जारी उत्पीड़न के खिलाफ संघर्ष करने के अलावा उनके नेतृत्व में जमीन समस्या, मजदूरी बढ़ाने आदि मांगों को लेकर संघर्ष किए गए. गामालापाडू गांव की बगल में रहे सिमेंट फैक्टरी के मजदूरों को एकत्रित करके उन्होंने कई संघर्षों का नेतृत्व किया. 1983 में माचर्ला में धनलक्ष्मी व नरसारावपेट में अंजम्मा नामक महिलाओं के साथ किए गए अत्याचारों और फिलिप नामक मजदूर की लॉकअप हत्या के खिलाफ आरएसयू और आरवाईएल के नेतृत्व में तमाम गुंटूर जिले में जनांदोलन उभर गए. उन आंदोलनों को मार्गदर्शन देने में कामरेड हरगोपाल की महत्वपूर्ण भूमिका रही.
1985 में कारमचेडू गांव में दबंग जाति के जमींदारी वर्गों द्वारा अंजाम दिए गए दलितों के कत्लेआम के खिलाफ जनता, खासकर दलितों को गोलबंद करके उन्होंने आंदोलनों को संचालित किया. दिसंबर, 1986 में संपन्न गुंटूर जिले की पार्टी प्लीनम में कामरेड हरगोपाल को जिला कमेटी में लिया गया. जिला कमेटी सदस्य की हैसियत से उन्होंने दाचेपल्ली बेल्लमकोंडा केन्द्रों को मार्गदर्शन देते हुए विशेष कर शहरी व छात्र आंदोलन की जिम्मेदारी निभाई. 1986-87 में नल्लमला जंगली क्षेत्र में आंदोलन का विस्तार करने के लिए योजना बनाने में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
1988-89 में गुंटूर जिले में कुछ मुख्य संघर्ष सामने आए. गोल्लापेटा में वन विभाग के गार्ड के उत्पीड़न के विरोध में कामरेड हरगोपाल संघर्ष का नेतृत्व किया, जिसके फलस्वरूप उस गार्ड को सजा दी गई. उसके बाद वन विभाग के खिलाफ तमाम पलनाडू (गुंटूर जिला का एक हिस्सा) क्षेत्र में संघर्षों का उभार आया. शराब बंदी संघर्ष, तेंदूपत्ता तोड़ाई की मजदूरी बढ़ानी, मछवारों की समस्याओं का हल आदि मांगों को लेकर संघर्ष किए गए. वन विभाग की जमीन व अनुपजाऊ जमीन व फर्श के पत्थर की खदानों पर भूमिहीन किसानों और उत्पीड़ित जनता का कब्जा कायम करने के लिए संघर्ष किए गए. इन तमाम संघर्षों के चलते विशाल देहाती क्षेत्र में पार्टी का संगठितीकरण हुआ.
1989 तक जिले के छह केंद्रों – दाचेपल्ली, बेल्लमकोंडा, वेल्दुर्ति, दुर्गी, बोल्लापल्ली व पुल्ललचेरुवु इलाकों में 1+1, 1+2, 1+3 दस्तों का गठन किया गया. लगभग 300 गांवों में पार्टी के क्रियाकलापों का विस्तार हुआ. इस तरह पार्टी के विस्तार में कामरेड हरगोपाल ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. फरवरी 1989 में कामरेड हरगोपाल ने जिला कमेटी के सचिव की जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठायी. उस वक्त वे ‘श्रीनिवास’ के नाम पर लोकप्रिय हो गए. फरवरी 1993 में जिला कमेटी सचिव की जिम्मेदारी से रिलीव होकर दक्षिण तटवर्ती जिलों को मिलाकर गठित किए गए रीजनल कमेटी के सचिव का दायित्व उठाया. उसके बाद संपन्न राज्य प्लीनम में वे राज्य कमेटी के वैकल्पिक सदस्य चुने गए. 1995 में वे राज्य कमेटी सदस्य बन गए.
उन्होंने सूखा ग्रसित पलनाडू क्षेत्र की जनता को सूखा के खिलाफ जारी संघर्षों में संगठित किया. 1990-91 में ऊपरी भाग के पलनाडू क्षेत्र में पानी की समस्या का हल करने के मकसद से दोम्मुर्लागोंदी लिफ्ट इरिगेशन (उत्थान सिंचाई) योजना के लिए संयुक्त मोर्चे के नेतृत्व में संचालित संघर्ष का उन्होंने मार्गदर्शन किया.
चूंकि दाचेपल्ली एरिया के रामापुरम के जमींदारी लोग संशोधनवादी भाकपा में रहते थे, इसलिए वे रामापुरम गांव में क्रांतिकारी नेतृत्व में उभर रहे वर्गसंघर्ष को बर्दाश्त नहीं कर पाए. क्रांतिकारी संघर्ष को रोकने के लिए उन्होंने दलितों पर हमलें करने की योजना बनाई. इसका पहले से ही अंदाजा लगाने वाली क्रांतिकारी पार्टी ने प्रतिरोध करने का निर्णय लिया. इसके हिस्से के तौर पर 1993 में उस गांव के अच्चिरेड्डी व अंकिरेड्डी नामक जमींदारों को गुरिल्ला बलों ने खतम किया. इसके बाद ‘तुम लोग कारमचेडू को पैदा करें, तो जनता रामापुरमों को जरूर पैदा करेगी’ नारा गूंज उठा. इन कार्रवाइयों ने न सिर्फ गुंटूर जिले में बल्कि दक्षिण तटवर्ती इलाके में दलितों के आत्मसम्मान के संघर्षों को जोर दिया.
गुंटूर जिले में विकसित हो रहे क्रांतिकारी आंदोलन को कुचलने के मकसद से एसपी मीना के नेतृत्व में पुलिस बलों ने दाचेपल्ली दस्ते के सदस्य कामरेड कोटेश्वरराव और संगठन के सदस्य कामरेड जयपाल की निर्मम हत्या की. 1 अप्रैल, 1992 को की गई चंद्रवंका मुठभेड़ में कामरेड्स एसन्ना (राजन्ना), रामकृष्णा व माधवीलता के साथ-साथ चार मछुआरों की हत्या की गई. इस मुठभेड़ से कामरेड श्रीनिवास बाल-बाल बच गए. इन हत्याओं के खिलाफ जनांदोलन को बढ़ाने के लिए उन्होंने बेहद प्रयास किया.
1990 में दक्षिण तेलंगाना में संचालित राज्य स्तरीय मिलिटरी कैंप में उन्होंने प्रशिक्षण लिया. बाद में 1992 में गुंटूर, प्रकाशम व कृष्णा जिलों के कमांडरों व ऑर्गनाइजरों के लिए संचालित मिलिटरी प्रशिक्षण शिविर में उन्होंने प्रशिक्षक की जिम्मेदारी निभाई. तटवर्ती जिलों में गुरिल्ला दस्ताओं को सैनिक व सांगठनिक रूप से मजबूत करने के लिए उन्होंने प्रयास किया. मिलिटरी ज्ञान बढ़ाने, गुरिल्ला नियमों पर अमल करने व गुरिल्ला दस्ते के कामकाज में बेहतर बदलाव लाने के लिए वे निरंतर प्रयासरत रहे. एक ओर ग्रामीण क्षेत्र में वर्ग संघर्ष को विकसित करते हुए दूसरी ओर मजदूरों, महिलाओं, छात्रों, युवाओं व बुद्धिजीवियों में क्रांतिकारी आंदोलन के निर्माण के लिए उन्होंने अपनी भूमिका निभाई. ग्रामीण आंदोलन व शहरी आंदोलन का तालमेल के साथ संचालन करने के लिए उन्होंने दृढ़संकल्प के साथ प्रयास किया.
इंटेलिजेंस सीआई इमान्युएल राजु ने सायी नामक पार्टी के कोरियर को कोवर्ट बना कर राज्य स्तरीय नेतृत्व को गिरफ्तार करवाया. इम्मान्युएल राजु को विजयवाडा होटल में ऑक्शन टीम द्वारा खतम करवाने में कामरेड श्रीनिवास की भूमिका रही. 1993-94 से लेकर 1998 तक पलनाडू क्षेत्र में जमीन आंदोलन जोरों पर जारी रहा था. उसके पीछे कामरेड श्रीनिवास का मार्गदर्शन रहा.
1997 में तत्कालीन राज्य कमेटी सदस्य कमरेड मेकला दामोदर (संजीव) के शहीद होने के बाद एपी राज्य कमेटी के निर्णय के मुताबिक दक्षिण तेलंगाना की जिम्मेदारी को कामरेड श्रीनिवास ने अपने कंधों पर उठाया. उस वक्त दक्षिण तेलंगाना में भीषण दमन जारी था. बड़े पैमाने पर कामरेड्स शहीद होने लगे थे. ऐसे वक्त जनता पर दृढ़ विश्वास के साथ उन्होंने उस अनजान इलाके में कदम रखा.
कुछ ही वक्त में वहां की कतारों और जनता का विश्वास व प्यार उन्होंने हासिल किया. आंदोलन के क्रम में वहां सामने आई चुनौतियों का स्वीकार करके उनके हल के लिए वे प्रयासरत रहे. 1997 से 2000 तक उन्होंने दक्षिण तेलंगाना रीजनल कमेटी के सचिव की जिम्मेदारी निभाई. 1995 में एपी राज्य के अधिवेशन में उत्तर तेलंगाना को अलग किया गया. बाद में एपी राज्य के बाकी क्षेत्र के लिए निर्देशित गुरिल्ला जोन कार्यभारों की परिपूर्ति के लिए उन्होंने अविरल प्रयास किया. लुटेरे शासक वर्गों की राजसत्ता को ध्वस्त करने के मकसद से वर्ग संघर्ष को तेज करते हुए गुरिल्ला जोनों में गुरिल्ला बेसों का निर्माण करने के लिए उन्होंने दृढ़संकल्प के साथ काम किया.
राज्यभर में महिला आंदोलन को मजबूत करने व उसका विस्तार करने के लक्ष्य के साथ 1990 से पार्टी द्वारा विशेष प्रयास की शुरुआत हुई. 1990 के बाद से गुंटूर जिले में महिला आंदोलन को विकसित करने के लिए कामरेड श्रीनिवास ने अधिक प्रयास किया. 1995 से राज्य कमेटी की ओर से उन्होंने महिला क्षेत्र पर विशेष ध्यान देकर पूरे राज्य में महिला आंदोलन को मजबूत करने के लिए उन्होंने प्रयास किया. महिलाओं की समस्याओं का हल करने में पितृसत्ता के सोच विचार का शिकार होने से वे बचते थे. लिंग समानता को ऊंचा उठाते हुए महिला कामरेडों के साथ आत्मीयता के साथ पेश आते हुए उनमें आत्मविश्वास बढ़ाते थे.
आंदोलन में सामने आए गैर सर्वहारा रुझानों के बारे में जनवरी 1999 में संपन्न आंध्र प्रदेश की राज्य प्लीनम में चर्चा करके तमाम पार्टी को सुधारने के लिए राज्य कमेटी ने शिक्षा व भूलसुधार कार्यक्रम बनाया. उसे सफल बनाने में कामरेड श्रीनिवास ने सक्रिय भूमिका निभाई.
2 दिसंबर, 1999 को हमारे प्यारे नेता व केन्द्रीय कमेटी के सदस्य कामरेड्स श्याम, महेश व मुरली की चंद्रबाबू के नेतृत्व वाली तत्कालीन तेलुगू देशम सरकार ने एक कोवर्ट ऑपरेशन में हत्या की. उससे तमाम पार्टी को बेहद बड़ा झटका लगा. शहादत के समय कामरेड महेश आंध्रप्रदेश राज्य कमेटी के सचिव रहे थे और जबकि कामरेड मुरली तेलंगाना राज्य कमेटी के सचिव रहे थे. इसलिए दोनों राज्यों के क्रांतिकारी आंदोलनों को अपुर्णीय क्षति पहुंची.
ऐसी कठिन परिस्थिति में आंध्रप्रदेश राज्य के क्रांतिकारी आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए कामरेड श्रीनिवास उस राज्य कमेटी की सचिव की जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठायी. राज्य कमेटी के सचिव की हैसियत से उन्होंने उस कमेटी के मुख पत्र ‘क्रांति’ को तीव्र दमन में भी प्रकाशित करने के लिए कोशिश की. 2001 में संपन्न तत्कालीन पीपुल्सवार पार्टी की 9वीं कांग्रेस में कामरेड श्रीनिवास केंद्रीय कमेटी सदस्य चुन गए.
तत्कालीन मुख्यमंत्री चंद्रबाबू के कार्यकाल में संयुक्त आंध्रप्रदेश विश्व बैंक की नीतियों की प्रयोगशाला बन गया. राज्य को साम्राज्यवादियों के पास गिरवी रखा गया. अपने एजेंडे को आगे ले जाने में कोई अड़चन न आए, इसलिए क्रांतिकारी आंदोलन पर सरकार द्वारा भीषण दमन का इस्तेमाल किया गया. कामरेड श्रीनिवास के नेतृत्व में उस दमन का राजनीतिक व सैनिक रूप से प्रतिरोध किया गया. उस प्रतिरोध के हिस्से के तौर पर एक्शन टीम द्वारा पुलिस के खूंखार आला अधिकारी उमेश चंद्रा को हैदराबाद में खतम किया गया. मार्च 2000 में आंध्रप्रदेश के गृहमंत्री माधव रेड्डी का खात्मा किया गया. 2003 में तत्कालीन मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायुडू के ऊपर हमला किया गया जिसमें वह घायल होकर बाल-बाल बच गया.
पार्टी द्वारा किए गए राजनीतिक व सैनिक प्रयास के फलस्वरूप राज्य में जनहित बुद्धिजीवियों व मानवाधिकार कार्यकर्ताओं द्वारा मांग उठाई गई कि चूंकि नक्सलवादी समस्या सामाजिक व राजनीतिक समस्या है इसलिए क्रांतिकारी पार्टी के साथ बातचीत करनी चाहिए. हालांकि चंद्रबाबू की सरकार ने उस मांग को नजरअंदाज किया.
2004 में आयोजित विधानसभा चुनावों को नक्सलवादियों पर जनमत संग्रह के तौर पर चंद्रबाबू सरकार द्वारा जोर-शोर से प्रचार किया गया. उसी चुनाव के दौरान कांग्रेस पार्टी द्वारा क्रांतिकारी पार्टी के साथ बातचीत का वादा किया गया. इसका नतीजा यह हुआ कि उन चुनावों में चंद्रबाबू को करार हार का सामना करना पड़ा. जबकि कांग्रेस पार्टी को जीत मिली. राजशेखर रेड्डी के नेतृत्व में सत्तारूढ़ हुई कांग्रेस पार्टी के ऊपर बातचीत के लिए विभिन्न तबकों द्वारा दबाव डाल दिया गाया. उससे मजबूरी में कांग्रेस पार्टी को तत्कालीन पीपुल्सवार व जनशक्ति पार्टियों के साथ बातचीत करने के लिए आगे आना ही पड़ा.
बातचीत के लिए दोनों पार्टियों से चुनी गई टीम का कामरेड हरगोपाल ने रामकृष्णा नाम से नेतृत्व किया. बातचीत के दौरान उन्होंने जनता की मूलभूत समस्याओं को सरकार के सामने रखा था. बातचीत के प्रति सरकार की बेईमानदारी रवैये का उन्होंने पर्दाफाश किया. बातचीत से क्रांतिकारी आंदोलन के इतिहास में कार्यनीति के तौर पर एक नया अनुभव मिला. उस दौरान दोनों क्रांतिकारी पार्टियों का विलय होकर आविर्भाव होने वाली भाकपा (माओवादी) के गठन के बारे में हैदराबाद में प्रेस वार्ता करके उन्होंने घोषणा की.
एक ओर बातचीत के प्रति सरकार का रैवया जनता में पर्दाफाश होने लगा, दूसरी ओर क्रांतिकारी पार्टी की प्रतिष्ठा बढ़ने लगी. पार्टी के प्रति जनता का विश्वास व प्यार बढ़ने लगा. इसको सहन न करने वाली सरकार बातचीत से मुकर गई. जनवरी 2005 से क्रांतिकारी आंदोलन को कुचलने के लिए सरकार ने अभूतपूर्व ढंग से दमन का सहारा लिया. कामरेड श्रीनिवास को निशाना बना कर कई ऑपरेशन्स किए गए. हालांकि इस भीषण दमन में जनता व पार्टी की कतारों ने उन्हें बचा लिया लेकिन विभिन्न स्तरों के लगभग 150 कामरेडों व क्रांतिकारी जनता की मौतें हुईं.
उस वक्त पार्टी द्वारा सही दांवपेंच नहीं अपनाने की वजह से आंध्रप्रदेश राज्य का आंदोलन तात्कालिक सेटबैक का शिकार हुआ. पार्टी के नेतृत्व व कतारों को बचाने के मकसद से राज्य के सचिव सहित कई कामरेडों को पार्टी ने रणनीतिक क्षेत्रों में भेज दिया. उस तरह कामरेड श्रीनिवास 2006 में एओबी पहुंच गए. वहां उनका परिचय साकेत के नाम से हुआ.
विकसित शहरों व मैदानी क्षेत्रों में विभिन्न सामाजिक तबकों की जनता के संघर्षों का मार्गदर्शन करने में अनुभव हासिल करने वाले कामरेड साकेत ने अब एक आदिवासी इलाके में जारी आंदोलन की जिम्मेदारी को उठा लिया.
पूर्वी घाटी क्षेत्र एक रणनीतिक इलाका है. आर्थिक, सामाजिक व सांस्कृतिक रूप से पिछड़ा हुआ इलाका है. वहां विभिन्न भाषाओं व विभिन्न जनजातियों की जनता निवासरत है. एओबी की ठोस परिस्थिति व विशिष्टताओं को समझते हुए, आंदोलन की वर्तमान स्थिति का विश्लेषण करते हुए, निर्देशित कार्याभारों की रोशनी में भविष्य की गति का आकलन करते हुए आंदोलन के पुरोगमन के लिए कामरेड साकेत ने प्रयास किया.
2006 में आयोजित एओबी के तीसरी अधिवेशन में एओबी आंदोलन के तात्कालिक सेटबैक में पहुंचने का आकलन किया गया और अधिवेशन ने आंदोलन के पुनरविकास के लिए कार्यभार बनाए. बदलती परिस्थितियों के अनुरूप पार्टी की कार्यशैली को सुधारने के लिए पार्टी में जारी गैरसर्वहारा रुझानों के खिलाफ भूलसुधार अभियान का संचालन किया गया जिसका कामरेड साकेत ने नेतृत्व किया. एओबी आंदोलन पर जारी एलआईसी हमले का सामना करते हुए उस आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ा. जिन परिस्थितियों व दांवपेंचों के चलते उत्तर तेलंगाना व आंध्रप्रदेश आंदोलन सेटबैक में पहुंच गए उनका अध्ययन करते हुए उन अनुभवों व सबकों से सीखते हुए एओबी आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने कोशिश की.
2008 में तत्कालीन एओबी एसजेडसी के सचिव का क्रांतिकारी जरूरतों के लिए दूसरी इलाके में तबादला किया गया. इसकी वजह से 2008 आखिरी में कामरेड साकेत ने एओबी एसजडसी के सचिव का दायित्व भी उठाया. कामरेड साकेत के मार्गदर्शन में 2009 में जोन के आंदोलन की गहराई से समीक्षा करके राजनीतिक व सांगठनिक समीक्षाओं को तैयार करके तीसरी अधिवेशन की पहली प्लीनम को आयोजित किया गया. उस दौरान आंदोलन द्वारा सामना की जा रही समस्याओं व लेनेवाले कार्यभारों के बारे में सभी स्तरों की कमेटियों के विचार में एकरूपता हासिल करने में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
2006 में कोरापुट जिले के नारायणपट्ना व बंदुगांव ब्लॉकों के बोरिगी व नागुलाबेडा क्षेत्रों की जनता ने संशोधनवादी पार्टियों के साथ अपना नाता तोड़ कर माओवादी पार्टी के नेतृत्व में संगठित होकर जमीन आंदोलन को आरंभ किया. खूंखार जमींदार मार्कंडेया चौधरी के जनविरोधी हथकंडों का पर्दाफाश करते हुए उसका खात्मा किया गया.
जनता ने पार्टी के नेतृत्व में ऐसे क्रूर जन विरोधी जमींदारों की जमीनों को अपने कब्जे में लेकर पीएलजीए की मदद से उन जमीनों में खेतीबाड़ी शुरू की. 2009 में नारायणपट्ना क्षेत्र में पीएलजीए द्वारा किए गए नाल्को हमला व पालूर एंबुश सफल करके न सिर्फ दुश्मन को धक्का पहुंचाया गया बल्कि हथियार जब्त किए गए. ऐसी कार्रवाइयों ने जनता को सकारात्मक रूप से प्रभावित किया. जनांदोलनों को भी प्रभावित किया. इस तरह कामरेड साकेत ने नारायणपट्ना सशस्त्र किसान संघर्ष को दिशा-निर्देशन देकर भ्रूण रूप से राजसत्ता की स्थापना करके पार्टी को नया अनुभव दिया.
नारायणपट्ना किसान आंदोलन पर केन्द्रीद्रीकरण करते हुए उन्होंने विशाखा-पूर्व गोदावरी डिविजन में बाक्साइट खदानों के खिलाफ संघर्ष का मार्गदर्शन किया. सरकार व जमींदारों के अधीनस्थ कॉफी बगीचें जनता को दखल करने के लिए जन संघर्ष छेड़ दिया. देवमाली में बाक्सइट खदान के खिलाफ जारी विस्थापन विरोधी आंदोलन को सही दिशा-निर्देशन दिया.
उन्होंने आंदोलन में विभिन्न संदर्भों में सामने आयी दक्षिणपंथी व वामपंथी अवसरवादी लाइन को हरा कर पार्टी लाइन को ऊंचा उठाया. नारायणपट्ना आंदोलन के नेता नाचिका लिंगा ने जब दुश्मन के हमले का सामना करते हुए आंदोलन को आगे बढ़ाने के बजाय फिर चुनाव का रास्ता चुना था, तब दीर्घकालीन जन युद्ध की लाइन को ऊंचा उठाते हुए नाचिका लिंगा के खिलाफ नारायणपट्ना की जनता को सही लाइन में आगे बढ़ाया.
एओबी एसजेडसी सदस्य श्रीरामुलु श्रीनिवास ने राजनीतिक रूप से कमजोर होकर पार्टी से बाहर होने का निर्णय लेकर पार्टी के ऊपर कीचड़ उछालने की कोशिश की, तो उसकी वामपंथी व अवसरवादी दलीलों का कामरेड साकेत के नेतृत्व में जोन प्लीनम ने कड़ा विरोध करते हुए उन्हें हराया.
एक और एओबी एसजेडसी सदस्य विजय गिरफ्तार होकर राजनीतिक रूप से कमजोर होकर स्थानीय संस्थाओं के चुनावों में शामिल होने की बात सामना लाया, तो कामरेड साकेत के नेतृत्व में एसजेडसी ने न सिर्फ उसकी आलोचना की बल्कि उसका सही जवाब दिया. ओडिशा राज्य कमेटी के सचिव सव्यसाची पंडा द्वारा सामने लायी गई दक्षिणपंथी व अवसरवादी राजनीति को एम-एल-एम की रोशनी में हराते हुए पार्टी की लाइन को ऊंचा उठाते हुए सीसी ने एक पुस्तिका जारी की. पंडा की अवसरवादी राजनीति को हराने में कामरेड साकेत ने अपनी भूमिका निभाई.
सिद्धांत को व्यवहार के साथ और सामान्यता को विशिष्टता के साथ जोड़ कर दांव-पेंचों को विकसित करने के लिए उन्होंने अथक प्रयास किया. ‘भारत देश के उत्पादन संबंधों में बदलाव-हमारा रणनीतिक कार्यक्रम’ दस्तावेज को अंतिम रूप देकर दांव-पेंचों को विकसित करने में कामरेड साकेत ने सक्रिय भूमिका निभाई. सिद्धांत को व्यवहार के साथ जोड़ कर बनाए गए दांव-पेंचों पर निर्भर होकर वर्ग संघर्ष को तेज करते हुए गुरिल्ला युद्ध को विकसित करने के मकसद से सभी स्तरों की पार्टी कमेटियों को फील्ड प्रशिक्षण देने में उन्होंने मार्गदर्शन दिया.
2013 से एओबी एसजेडसी के मुख पत्र ‘बोल्शेविक’ को नियमित रूप से प्रकाशित करके पार्टी कतारों, जन संगठनों के कार्यकर्ताओं व जनता की राजनीतिक चेतना बढ़ाने में कामरेड साकेत ने राजनीतिक रूप से सराहनीय भूमिका निभाई. वे एक अच्छे लेखक थे. तेलुगू भाषा, कला व साहित्व पर उनकी अच्छी-खासी पकड़ होती थी. उनकी लेखन शैली सरल, आकर्षनीय व धारदार होती थी. जन नाट्य मंडली के 50 वर्षीय इतिहास को समग्र रूप से प्रकाशित करने में उन्होंने अपनी भूमिका निभाई.
केंद्र कार्यभार के अनुरूप आधार इलाके के लक्ष्य लेकर आगे बढ़ रहे दंडकारण्य आंदोलन को उनके नेतृत्व में एओबी एसजेडसी ने कई तरह मदद पहुंचाई. हालांकि आंध्रप्रदेश के आंदोलन पर दुश्मन द्वारा संचालित भीषण दमन के पृष्ठभूमि में उनकी सुरक्षा को ध्यान में रख कर उनका तबादला एओबी में किया गया. लेकिन एओबी में भी दुश्मन ने उनका पीछा नहीं छोड़ा. उन्हें निशाना बना कर कई हमलें जारी किए गए. रामगुडा गांव के पास किए गए एक भीषण हमलों में 31 कामरेडों ने अपनी जानें गंवाईं. तब तक के क्रांतिकारी आंदोलन में वह सबसे बड़ा नुकसान था.
उस भीषण हमलें में से भी पार्टी व पीएलजीए की कतारों के बहादुराना प्रतिरोध व क्रांतिकारी जनता की मदद से वे सुरक्षित रूप से रिट्रीट हो गए. लेकिन उस घटना में वे घायल हो गए. अस्वस्थता से जूझते हुए भी एओबी के कठिन टेरेइन में निचले स्तर की कतारों के साथ जुड़ कर रहते हुए फील्ड में आने वाली समस्याओं का गहराई से अध्ययन करते हुए आखिरी सांस तक उनके हल के लिए वे आवश्यक मार्गदर्शन देते रहे.
विभिन्न कठिन परिस्थितियों में उन्होंने विभिन्न कमेटियों के सचिव की जिम्मेदारी निभायी. 1997-2000 में दक्षिण तेलंगाना रीजनल कमेटी, 2000-2006 में एपीएससी और 2008-2017 में एओबी एसजेडसी के सचिव की जिम्मेदारियां निभाते हुए भीषण दमन में मार्गदर्शन देते हुए आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए वे प्रयासरत रहे. जो भी कमेटियों का उन्होंने नेतृत्व किया उनकी राजनीतिक एकता बढ़ाते हुए प्रतिरोध के दांव-पेंच बना कर आंदोलन को बचाने के लिए कोशिश की. क्रांति के प्रति जनता का विश्वास बढ़ाने कई जन संघर्षों में बड़े पैमाने पर जनता को गोलबंद करने में उन्होंने मूल्यवान अनुभव हासिल किया.
हालांकि वे पीड़क जाति में पैदा हुए थे, लेकिन उस जाति का प्रभाव उनमें लेश मात्र भी नहीं दिखता था. जातिगत भेदभाव का विरोध करने में वे हर हमेशा आगे रहते थे. वे साथी कामरेडों के स्वास्थ्य का ख्याल रखते थे. अपनी स्वास्थ्य समस्याओं के बारे में वे किसी को नहीं बताते थे.
भारत की क्रांति में सर्वाेच्च स्तर के नेता के रूप में उभरने के बावजूद उन्होंने कभी अपने बड़ापन का प्रदर्शन नहीं किया. आत्मस्तुति नहीं की. सीधासादा जीवन शैली अपनाई. स्वार्थ भावना को अपने दूर-दूर तक भी भटकने नहीं दिया. जनता व क्रांति के फायदाओं को उन्होंने सर्वोच्च महत्व दिया. 40 वर्षीय लंबे क्रांतिकारी जीवन में कई उतार-चढ़ावों, टेढ़े-मेढ़ों, हार-जीतों में उन्होंने हिस्सा लिया. वे कभी जीत में फूलकर कुप्पा नहीं हो गए और हारों में हताश-निराश नहीं हुए. जीत का श्रेय लेने के लिए उन्होंने कभी प्रयास नहीं किया. लेकिन हर हार में अपनी जिम्मेदारी को चिह्नित करने में वे आगे रहते थे. पार्टी के आंतरिक चर्चाओं में सक्रिय रूप से भाग लेते हुए सीधे तौर पर अपनी बात रखते थे.
निजी जिंदगी में भी उन्होंने अपने परिवार को क्रांतिकारी मार्ग में ढाल दिया. उनकी युवा अवस्था में एक हमदर्द परिवार की युवती – शिरीषा के साथ उनकी शादी हुई. बाद में उन्होंने एक बेटा को जन्म दिया. अपने इकलौते बेटे पृथ्वी की शिरीषा ने लाड़-प्यार से परवरिश की. जब पृथ्वी ने अपनी किशोरावस्था पार की उसमें समाजिक चेतना बढ़नी लगी. स्वाभाविक रूप से ही अपने पिता का रास्ता ने उसे आकर्षित कर दिया. नतीजतन वह पीएलजीए में भर्ती हुआ. मुन्ना के नाम पर सीआरसी कंपनी-1 में उसने काम किया.
एक पिता के बतौर कामरेड साकेत ने एक आदर्श मिसाल पेश की. उन्होंने अपने बेट के प्रति कोई पक्षपात नहीं दिखाया. कामरेड मुन्ना को एक पिता के तौर पर नहीं बल्कि एक नेता के तौर पर मार्गदर्शन दिया. कामरेड मुन्ना में कोई गैर सर्वहारा रुझान दिखता था आलोचना के जरिए उसे सुधारने की कामरेड साकेत कोशिश करते थे. पार्टी, वर्गसंघर्ष व क्रांतिकारी जनता ने मुन्ना को एक आदर्श क्रांतिकारी के रूप में ढाल दिया. 24 अक्टूबर, 2016 को रामगुडा हमले में अपने पिता सहित पार्टी नेतृत्व को बचाने के लिए दुश्मन के साथ डट कर लड़ते हुए मुन्ना ने अपनी अनमोल जान की कुरबानी दी.
रामगुडा घटना में अपने बेटे के अलावा कई स्तरों के कामरेडों के शहीद होने से स्वाभाविक रूप से ही कामरेड साकेत को बहुत बड़ा दुख पहुंच गया. लेकिन उस दुख का उन्होंने हिम्मत से सामना किया. हालांकि बेटे की शहादत की खबर से शिरीषा को बड़ा सदमा पहुंच गया लेकिन उन्होंने अपने बेटे की शहादत पर गर्व प्रकट किया. उस वक्त कामरेड साकेत ने अपनी पत्नी के दुख को साझा करते हुए उन्हें संत्वना देते हुए पत्र लिखा है कि ‘मैं सिर्फ मुन्ना की मां हूं’ ऐसा सोचने से दुख को झेलना पड़ेगा. लेकिन मैं कइयों बच्चों की मां हूं, ऐसा सोचने से दुख से उबर सकती हो.
कामरेड साकेत की शहादत के बाद शिरीषा ने अपनी अकथनीय व्यथा, दुख व त्रासदी को दरकिनार करते हुए मीडिया में चेतनापूर्वक घोषणाएं की थीं. उनके द्वारा दर्शायी गई मानसिक दृढ़ता व हिम्मत के पीछे कामरेड साकेत की दी गई राजनीति, प्रेरणा व उनके आदर्शों को हम देख सकते हैं.
कामरेड साकेत ने अपनी क्रांतिकारी जिंदगी में हर वक्त कम्युनिस्ट मानव संबंधों व मूल्यों के बारे में बोधन करते हुए उन उच्च मूल्यों का पालन करते हुए नए मानव की मिसाल को पेश किया. उत्पीड़ित जनता, खासकर आज की पीढ़ी के युवाओं व छात्रों पर उन्होंने अमिट छाप छोड़ दी. इसीलिए सभी लोग उन्हें प्यार करते थे. सर्वहारा वर्ग के उत्तम सपूत कामरेड साकेत हमेशा हमें जागरूक करते रहते हैं.
क्रांतिकारी आंदोलन में सामने आने वाले उतार-चढ़ाव, तकलीफों व नुकसानों का दृढ़ संकल्प के साथ मुकाबला करना, उच्च आत्मबलिदानी भावना, निस्वार्थ, सीधा-सादा जीवनशैली, जनता व क्रांति के फायदों के लिए अथक परिश्रम करना, सभी स्तरों के कामरेडों के साथ जनवादी तरीके से व्यवहार करना, कठिन परिस्थिति में भी कैडरों व जनता से जुड़ कर रहना आदि कई उत्तम क्रांतिकारी आदर्शों की स्थापना करने वाले कामरेड साकेत अब भौतिक रूप से हमारे बीच में नहीं रहे हैं. लेकिन उनके द्वारा दर्शाए गए कम्युनिस्ट मूल्य व क्रांतिकारी रास्ता हमें प्रेरणा देते रहेंगे. हमारे देश की मेहनतकश जनता के मन में वे सदा जीवित रहेंगे. कामरेड साकेत अमर रहें !
- महेश सिंह
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