Home कविताएं तुम्हारी आंखों में डर अच्छा लगता है !

तुम्हारी आंखों में डर अच्छा लगता है !

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मुझे तुम्हारी आंखों में
डर देखना अच्छा लगता है
मैं जब देखता हूं कि तुम
एक बाईस साल की लड़की से भी डरते हो
और एक अस्सी साल के बूढ़े से भी
जब तुम अपंग से भी डरते हो
और मूक बधिर लिखे हुए शब्दों से भी
जब तुम एक कहानी या एक कविता
या लेख से डरते हो
या घर को लौटते मज़दूरों से
रेहड़ीवालों से और
गीत गाती स्त्रियों से डरते हो
तो अच्छा लगता है मुझे

जब तुम इस डर से घबरा कर
अपने लिए बंकरयुक्त महल बनाते हो
संसद में क़ानून बना कर
अपनी चोरी छुपाते हो
रात रात भर जाग कर
सुबह को रोकने की साज़िश करते हो
और देश के मानचित्र पर बिखरे
गौहर उठा कर उनकी तिजोरियां भरते हो
या लाचार कन्या के लाचार बाप की बेबसी पर ठहाके लगाते हो
तो अच्छा लगता है मुझे

जब तुम एक चम्मच की टूटी हुई
हैंडल पर शोक प्रकट करते हो
या किसी बलात्कारी या हत्यारे को
ट्वीटर पर फ़ॉलो करते हो
या सरहद पर सौदे के तहत
अपने जवान मरवाते हो
तब याद आता है मुझे
किस तरह तुमने साबरमती एक्सप्रेस के
दरवाज़े सील किए होंगे बाहर से

तुम शव जीवी
रक्त पिपासु नर पिशाच
जब जब तुम हवा को रोक कर
मेरी आवाज़ को सीमित करने का
प्रयास करते हो
अच्छा लगता है मुझे

क्योंकि मुझे मालूम है कि
डरपोक हो तुम
और जिस दिन तुम मेरे सामने रहोगे
मर जाओगे तुम

मेरे हाथ का पत्थर
तुम्हारे सर नहीं होगा

  • सुब्रतो चटर्जी

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